BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Thursday, March 6, 2008

एक बुजुर्ग आविष्कारक की मुश्किल

एक बुजुर्ग आविष्कारक की मुश्किल


अमरनाथ तिवारी, मोतिहारी, बिहार से, बुधवार, 5 मार्च 2008( 18:28 IST )

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बिहार के मोतिहारी के बुजुर्ग आविष्कारक मोहम्मद सईदुल्लाह ने गरीबी से तंग आकर अपनी बची-खुची जमीन और टूटा-फूटा घर बेचने का फैसला किया है। अपने आविष्कारों लिए के सईदुल्लाह कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं।

सईद को एक ऐसी साइकिल बनाने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने पुरस्कार से नवाजा था जो नाव की तरह पानी पर चल सकती है।

सईद ने अपनी इस साइकिल पर सवार होकर पटना में गंगा नदी पार की थी। उनके इस आविष्कार को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल एआर किदवई ने भी देखा था। लेकिन, सईद सरकार से नाराज हैं। वो अब अपने सारे पुरस्कार लौटाना चाहते हैं।

उनका कहना है कि उन्हें पुरस्कार तो काफी दिए गए लेकिन, किसी ने भी उन्हें इस तरह की खोज करने के लिए आर्थिक सहायता देने की कोशिश नहीं की। सईद का कहना है कि अगर आप किसी को तबाह करना चाहते हैं तो बस उसे पुरस्कार दे दीजिए।

सईद की गरीबी का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने 16 सदस्यों वाले परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें रोजाना अपनी साइकिल पर शहद बेचने के लिए निकलना पड़ता है। कभी-कभी तो सईद को इसके लिए 30 किलोमीटर तक का सफर करना पड़ता है और वो इससे बमुश्किल 1500 रुपए महीना कमा पाते हैं।

बुजुर्ग का जज्बा : सईदुल्लाह ने अपनी पूरी जिंदगी इन्हीं अविष्कारों और खोजों में खपा दी है। बिहार का ये इलाका हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाता है। 1975 में इसी तरह की एक बाढ़ के दौरान सईद को एक मल्लाह ने बिना पैसे लिए नाव में बैठाने से मना कर दिया।



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तभी से सईद ने ठान ली कि वो इस बाढ़ से निपटने के लिए अपना ही कोई इंतजाम करके रहेंगे। बड़ी मशहूर कहावत है, आवश्यकता आविष्कार की जननी है। फिर क्या था सईद जुट गए और उन्होंने अगले तीन दिनों में ही एक ऐसी साइकिल तैयार कर दी जो पानी पर नाव की तरह तैर सकती थी। बस पैडल चलाइए और ये साइकिल आगे बढ़ती जाएगी।

इसके लिए सईद ने साइकिल के साथ चार खाली कनस्तर जोड़ दिए। जो इसे पानी के ऊपर रखते हैं। इसके अलावा साइकिल के पहियों के साथ दो पंखुड़ियाँ भी लगाईं जिनकी मदद से साइकिल उसी तरह आगे बढ़ती है जैसे कोई नाव चप्पुओं के सहारे आगे चलती है।

सईद की इस साइकिल में खास बात ये है कि ये पानी में अपने पैडल के सहारे पीछे की तरफ भी चल सकती है।

सईद का इनाम : सईदुल्लाह को अब तक इतने पुरस्कार मिल चुके हैं कि वो तो इनकी गिनती भी भूल चुके हैं। 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रीय नवप्रवर्तन संस्थान यानी 'नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन' (एनआईएफ) की तरफ से 'लाइफ टाइम अचीवमेंट' पुरस्कार से नवाजा था।

इसी साल सईदुल्लाह को 'वॉल स्ट्रीट जरनल' का 'एशियन इनोवेशन अवार्ड' भी मिला। सईद ने 11 प्रतियोगियों के बीच बाजी मारी थी। सईद के बारे में डिस्कवरी चैनल के कार्यक्रम 'बियोंड टुमॉरो' में भी बताया गया था।

सईद की साइकिल-नाव से प्रभावित एनआईएफ ने पेटेंट कराने के लिए सईद का ये आविष्कार ही उनसे ले लिया। इस बात को तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन न तो सईद को साइकिल ही वापस मिली और न ही पेटेंट।

लेकिन एनआईएफ की तरफ से उम्मीदें खो देने वाले सईद यहीं नहीं रुके। उन्होंने इसी तरह का एक साइकिल रिक्शा तैयार कर दिया। अब वो अपने नाती-पोतों को इस रिक्शे पर करीब के ही तालाब में सैर कराते हैं।

