संविधान की आत्मा पर चोट
'माई कंट्री माई लाइफ' में लालकृष्ण आडवाणी
राष्ट्र निर्माताओं ने जिस संविधान को सालों के श्रम एवं समर्पण से तैयार किया था उसकी आत्मा पर आपातकाल के दौरान व्यक्ति विशेष के हित में आनन-फानन में चोट की गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की संसद सदस्यता बचाए रखने के लिए संविधान संशोधन विधेयक को न सिर्फ चार दिन में पेश कर संसद के दोनों सदनों से पारित कराया गया बल्कि राष्ट्रपति की भी मंजूरी दिलाई गई।
लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी पुस्तक 'माई कंट्री माई लाइफ' में आपातकाल में पारित 40वें संविधान संशोधन विधेयक के बारे में इसका जिक्र किया है। इस विधेयक के द्वारा न सिर्फ प्रधानमंत्री बल्कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की वैधता को भी अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।
यह विधेयक लोकसभा में 7 अगस्त, 1975 को पेश कर उसी दिन पारित कराया गया। इसके बाद अगले दिन इसे राज्यसभा में पेश कर पारित कराया गया और नौ अगस्त को इसे राज्य विधानसभाओं से भी पारित करा लिया गया। राष्ट्रपति ने भी अगले दिन 10 अगस्त, 1975 को इसे अपनी मंजूरी प्रदान कर दी।
पूर्व राष्ट्रपति एपीजी अब्दुल कलाम द्वारा बुधवार को एक समारोह में जारी की जाने वाली इस पुस्तक में आडवाणी ने कहा कि इस संविधान संशोधन विधेयक का सबसे बुरा प्रावधान इसका चौथा खंड था, जिसके अनुसार इन चारों पदों के बारे में किसी उच्च न्यायालय द्वारा किए गए फैसले को शून्य करार किया गया। उन्होंने कहा कि इस तरह संशोधन के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर संसद ने न्यायपालिका के अधिकारों को हड़पा था।
उन्होंने कहा कि सिर्फ एक फासीवादी राज्य ही इस तरह से संविधान को नष्ट कर सकता था। आडवाणी ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी ने संविधान में यह संशोधन करने में इसलिए इतनी जल्दबाजी की क्योंकि उच्चतम न्यायालय को 11 अगस्त, 1975 को इन्दिरा गाँधी की चुनाव याचिका पर सुनवाई करनी थी। वैसे उच्चतम न्यायालय ने 7 नवंबर, 1975 को उनके चुनाव को वैध ठहराया और संविधान संशोधन को भी पिछली तिथि से वैध माना।
उन्होंने कहा कि इससे पहले सरकार ने 4 अगस्त, 1975 को जन प्रतिनिधित्व कानून और दंड प्रक्रिया संहिता के कुछ प्रावधानों में संशोधन करने के लिए चुनाव कानून में संशोधन करने का विधेयक पेश किया। इसके द्वारा चुनाव में उम्मीदवार को सरकारी अधिकारी से मिलने वाली सहायता को भ्रष्ट आचरण मानने को पुनर्परिभाषित किया गया था।
आडवाणी ने अपनी पुस्तक में कहा है कि इस संबंध में एक दिलचस्प सवाल यह पैदा हुआ कि जब चुनाव कानून में पिछली तिथि से यह संशोधन कर चुनाव को वैध ठहराने की पहले ही व्यवस्था कर ली गई थी तो फिर 40वें संविधान संशोधन की क्या आवश्यकता पड़ गई थी। उन्होंने कहा कि संभवत: ऐसा पक्की व्यवस्था के लिए किया गया था क्योंकि सरकार कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती थी।
आडवाणी ने कहा कि 8 अगस्त 1975 को जेल में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि सैद्धांतिक रूप से भारतीय संविधान अभी भी गणतंत्र है लेकिन व्यावहारिक तौर पर इन्दिरा गांधी को इंगलैंड की महारानी की तरह बनाने के लिये कानून को बिगाड दिया गया है और ऐसा कर दिया गया है जैसे इन्दिरा कोई गलत काम नहीं कर सकती।
आडवाणी ने कहा कि उसके अगले ही दिन (9 अगस्त, 1975) राज्यसभा सत्र के अंतिम दिन तत्कालीन विधिमंत्री एचआर गोखले ने सदन में बहुत ही अपमानजनक 41वाँ संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। इसमें अनुच्छेद 361 में संशोधन कर प्रधानमंत्री को किसी भी आपराधिक कार्रवाई से मुक्ति देने का प्रावधान था।
उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी डायरी में इस पर भारी रोष व्यक्त करते हुए लिखा था कि यह कदम अपने आप में स्तब्ध करने वाला है। इससे हमारे संविधान का गणतांत्रिक चरित्र नष्ट हुआ है। यह प्रधानमंत्री को अनावश्यक कानूनी झमेलों से बचाने के नाम पर उनके द्वारा किए जाने वाले अपराधों को वैध ठहराने का प्रयास है।
आडवाणी ने कहा कि अनुच्छेद 361 में ही सिर्फ राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों को यह छूट प्राप्त है, लेकिन वह भी सिर्फ उनके कार्यकाल की अवधि के लिए, जबकि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जो राजनीतिक अधिकारी हैं, अन्य नागरिकों की तरह कानून के प्रति जवाबदेह हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार ने 1976 में 44वाँ संविधान संशोधन विधेयक पेश किया जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की अवधि छह वर्ष कर देने नागरिकों के मूलभूत अधिकारों में कटौती करने के साथ ही राष्ट्रपति को अपने कार्यकारी आदेश से दो साल के लिए संविधान में संशोधन करने और संसद को बिना कोरम के भी कानून बनाने का अधिकार देने का प्रावधान था। उन्होंने कहा कि समाजवादी नेता एचवी कामथ ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह संविधान में संशोधन नहीं है बल्कि संविधान की समाप्ति है।
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