संकट से निजात पाने के लिए तृणमूल भवन में पुरोहित शोभनदेव ने किया शांति यज्ञ!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
पार्टी के वरिष्ठ नेता शोभनदेव चट्टोपाध्याय की राज्य तृणमूल इंटक की अध्यक्ष दोला सेन से ठनी हुई हैं। दोला सेन की वजह से शोभनदेव पार्टी नेतृत्व से भी नाराज चल रहे हैं। लेकिन मां माटी मानुष की सरकार के दो साल पूरे होने के अवसर पर तिलजला स्थित तृणमूल भवन में बतौर पुरोहित उन्होंने बुरे ग्रह से पार्टी को बचाने के लिए और संकटमुक्ति की कामना करते हुए शांति कर्म कांड किया। उनके लिए तृणमूल सुप्रीमो का कमरा खाली करा दिया गया और उन्होंने बाकायदा शांति यक्ज्ञ करके पूरे कार्यालय में शांति जल का छिड़काव किया।तृणमूल सुप्रीमो से लेकर तमाम पार्टी नेताओं के कक्ष में शांति जलका छिड़काव किया गया ताकि अपबाधाएं दूर हों।
खास बात तो यह है कि पार्टी के श्रमिक संगठन को लेकर रस्साकशी की वजह से इन दिनों शोभनदेव ने तऋणमूल भवन से दूरी बनायी हुई थी। लेकिन इस अवसर पर उन्हें ादरपूर्वक बुलाया गया और तमाम पार्टी नेता ने बाकायदा यमान उनका स्वागत किया। लोग फूल लेकर शोभनदेव के स्वागत में खड़े थे।लेकिन अपबाधाएं तो सिर्फ तृणमूल भवन में शांति जल के छिड़काव से दूर होने की संभावना नहीं लगती। लगता है कि शोभनदेव को राज्यभर में शांति जल लेकर दिन रात दौड़ लगानी पड़ेगी, तभी कुछ हो सकता है।
देशभर में हवन और यज्ञ, तंत्रक्रियाएं राजनीति का अभिन्न अंगहै। लेकिन बंगाल में अबतक राजनीतिक दलों की ओर से ऐसे ायोजन की परंपरा नहीं बनी थी। हालांकि राष्ट्रीय दलों के समर्थकों की ओर से कोलकाता, हावड़ और राज्य क बाकी हिस्सों में ऐसे यज्ञ कराये जाते रहे हैं। बंगाल में सत्तादल की ोर से हुए इस शांति यज्ञ के आयोजन से पता चलता है कि राजनीतिक चुनौतियों के मुकाबले कर्मकांड में संकट से निपटने के जुगत में है सत्तादल।हावड़ा संसदीय उपचुनाव और पंचायत चुनाव के मद्देनजर इस शांति यज्ञ की प्रासंगिकता बढ़ गयी है। बंगाल में अल्पसंख्यकों की आबादी 25 फीसदी है और पिछले चुनावों के दौरान इनके अधिकांश मत टीएमसी को मिले थे। लेकिन इस बार ऐसा ही होगा, कहना मुश्किल है।जाहिर है कि पार्टी नेतृत्व अब खिसकते हुए जनाधार का भय सता रहा है। जिसके लिए कर्मकांड का सहारा लिया जा रहा है। संकट बहुत घना है क्योंकि शारदा कांड में नसिर्फ मंत्री, सांसद और पार्टी नेता फंसे हुए हैं , स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कीछवि भी धूमिल होने लगी है।बुद्धिजीवियों के समर्थन से तृणमूल कांग्रेस के परिवर्तन के नारे को जो वैधती मिली, उसका बंगाल के जनमानस पर गहरा असर हुआ। लेकिन अभ शारदा कांड के बाद इन बुद्धिजीवियों के नाम भी तमाम तरह के घोटाले उजागर होने लगे हैं। कर्म कांड के सिवाय पार्टी के सामने सचमुच कोई विकल्प ही नहीं रह गया है।
इस समय पार्टी में जिस एक व्यक्ति की तूती बोल रही है वह मुकुल रॉय हैं। पूर्व रेलमंत्री मुकुल रॉय ममता बनर्जी के साथ पार्टी के शुरुआती दिनों से जुड़े हुए हैं और उनके सबसे नजदीकी और भरोसेमंद हैं। सूत्रों की माने तो इसका फायदा उठाते हुए रॉय पार्टी में एक दूसरे के खिलाफ नेताओं को खड़ा कर रहे हैं। कुछ समय पहले तक सौगत रॉय ने एक सार्वजनिक सभा में कहा था कि वर्ष 2009 से पहले के तृणमूल कार्यकर्ताओं और उसके बाद पार्टी में आने वाले लोगों के बीच 'स्पष्ट विभाजन होना चाहिएï।पार्टी में अंतर्कलह इतना ते ज हुआ है कि ममता दीदी के भाई भी बेसुरा बोलने लगे हैं। दागी नेताओं के खिलाप विद्रोही स्वर तेज होने लगा है वहीं मुख्यमंत्री के नजदीकी नेताओं की ओर से विरोधी खेमे को किनारे लगाने की मुहिम चल रही है। जिसके शिकार खुद शोभन देव हैं।
नंदीग्राम और सिंगुर आंदोलन के दौरान सांसद कबीर सुमन ने अपने आप को पार्टी के करीब पाया और वर्ष 2009 में वह औपचारिक तौर पर पार्टी में शामिल हो गए। सुमन ने कहा, 'वह पहली बार था जब लेखकों, कलाकारों और बुद्घिजीवियों को लगा कि वे टीएमसी के करीब हैं। मैंने वर्ष 2008 में समर बागची और कल्याण रूद्र जैसे वैज्ञानिकों को पार्टी से जोड़ा।Ó बाद में महाश्वेता देवी, समीर आईच और अन्य बुद्घिजीवियों को दरकिनार कर दिया गया और आखिरकार उन्होंने अपने आपको पार्टी से दूर रखने का फैसला किया। महज कुछ ही कलाकार मसलन शुभ प्रसन्न जैसे लोग पार्टी से जुड़े रहे।
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