BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, March 7, 2008

अपने जासूसों का ध्यान नहीं रखतीं सुरक्षा एजेंसियां

अपने जासूसों का ध्यान नहीं रखतीं सुरक्षा एजेंसियां
Mar 07, 12:11 pm
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4243896/

अमृतसर, जागरण ब्यूरो। कश्मीर सिंह की तरह ही भारत के पूर्व जासूसों की दास्तां भी कम दर्दनाक नहीं है। उनका कहना है कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां अपने जासूसों का खास ध्यान नहीं रखती हैं। सीमा पार पकड़े जाने पर उन्हें भगवान के भरोसे छोड़ दिया जाता है।

कश्मीर सिंह व बलविंदर सिंह के साथ दस वर्ष तक सजा काटने वाले पंजाब निवासी बलबीर सिंह ने बताया कि वह जासूसी के लिए चार अपै्रल 1974 को दाउके सीमा से पाकिस्तान गया था। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का एक सूत्र वहां मौजूद था। उसे पाकिस्तान पुलिस ने पहले ही गिरफ्तार कर रखा था। जैसे ही वह उससे मिलने गया तो पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद पाकिस्तान में जासूसी कर रहे कश्मीर सिंह व बलविंदर सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया। बलबीर व बलविंदर को दस-दस वर्ष की कैद हुई, लेकिन कश्मीर सिंह को मौत की सजा सुनाई गई थी।

बलवीर ने बताया कि गिरफ्तारी के बाद उन्हें पाकिस्तानी पुलिस के हाथों शारीरिक उत्पीड़न झेलना पड़ा था। सजा सुनाए जाने के बाद वे 1977 तक मियांवाली बहावलपुर की जेल में इकट्ठा रहे। बाद में कश्मीर सिंह को उन दोनों से अलग कर दिया गया था। सजा खत्म होने पर बलवीर व बलविंदर की रिहाई हो गई, लेकिन कश्मीर सिंह अब तक जेल में बंद था। उन्होंने कहा कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां उन्हें प्रतिमाह एक हजार रुपये पारिश्रमिक के तौर पर देती थीं। पाकिस्तान में गिरफ्तारी के बाद उनके परिवार को पंजाब व केंद्र सरकार की ओर से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिल पाई। अब उन्हें परिवार के भरण-पोषण के लिए मेहनत मजदूरी करनी पड़ती है।

कई कश्मीर हैं पाक की जेलों में

-कई कश्मीर सिंह पाकिस्तान की जेलों में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। हालांकि पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरनल परवेज मुशर्रफ ने कश्मीर को 'आजाद' कर पाकिस्तान के पंजाबी समुदाय की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए राजनीतिक तुरुप का पत्ता खेला है। मगर पाकिस्तान के राष्ट्रपति की नजर सरबजीत सिंह व गुरदासपुर के किरपाल सिंह पर क्यों नहीं गई। जबकि सरबजीत के मामले पर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह व पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने तक जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ बातचीत की थी। परंतु सरबजीत की दया याचिका मुशर्रफ ने ठुकरा दी।

वहीं, पाक जेलों में बंद भारतीयों के परिजन आज भी यदाकदा वाघा सीमा पर उनकी तलाश में भटकते रहते हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान की जेलों में कई युद्धबंदी हैं। इनमें से अधिकांश काल के गाल में समा चुके हैं, जो बचे हैं, वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं। उनकी रिहाई की तरफ पाक सरकार गंभीर क्यों नहीं है। जबकि भारत के गृह व विदेश मंत्रालय ने 54 भारतीय युद्धबंदियों की सूची पाकिस्तान के अधिकारियों को सौंपी थी। मगर पाकिस्तान के अधिकारियों ने हमेशा यह कहकर सूची को खारिज कर दी कि उनकी जेलों में कोई भी भारतीय युद्धबंदी कैदी नहीं है। तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पाकिस्तान का तीन बार दौरा किया। इस दौरान उन्होंने कुछ भारतीय नौजवानों को रिहा भी करवाया। इसके बावजूद भी पाकिस्तान की जेलों में सैकड़ों भारतीय बंद हैं।

अब तक रिहा होकर आए अधिकांश लोगों का यही कहना है कि पाक जेलों में बंद भारतीयों के प्रति न केवल बुरा व्यवहार किया जाता है, बल्कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय जेल नियमों के अंतर्गत कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई जाती। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान चंगुल में फंसे कई भारतीय रणबांकुरों के परिजन 37 वर्ष बाद भी उनके आने की बाट जोह रहे हैं। वाघा सीमा पर जब भी कैदी रिहा होकर आते हैं तो देश के विभिन्न भागों के लोग अपने परिजनों को ढूंढने के लिए वाघा पहुंच जाते हैं। जम्मू के नानक नगर के सेक्टर 10 निवासी सूबेदार आसा सिंह की पत्नी निर्मल कौर भी इस आस्था के साथ वाघा सीमा पर कई बार पहुंची है कि 1971 के युद्ध के समय छमजोड़िया सेक्टर में दुश्मन के चंगुल में फंसा उसका पति शायद ही वापस लौट आए। गत 37 वर्षो से पति को ढूंढ रही निर्मल कौर वाघा सीमा पर अपनी बेटी दविंदर कौर, दामाद गुरदीप सिंह, बेटा बलदेव सिंह व दो पोते जतिंदर व अमन के साथ पहुंचती है। हाथों में आसा सिंह की फोटो लिए निर्मल कभी सुरक्षा बल के अधिकारियों व कभी मीडिया के लोगों से अपने पति के आगमन के बारे में पूछती दिखाई देती है। निर्मल कौर का कहना है कि 1971 में जब आसा सिंह गिरफ्तार हुआ था तो पाकिस्तानी रेडियो ने उसके सलामती का समाचार दिया था, जो उसने स्वयं सुना था। पाकिस्तान ने 1974 और 1994 में सूची जारी की थी, जिसमें उसके पति का भी नाम था। पाकिस्तान की जेलों से रिहा हुए मेजर एके सूरी ने उसके पति के जीवित होने का समाचार दिया था। केंद्र सरकार के साथ बार-बार पत्र व्यवहार के बावजूद भी उसके पति के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है।

यही हाल परसराम के परिजनों की है। 1971 में छम्ब जौडि़या की लड़ाई में वह पाकिस्तान सेना के चंगुल में फंस गए थे। उस समय उनका बेटा कैलाश तीन दिन का था। परसराम की पत्नी की मौत 2003 में हुई थी। बेटा राजौरी में सरकारी नौकरी पर है। भाई जियाराम उसकी तलाश में कई बार वाघा सीमा पर पहुंचा, लेकिन निराश लौट गया। वाघा सीमा पर फिर सरबजीत कौर की बहन दलबीर कौर पहुंची हुई थीं और कश्मीर सिंह का स्वागत किया, लेकिन भाई के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।

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