सईद कहते हैं कि एनआईएफ ने मेरा दिल तोड़ा है। उन्होंने अपने प्रचार के लिए मेरा इस्तेमाल किया। सईद के दिल का दर्द उनके चेहरे पर ही नुमायाँ हो जाता है। सईद पूछते हैं कि क्या कोई मुझे ये बता सकता है कि एनआईएफ ने कितने लोगों को बेवकूफ बनाया है या मेरी तरह के कितने लोगों को वो अब तक तबाह कर चुके हैं।

सईदुल्लाह की इस शिकायत पर एनआईएफ के कार्यकारी अध्यक्ष अनिल गुप्ता सहानुभूति जताते हुए कहते हैं कि हम सईदुल्लाह की परेशानी समझ सकते हैं। हमने काफी कोशिशें कीं और लगातार कर रहे हैं, लेकिन हम अब तक उनके लिए किसी प्रायोजक का इंतजाम नहीं कर पाए हैं।



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अनिल गुप्ता कहते हैं कि हमने सईदुल्लाह के लिए फैलोशिप का इंतजाम भी किया है और भविष्य में भी हम उनकी मदद करते रहेंगे। वहीं, बिहार सरकार के विज्ञान एवं तकनीकी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी अजय कुमार ने कहा कि वो एनआईएफ से बात करके उनकी इस ईजाद को जल्द से जल्द पेटेंट कराने की कोशिश करेंगे।

खोज का जुनून : सईदुल्लाह के हालात हमेशा ऐसे नहीं रहे हैं। उनके बेटे मोहम्मद शकील-उर-रहमान के मुताबिक उनके पिता को विरासत में कई एकड़ जमीन, बाग़, एक बड़ा घर और एक हाथी मिला था, लेकिन नई-नई चीजें ईजाद करने के लिए उन्होंने ये सारा कुछ बर्बाद कर दिया।

अपने पिता की ही तरह साइकिल पर पटना में शहद बेचने वाले शकील का कहना है कि उनके पिता का जुनून ही परिवार की गरीबी की अहम वजह है।

सईद की ईजादें : घर के कमजोर आर्थिक हालात भी सईदुल्लाह को अपने अविष्कारों से नहीं रोक पाए हैं। साइकिल के बाद सईद चाभी से चलने वाला एक पंखा भी बना चुके हैं। मेज पर रखा जाने वाला ये पंखा लगातार दो घंटे तक हवा दे सकता है। सईद एक ऐसे पानी के पंप का भी ईजाद कर चुके हैं जो बिना किसी ईंधन के चलता है।

सईद की खोजों में एक छोटा ट्रैक्टर भी शामिल है, जो सिर्फ पाँच लीटर डीजल में दो घंटे चल सकता है। सईदुल्लाह का दावा है कि वो एक हेलिकॉप्टर भी बना सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें तकरीबन ढाई लाख रुपए की जरूरत होगी।

सईद का कहना है कि वो एक ऐसी कार बनाने के बारे में सोच रहे हैं जो हवा से चलेगी। सईदुल्लाह के घर में उनकी एक छोटी-सी कार्यशाला भी है, जिसे आप इस बुजुर्ग वैज्ञानिक की वर्कशॉप या लैब कह सकते हैं।

यहाँ उनके पास एक हाथों से चलने वाली लेथ मशीन और कई सारे दूसरे औजार हैं जिनकी मदद से वो अपने आविष्कार करते हैं। सईद कहते हैं कि मुझे यहाँ पर काम करने में मजा आता है। मेरा बस चले तो मैं यहाँ हमेशा रहूँगा।

खुशमिजाज सईदुल्लाह : गरीबी का दर्द झेलने के बावजूद भी सईद के चेहरे की मुस्कराहट कम नहीं होती। जब सईद से पूछ गया कि अपना घर और बाकी की जमीन बिक जाने के बाद वो कहाँ रहेंगे, तो मुस्कराते हुए वो कहते हैं कि मैं एक तीन मंजिला कार बनाऊँगा, जिसमें तह हो जाने वाले पलंग होंगे। इसे मैं किसी भी सड़क के किनारे खड़ी कर दूँगा।

सईद का कहना है कि उन्हें अपनी इन खोजों के लिए प्रेरणा रोजाना की जरूरतों और अनुभव से मिलती है। सईदुल्लाह अपनी पत्नी नूरजहाँ को बेहद चाहते हैं। शाहजहाँ के ताजमहल की तरह उन्होंने अपनी हर ईजाद का नाम नूरजहाँ के नाम पर रखा है।

सईद कहते हैं कि नूर का मतलब रोशनी होता है। इंशाअल्लाह एक दिन जरूर आएगा जब हमारी जिंदगियों में इसी तरह रोशनी होगी।

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