BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Saturday, March 1, 2008

मातृभूमि से बलात्कार

मातृभूमि से बलात्कार
पलाश विश्वास

भारतभूमि आक्रान्त है। मूलनिवासी मारे जा रहे हैं। मातृभूमि अनन्त बलात्कारों का शिकार। बलात्कारी कोई बाहरी हमलावर नहीं, मातृवंदनागृह के उपासक सत्तावर्ग के हितों के रखवाले हैं। हम बांग्लादेश, वियतनाम, कोरिया,इराक, अफगानिस्तान और लातिन अमेरिकी, अफ्रीकी, यूरोपीय और दूसरे एशियाई आक्रान्त देशों के नागरिकों की तरह यह सोचकर भी सान्त्वना के हकदार नहीं बनते कि यह हमलावर संस्कृति आयातित है।

वित्तमंत्री चिदम्बरम के प्रायोजित बजट के बाद से चुनावों की विज्ञापनी मंत्रध्वनि गायत्रीमंत्र की तरह जापी जा रही है तमाम विचारधाराओं, पार्टियों, मीडिया और सत्तावर्ग के प्रतिष्ठानिक गलियारों में। अखबारों और टीवी चैनलों ने हायतौबा मचाना शुरू कर दिया कि क्या गजब हो गया कि लोकलुभावन चुनावी बजट के जरिये विकास की गति थाम ली गयी है। दरअसल यह सोची समझी रणनीति है सामूहिक बलात्कारों और नरसंहारों के लिए। बल्कि कारपोरेट जगत की प्रतिक्रियाएं काफी हद तक ईमानदार है। शेयर बाजार में मामूली हलचल के बावजूद उत्तर आधुनिक बाजार के तमाम देशी विदेशी सपनों के सौदागर आश्वस्त है कि बलि से पहले बकरे की पूजा की रस्म ही निभाई गयी है और चुनाव और लोकतन्त्र के नाटक के बावजूद खुला बाजार, जनआखेट, बलात्कार, नीली क्रान्ति, उदारीकरण, निजीकरण, छंटनी, अंग्रेजी साम्राज्यवाद, उच्चतकनीक, भूमि लूट, प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के बंदर बंटवारे की मनुस्मृति रंगभेदी व्यवस्था में कोई फेरबदल नहीं होने वाला। विदर्भ के किसानों को कोई नहीं बचानेवाला और नंदीग्राम, कलिंगनगर, चायबागानों, जूटमिलों, कल कारखानो और खेत खलिहानों में आदमखोरों क महाभोज जारी रहेगा।

आम बजट को लोकलुभावन चुनावी बजट कहा जा रहा है। चुनाव की तारीख का कयास लाय जा रहा है। जातीय, साम्प्रदायिक समीकरमों के विश्लेषण तैयार किये जा रहे हैं। किसानों को छलावे के इस अश्लील, भद्दी हरकत को नवउदारवाद और आम आदमी के हितों का अद्भुत समन्वय बताया जारहा है। राटष्ट्रपति के अभिभाषण में भारत अनमेरिकी परमाणु समझौते और रक्षा गठबंधन के प्रति प्रतिबद्धता दहरायी गयी। अमेरिका विरोधी मुहिम और मुसलमानों के मसीहा वामपंथी फिर भी मनमोहन और चिदम्बरम के साथ हैं। बजट के खलाफ केरल के माकपायी सांसदों को सदन में तालियां बजाने के लिए छोड़कर बंगाली माकपाई वाकआउट कर गये। यह बहुप्रचारित बंगाल केरल लाइन का अंतर नहीं, बल्कि दाल में काला कुछ और है। तुलसीदास जी गलत लिख गये? कौन कहता है कि एकसाथ हंसा और रोया नहीं जा सकता? माकपाइयों को देख लीजिये। चिदम्बरम के बजट भाषण खत्म होते न होते अमेरिका ने ेतावनी दे दी बर्न्स के हवाले से कि भारत को अमेरिका के किसी और देश से परमाणु सहयोग लेने की इजाजत नहीं है। और राष्ट्र, सम्प्रभुता, स्वतन्त्रता, लोकतन्तर की बात करते हैं। विश्व बैंक के तमाम चाकर प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, वित्तमंत्री और योजना आयोग के अध्यक्ष हैं। पिछड़ों के मसीहा लालू प्रसाद रेलवे का वाणिज्यीकरण कर रहे है तो दलितों के मसीहा राम विलास पासवान भारत देश को रासा.निक जैविकी हथियारों का प्रयोगशाला बना रहे हैं। सर्वहारा के झंडेवरदार बुश और कीसिंजर के हमसफर हैं। सम्पूर्ण कारपोरेट रणनीति, अमेरिकी युद्धक विदेश और वित्तीय नीतियों के मद्देनजर अमेरिका पोषित वित्तीय संस्थानों विश्व बैंक, डब्लटीओ, गैट, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और यहूदी श्वेत युद्धतन्त्र के दिशानिर्देशों से उन्हीं के चाकरों के जरिए बने ऐसे बजटों को आम आदमा का बताया जाना अपने आप में एक जटिल दुष्प्रचार अभियान है। ठीक वैसे ही जैसे, ग्लोबीकरण के विरुद्ध सत्ता प्रतिष्ठानो सें जुड़े रथी महीरथी का विद्रोह। आखिर महाश्वेता देवी, मेधा पाटकर, अरुन्धति राय, अपर्णा सेन, सुमित सरकार के सड़कों पर उतरने से कुल हासिल क्या हुआ? उल्का महाजन ने नवी मुंबई के कसानों को कितना बचाया? मेधा घूम घूमकर गेशभर में आंदलन करके सुर्खियों पर छा जाती हैं, पर नर्मदा घाटी के डूब में शामिल मूल निवासियों को क्या हासिल हुआ?

ममता, महाश्वेता और माओवादियों के सिंगुर नंदीग्राम महाविद्रोह का अंजाम क्या हुआ? पूर बंगाल बेदखल। नैनो बाजार में। डाउज, सलेम, टाटा, अंबानी, जिंदल, हिंदुजा के लिए खुला आखेटगाह बन गया बंगाल।

मनुष्यता और सभ्यता का इतिहास नरसंहारों का अटूट सिलसिला है, ितिहास तो थानेदार की एफआरआई है। जैसा हुआ, वैसा नहीं, बल्कि विजेताओं के हितों के मद्देनजर भविष्य को साधने के नजरिए से लिखे गये आख्यान हैं। पहिए के आविष्कार के बाद हर खोज और हर अनुसंधान, विज्ञान और तकनीक की विकासयात्रा के कदम दर कदम मारे जाते रहे हऐं मूलनिवासी इस ब्रह्मांड में। दानिकेन की देव परिकल्पना और मिथकों पर आधारित भारतीय धर्म शास्त्र, इतिहास के आलोक में उपनिवेशों की कथा हरि कथा अनन्त है। अह देवादिदेव महादेव अमेरिकी राष्ट्रपति महामहिम जार्ज बुश महाशय है। दुर्गा रूपेण हिलेरी क्लिंटन हो या दानव असुर वंशज बाराक ओबामा, हम पलक पांवड़े बिछाकर अपने नये भाग्य विधाता विधात्री के इन्तजार में हैं। मदे की बात तो यह है कि पश्चिम की परोसी हुई जूठन के अलावा इस परिघटना के बारे में कुछ भी जानेने की हालत में नहीं हैं। साम्राज्यवादी पूंजीवादी विकास के हो हल्ले, रक्षा समझौतों, परमाणु गठबंधन, कारपोरेट और मनोरंजन की हलचलों के सिवाय अमेरिकी जनता के आंतरिक स्वशासन, उनकी चुनौतियों, प्रतिरोध और लोकतात्रिक साम्राज्यवाद विरोधी गतिविधियों से हम बेखबर हैं। दसता खत्म करने की ल़ा ्मेरिका में ही लड़ी गयी। वियतनाम से लेकर इराक अफगानिस्तान युद्ध तक के विरोध में लामबंद हैं अमेरिकी। और आतंकवाद के खिलाफ घोषित युद्ध के बावजूद कोई उन्हें देशद्रोही नहीं कहता। वहां भी राष्ट्रीयताऔं के अलगाववादी आंदोलन जोरों पर हैं। उत्तरी अमेरिकी राज्य बुश की जंगखोर यहूदीपरस्त ब्राह्मणवादी मुस्लिम विरोधी अर्थव्यवस्था और विदेशनीति का बोझ ढोने को तैयार नहीं हैं और रक्तहीन तरीके से अमेरिकी गणराज्य से अलगाव की मांग कर रहे हैं। पर अमेरिकी जनमत का सैनिक दमन नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपित के खिलाफ भी महाभियोग लगाया जा सकता है। विश्वभर में मानवाधिकारों की हत्या, अमेरिकी हितों के बहाने युद्ध, गृहयुद्ध और विनाशकारी हथियारों के निर्यातों के बावजूद अन्दरूनी लोकतंत्र और जनता के प्रबल लोकतान्त्रिक अधिकारों की बदौलत अमेरिका आज दुनिया पर राज कर रहा है और ग्लोबीकरण का मसीहा बना हुआ है। आंतिरक शक्ति के बगैर कोईराष्ट्र या राष्ट्रीयता दीर्घकाल तक सत्ता का सर्वेसर्वा कैसे बने रह सकता है? पर भारतीय सत्तावर्ग जनता को न्यूनतम मानवाधिकार, औपचारिक नागरिक अधिकार देने से मुकर रहा है। नागरिकता, जीवन और आजीविका से वंचित किये जजा रहे हैं मूल निवासी।

