नब्वे फीसद मुनाफे वाली कोल इंडिया के विनिवेश पर खामोश राजनीति!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
नब्वे फीसद मुनाफे वाली कोल इंडिया के विनिवेश पर खामोश राजनीति!पहले यह तर्क दिया जाता था कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां चूंकि बीमार है , इसलिए उसके सरकारी संचालकों कर्मचारियों के हटाकर कंपनी का विनिवेश जरुरी है।फिर एक के बाद एक मुनाफेवाली सरकारी कपनियों का विनिवेश इस तर्क के साथ होने लगा कि चूंकि वित्तीय घाटा निरंतर बढ़ता ही जा रहा है और उसे रोकने के लिए विनिवेश जरुरी है। विनिवेश के जरिये सरकार वित्तीय घाटा पूरा कर सकती है और इसीके तहत विनिवेश लक्ष्य में वृद्धि हो रही है लगातार। अब वित्तीय घाटा कम करना है तो विनिवेश के जरिये ज्यादा से ज्यादा रकण निकालना जरुरी है जो बीमार कंपनियों के विनिवेश से हो नहीं सकता। इसलिए ओएनजीसी और कोल इंडिया जैसी मुनाफेवाली कंपनियों को निशाना बनाया गया है। इस विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने में फिर दो अन्य बड़ी सरकारी क्षेत्र के प्रतिष्ठान स्टेट बैंक आफ इंडिया और भारतीय जीवन बीमा निगम का इस्तेमाल होता है। इससे बड़ा घोटाला तो कोई दूसरा नहीं है । पर इस पर न कैग रपट जारी होती है और न राजनीति इसमुद्दे पर बोलती है। कोयला घोचटाले पर जमीन आसमान एक करने वाली रोजनीति को नब्वे फीसद मुनाफा वाली कोल इंडिया को जहर दिये जाने पर कोई एतराज नहीं है।सरकार ने इस वर्ष विनिवेश से 54,000 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई है जो कि पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले दोगुना है। पिछले वित्त वर्ष के लिए सरकार ने 30,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा था।
सन 1990 के दशक के मध्य में विनिवेश आयोग का गठन किया गया था।तभी से कोल इंडिया समेत सार्वजनिक क्षेत्र की तमाम वे कंपनियां निशाने पर हैं, जो सबसे ज्यादा मुनाफा कमा कर देती हैं। इससे प्रबंधन की सक्षमता और उत्पादकता का कोई संबंध नहीं है, जैसा कि दावा किया जाता है। इसी सिलसिले में गौर करने लायक बात तो यह है कि स्पेक्ट्रम और कोयला आवंटन दोनों ही मामलों में मुख्य मुद्दा है निजी क्षेत्र को सौंपी जा चुकी इन संपत्तियों की उस वक्त की कीमत जब ये दरअसल सरकारी स्वामित्व में थीं।दोनों ही मामलों में संपत्ति को निजी क्षेत्र को सौंपने का निर्णय इसलिए लिया गया था ताकि क्षमता और सेवाओं की आपूर्ति में इजाफा किया जा सके लेकिन हुआ यह कि निजी निवेश के कारण उत्पन्न हुए विवादों ने इस क्षेत्र के कामकाज को सीमित कर दिया। 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला दोनों के बारे में आम धारणा यह है कि सरकार ने इनके लिए जो मूल्य हासिल किया, वास्तव में ये उससे कई गुना ज्यादा मूल्य के हकदार हैं।सरकार ने यह दलील दी कि इन सौदों में अधिकतम मूल्य हासिल करना कभी भी उसका प्राथमिक लक्ष्य नहीं था। जैसा कि शुरू में ही संकेत दिया गया था कुछ परिसंपत्तियों का हस्तांतरण सीधे-सीधे राजस्व जुटाने के उद्देश्य से भी किया जा सकता है। कुछ सरकारी उद्यमों का निजीकरण इसी श्रेणी में आता है। लेकिन स्पेक्ट्रम और खनन अधिकार आदि की बात की जाए तो इनके पीछे ऐसे लक्ष्य हो सकते हैं जिनका इरादा राजस्व जुटाना नहीं हो।
सरकार ने विनिवेश का खाका बनाकर इसे अमलीजामा पहनाने की तैयारी शुरू कर दी है। वित्त मंत्रालय ने एनएचपीसी के विनिवेश के लिए कैबिनेट नोट जारी कर दिया है। माना जा रहा है कि ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) के जरिए एनएचपीसी में 11.36 फीसदी हिस्सेदारी बेची जाएगी।वित्त मंत्रालय ने इंडियन ऑयल के विनिवेश के लिए भी कैबिनेट नोट जारी किया है। वहीं इसी साल जून और जुलाई में आईटीडीसी, एमएमटीसी, एसटीसी और एनएफएल में विनिवेश संभव है। 10 फीसदी से कम सार्वजनिक हिस्सेदारी वाली घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों को डीलिस्ट किया जा सकता है। वहीं वित्त वर्ष 2014 में कोल इंडिया, हिंदुस्तान कॉपर और एचएएल में भी विनिवेश करने की योजना है।सरकार ने एमएमटीसी लिमिटेड के विनिवेश को जुलाई तक के लिए टाल दिया है।एमएमटीसी का विनिवेश पहले मार्च में होना था, लेकिन वैल्यूएशन के मुद्दे की वजह से ही इसे चालू तिमाही के लिए टाला गया था। कोयला मंत्रालय ने कहा है कि फिलहाल कोल इंडिया के विनिवेश पर कोईफैसला नहीं किया गया है। मंत्रालय का कहना है कि इस मामले में अभी सिर्फ चर्चा शुरू की गई है।उधर विनिवेश विभाग के मुताबिक कोल इंडिया के 10 फीसदी विनिवेश को लेकर जल्द ही आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी को नोट भेजा जा सकता है और इस मामले में कैबिनेट कमेटी अपना फैसला ले सकती है।