BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Wednesday, March 5, 2008

विकिरण से जूझ रहे हैं जादूगोड़ावासी

विकिरण से जूझ रहे हैं जादूगोड़ावासी


सुशील झा, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली, मंगलवार, 4 मार्च 2008( 22:18 IST )


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अमेरिका के साथ परमाणु सौदे पर भले ही सरकार अस्थिर हो जाती हो लेकिन भारत में यूरेनियम की खान में काम करने वालों की सुध किसी को नहीं है।

झारखंड के जादूगोड़ा की यूरेनियम खान के आस-पास रहने वाले लोगों पर किए गए एक ताजा अध्ययन के अनुसार लोगों पर रेडियोधर्मी विकिरण का बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

इंडियन डॉक्टर्स फॉर पीस एंड डेवलपमेंट (आईडीपीडी) से जुड़े डॉक्टरों ने दो मार्च को जारी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि विकिरण के कारण बच्चों में जन्मजात आनुवंशिक बीमारियाँ आम हैं।

हालाँकि जादूगोड़ा में यूरेनियम खनन का काम देखने वाली कंपनी यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने इस रिपोर्ट को गलत करार दिया है।

आईडीपीडी की तरफ से रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉ. शकील ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने जादूगोड़ा और आसपास के इलाकों में लोगों का परीक्षण किया और पाया कि जादूगोड़ा की खदान के पास के लोगों में बीमारियाँ अधिक हैं बनिस्पत खान से दूर रहने वालों के।

उनका कहना था कि हमारे आँकड़ों के अनुसार जादूगोड़ा की खदान और टेलिंग पौंड के पास के लोगों में चार तरह की समस्याएँ अधिक हैं। महिलाओं में बाँझपन, बच्चों में जन्मजात विकलांगता और ऐसे बच्चों में अधिक मृत्यु दर, कैंसर पीड़ितों की बड़ी संख्या जादूगोड़ा में देखने को मिलीं।

इतना ही नहीं आँकड़ों के अनुसार जादूगोड़ा की आबादी की औसत आयु झारखंड की औसत उम्र से काफी कम देखी गई। झारखंड के लोगों की औसत उम्र 62 साल है जबकि जादूगोड़ा में दो तिहाई लोग 62 से पहले ही मर जाते हैं।



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इस रिपोर्ट के बारे में पूछने पर यूसिल के प्रबंध निदेशक रमेंद्र गुप्ता ने बीबीसी से कहा कि मैंने ये रिपोर्ट नहीं देखी इसलिए इस पर कुछ नहीं कह सकता लेकिन मैं इतना जरूर कहूँगा कि इस तरह की रिपोर्टें गलत और बेबुनियाद हैं।

उन्होंने कहा कि जादूगोड़ा में बिलकुल सुरक्षित तरीके से खनन कार्य होता है और यहाँ किसी तरह की विकिरण की कोई समस्या नहीं है। जो मौतें हो रही हैं उनका संबंध कुपोषण इत्यादि से है। इसका यूरेनियम खान से कोई संबंध नहीं है।

उल्लेखनीय है कि जादूगोड़ा में लोगों के खराब स्वास्थ्य के बारे में पहले भी कुछ रिपोर्टें आई हैं लेकिन पहली बार डॉक्टरों ने इस तरह की रिपोर्ट तैयार की है।

आईडीपीडी से जुडे़ डॉक्टर अरुण मित्रा बताते हैं कि जादूगोड़ा में जिस तरह की समस्याएँ दिखी हैं वैसी ही समस्याएँ ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की यूरेनियम खानों के पास भी पाई गई हैं।

डॉ. मित्रा और आईडीपीडी के अन्य डॉक्टर कहते हैं कि जादूगोड़ा के मामले में और भी डॉक्टरी शोध होने चाहिए। यह पूछे जाने पर कि यूसिल तो इस तरह की रिपोर्टों को मानता ही नहीं है, डॉ. शकील कहते हैं कि हमने तो माँग की है कि यूसिल एक बायो मार्कर स्टडी करे जिसमें गुणसूत्रों में आने वाले बदलाव का पता चल सके। एक छोटा शोध पेशाब में आने वाले यूरेनियम की मात्रा का भी किया जा सकता है जिससे बहुत कुछ साफ हो जाएगा।

आईडीपीडी इंटरनेशनल फिज़िशियन्स फॉर प्रीवेन्शन ऑफ न्यूकलियर वॉर (आईपीपीएनडबल्यू) से जुड़ी हुई है और इसे 1985 में नोबल शांति पुरस्कार भी मिला है।

जादूगोड़ा में रेडियोधर्मी विकिरण से प्रभावित लोगों के लिए इस तरह की रिपोर्टों के क्या मायने हैं, झारखंडी ऑर्गेनाइजेशन अगेनस्ट रेडिएशन के घनश्याम बिरुली कहते हैं कि इस तरह की रिपोर्टों से उनके आंदोलन को मदद मिलेगी।

बिरुली पिछले दस वर्षों से रेडियोधर्मी विकिरण से होने वाले प्रभाव के विषय में स्थानीय लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वे कहते हैं कि इस रिपोर्ट के बाद हम यूसिल से माँग करेंगे कि वो लोगों को मुआवजा दे और टेलिंग पौंड के पास रहने वालों लोगों को कहीं सुरक्षित स्थान पर बसाए।

भारत में परमाणु ऊर्जा और इससे जुड़ा हर मुद्दा अत्यंत संवेदनशील माना जाता है और इस पर कुछ कहना बहुत गंभीर माना जाता है।

बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक और डॉक्टर जादूगोड़ा के लोगों की बात भले ही उठाते रहे हों लेकिन अमेरिका के साथ परमाणु सौदा करने वाली केंद्र सरकारों ने कभी भी इन लोगों पर ध्यान नहीं दिया है।

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