आप कृपया बतायें कि विदर्भ में, दक्षिण भारत में और बाकी देश में किसानों की आत्महत्या के लिए आखिर कार कौन जिम्मेवार हैं? नंदीग्राम, कलिंगनगर, चायबागानों और कल कारखानों में अनन्त मृत्यु जुलूस और सामूहिक बलात्कार काण्ड के लिए क्या अमेरिकी, जापानी या पाक सेनाएं जिम्मेवार हैं? किनके हाथ खून से रंगे हुए हैं, किसके दामन में दाग हैं, सबकुछ जानतचे बूझते हुए, तमाम चुनावी तिकड़मों को झेलते हुए , रोजमर्रे के जीवन में महज रोजी और रोटी के लिए अपने ही देश में नान अत्याचार सहते हुए जनता खामोश रहने को मजबूर है। क्योंकि विरोध करने वाला मुसलमान हुआ तो आतंकवादी, देशद्रोह विदेशी एजेंट- आदिवासी हुआ तो माओवादी और भद्र लोक हुआ तो नक्सलवादी कहलाकर शूली पर चढ़ा दिया जायेगा।

आम बजट से पहले लालू प्रसाद यादव ने रेल बजट का इन्द्र जाल पेश करते हुए राजस्वस्रोतों को आंकड़ों के परदे में रखते हुए रियायतों की बारिश कर दी। खुशगवार रियायती सहूलियती सुरक्षित इन्द्रजाल में फंसे भारतीय जनता ने इसक तनिक ख्याल नहीं किया कि कैसे पिछवाड़े से निजीकरण के तमाम दरवाजे खोल दिये गये और कैसे चारा घोटाला के अनुभव को मैनेजमेंट गुरू के इस ओबीसी अवतार ने आजमाया। रेलवे भू अधिग्रहण अधिनियम बदल दिया गया। अब रेलवे अफसरान रेल सेवा में निजी कंपनियों की भागेदारी और चौतरफा विकास के लिए राजस्व कमाने हेतु निवेश के बहाने निजी देशी विदेशी कंपनियों के लिए अंधाधुंध जमीन का अधिकरण कर सकेंगी। एकबार चुनाव तो हो जाने दीजिये। रेलवे परिसरों और सेवाओं के वाणिज्यिकरम का हम विरोध नही करते और खैनी फांकते हुए रेलवे के मुनाफे की चरचा में मशगुल हैं। इस विकास यात्रा में दो चार नरसंहार हो जाये, या हो जाये सामूहिक बलाकार तो शिकार होंगे वहीं छह हजार जातियों में बंटी मूलनिवासियों की जमात। मीडिया , मनी और माफिया से जुड़े सत्तावर्ग का कौन क्या नोंच लेगा?

भंगाल के बागी मंत्री सुभाष चक्रवर्ती ने इस बजट के खिलाफ संसद से माकपा सांसदों के वाकआउट से खफा हो गये। माकपाई अनुशासन एकबार फिर तोड़ते हुए उन्होंने दावा किया कि पिछले साछ साल में ऐसा ऐतिहासिक रेल बजट कभी नहीं बना। सौ अर्थशास्त्रियों को एक साथ बैठा दो तो भी वे ऐसा बजच नहीं बना सकते। बंगाल में भी कांचरापाड़ा समेत रेलवे की थोक जमीन हैं।

मार्क्सवादी नैतिकता और विचारधारा की जितन चरचा की जाये कम है। तेलंगाना के किसान विद्रोह से इसलिए दगा करना पड़ा क्योंकि पंडित नेहरु समाजवादी थे और सोवियत संघ भी उन्हें प्रगतिशील मानता था। नेताजी को गद्दार इसलिए कहना पड़ा क्योंकि नाजी जर्मनी के खिलाफ मित्र शक्त का अहम हिस्सा था ब्रिटेन। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन से भी उन्हें कोई लेना देना नहीं था। चीनी हमले के मसले पर तो पार्टी दोफाड़ हो गयी। सीपीआई ने सोवियत इशारे पर आपातकाल को अनुशासन पर्व माना और प्रगतिशील लेखक भी वैसे ही खामोश रहे , जैसे नंदीग्राम, सिंगुर मसले पर जतेस प्रलेस के लेखकों का नजरिया है। इंदिरा गांधी के खूनी पंजे को शिकस्त देने के लिए संघ परिवार का साथ देना पड़ा तो अब धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देकर भारत की अमेरिकी प्रांतीय सरकार को बनाये रखने की मजबूरी है। परमाणु समझौते से चाहगे देश टुकडा टुकड़ा हो जाये, चाहे पूर एशिया महादेश तबाह हो जाये, हिन्द महासागर परमाणु जखीरा बन जाये पर मनमोहन प्रणव जोड़ी बनये रखने की मजबूरी है। दूसरी तरफ, सरकार बचानी है तो केरल, बंगाल और त्रिपुरा देश से कट जाये या फिर मार दिये जाये तमाम मूलनिवासी कांग्रेस को खमोश ही रहना है।

गुजरात नरसंहार के खिलाफ बुलंद आवाज पर बाकी देश में मानवाधिकार हनन पर चुप्पी। कश्मीर, तमिलनाडु सेत समूचे दक्षिण भारत और पूरे पूर्वोतत्र में क्या कुछ घटित हो रहा है , किसी को कोई मतलब नहीं।

सुप्रीकोर्ट ने भूमिपुत्र की अवधारणा खारिज कर दी और रातोंरात राज ठाकरे खलनायक बना दिये गये। पर मूलनिवासियों के जीवन, कामधन्धों, आजीविका, मानवाधिकार, नागरिक अधिकार, पहचान, मातृभाषा, संस्कृति, रीति रिवाज, मुहावरों, लोकधुनों, जल, जमीन, जंगल के सत्यानाश पर कोई चरचा नहीं होती

कातिल कल्चर में में मिथ ही गढ़े जाते हैं बुद्धिविनाश के लिए। रूनू गुहानियोगी ननक्सल विनाश के हीरो सिखों के कत्लेआम के पुरस्कार में केन्द्र में मंत्रित्व, हत्यारे नेता महापुरुष, महाबलि जनप्रतिनिधि, सिद्धार शंकर राय लोकतंत्र आंदोलन के चितेरा, मरीचझांपी कांड के जल्लाद अमिय सामंत नंदीग्राम नरसंहार के प्रतिरोध में अगुवा दैनिक अखबार के स्तंभकार। तसलिमा को भगाकर नंदीग्राम और रिजवानूर कांड से बने जख्म पर मलहम लगानेवाले वामपंथी अब पुस्तकमेले में निष्णात हैं।

रक्षा बजट में दस प्रतिशत की बढ़ोतरी से देश कितना सुरर्ित होगा नहीं मालूम, पर रक्षा कंपनियों की हलचल से स्विसबैंक खातों में भारी इजाफे की उम्मीद जरूर है। इसीतरह दलितोत्थान हुआ हो या मही, पिछड़ों, आदिवासियों और मुसलमानों, दूसरे अल्पसंख्यकों, शरणार्थ्ियों का भला हो या न हो, वोट बैंक पर काबिज सत्तासीन लोग जरूर मुटिया रहे हैं।
वित्त मंत्री पी चिदंबरम के शुक्रवार को संसद में पेश बजट में किसानों की कर्ज माफी की घोषणा से चंद घंटे पहले कर्ज के बोझ से दबे एक किसान ने आत्महत्या कर ली। पुलिस के अनुसार 35 वर्षीय कुबेर सुकुमार थोते नामक किसान पर एक बैंक और स्थानीय सहकारी ऋण सोसायटी का दो लाख रुपए कर्ज था जो उन्होंने कृषि उद्देश्यों से लिया था, लेकिन पिछले लगातार तीन वर्षों से फसल में नुकसान के कारण वह यह रकम चुका नहीं पा रहे थे। चिदंबरम के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा कि विदेशी निवेश की कमी, अमेरिका की आर्थिक मंदी,रुपए की मजबूती और मूलभूत सुविधाओं के क्षेत्र में कमी हमारे आर्थिक विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है। गौरतलब है कि आर्थिक सर्वेक्षण को यूपीए सरकार की रिर्पोट कार्ड के रुप में देखा जा रहा है। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के बदहाल किसानों को बजट में राहत देने की मांग करते हुए राज्य के सांसदों ने आज संसद भवन परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष धरना प्रदर्शन किया। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा आज पेश किए जाने वाले बजट से पहले सांसद विदर्भ के किसानों का कर्ज माफ करने और उन्हें राहत पैकेज देने की मांग कर रहे थे। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सरकारी बैंकों से कहा है कि आवास और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु उद्योग को ज्यादा मात्रा में कर्ज उपलब्ध कराएं। आंकड़े बता रहे हैं कि दिसंबर में औद्योगिक उत्पादन की दर घटकर 7.6 फीसदी रह गई है। सरकारी बैंकों की बैठक में चिदंबरम ने कहा कि पिछले एक साल से कर्ज की मांग को जानबूझकर धीमा किया गया है। इससे आवास और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र में कर्ज की मांग प्रभावित हो रही है। चिदंबरम ने शुक्रवार को लोकसभा में अगले वित्त वर्ष का जो बजट पेश किया, उसकी सबसे अच्छी व्याख्या इन्हीं दो शब्दों से ही हो सकती है। इस बजट की नज़र अगले आम चुनाव पर है। सारे प्रावधान, सारी घोषणाएं लगता है इसी को ध्यान में रखकर की गई हैं। कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य के जिस तरह से भारी प्रावधान किए गए हैं, वे भी यही बताते हैं कि यह हर तरह के मतदाता को खुश करने की कोशिश है। चिदंबरम ने जब फरवरी 1997 में बजट पेश किया तब वे आगामी चुनावों का अनुमान नहीं लगा सके। इसलिए गरीबी के खिलाफ संघर्ष और बाजार में वस्तुओं के मूल्यों में स्थिरता जैसे वादे चुनाव पूर्व नारे नहीं बन सके। चिदंबरम के रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर 10.6 फीसदी थी, खाद्यान्न उत्पादन बढ़ कर 19.1 करोड़ टन हो गया और विदेशी मुद्रा भंडार 19.5 खरब डॉलर के स्तर पर था।


