दीदी ने उपेन विश्वास के पर कतर दिये, खुद आदिवासियों का कल्याण करेंगी!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
दीदी ने उपेन विश्वास के पर कतर दिये, खुद आदिवासियों का कल्याण करेंगी!आदिवासी कल्याण का कामकाज अब तक अनुसूचित मामलों के मंत्री पूर्व सीबीआई संयुक्त निदेशक उपेन विश्वास के जिम्मे था। अब दीदी ने उनके मंत्राल से आदिवासी कल्याण विभाग को अलग कर दिया है और खुद इस वाभाक की जिम्मेवारी ले ली है। अल्पसंख्ययक विकास का विभाग भी दीदी खुद देख रही है। आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के विकास की चिंता दीदी को ज्यादा है या मुसलमानों के २७ फीसद वोटों की तरह आदिवासयों के आठ दस फीसद वोटबैंक को साधने की रणनीति की गरज, इस पर चर्चा शुरु हो गयी है। लेकिन दीदी ने संवाददाता सम्मेलन में आदिवासियों के विकास के मामले में पिछले दो साल में हुए कामकाज पर नाराजगी जताते हुए यह कदम उठाया।
वैसे भी उपेन बाबू के सरकारी कामकाज को बारे में लोगों को खास पता नहीं है। पहले वे शरणार्थी मामलों को लेकर खूब मुखर हुआ करते थे,लेकिन मंत्री बनने के बाद उनके सामाजिक सरोकार सिरे से हाशिये पर है। अब जो उनकी हालत है, वे अपने ही समुदाय में अलग थलग पड़ गये हैं और उनके लिए किसी को कोई सहानुभूति नहीं है। बल्कि लोगों को इंतजार है कि दीदी अनुसूचित कोटे से मंत्री बने उज्जवल विश्वास और मंजुल कृष्ण ठाकुर की खबर कब लेती हैं या नहीं। वैसे मजबूत मतुआ वोटबैक की वजह से मंजुल ठाकुर फिलहाल सुरक्षित हैं।
पूर्व आइपीएस अफसर, पूर्व सीबीआई संयुक्त निदेशक उपेन विश्वास बागदा (सुरक्षित) सीट से फारवर्ड ब्लाक के निर्मल सिकदर को पराजित करके पहली बार विधायक बनते ही मंत्री बना दिये गये लेकिन मंत्री बनने के बाद उन्होंने क्या क्या किया, किसी को नहीं मालूम। ये उपेन विश्वास वहीं है जिन्होंने बिहार के आठ सौ करोड़ रूपए के चारा घोटाले का पर्दाफाश किया था।
खास बात तो यह है कि दीदी ने यह कार्रवाई आदिवासी विकास परिषद के शिष्टमंडल से मुलाकात के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में खुलेआम कर दी।विकास परिषद ने अपने ज्ञापन में दीदी से आदिवासी विकास परिषद के गठन में हो रही देरी पर सिकायत की है। लेकिन दीदी ने आदिवासी विकास विभाग खुद अपने पास लेने की घोषमा करते हुए आदिवासी कल्याण योजनाओं क्रियान्वयन में देरी के अलावा मनरेगा योजना लक्ष्य में भी ढिलाई की कलई खोल दी।
मालूम हो कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आदिवासी बहुल तीन जिले पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया के आदिवासियों को बीपीएल सूची (गरीबी रेखा से नीचे) में शामिल करने की घोषणा 13 जुलाई 2011 को की। ज्ञातव्य हो कि पश्चिम बंगाल में स्थित ये तीनों जिले संयुक्त रूप से जंगलमहल के नाम से जाने जाते हैं।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह घोषणा माओवाद प्रभावित इलाके के दौरे के दौरान बांकुड़ा जिले में आयोजित एक जनसभा में की। ममता बनर्जी ने घोषणा में यह कहा कि वार्षिक 42 हजार रुपये से कम आमदनी वाले आदिवासी परिवार को दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल वितरित किया जाना है।
गौरतलब है कि १२ दिसंबर, २०१२ को वामो और सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस विधायकों में जब विधानसभा में मारपीट चल रही थी तो कांग्रेस विधायकों ने उठकर विरोध किया और सदन से वाकआउट किया,वाममोर्चा और कांग्रेस सदस्यों की अनुपस्थिति में सोमवार को विधानसभा में दि वेस्ट बंगाल एसटी व एसटी बिल, 2012 ध्वनिमत से पारित हो गया।33 और पिछड़ी मुसलिम जातियों को ओबीसी में शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी। पिछड़ा समाज कल्याण मंत्री उपेन विश्वास ने कहा कि एससी व एसटी सहित अन्य पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा में लाने के लिए यह वैधानिक कदम उठाया गया। उसके बाद से उपेन विश्वास खबरों में नहीं हैं।
चुनाव से पहले ममतादीदी ने अपने को मतुआ घोषित किया। जिससे दलितों का वोट वामपक्ष से स्थांतांरित होकर उनके हक में गया। उन्होंने मतुआमाता वीणापानी देवी के छोटे बेटे को जूनियर मंत्री बनाया। मंत्री बनाये गये पूर्व सीबीआई अफसर उपेन विश्वास भी। किसी भी दलित को उन्होंने केबिनेट दर्जा नहीं दिया। गैरजरुरी मंत्रालय बांट कर इस तरह उन्होंने सत्ता में हिस्सेदारी दी। सत्ता में भागेदारी का नतीजा यह हुआ कि हरिचांद गुरुचांद ठाकुर के परिवार में ही दो फाड़ हो गया। सार्वजनिक मंच पर बड़ोमां के दोनों बेटे मतुआ संघाधिपति कपिल कृष्ण ठाकुर और उनके छोटे भाई ममता मंत्रिमंडल में शरणार्थी मामलों के मंत्री मंजुल कृष्ण ठाकुर लड़ने लगे। दोनों के अनुयायी आमने सामने हैं। जो मतुआ आंदोलन शरणार्थी आंदोलन का पर्याय बना हुआ था, वहां शरणार्थी समस्या पर चर्चा तक नहीं होती। मंत्री बनने से पहले दलित पिछड़ों के मुद्दों को लेकर बेहद सक्रिय थे उपेन विश्वास। वे वर्षों से मरीचझांपी नरसंहार का न्याय मांगते रहे हैं। मंत्री बनने के बाद बाकी तमाम कांडों की जांच के बावजूद मरीचझांपी की सुनवाई नहीं होने पर वे खामोश हैं।किसी सामान्य सीट से किसी अनसूचित या पिछड़े को जिताने का रिकार्ड वामपंथियों का नहीं है तो दीदी का भी नहीं है। आरक्षित सीटों पर दलितों पिछड़ों के चुने जाने का सिलसिला तो संविधान लागू होने के बाद से जारी है।
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