कलिम्पोंग में भी कोयलाचोरी!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोयलाखान हो और कोयला की चोरी न हो, ऐसा असंभव है। कोयला तस्करी के लिए गिरोहबंदी बहुत जरुरी भी नहीं है। कोयलांचलों के बड़े दायरे में असंख्यखानों से कोयला की तस्करी के लिए माफिया और तस्करों के सुसंगठित गिरोह होते हैं,जो कोयला ही नहीं कोयलांचल में जीवन के हर क्षेत्र को नियंत्रित करते हैं। लेकिन दार्जिलिंग जिले के कलिंगपोंग इलाके के दो कोयलाखानों से दशकों से वनकर्मियों की खुली मदद से जो कोयलाचोरी हो रही है, उसका क्या कहेंगे?
ये खानें कलिंगपोंग फारेस्ट कार्पोरेशन के अधिकार क्षेत्र में हैं जो पुलिस नियंत्रण से बाहर हैं।इन खानों से कोई कोयलाकंपनी कोयला नहीं निकालती। स्थानीय लोग ही रोज कोयला निकालकर वनकर्मियों की मदद से सिलिगुड़ी को रास्ते दूर दूर तक डुआर्स, मेखलीगंज और कूचबिहार तक भेज देते हैं।
इन खानों से व्यवसायिक तौर पर खनन होता नहीं है क्योंकि यहां खनन पहाड़ के पर्यावरण और भूगर्भीय संरचना के लिए खतरनाक है।कोयला निकालने की वजह से इस इलाके में अक्सर भूस्खलन होते रहते हैं।
वनमंत्री हितने वर्मा ने अपने अधिकारियों को कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। दूसरी ओर वनविभाग के अधिकारियों ने कोयलाचोरी में वनकर्मियों की मिलीभगत के आरोप को सिरे से खारिज करते हुए दावा किया कि वनकर्मी ही पर्यावरण के लिए बेहद संवेदनशील इन खदानों की हिफाजत करते हैं।कलिंगपोंग की पाबरिंगटा ग्रामपंचायत के अंतर्गत येदोनों खदानें हैं।
इसीतरह वीरभूम जिले के हजरतपुर में चल रहे बंगाल एम्टा के ओसीपी खदान से उत्पादित कोयले को लादकर आ रही मालगाड़ियों से बड़े पैमाने पर कोयले की चोरी हो रही है।कोयला लादकर मालगाड़ी जब अंडाल सैथिया रेलखंड पर भीमगढ़ा स्टेशन के पहले पहुंचती है तो वहां पहले से ही कोयला चोरों का हुजूम जमा रहता है। हालांकि कांकड़तल्ला एवं खैरासोल थाने की पुलिस को कोयले से लदी मालगाड़ी को सुरक्षित ले जाने की जिम्मेवारी दी गयी है।
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