वित्तमंत्री पी. चिंदबरम की लघु अवधि पूंजी लाभ कर को बढ़ाकर 15 फीसदी करने और कार्पोरेट कर अधिभार दर अपरिवर्तित रखने की घोषणा के कुछ ही क्षणों के बाद शेयर बाजार में गिरावट बढ़ गई और सेंसेक्स 500 अंक लुढ़क गया। चिदंबरम ने एक बार फिर विश्वास जताया है कि इस साल आर्थिक वृद्धि दर 9 प्रतिशत के आंकडे को छू लेगी. केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) ने 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि के अग्रिम अनुमान आज जारी किये. इसके मुताबिक इस साल जीडीपी में पिछले साल के मुकाबले 8.7 प्रतिशत की वृद्धि होगी. चिदंबरम ने कहा है कि इस साल आर्थिक वृद्धि दर 9 प्रतिशत के आसपास रहने की उम्मीद है. चिदंबरम ने संसद में सरकार का वार्षिक आर्थिक रिपोर्ट कार्ड, आर्थिक सर्वेक्षण 2007-08 प्रस्तुत करते हुए कहा कि वृद्धि को दहाई तक ले जाने के लिए अतिरिक्त सुधारों की आवश्यकता होगी । उन्होंने इसके लिए कई कदम सुझाए, जिनमें गैर-सरकारी क्षेत्र की मुनाफा कमाने वाली उन कंपनियों की आंशिक बिक्री शामिल है, जो नवरत्न कंपनियों में शुमार नहीं हैं ।


वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बजट पेश करने के बाद भारतीय शेयर बाज़ारों में तेज़ गिरावट आई है. सेंसेक्स 500 अंकों से ज़्यादा लुढ़क गया. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) दोनों में सबसे बुरा असर बैंकों के शेयरों पर पड़ा है. बजट में वित्त मंत्री ने किसानों के 60 हज़ार करोड़ रूपए के कर्ज़ माफ़ करने की घोषणा की है. हालाँकि इसकी भरपाई कैसे होगी इसका ब्योरा नहीं मिला है. मनमोहन सिंह ने कहा कि बजट के बाद कृषि क्षेत्र में सुधार की उम्मीद बढ़ जाएगी। शेयर बाजार में ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को लिस्ट करने के प्रावधान का स्वागत करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि इससे बाजार में सुधार आने की उम्मीद बढ़ गई है। कारपोरेट जगत व उद्योगपतियों को केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम से काफी उम्मीदें है। वाणिज्यिक संगठनों के मुताबिक आर्थिक सुधार की प्रक्रिया बनी रहे इस ध्यान में रखकर वित्त मंत्री बजट पेश करेगे। उद्योगपति व इंडियन चैंबर आफ कामर्स के अध्यक्ष हर्ष के झा मुताबिक उत्पादन बढ़ाने के मद्देनजर मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को रियायत मिल सकती है जिससे कि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को बरकरार रखा जा सके।


वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के बजट को उद्योग जगत ने भी हाथो-हाथ लिया है। उद्योग जगत ने चिदंबरम की पीठ थपथपाते हुए कहा कि उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है।

सीआईआई के अध्यक्ष सुनील मित्तल ने कहा कि बजट हमारे आशा के अनुरुप है। हालांकि चिदंबरम ने कॉपोरोट टैक्स में कोई परिवर्तन नहीं किया इससे हमें थोड़ी निराशा हुई है।

कोटक महिन्द्रा बैंक के निदेशक उदय कोटक ने कहा कि कॉपोरेट टैक्स इतना ज्यादा नहीं है। उदय का मनना है कि साथ शॉट ही टर्म गेन में टैक्स की बढ़ोत्तरी के बाद अब निवेशक मीडियम टर्म निवेश पर ज्यादा जोर देंगे। जो एक अच्छी खबर है। जेएसडब्लयू स्टील के अध्यक्ष साजन जिंदल ने कहा कि यह एक मिला-जुला बजट है। चिदंबरम ने कॉपोरेट टैक्स में आशा के अनुरुप कोई परिवर्तन नहीं किया। उन्होंने कृषि और शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया है।वित्तमंत्री पी चिदंबरम द्वारा लोस में पेश आर्थिक समीक्षा में महंगाई को काबू में रखकर उच्च विकास दर हासिल करने के लिए सुधारों का एक लंबा एजेंडा पेश किया गया गया है। इसकी जद में कृषि, बीमा, बैकिंग, खनन, बिजली, चीनी और फार्मा उद्योग से लेकर रिटेल तक सभी को रखा गया है। अमेरिकी मंदी और वैश्विक बाजार में जिंसों की बेलगाम कीमतों को खासी अहमियत देने के साथ इनसे जूझने को मुख्य चुनौती बताया गया है। चिदंबरम ने विर्निमाण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सभी वस्तुओं पर सामान्य सेनवैट दर 16 फीसदी से घटाकर 14 फीसदी करने का प्रस्ताव किया है। वित्त मंत्री ने शुक्रवार को लोकसभा में वित्तीय वर्ष 2008-09 का आम बजट पेश करते हुए कहा कि विनिर्माण क्षेत्र रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्र है। इसलिए इसकी वृद्धि के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती की गई है। वित्तमंत्री पी चिदंबरम द्वारा 2008-09 के बजट में उत्पाद शुल्क में कटौती के बाद कार-निर्माता कंपनियों ने कीमतें घटाना शुरू कर दी हैं। मारुति सुजुकी इंडिया ने छोटी कारों के सभी मॉडल्स की कीमतें 6500 से लेकर 18030 रुपए तक घटा दी हैं। हुइंर्ड मोटर इंडिया ने छोटी कारों की कीमत में 12 से 16 हजार रुपए तक की कटौती कर दी है।


एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी [आईएईए] ने भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार डा आर चिदंबरम को अपने प्रबुद्ध व्यक्तियों के आयोग का सदस्य बनाया है। आईएईए की ओर से डा चिदंबरम के लिए यह न्यौता ऐसे समय आया है जब भारत के असैन्य परमाणु प्रतिष्ठानों की निगरानी के संबंध में समझौते पर बातचीत अंतिम चरण में पहुंच रही है। चिदंबरम ने कहा कि इसरो के मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान के लिए आवंटन राशि में करीब 24 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। सरकार ने अंतरिक्ष विभाग के लिए 4074 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं जो पूर्व आवंटित राशि से 784 करोड़ रुपए ज्यादा हैं। वर्ष 2007-08 में विभाग को 3290 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। सरकार ने मानव अंतरिक्ष अभियान के अलावा स्पेस रिकवरी कैप्सूल एक्सपेरिमेंट 2 के लिए दस करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।


शुक्रवार को वित्त मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा संसद में बजट पेश किए जाने से पहले कार्यवाही में व्यवधान डाल जाने पर लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने सांसदों से अपील की कि वे संसद की गरिमा बनाए रखें। उन्होंने कहा कि ‘अब बहुत हो चुका’। हालाकिं, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा संसद में बजट पेश करते समय शातिं देखी गयी ।


चिदंबरम को न चाहते हुए भी आगामी बजट में उर्वरक सब्सिडी के लिए अपना खजाना खोलना पड़ेगा क्योंकि चुनावी वर्ष होने के कारण सरकार किसानों की नाराजगी मोल लेने का खतरा नहीं उठा सकती। चिदंबरम ने पिछले बजट में उर्वरक सब्सिडी के लिए 22451 करोड़ रु. का प्रावधान किया था तथा इच्छा जताई थी कि बढ़ती सब्सिडी पर अंकुश लगाया जाए। वित्तमंत्री पी चिदंबरम द्वारा शुक्रवार को पेश किया गया आम बजट आम लोगों को महंगाई से राहत नहीं दिला पाया है। वित्त मंत्री ने कोई राहत देने की बजाय यह कह लोगों को निराश कर दिया कि उनके लिए महंगाई सबसे बड़ी चुनौती है। हालांकि आगामी चुनावों को मद्देनजर रखते हुए कुछ वगरें को राहत पहुंचाने की कोशिश की गई,लेकिन महंगाई को रोकने के लिए बजट में कोई बात का उल्लेख न किए जाने से आम लोगों में निराशा है। चिदंबरम के बजट से घरेलू महिलाएं काफी निराश हुई हैं। उन्हें उम्मीद थी कि सरकार रसोई में इस्तेमाल होने वाली चीजों में रियायत देंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वित्ता मंत्री बजट में गरीब व मध्यम वर्गीय परिवारों के कि चन की सुध लेना भूल गए। पीतमपुरा वेस्ट एंक्लेव सी-1 में रहने वाली घरेलू महिला लक्ष्मी देवी ने बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वित्तामंत्री को किचन में इस्तेमाल होने वाले रोजमर्रा की चीजों पर रियायत देना चाहिए, ...चिदंबरम ने दिल्ली के गरीबों के मकान के लिए दो सौ करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। उन्होंने अपने बजटीय भाषण में कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों के आरंभ होने में महज 947 दिन शेष रह गए हैं। आशा की जाती है कि समय सीमाओं और गुणवत्ता मापदंडों का सख्ती से पालन किया जाएगा। चिदंबरम ने कहा कि सरकार निर्यात क्षेत्र की जरुरतों के प्रति संवेदनशील है। हालात के मुताबिक कदम उठाए जाएंगे। तीन किस्तों में निर्यातकों को 80, 000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राहत पहले ही दी जा चुकी है। उन्होंने कहा कि मौजूदा वित्त वर्ष में निर्यात 160 अरब डॉलर के निर्धारित लक्ष्य से कम रह सकता है। रुपये में मजबूती के कारण मर्केंडाइज एक्सपोर्ट दबाव में आ गया है।


