BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Thursday, May 2, 2013

मराठवाड़ा यात्रा: दूसरी किस्‍त

मराठवाड़ा यात्रा: दूसरी किस्‍त


(गतांक से आगे) 

कब्र पर सपने

अट़ठाईस साल के बाबासाहेब जिगे का बाकी इतिहास भी इतना ही रहस्यमय है। शुरुआती दिनों में अपने चाचा से प्रभावित होकर वे 2007 से पहले तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में हुआ करते थे। वहां का अनुशासन उन्हें पसंद नहीं आयातो अचानक वे अपने बड़े भाई देविदास से प्रभावित होकर सीपीआई के एआईएसएफ में चले आए। जाते-जाते उन्होंने हमें जो कार्ड दियाउस पर उनके नाम के आगे कॉमरेड लिखा है और एआईएसएफ के राज्य सदस्य व जिला सचिवसीपीआई के जिला सदस्यअखिल भारतीय नौजवान सभा के राज्य सदस्यउनके गांव में चलने वाले सार्वजनिक ग्रंथालय के ग्रंथपालशहीद भगत सिंह क्रीड़ा मंडल व व्यायामशाला के सदस्य जैसे परिचयों के अतिरिक्त उनके गांव मठपिंपल में स्थित एक फोटो और वीडियो शूटिंग स्टूडियो के प्रोपराइटर का पता भी है। 

पिछले पंद्रह साल से कर्मठ जमीनी कार्यकर्ता की तरह खेतिहर मजदूरों के बीच काम कर रहे देविदास से उलट बाबासाहेब अपने पांच साल के करियर की बदौलत अब विधायकी का चुनाव लड़ना चाहते हैं। यह चाहत निराधार नहीं है। उनके जैसों की पूरी एक फौज है जो दुष्काल में भी सुनहरे सपने देखती है। इन्हीं में एक हैं उनके चचेरे भाई भारतीय जनता पार्टी के तालुकाध्यक्ष कृष्णा लिंबाजीराव जिगेजो फिलहाल मठपिंपल गांव में बनी पशु छावनी के संचालक हैं।

गौसेवा के नाम पर सूखे में कमाई का अवसरमठपिंपल गांव में एक पशु छावनी 

मराठवाड़ा में जब से अकाल घोषित हुआ हैयहां सरकारी अनुदान की मदद से कुछ पशु छावनियां बनाई गई हैं जो सड़कों पर चलते हुए किसी गांव के बाहर आसानी से नज़र आ सकती हैं। फिलहाल अम्बड़ तालुका में ऐसी सात छावनियां हैं जिनमें प्रत्येक में औसतन पांच से सात सौ मवेशी रहते हैं। यहां सरकारी टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। ऐसी अधिकतर छावनियां स्थानीय नेता और दबंग संचालित कर रहे हैं। झक सफेद कुरते में करीने से रंगे हुए बालों वाले कृष्णा जिगे इस काम को समाज सेवा बताते हुए कहते हैं, ''पिछले डेढ़ महीने में मेरा डेढ़ लाख का निजी नुकसान हो गया है इस छावनी को चलाने मेंलेकिन कोई बात नहीं। आनंद आता है। पुण्य मिलता है। लोग जानते हैं। ये सब राजनीति के लिए ज़मीन तैयार करेगा।'' 

सूखे में विधायकी की तैयारीकृष्‍णा जिगे  
ज़ाहिर हैराजनीतिक ज़मीन तलाशने वाले और भी हैं इसलिए समाज सेवा का मुहावरा बहुत देर तक नहीं टिक पाता। छावनी से निकलते ही बाबासाहेब कहते हैं, ''बहुत खराब आदमी है कृष्णा। हमारे परिवार का है तो क्या हुआमेरा राजनीतिक दुश्मन है। गाय-भैंसों की ज्यादा संख्या दिखाकर अनुदान हड़पने का सारा खेल करता है और जो भी अधिकारी यहां जांच के लिए आते हैंसबको पैसे खिलाता है।'' खुदकुशी करते किसानों और अधप्यासे मवेशियों की कीमत पर यहां जिसके पास जितनी ताकत हैवह उसकी पूरी ज़ोर आज़माइश से अवसरों को भुनाने में लगा है। यह ताकत हालांकि हर बार फल जाएऐसा सत्ताविहीन किसानों के साथ नहीं होताचाहे उनका रकबा कितना ही बड़ा क्यों न हो। 

जालना के गणेशनगर में रहने वाले दिनेश काम्बले बड़े किसान हैं। लंबे समय से मौसम्बी पैदा कर रहे हैं। पिछले कुछ साल से बारिश कम होने और भूजल स्तर नीचे चले जाने के कारण उन्होंने फैसला किया कि खुद का पैसा लगाकर पानी की एक पाइपलाइन खेत तक ले आएंगे। अक्टूबर 2011में दिनेश ने सात किलोमीटर लंबी पाइपलाइन पर 20 लाख रुपए का निवेश किया जिससे 20 एकड़ मौसम्बी का खेत सींचा जाना था। पैसे बह गएपानी नहीं आया। जालना-अम्बड़ मार्ग पर मुख्य बाजार से ठीक पहले दाहिने हाथ पर दिनेश का 20 एकड़ खेत आज पूरी तरह पीला पड़ चुका है। दिनेश के सिर पर कुल 70 लाख रुपए का कर्ज है। वे आजकल घर से बाहर नहीं निकलते हैं। बाजार का हर आदमी उनकी बरबादी की कहानी सुनाता है। अब सबको बस उनकी खुदकुशी की खबर का इंतजार है। अगर पानी बरस भी गयातो दिनेश जैसे मौसम्बी उत्पादकों के किसी काम का नहीं होगा क्योंकि इस फसल को दोबारा फल देने लायक बनने में पांच से सात साल का वक्त लगता है। 