आगामी सप्ताह शेयर बाजारों में निवेशकों की नजर विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) की दिशा और पिछले कारोबारी साल की अंतिम तिमाही में प्रमुख कम्पनियों के परिणामों पर रहेगी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ब्याज दरों में पिछले कुछ समय में कटौती के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजारों में व्यापक खरीदारी की है।वर्ष 2014 में सरकारी कम्पनियों के विनिवेश के सरकारी लक्ष्य से भी शेयरों की बिकवाली को हवा मिलेगी। सरकार ने सार्वजनिक कम्पनियों में अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश से वर्तमान कारोबारी वर्ष में 40 हजार करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा है। सरकार ने निजी कम्पनियों में भी अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश से 14 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।
कारोबारी साल 2013 की चौथी तिमाही में कोल इंडिया का मुनाफा बढ़ कर 2321 करोड़ रुपये रहा है।पिछले साल की समान अवधि में यह 1224 करोड़ रुपये रहा था। इस तरह कंपनी के मुनाफे में 90% की बढ़ोतरी हुई है।इस दौरान कंपनी की कुल आय 63% बढ़ कर 2802 करोड़ रुपये रही है, जो कि बीते वर्ष की इसी तिमाही में 1721 करोड़ रुपये दर्ज हुई थी।
यदि कंपनी के सालाना नतीजों की बात करें तो, कारोबारी साल 2013 में कंपनी का मुनाफा 21% बढ़ कर 9794 करोड़ रुपये रहा है, जबकि पिछले साल यह 8065 करोड़ रुपये दर्ज हुआ था। इस दौरान कंपनी की कुल आय पिछले साल के 9531 करोड़ रुपये के मुकाबले 20% बढ़ कर 11440 करोड़ रुपये रही है। कंपनी के नतीजों की यह खबर सोमवार को बाजार बंद होने के बाद आयी है। इसलिए इस खबर का कंपनी के शेयर भाव पर असर मंगलवार को बाजार खुलने के बाद ही दिखायी देगा। आज बीएसई में कंपनी के शेयर भाव में मजबूती का रुख रहा। यह 1.06% की बढ़त के साथ 300.75 रुपये पर बंद हुआ।
भारत सरकार के वित्तमंत्री तो दुनिया में घूम घूमकर देश बेचने की मुहिम लगे हैं ताकि विदेशी निवेशकों की आस्था हासिल हो और देश में पूंजी रका प्रवाह अबाध हो। भारत के राष्ट्रपति भी विनिवेश मुहिम में लगे हैं और विपक्ष मौन है। गौरतलब है किराष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चौथे पब्लिक सेक्टर डे के आयोजन में मुख्य अतिथि प्रणब ने कहा कि 31 मार्च,2012 को देश की पब्लिक सेक्टर कंपनियों का कैश सरप्लस 2.80 लाख करोड़ रुपये था, यह बताता है कि उनमें कितनी संभावना है। वह अपनी क्षमता में विस्तार और विदेशों में परिसंपत्ति खरीदने के लिए भारी भरकम निवेश कर सकती है।इससे उनका कारोबार तो बढ़ेगा ही, उनके कारोबार का कार्यक्षेत्र भी बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि पीएसयू विदेशी कंपनियों के सहयोग से अपनी तकनीक को भी उन्नत कर सकती है जो कि उनकी लागत को कम कर मुनाफा बढ़ाने में योगदान देगा।शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इस समय 50 कंपनियां शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हैं।लेकिन यही संख्या पूर्ण नहीं है। इन 50 कंपनियों के अलावा भी कई पीएसयू हैं जो कि लिस्टिंग के मानदंड को पूरा करती हैं और उन्हें विश्वास है कि उनमें से कई कंपनियां इस दिशा में कदम बढ़ाएगी।लिस्टिंग के फायदों का जिक्र करते हुए कहा कि लिस्टिंग के बाद ही पता चलता है कि उस कंपनी का कितना वैल्यू है। उन्होंने कोल इंडिया लिमिटेड का उदाहरण देते हुए बताया कि अक्टूबर 2010 में इसके 10 फीसदी शेयरों के विनिवेश से सरकार की झोली में 15,199 करोड़ रुपये आ गए।
सरकार कोचीन शिपयार्ड की 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की संभावनाओं पर विचार कर रही है।शिपयार्ड क्षेत्र में यह पहला विनिवेश होगा। जून में होने जा रही निदेशक मंडल की बैठक में कंपनी इस बारे में फैसला ले सकती है। वर्ष 2011 में सरकार ने कंपनी में मौजूद अपनी हिस्सेदारी को कम करने की योजना बनाई थी लेकिन शिपयार्ड के लंबित विस्तार कार्यक्रम की वजह से यह सफल नहीं हो पाया। कोचीन शिपयार्ड ने हाल ही में कोचीन बंदरगाह के निकट जहाजों का मरम्मत किए जाने वाली इकाई को शुरू किया है और कंपनी की योजना यहां पर परिचालन में इजाफा करने की है।पिछले साल सितंबर माह के दौरान कंपनी ने पोर्ट ट्रस्ट की 42 एकड़ भूमि पर 750 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से एक जहाजों का मरम्मत किए जाने वाली इकाई को स्थापित करने के लिए कोचीन बंदरगाह के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किया था।
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