चिदंबरम ने बजट में कौशल विकास अभियान की दिशा में एक और बड़ी घोषणा की है। उन्होंने तीन सौ औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों [आईटीआई] के उन्नयन के लिए 750 करोड़ रुपये भी मंजूर किए हैं। वैसे, पहले से ही 238 आईटीआई के उन्नयन के लिए विश्वबैंक की सहायता से काम चल रहा है। हुनर वाली शिक्षा को स्तरीय और लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से सरकार 29 राज्यों में सरकारी-निजी भागीदारी योजना के तहत 309 आईटीआई चिह्नित कर चुकी है। चिदंबरम ने संप्रग सरकार के बजट में चार करोड़ किसानों के कर्ज माफ करने की ऋण राहत और माफी योजना की घोषणा की। उन्होंने कर्मचारियों और मध्य वर्ग को खुश करने के लिए डेढ़ लाख रुपए सालाना की व्यक्तिगत आय को कर से पूरी तरह मुक्त कर दिया तथा कर के स्लैब बदलते हुए तीन लाख रुपए पर तक की आय पर 10 प्रतिशत कर लगाने का प्रस्ताव किया है। महिलाओं को अब 1.80 लाख रुपए और बुजुर्गों को 2.25 लाख रुपए तक कोई कर नहीं देना होगा। चिदंबरम ने राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) के लिए 644 करोड़ रूपए के आवंटन की घोषणा की है। वर्ष 2008-09 का आम बजट आज लोकसभा में पेश करते हुए चिदंबरम ने कहा कि इस योजना को वर्तमान स्वरूप में खरीफ और रबी दोनों ही फसलों के लिए जारी रखा जाएगा। मंत्री महोदय ने इस बात की भी घोषणा की कि मौसम आधारित फसल बीमा योजना के लिए 50 करोड़ रूपए आवंटित किए जाएंगे।


चिदंबरम द्वारा प्रस्तुत बजट की समीक्षा की। यहां डिलाइट होटल पर उद्यमियों ने चार्टर्ड एकाउंटेटों के साथ बैठकर चिदंबरम द्वारा प्रस्तुत बजट बड़े पर्दे पर देखा तथा बजट भाषण समाप्त होते ही प्रतिक्रिया जताई। फरीदाबाद लघु उद्योग एसोसिएशन ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया। बजट के दौरान उद्यमियों और सीए ने अपने-अपने आकलन के आधार पर पी.चिदंबरम के बजट को नंबर भी दिए। वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा कल पेश किए गए वर्ष 2008-09 के बजट में सेनवेट शुल्क घटाने की घोषणा के बाद टायर निर्माता कंपनी जेके टायर ने भी अपने उत्पादों के दाम घटाने का फैसला लिया है. कंपनी आगामी वित्तीय वर्ष में अपने उत्पादों टायर, टयूब और फ्लैप के दाम घटाने का फैसला लिया है.चिदंबरम की कृपादृष्टि सर्दी, गर्मी और बारिश में खुले आसमान के नीचे झेलने वाले मुफलिसों पर नहीं हुई। सरकार ने उनके लिए कोई नई योजना नहीं दी है, सिर्फ प्रति मकान सब्सिडी भर बढ़ाई है। ग्रामीण आवास क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय आवास बैंक में 1200 करोड़ रुपये ही जमा किए गए हैं। इंदिरा आवास योजना के तहत गरीबों के लिए मकान बनाने की गति पहले से ही काफी कम है। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे यह साबित हो कि मर्चेंट, बैंकरों और प्रोमोटरों ने गड़बड़ी की। स्टॉक मार्केट के उथल-पुथल के बारे में पूछे गए सवाल पर वित्त मंत्री ने कहा कि, 'सरकार उथल-पुथल को कंट्रोल या मैनेज करने का काम नहीं करती है। सरकार का काम सिस्टम कायम करना है। राज्यसभा में मंगलवार को यह जानकारी दी गई।बजट का चुनाव में क्या फायदा होगा यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन अब वामपंथी बैसाखियों से सरकार चलाने को मजबूर कांग्रेस ने अपना पुराना वोट बैंक वापस पाले में लाने का दांव खेल दिया है। वित्तमंत्री चिदंबरम ने किसान, अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़े और शहरी मध्यम वर्ग के लिए जो दिल खोलकर सौगातें लुटाई हैं उससे कांग्रेस की पुराने वोट बैंक को हासिल करने की लालसा साफ दिखाई देती है। वित्तमंत्री ने भले ही लोकसभा में बृहस्पतिवार को किसानों की कर्ज माफी का ऐलान किया हो पर कर्ज माफी पर सोनिया गांधी को शुक्रिया अदा करने के लिए किसानों का इंतजाम सुबह से ही कर लिया गया था। वामपंथी भले बजट लीक होने को लेकर चिल्लाएं या बजट को आम आदमी-गरीब विरोधी बताएं पर कांग्रेस और सोनिया गांधी की नजर सीधे चुनाव पर है।


भारत और आईएईए भारत-अमेरिकी एटमी करार में भारत केंद्रित सुरक्षा मानक समझौते के सहमत मसौदा को अंतिम रूप देने की तरफ एक कदम और बढ़ गए हैं। भारत अमेरिकी असैनिक परमाणु करार की यह एक प्रमुख जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि बृहस्पतिवार रात विएना में संपन्न हुई पांचवे दौर की वार्ता में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। उन्होंने कहा कि विचार-विमर्श जारी रहेगा। आईएईए प्रवक्ता ने ई-मेल भेजकर बताया है कि इस हफ्ते विएना में सुरक्षा मानक करार पर आईएईए और भारत की बातचीत के दौरान उल्लेखनीय प्रगति हुई। भारत और एजेंसी के बीच विचार-विमर्श जारी रहेगा। आईएईए सूत्रों ने कहा कि वार्ता मूल रूप से बुधवार को खत्म होने वाली थी लेकिन उसे एक दिन बढ़ा दिया गया।

विएना वार्ता में भारतीय दल का नेतृत्व परमाणु ऊर्जा विभाग के सामरिक योजना निदेशक रवि ग्रोवर और आस्ट्रिया में भारत के राजदूत सौरभ कुमार ने किया। भारत का रुख स्पष्ट करते हुए विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने बताया कि उनका देश समय सीमा के बारे में नहीं सोच रहा है। वह उसे जल्द से जल्द पूरा करने की कोशिश कर रहा है।

पूर्व में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष अनिल काकोडकर ने कहा था कि भारत को जल्द से जल्द आईएईए के साथ करार को अंतिम रूप देना होगा। उन्होंने कहा था कि इसे सही तरीके से करना होगा। इसे सभी अर्हताओं पर खरा उतरना होगा इसलिए कि यह एक लंबी तकनीकी प्रक्रिया है। काकोडकर के मुताबिक इसमें कई चरण शामिल हैं। हमें कदम-ब-कदम आगे बढ़ना होगा।


वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने आज पेश बजट में आयकर में राहत की बड़ी आस लगाए वेतनभोगियों, महिलाओं तथा बुजुर्गों के लिए रियायतों का पिटारा खोल दिया। श्री चिदम्बरम ने संसद में पेश 2008-09 के आम बजट पेश वेतनभोगियों के लिए आयकर छूट की सीमा को एक लाख दस हजार रुपए से बढ़ाकर डेढ़ लाख रुपए किए जाने की घोषणा की। महिलाओं और बुजुर्गों की क्रमश: एक लाख 80 हजार रुपए तथा सवा दो लाख रुपए की आय पर अब कोई कर नहीं लगेगा। चिदंबरम ने किसानों के लिए शुक्रवार को पेश किए गए बजट में 60 हजार करोड़ रूपये के राहत पैकेज की घोषण की। उन्होंने छोटे और सीमांत किसानों को दिए गए कर्जे पूरी तरह माफ कर दिए हैं। चुनावी वर्ष में यूपीए सरकार का पांचवां बजट पेश करते हुए चिदंबरम ने छोटे और मझौले किसानों को 50 हजार करोड़ रूपये के कर्ज की छूट का ऐलान किया, जबकि अन्य किसानों को वन टाइम सेटलमेंट योजना के तहत 10 हजार करोड़ रुपये की रियायत मिलेगी। राजस्व वसूली में उछाल का लाभ उठाते हुए वित्तमंत्री पी चिदंबरम सांता क्लाज की तरह नजर आए। उन्होंने अपनी पोटली से ढेरों उपहार निकाले लेकिन ऐसा करते हुए अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों अथवा एफआरबीएम [वित्तीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम-2003] के लक्ष्यों का उल्लंघन नहीं किया। बजट में वादा किया गया है कि अगले साल राजकोषीय घाटा घटाकर सकल घरेलू उत्पाद के ढाई प्रतिशत तक लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस बजट से सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी। रक्षा मंत्री ने कहा, वे इस बजट से बेहद प्रसन्न हैं। वित्त मंत्री ने रक्षा क्षेत्र को आश्वासन दिया है कि आवश्यकता पड़ने पर और धन दिया जा सकता है। इससे सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी। लोकसभी में बजट प्रस्तुत करते हुए चिदंबरम ने रक्षा बजट को 96000 करोड़ से बढ़ाकर 105000 करोड़ कर दिया है। उन्होंने कहा कि वे रक्षा मंत्री को आश्वस्त करना चाहते हैं ...चिदंबरम के रास्ते में फूलों के साथ कांटों की ओर भी इशारा किया। अर्थव्यवस्था की सेहत कुल मिलाकर तो ठीक है, मगर कई चिंताएं भी सामने आ रही हैं। वित्त मंत्री ने खुद स्वीकार किया कि कुछ सेक्टरों में आई सुस्ती से वह चिंतित हैं। फिर भी उन्होंने निराश न होने के लिए कहा। खास फिक्र की बात यह है कि अनाज की पैदावार उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ रही। इससे दामों को काबू रखने में परेशानी आ सकती है। चिदंबरम ने 208-09 का बहुप्रतीक्षित केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया. यह चिदंबरम का देश के लिए प्रस्तुत किया गया सातवां बजट है. दो बजट उस वक्त प्रस्तुत किए गए थे जब यूनाइटेड फ्रंड सरकार सत्ता में भी और पांच यूपीए सरकार के शासन काल में प्रस्तुत किए गए. जिस वक्त चिंदबंरम यह बजट प्रस्तुत कर रहे हैं वह पिछले सालों के मुकाबले एक कठिन समय है और इससे आने वाले सालों में व्यवसाइयों, किसानों और विशाल मध्यवर्ग की दिशा निर्धारित होगी. ...


वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने शुक्रवार को लोकसभा में 2008-09 बजट पेश किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षो में अर्थव्यवस्था की औसत विकास दर 8.8 फीसदी रही है। दिसंबर 31, 2007 की 12 लगातार तिमाहियों में यह विकास दर हासिल हुई। चालू वित्त वर्ष के दौरान विकास दर 8.7 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। इसमें विनिर्माण और सेवा क्षेत्र का विशेष योगदान रहा है। चिदंबरम ने दूसरी हरित क्रान्ति का आह्वान किया। अगर बजट की गोपनीयता का तकाजा न हो तो आधिकारिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि शुक्रवार को चिदंबरम किसान बजट पेश करने जा रहे हैं। सोनिया और राहुल लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लगे हैं। यूपीए सरकार का कार्यकाल अगले साल मई में पूरा हो रहा है। इस साल के अंत तक 10 से ज्यादा राज्यों में विधानसभा चुनाव होना हैं।नई दिल्ली आम बजट में इस बार फाइनेंस मिनिस्टर (एफएम) पी. चिदंबरम पर कई तरह के दबाव थे। शुक्रवार को कई घोषणाएं इसी दबाव के नतीजे के रूप में बाहर आईं। किसानों के मामले में वामदल और एनडीए सरकार को घेरे हुए थे। उम्मीद भी थी कि राहतों की बौछारें घेरे को तोडं़ेगी। हुआ भी ऐसा ही। सरकार पर घटक दलों के अलावा उस वोट बैंक का भी परोक्ष दबाव था, जो उससे लगातार दूरी बना रहा था। चिदंबरम के ऐलान के साथ ही लोकसभा में राजनीतिक धमाका हो गया। विपक्ष हताशा में चिल्लाने लगा, तो यूपीए के लोग जोश में मेजें पीटने लगे। एक तरफ दोनों हाथ से मेज थपथपाते हुए राहुल गांधी खुशी में खड़े हो गए, तो दूसरी तरफ आडवाणी ने यह कहकर विरोध किया कि सभी किसानों का कर्ज क्यों नहीं माफ किया गया। चिदंबरम ने अपना बजट भाषण रोककर इत्मिनान से पानी पिया। चिदंबरम एक बहुत बड़े चैलेंज के मुकाबिल थे। यह ऐसा दौर है, जब इंडियन इकॉनमी में शानदार तेजी का दौर खतरे में पड़ता दिख रहा है। ग्लोबल मंदी हमारे दरवाजे खटखटा रही है और सभी सेक्टरों का ग्राफ ढलान पर फिसलता दिख रहा है। इसके अलावा इस साल दस राज्यों में इलेक्शन होने हैं, जिसके कुछ ही अरसे बाद यूपीए सरकार को आम चुनाव की अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ेगा। वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने जब अपना पिछला बजट पेश किया था तो भारतीय कंपनियां दुनिया भर में अधिग्रहण का अश्वमेध का घोड़ा दौड़ा रही थीं। एक्सपर्ट बिरादरी ने उस परिघटना को ग्लोबल इंडियन टेकओवर का नाम दिया था। आज एक साल बाद देश एक दूसरी परिघटना को आकार लेते देख रहा है। उसे हम रिवर्स ब्रेन ड्रेन का नाम दे सकते हैं। प्रतिभा की घर वापसी हो रही है।

किसानों के कर्र्जो की बड़े पैमाने पर माफी, आयकरदाताओं को छूट, निगमित क्षेत्र पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालने वाले आम बजट ने इन अटकलों का बाजार और गर्म कर दिया है कि समय से पहले ही चुनाव होने वाले हैं।

वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा पेश लोक लुभावन बजट से कयास लगाए जा रहे हैं कि आम चुनाव इस वर्ष के अंत में अक्टूबर या संभवत: नवंबर तक हो सकते हैं। किसानों को इस साल जून तक उनके कर्जे से मुक्ति दिलाने की घोषणा के बाद सरकार में शामिल और उससे बाहर सभी राजनीतिक दलों और उद्योग जगत को अहसास कराने पर मजबूर कर दिया है कि चुनाव अब दूर नहीं हैं।

लोकसभा में भाकपा संसदीय पार्टी के नेता गुरुदास दासगुप्ता ने कहा कि सिर्फ चुनाव की तारीख के अलावा बाकी सब कुछ तो घोषित हो ही गया है। उनकी पार्टी संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन कर रही है।

बजट को चुनावी घोषणापत्र करार देते हुए भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि यह जल्द चुनाव कराने का स्पष्ट संकेत है। बजट की प्रकृति से मध्यावधि चुनावों की एक तरह घोषणा हो ही गई है। उद्योगपति एवं राज्यसभा सांसद राहुल बजाज ने भी कहा कि बजट जल्द चुनावों का साफ संकेत है।

बजट पेश होने के बाद संसद के केंद्रीय कक्ष में जल्द चुनाव की संभावनाओं पर सांसद चर्चा करते नजर आए। चुनावी मोड़ में नजर आए कांग्रेस सांसद अन्य दलों के सांसदों से हंसी मजाक करते और मुकाबले के लिए तैयार रहने की बात कहते दिखे। हालांकि भाकपा सांसद डी राजा को नहीं लगता कि यह बजट समय पूर्व चुनाव का संकेत है लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि बजट में कई मुद्दों पर अल्पकालिक लाभ का नजरिया अपनाया गया है।

हालांकि बजट के हीरो वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जल्द चुनावों की संभावना से इनकार करते हुए कहा कि भारत में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं और किसी भी बजट को चुनावी बजट कहा जा सकता है। चिदंबरम ने चुटकी लेते हुए कहा कि यदि आपके पास बजट के बारे में कहने को कुछ नहीं है तो आप इसे चुनावी बजट कह सकते हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि सरकार जल्द चुनाव इसलिए चाहती है क्योंकि वह उसे बाहर से समर्थन दे रहे वाम दलों के विरोध के बावजूद अमेरिका के साथ परमाणु करार को अंजाम तक ले जाना चाहती है। परमाणु करार को लागू करने के लिए भारत केंद्रित सुरक्षा उपायों पर अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी [आईएईए] के साथ चल रही वार्ता और वाशिंगटन स्थित राजदूत को मिला सेवा विस्तार इस दिशा में उठाए गए कदम के रूप में देखे जा रहे हैं।

बजट पेश होने से पहले भी राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म था कि सरकार परमाणु करार को आगे बढ़ाना चाहती है या नहीं क्योंकि इस मुद्दे पर वाम दल सरकार से समर्थन खींच सकते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि इस स्थिति में जो भी हो सरकार के पास चुनावों से पहले कम से कम छह महीने का समय होगा जिसका इस्तेमाल वह संभावित चुनावों से पहले इस कार्य के लिए कर सकती है।

राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी संसद के बजट सत्र के पहले दिन दोनों सदनों के संबोधन में सरकार का नजरिया रखते हुए कहा था कि परमाणु करार के अंजाम तक पहुंचने की संभावना है। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि अमेरिका और अन्य मित्र राष्ट्रों के साथ असैन्य परमाणु सहयोग संभव हो सकेगा। अमेरिकी सांसदों के एक दल ने भारत यात्रा के दौरान हाल ही में कहा था कि करार के लिए समय भागा जा रहा है और सरकार को देर-सबेर अंतिम निर्णय लेना ही होगा।