डूब गए 70 लाख, खेती बनी फंदा: दिनेश काम्‍बले का 20 एकड़ मौसम्‍बी का खेत  
दिनेश की कहानी उस छोटे से बांध के जिक्र के बगैर पूरी नहीं होगी जो अम्बड़ बाजार से बमुश्किल 500 मीटर आगे दुधना नदी पर बना हुआ है। चालीस साल पुराना यह बांध पूरी तरह सूख चुका है। स्थानीय किसान तुकाराम म्हाड़े हमें बताते हैं कि इससे गाद निकालने के नाम पर ठेकेदार इसकी बेयरिंग निकाल कर दो साल पहले ले गया। जिले में ऐसी 27 छोटी परियोजनाएं और सात मध्यम आकार की परियोजनाएं हैं जो दुधना और पूर्णा नदी पर बनी हुई हैं। म्हाड़े कहते हैं, ''आगे के सारे डैम भी ऐसे ही सूखे पड़े हैं। सबमें गाद भरी हुई है। पानी बरसेगा भी तो उसका कोई फायदा नहीं होने वाला है।''

बेयरिंग चोरी गई, पत्‍थर बाकी हैं : दुधना नदी पर बना छोटा बांध  
जल और सिंचाई संसाधनों के कुप्रबंधन के कारण यहां बड़ा किसान पैसे खर्च कर के कर्ज में फंस जाता है। छोटा किसान अभाव में अपनी मौत मरता है। जो लोग सीधे तौर पर खेती से नहीं जुड़े हैंउन्हें देखने के लिए गांवों में जाने की जरूरत नहीं पड़ती। दिन के दो बज रहे हैं और बाजार में करीब दसेक तिपहिया ऑटो सवारी के इंतज़ार में सुबह से खड़े हैं। एक ऑटो चालक बताते हैं कि उन्होंने दो दिन से अपनी गाड़ी घर से नहीं निकाली है। हमने पूछा कि जिस पलायन की बात इतने जोर-शोर से हम सुन रहे हैंउसका क्याइसका एक अनपेक्षित जवाब एक मतंग दलित किसान आसाराम महापुरे की ओर से आता है, ''लोगों के पास जब पैसा ही नहीं है तो वे शहर क्या करने जाएंगेप्यासे मरने के लिएयहां कुछ नहीं तो कम से कम दाना-पानी मिल जाता है,शहर में तो बीस दिन पर पानी आता है। कोई पलायन नहीं हो रहा है। सब गांव के लोग गांव में ही हैं।'' और वे हमें सामने से गुजरती एसटी (राज्य परिवहन) की लाल सरकारी बस दिखाते हैं जिसमें एकबारगी बमुश्किल सात से आठ सवारियां नज़र आती हैं। अचानक तुकाराम गरम हो जाते हैं, ''आएं इस बार वोट मांगनेबैल हांकने वाले चाबुक से मार कर भगा देंगे।'' 

किस्‍मत पर हंसते, सरकार को गरियाते लोग: बाएं से बाबासाहेब जिगे,
आसाराम महापुरे, कुछ ऑटो चालक और किसान तुकाराम म्‍हाड़े (सबसे दाएं) 
उनके मुंह से एक के बाद एक भद्दी गालियां फूट पड़ती हैं। अब तक ये लोग सब के सब राष्ट्रवादी कांग्रेस या कांग्रेस को अपना वोट देते रहे हैं। इस बार गुस्सा साफ दिख रहा है। अजित पवार के पेशाब वाले कुख्यात बयान पर म्हाड़े गाली देते हुए कहते हैं, ''वहीं रह कर पेशाब करें। यहां आने की ज़रूरत नहीं।'' हमने उनसे पूछा कि इस बार किसे वोट देंगे। म्हाड़े बोले, ''मनसे (राज ठाकरे) को दे देंगेलेकिन एनसीपी को नहीं देंगे।'' मनसे या शिवसेना को वोट देने की बात सिर्फ तात्कालिक प्रतिक्रिया है। वहीं खड़े एक ऑटो चालक सबके सामने कहते हैं, ''चुनाव की बात दूसरी होती है। चुनाव के दिन जिसके जीतने के आसार दिखते हैंलोग उसी को वोट करते हैं। ये ही लोग जो आज इतना बोल रहे हैंइन्हें बस दारू-मुर्गा और पैसा चाहिए उस समय। कई तो पैसा लेकर भी वोट बदल देते हैं। कोई ईमान नहीं है इन लोगों का।'' आश्चर्यनाक रूप से जो लोग अब तक एनसीपी को गालियां दे रहे थेसब उसकी हां में हां मिलाने लगते हैं। म्हाड़े कहते हैं, ''ठीक बात है।'' अंगूठे और तर्जनी को करीब लाते हुए वे कहते हैं, ''सब नकद का खेल है।'' और अचानक वहां खड़े करीब दर्जन भर लोग ठठा कर हंस पड़ते हैं। 

जिगे जैसे नौजवान दुष्काल से सूखी जिस ज़मीन पर खड़े होकर सियासी पेंच लड़ा रहे हैंवह उतनी कमजोर भी नहीं है। वे जानते हैं कि दुष्काल और चुनाव दो अलहदा चीज़ें हैं। सपनेकब्र पर भी देखे जा सकते हैं। 

(क्रमश:) 

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