विपक्ष ने आम बजट में किसानों के लिए ऋण माफी तथा अन्य घोषणाओं को जहाँ सत्तारूढ़ गठबंधन का चुनावी घोषाण-पत्र करार दिया है, वहीं इसका श्रेय लेने के लिए घटक दलों में वस्तुत: होड़-सी लग गई है। वित्तमंत्री पी चिंदबरम द्वारा शुक्रवार को अपने बजट प्रस्ताव के पेश करने के चंद घंटे बाद हजारों किसान कांग्रेस और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गाँधी के निवास पर उन्हें धन्यवाद देने पहुँच गए। चिदंबरम को मनमोहन सरकार के साथ-साथ अपने परिवार के सदस्यों का भी भरपूर सहयोग मिला। वित्त मंत्री की पत्नी और बेटे ने बजट में सभी वर्गो का ख्याल किए जाने की बात कही है। वित्त मंत्री की पत्नी और वकील नलिनी चिदंबरम ने कहा कि यह एक अच्छा बजट है। इसमें समाज के हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ है। महिलाओं के लिए बजट कैसा है? पर नलिनी ने कहा कि मैं नारीवादी नहीं हूं लेकिन यह सभी वर्गो के लिए अच्छा है। संयुक्त राष्ट्रवादी प्रगतिशील गठबंधन [यूएनपीए] ने आम बजट में किसानों की कर्ज माफी की घोषणा को छलावा करार देते हुए कहा कि इसमें देश के आठ करोड़ किसानों की कोई परवाह नहीं की गई।

तीसरे मोर्चे के प्रवक्ता ने संवाददाताओं से कहा कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम की घोषणा से चार करोड़ किसानों को लाभ होने की बात कही जा रही है, लेकिन यह भी सच है कि देश के 12 करोड़ में से आठ करोड़ किसानों को इससे कोई लाभ नहीं होगा।

किसानों के लिए विशेष पैकेज की मांग को लेकर पिछले तीन दिन से करीब 100 सांसदों वाले तीसरे मोर्चे ने संसद की कार्यवाही ठप की हुई थी और सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों का भी आयोजन किया था। इस मोर्चे के बडे़ घटक दल समाजवादी पार्टी ने भी किसानों के कर्ज माफी की घोषणा को नाकाफी करार दिया। पार्टी के मुख्य सचेतक मोहन सिंह ने कहा कि यह घोषणा सरकार के लिए गले की फांस साबित होगी। उन्होंने कहा कि देश के किसानों को कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिए राधाकृष्ण आयोग ने ढाई लाख करोड़ रुपये के पैकेज की सिफारिश की थी इसे देखते हुए किसानों को साठ हजार करोड़ रुपये का राहत पैकेज कुछ भी नहीं है।

मोहन सिंह ने कहा कि इसमें भी किसानों को तीन खानों में बांट दिया गया है जिसका नतीजा यह होगा कि असली जरूरतमंद किसान को राहत नहीं मिल पाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार की मौजूदा घोषणा से प्रत्येक किसान को औसतन 12 हजार रुपये की राहत मिलेगी जबकि देश का हर किसान करीब पचास हजार रुपये के कर्ज के बोझ से दबा है।


आम चुनाव की आहट के बीच आज संसद में पेश लोकलुभावन बजट में किसानों को 60 हजार करोड रुपये का कर्ज माफी पैकेज. वेतनभोगी तबके को आयकर में भारी राहत तथा अल्पसंख्यक. पिछडे एवं दलित वर्ग के कल्याण के लिए अनेक योजनाओं की घोषणा की गयी1

वित्त मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा पेश 2008..09 के बजट में कुछ नई सेवाओं को सेवाकर के दायरे में लाने और शेयरों की खरीद फरोख्त पर अल्पकालिक पूंजीगत लाभकर को 10 से बढाकर 15 प्रतिशत करने को छोडकर कहीं कोई नया कर नहीं लगाया गया है1 बजाय इसके वित्त मंत्री का कहना है कि सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क दरों में दी गई छूट से उन्हें अप्रत्यक्ष करों में 5900 करोड रुपये का नुकसान होगा1 इसके बावजूद उन्होंने उम्मीद जताई है कि तीव्र आर्थिक विकास के बूते राजस्व में वृद्धि होगी और सरकार का राजकोषीय और राजस्व घाटा कम होगा1

श्री चिदंबरम ने वेतनभोगी तबके को आयकर में भारी राहत देते हुये डेढ लाख रुपये तक की सालाना आय को पूरी तरह कर मुक्त कर दिया1 बचत एवं निवेश पर एक लाख रुपये तक की छूट सीमा सहित अब आम नौकरी पेशा वर्ग को ढाई लाख रुपये तक की सालाना आय पर कोई कर नहीं देना होगा1 वित्त मंत्री ने आयकर स्लैब में बदलाव करते हुये डेढ लाख से तीन लाख रुपये पर 10 प्रतिशत. तीन से पांच लाख रुपये की आय पर 20 प्रतिशत और पांच लाख रुपये से अधिक सालाना आय पर 30 प्रतिशत कर का प्रस्ताव किया है1 महिलाओं और बुजुर्गों के मामले और दरियादिली दिखाते हुये उन्होंने महिलाओं की 1.80 लाख रुपये और बुजुर्गों की 2.25 लाख रुपये की सालाना आय को कर मुक्त कर दिया1

श्री चिदंबरम ने बताया कि कर के दायरे में आने वाले हर वेतनभोगी को कर में 4000 रुपये का फायदा होगा जबकि दूसरे स्लैब में आने वालों को 24000 रुपये और तीसरे स्लैब वालों को 44000 रुपये का लाभ मिलेगा1 उन्होंने उम्मीद जताई कि लोगों की जेब में ज्यादा धन बचेगा और अर्थव्यवस्था में उत्पादों की मांग और निवेश बढेगा जिससे आर्थिक वृद्धि की तेज रफ्तार बनी रहेगी1


दृष्टिकोण. आर्थिक सुधारों को बढ़ावा देने और बाजार को शक्ति प्रदान करने के प्रावधानों के साथ बजट पेश करने वाले वित्तमंत्री पी चिदंबरम के लिए वर्ष 2008-09 का बजट तैयार करना एक विशेष किस्म का अनुभव रहा होगा, क्योंकि यह बजट उनके द्वारा पेश किए गए अब तक के सारे पूर्व बजटों से अलग है। इस बजट में न तो वे केंद्र सरकार की वित्तीय समस्याओं से परेशान दिख रहे हैं और न ही आíथक सुधार, बाजार और कापरेरेट जगत की चिंता करते दिखाई पड़ रहे हैं। ...
गाड़ी खरीदने के लिए आप अगर बजट तक रुके थे तो यह वाकई फायदे का सौदा रहा। बजट में मिली रियायतों ने छोटी कारों को सस्ता कर दिया। छोटी कारों पर एक्साइज ड्यूटी 16 फीसदी से घटाकर 12 फीसदी किए जाने के ऐलान का असर कुछ ही घंटों में दिखा और कार कंपनियां ग्राहकों तक फायदा पहुंचाने में जुट गईं। पहली अप्रैल से छोटी कारों के दाम 19 ,000 रुपये तक कम हो जाएंगे। देश में बिकने वाली कुल कारों में 75 फीसदी हिस्सा छोटी कारों का है। ...
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [मनसे] के उत्तर भारतीय विरोधी अभियान केचलते अराजक तत्वों ने शुक्रवार रात फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन की फिल्म निर्माण कंपनी एबीसीएल के कार्यालय पर बोतल फेंकी। इससे पूर्व उनके घर पर बोतल फेंकने की घटना हो चुकी है। जुहू पुलिस ने बताया कि चार लोग रात लगभग साढे़ आठ बजे एक कार में जेवीपीडी इलाके में पहुंचे और जनक हाउस जिसमें एबीसीएल का कार्यालय है, बोतल फेंकी और भाग गए।

चिदंबरम से मुलाकात के लिए पहुंची थीं। हो सकता है अब वह वित्ता मंत्री से खुश होकर उन्हें आभार भी जता दें। आखिर चिदंबरम ने बजट में महिलाओं को काफी रियायत जो दी है। प्रीटी ने बजट पेश होने से कुछ ही दिन पहले एक गैर सरकारी संगठन के सदस्यों के साथ वित्त मंत्री से मुलाकात की। मुलाकात करीब आधे घंटे चली। इस दौरान प्रीति ने बजट में महिलाओं के लिए तमाम कल्याणकारी उपाय किए जाने की मांग रखी।

चिदंबरम ने खेल और युवा मामलों के मंत्रालय को कुल 1111.81 करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव रखा है। इसमें खेल के मद में 781.83 करोड़ खर्च होंगे, जबकि बाकी का खर्चा युवा मामलों पर होगा। कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 की तैयारियों के लिए सरकार ने फाइनैंशल ईयर 2008 -09 के लिए 624 करोड़ का प्रस्ताव रखा है। इसके अलावा 132.74 करोड़ गैरयोजना मद में रखे गए हैं। डोप कंट्रोल सेंटर बनाने के लिए 6.75 करोड़ में देने की बात कही गई है।

वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आम बजट में शिक्षा पर 20 प्रतिशत और स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 16 प्रतिशत वृद्धि करने की घोषणा की। वर्ष 2008-09 में योजना को बजट से 2.29 लाख करोड़ रुपये मिलने की घोषणा करते हुए चिदंबरम ने लोकसभा में कहा कि केंद्रीय आयोजना व्यय 16 प्रतिशत बढ़कर 179954 करोड़ रुपये हो गया है।

ग्रामीण स्वास्थ्य पर जोर दे रही सरकार के वित्तमंत्री चिदंबरम ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के लिए बजट आवंटन में अच्छी खासी वृद्धि करते हुए इसे 12050 करोड़ रुपये कर दिया है। खासकर महिलाओं के लिए नई आशाएं [स्वास्थ्य कार्यकर्ता] बढ़ जाएंगी। यही नहीं, इन 'आशाओं' के वेतन भी बढ़ा दिए गए हैं। इस समय 462000 आशाएं काम कर रही हैं। कुल मिलाकर देखें तो स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट में 15 फीसदी की महत्वपूर्ण वृद्धि की गई है। ...
चिदंबरम ने कहा कि जो भी व्यक्ति अपने माता-पिता का स्वास्थ्य बीमा कराएगा, उसे करों में अतिरिक्त छूट मिलेगी। संबंधित व्यक्ति को साल में माता-पिता के स्वास्थ्य बीमा पर खर्च की गई राशि पर 15000 रुपए तक की अतिरिक्त राहत मिल सकती है। चिदंबरम ने घोषणा की आयकर की धारा 80 डी के तहत किसी व्यक्ति द्वारा माता-पिता के स्वास्थ्य बीमा की जमा की गई प्रिमियम पर 15000 रुपए की अतिरिक्त राहत मिलेगी। यह प्रस्तावित लाभ एक अप्रैल से लागू होगा।



नहीं दिखाया साहस

http://hindi.webdunia.com/news/business/budget/0803/01/1080301031_1.htm
शनिवार, 1 मार्च 2008( 16:03 IST )






चुनाव के परिप्रेक्ष्य में वित्तमंत्री पी. चिदंबरम द्वारा प्रस्तुत बजट को न तो आर्थिक वृद्धि दर में तेजी लाने वाला कहा जा सकता है और न ही वैश्विक मंदी के परिदृश्य में उद्योगों को प्रोत्साहन देने वाला। निवेश की वृद्धि के लिए भी इसमें विशेष कुछ नहीं है।

उद्योग चाहते थे कि एफबीटी टैक्स रद्द कर दें एवं आयकर पर लगे अधिभार को समाप्त करें, किंतु वित्तमंत्री ने वैसा कुछ नहीं किया और न कंपनी कर की दर घटाई। जिन उद्योगों के कामकाज में धीमापन आ रहा था उनमें से दवा व ऑटो उद्योग को जरूर कुछ राहत मिली है।

दूसरी ओर वित्तमंत्री ने ऋण बाजार या बॉण्ड बाजार को बढ़ावा देने की पेशकश की, किंतु शेयर बाजार में तेजी के आकर्षण को कुछ घटा दिया क्योंकि एक ओर उन्होंने अल्प अवधि लाभ कर को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया एवं डे ट्रेडरों की लागत बढ़ा दी। शेयर बाजार में सिक्यूरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स के समान कमोडिटी एक्सचेंज के कामकाज पर भी यह टैक्स लगा दिया है।

वर्ष 2008-09 के बजट के संबंध में प्रारंभिक प्रतिक्रिया यही थी कि वित्तमंत्री ने सरकार का पूरा खजाना लुटा दिया, क्योंकि उन्होंने गरीब किसानों पर बैंकों व सहकारी बैंकों के कर्ज माफ कर दिए, वहीं ग्रामीण सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों जैसे जनस्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, सड़कों आदि के लिए भारी-भरकम प्रावधान की घोषणा की है।

बजट के अनुसार किसानों के करीब 80 हजार करोड़ रु. के कर्ज माफ किए जाएँगे। इसी तरह प्रत्यक्ष करों में 5,900 करोड़ रु. की राहतें भी दी गई हैं। वर्ष 2008-09 में सरकार का राजस्व व्यय 6 लाख 58 हजार करोड़ रु. है- इसे देखते हुए वित्तमंत्री ने कृषि क्षेत्र के लिए जो घोषणाएँ की हैं, वे महत्वपूर्ण हैं।

यह सही है कि कृषि क्षेत्र भी रोजगार देने वाला देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य हिस्सा है। जिस तरह उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता है उसी तरह कृषि क्षेत्र में भी निवेश व उत्पादकता बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में अच्छा उठाव लाया जा सकता है। फिर विश्व बाजार में खाद्यान्नों के भाव आसमान पर हैं और देश को गेहूँ, दालें, चावल, तिलहन व खाद्य तेल आदि भारी मात्रा में आयात करना पड़ता है। इसी परिप्रेक्ष्य में वित्तमंत्री के बजट का विश्लेषण करने पर ही बजट सकारात्मक ठहराया जा सकता है।

फिर दलील यह भी दी जा सकती है कि अगर गाँवों पर अधिक खर्च होगा तो गाँवों की प्रवाहिता में वृद्धि होगी। इस वृद्धि से औद्योगिक उत्पादों की माँग बढ़ेगी, उद्योगों के कच्चे माल की परेशानी कम होगी। किंतु सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो बजट में कमजोर कृषकों के जो 80 हजार करोड़ रु. माफ किए हैं उससे गाँवों की प्रवाहिता में कोई वृद्धि नहीं होगी और न ही सरकार के खजाने पर भार पड़ेगा, क्योंकि ये कर्ज व्यावसायिक व सहकारी बैंकों ने दिए हैं, इससे उनकी आस्तियाँ घटेंगी।

सरकार बैंकों को 80 हजार करोड़ रु. के बॉण्ड (20 से 25 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले) जारी कर देगी और संभवतया वे बैंकों के एसएलआर के हिस्से होंगे। फिर सरकार इन बॉण्डों पर आठ प्रतिशत से कम का जो ब्याज देगी, इसी ब्याज का भार खजाने पर पड़ेगा।

दूसरी बात यह है कि कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के लिए वित्तमंत्री ने भरपूर प्रावधान जरूर किया है, किंतु इन पर अमल की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की रहेगी। अधिकतर राज्य सरकारें पूरे प्रावधान को अमल में नहीं ला सकेंगी, इससे ग्रामीण व कृषि क्षेत्र को जो लाभ पहुँचना चाहिए वह नहीं पहुँचेगा।

वास्तव में आज आम नागरिकों की सबसे बड़ी माँग यह है कि महँगाई व बैंक ब्याज दर को कम किया जाए, क्योंकि उन्हें जीडीपी की आकर्षक वृद्धि दर से कोई मतलब नहीं है। वैसे अब देश में महँगाई व बैंक ब्याज दर बाहरी कारणों से अधिक प्रभावित है, इसलिए वित्तमंत्री कुछ विशेष नहीं कर सकते, सिवाय खाद्यान्नों का आयात बढ़ाने के। किंतु जब विदेशों में खाद्यान्नों के भाव आसमान पर हों, देश में गेहूँ, दालें, चावल, तिलहन, खाद्य तेल आदि के भाव कैसे घट सकते हैं? सरकार तो केवल इनका आयात बढ़ाकर आपूर्ति में सुधार ला सकती है। यही हाल पेट्रोल-डीजल का है।

इसी तरह बैंक ब्याज दर भी बाहरी कारणों से प्रभावित है। भारतीय रिजर्व बैंक तो केवल अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ाने या घटाने का निर्णय ले सकती है। रिजर्व बैंक चाहता है कि देश में डॉलर की आवक बढ़े ताकि चालू खाते के घाटे की पूर्ति होती रहे।

इस तरह यह बजट न तो चमत्कारिक है और न ही नवोन्मेषी। यह स्वप्नदर्शी बजट भी नहीं है, क्योंकि अभी भी एसईझेड की नीति अस्पष्ट है, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा देने की नीति का अभाव है। यहाँ तक कि विदेशी पूँजी बाजार में सस्ते कर्जों का लाभ उठाने के लिए ईसीबी (विदेशी व्यावसायिक कर्ज) पर भी रोक लगी हुई है। रिटेल व रियल-एस्टेट में विदेशी निवेश पर इक्विटी आधारित प्रतिबंध जारी है।

बुनियादी संरचना क्षेत्र एवं टेलीकॉम क्षेत्र को कोई खास बढ़ावा नहीं दिया गया है। करों में 5000 करोड़ की रियायत कोई मायने नहीं रखती वह भी तब अतिरिक्त कर से राजस्व पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। इसलिए इस बजट को साहसिक भी नहीं कहा जा सकता। वैसे भी एक या दो हैक्टेयर वाले किसानों में संपन्न किसानों के पुत्र ही अधिक लाभान्वित होंगे एवं गरीब किसानों को अधिकारी ठीक से ढूँढ ही नहीं पाएँगे।

वित्तमंत्री का मायाजाल


शनिवार, 1 मार्च 2008( 15:54 IST )






-डॉ. बीएस भंडारी
लगता है वित्तमंत्री के हाथों कोई जादुई चिराग लग गया है। उन्होंने बजट को मनपसंद व्यंजनों की सूची की तरह पेश किया- मानो जो माँगो, वो मिलेगा। अलग-अलग मुलाकातों और स्मरण पत्रों में उन्हें जो कुछ भी सुझाव मिले, उनका उन्होंने ध्यान रखने का प्रयास किया।

वित्तमंत्री की जिम्मेदारी भी नहीं भूले और राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा क्रमशः सकल घरेलू उत्पाद के 1.4 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत तक सीमित रखते हुए 2430 अरब रुपयों के योजना व्यय तथा 5075 अरब रुपयों के गैर योजना व्यय का प्रावधान करने और प्रतिरक्षा व्यय बढ़ाकर 105600 करोड़ रु. करने में सफल हुए।

फिर भी सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्कों में कमी करने और आयकर की दरें उदार बनाने में उन्होंने कोई संकोच नहीं किया। किसानों के कर्ज के साठ करोड़ रु. माफ करने की घोषणा की। बहुत सारी ऐसी घोषणाएँ भी कीं, जिससे लगा कि मई 2009 में होने वाले आम चुनाव के लिए संप्रग सरकार तैयार है।

वित्तमंत्री चिदंबरम के बजट प्रस्तावों और बजट भाषण में दोहराए गए मुद्दों से जाहिर होता है कि वे देश को संगठित और संस्थागत माध्यमों के आधार पर विकसित करना चाहते हैं। भारत के वित्तमंत्री के रूप में वैश्विक मंच पर संपर्क बढ़ाकर उन्होंने जो कुछ हासिल किया है, उसका लाभ पूरे देश को देना चाहते हैं। मूल्यों को स्थिर रखकर विकास करने की सावधानी रखी गई है।

मगर वे इसके लिए बाजार तंत्र तथा वित्तीय संस्थाओं की कार्यप्रणाली को सशक्त बनाना चाहते हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए 327 अरब रुपयों, कृषि साख हेतु 28000 अरब रुपयों, छोटे शहरों में स्थापित होने वाले हॉस्पिटलों व होटलों को पाँच वर्ष तक कर से छूट देने, वस्तु-वायदा-बाजारों को संगठित करने तथा वित्तीय समावेश पर जोर देना इसी का प्रतीक है।

उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि उत्पादन में वृद्धि और विकास पर पहले ध्यान दिया जाएगा। विकास के लाभों और न्यायपूर्ण वितरण या असमानता की कमी जैसे मुद्दों पर सोचना तभी सार्थक हो सकता है।

वित्तमंत्री के इस सोच पर बहस हो सकती है कि यदि गरीबों, दलितों और मेहनतकश लोगों की व्यक्तिगत हालत में सुधार करने में ठंडे रहे हैं। लोगों को विकास के लाभों में हिस्सेदारी नहीं मिली तो वे विकास की प्रक्रिया में सहभागी कैसे बनेंगे? मगर बजट में ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनके कारण देश की भावी पीढ़ी को शिक्षित, स्वस्थ तथा कुशल बनाया जा सके तथा अधोसंरचना के विकास का लाभ अधिक से अधिक लोग उठा सकें।

मकानों के निर्माण और उपभोक्ता सामग्री की पूर्ति के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। बजट में ज्ञान और कौशल के विस्तार पर जोर दिया गया है और गैर लाभ मिशन के गठन की घोषणा की गई है। वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण और कर-सुधारों को प्रोत्साहित करने वाले प्रावधान किए गए हैं।

मगर घाटे के उद्योगों, श्रम-सुधारों, सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश और रुपए के विनिमय मूल्य की समस्या पर चर्चा नहीं की गई है। पेट्रोल उत्पादों पर कर घटाने के बावजूद उसका लाभ उपभोक्ता को नहीं दिया गया है। पर्यटन बढ़ाने की बात तो कही गई है, मगर परिवहन सेवाएँ सुलभ करने पर जोर नहीं दिया गया है। कारें व स्कूटर सस्ते होंगे, मगर सस्ता पेट्रोल कहाँ से मिलेगा यह सोचना होगा?

उनके जादुई चिराग ने ऐसा कोई करिश्मा क्यों नहीं दिखाया कि अनाज, दालें, घी-तेल, कपड़े, पेट्रोल, गैस, ईंधन, शिक्षा, चिकित्सा या मनोरंजन की सुविधा आम आदमी को आसानी से हासिल हो जाती। उसे कोई राहत नहीं मिलेगी। बजट प्रावधानों से आम आदमी खुश नहीं हो सकता है। आयकर चुकाने वाले और वित्तीय संस्थानों से जुड़े लोग भी सोच नहीं पा रहे हैं कि चिराग से रोशनी निकलेगी भी या नहीं? वित्तमंत्री की मुस्कुराहट का रहस्य वे ही जानें! (लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं।)
न सत्यम्‌, न शिवम्‌, न सुंदरम्‌


सांप्रदायिक है बजट-भाजपा


नई दिल्ली (भाषा) , शुक्रवार, 29 फरवरी 2008( 22:44 IST )






प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने वित्तमंत्री पी. चिदंबरम पर बजट लीक करने का शुक्रवार को आरोप लगाया और कहा कि सरकार ने न सिर्फ किसानों को राहत देने के नाम पर लीपापोती की है, बल्कि आगामी चुनावों के चक्कर में बजट को सांप्रदायिक रंग दे डाला है।

वित्तमंत्री द्वारा संसद में बजट पेश किए जाने के बाद पार्टी ने एक बयान जारी कर कहा कि वित्तमंत्री ने जो कुछ भी किया है वह उम्मीद के मुताबिक है। उन्होंने (चिदंबरम) बजट प्रस्ताव अपनी पार्टी को लीक कर दिए, जिसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने बजट से कुछ दिन पूर्व ही किसानों के लिए एक पैकेज की माँग की। यह तथ्य सबको मालूम है कि बजट उस समय तक छप कर तैयार हो जाता है।

पार्टी ने कहा इसके बाद अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के कार्यालय पर हुई नाटकीय घटनाओं से बजट प्रस्ताव लीक होने की पुष्टि होती है।

इधर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि मैं बजट के सांप्रदायिक रंग को देखकर चकित हूँ। यह लियाकत अली के दिनों की याद दिलाता है जिसके परिणाम जगजाहिर है।

विपक्ष के नेता आडवाणी ने कहा कि बजट में सिर्फ एक ही महत्वपूर्ण बात है। वह है किसानों के ऋण की माफी की घोषणा। लेकिन यह घोषणा भी काफी विलंब से हुई है। उन्होंने पूछा कि जो हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। संप्रग सरकार ने यह घोषणा चार साल पहले क्यों नहीं की।

आडवाणी ने कहा कि वित्तमंत्री ने सीमांत और छोटे किसानों के ऋण माफी के काम को इस साल 30 जून तक पूरा करने की बात कही है, लेकिन उन्होंने इसे अंजाम देने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था का जिक्र नहीं किया है।





आयकर : किसको कितना फायदा?









वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने आगामी वित्त वर्ष के लिए नई आयकर दरों की घोषणा कर दी है, लेकिन वर्तमान आयकर दरें और प्रस्तावित दरों में कितना अंतर है और प्रस्तावित दरों से किस वर्ग को कितना फायदा होगा है? यह निम्न तालिका की मदद से समझा जा सकता है-


पुरुष
आयकर स्लैब (रु.) वर्तमान दर वर्तमान टैक्स (रु.) प्रस्तावित दर प्रस्तावित टैक्स (रु.) लाभ (रु.)
0 से 110000 0% 0 0% 0 0
110001 से 150000 10% 4000 0% 0 4000
150001 से 250000 20% 20000 10% 10000 10000
250001 से 300000 30% 15000 10% 5000 10000
300001 से 500000 30% 60000 20% 40000 20000




बजट : आम के लिए खास, खास के लिए आम

भास्कर डॉट कॉमFriday, February 29, 2008 14:15 [IST]
मुंबई. विश्लेषण :

वित्त मंत्री पी चिदंबरम कहां चूके? इस सवाल के जवाब के लिए मशक्कत करना आलोचकों और विपक्ष का काम है। लेकिन, बजट की डगर और बजट के असर पर गौर किया जाए तो जितना यह आम आदमी के लिए खास है उतना ही खास के लिए आम बजट है। निश्चित रूप से चुनाव पर पैनी निगाह कर तैयार किया गया बजट।

आयकर में राहत दी गई है। महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को विशेष रूप से। स्वास्थ्य, शिक्षा और खेलों के लिए जरूरी कदम उठाए गए हैं। इसके अलावा अल्पसंख्यक, पिछड़ी जातियां, बुनकर आदि वर्ग भी इस बजट से खुश हैं तो पर्यावरण का भी खयाल रखा गया है। महंगाई से निपटने और अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार जारी रखने के लिए भी वित्त मंत्री ने प्रतिबद्धता ठीक से जता दी है।

अब गरीब लोगों की बात करें। मजदूरों और कामगारों के लिए स्वास्थ्य बीमा, किसानों को कर्ज माफी, ग्रामीण अधोसंरचना और स्वास्थ्य मिशन पर पूरा ध्यान, रोजगार गारंटी योजना, बिजली उत्पादन पर जोर, गांवों में ब्रॉडबैंड, डेयरी पदाथरें के मूल्यों में कमी आदि प्रावधानों द्वारा वित्त मंत्री इस बड़ी आबादी को रिझाने में भी कामयाब रहे।

उद्योगों, कॉपरेरेट, विज्ञान आदि क्षेत्र में बजट को संतोषजनक माना जए या नहीं, यह सवाल बड़ा है। कस्टम डच्यूटी घटाई गई है लेकिन शर्तो के साथ, कॉपरेरेट टैक्स यथावत है तो उम्मीदें पूरी तरह से पूरी नहीं हुई हैं। दूसरी तरफ, रक्षा बजट में इजाफा वित्त मंत्री की खास पेशकश रही है।

इस बजट की एक महत्वपूर्ण घोषणा यह रही है कि अब हर किस्म के वित्तीय लेन-देन के लिए पैन का इस्तेमाल अनिवार्य होगा। इस प्रावधान के कारण वित्त मंत्री को अर्थवेत्ता माना जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने इस बजट को आउटस्टैंडिंग संज्ञा दी है तो कांग्रेस और यूपीए के सदस्य चिदंबरम से गदगद हो गए हैं। आगामी चुनाव को लेकर यूपीए परिवार की चिंता भी चिदंबरम ने काफी कम कर दी है। लालू के लोक-लुभावन रेल बजट के बाद चिदंबरम का रिझाऊ आम बजट विपक्ष के सिरदर्द का कारण बन चुका है। विपक्ष जो कह रहा है कि घोषणाएं तो कर दी गई हैं लेकिन अमल कैसे होगा? सवाल जायज है लेकिन इसका फैसला तो वक्त ही करेगा, कोई पक्ष विशेष तो नहीं।

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