हमसे तो सुअर स्वजन भले
India Inc says immediate steps needed to revive growth
पलाश विश्वासCompanies who want to acquire land for industrial use will be required to pay up to 4 times the prevailing market value in rural areas. (Reuters)
India's gross domestic product (GDP) growth nosedived to a four-year low of 4.4% in April-June 2013-14, against 4.8% in the fourth quarter of the previous financial year, official data showed on Friday.
अमेरिकी रक्षा मंत्री चक हेगल ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिका सीरिया सरकार द्वारा किए गए रासायनिक हथियारों के कथित इस्तेमाल का जवाब देने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है। हेगल ने फिलीपींस के राष्ट्रपति भवन में हीरोज हाल में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सीरिया की कथित कार्रवाई का जवाब देने के लिए सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श की जरूरत है। हेगल ने कहा कि राष्ट्रपति बराक ओबामा और हमारी सरकार का यह लक्ष्य है कि जो भी निर्णय लिया जाए वह एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं प्रयास हो।
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कोल ब्लॉक आवंटन की फाइलों के गुम होने के लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज संसद के उच्च सदन राज्यसभा में विपक्ष पर सीधा हमला बोला और कहा, `मैं कोयले की फाइलों का रखवाला नहीं हूं।` प्रधानमंत्री ने कहा कि आर्थिक संकट से निपटना और देश को बेहतर प्रशासन देना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। विपक्ष के सहयोग के बिना समाधान संभव नहीं है। विपक्ष पर तीखा हमला करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, `विपक्ष संसद में कहता है पीएम चोर है। मैं विपक्ष से पूछना चाहता हूं कि किसी और देश की संसद में विपक्ष को पीएम को चोर कहते हुए सुना है।`
प्रधानमंत्री और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली के बीच आज संसद में तीखे शब्दों का आदान-प्रदान हुआ। राज्यसभा में देश के मौजूदा आर्थिक हालात पर अपने भाषण के दौरान विपक्ष के भारी हंगामे पर नाराजगी जताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आपने किसी देश में देखा है कि वहां की संसद में विपक्ष चिल्लाकर यह कहे कि प्रधानमंत्री चोर है…
इसके बाद राज्यसभा में नेता विपक्ष अरुण जेटली ने इसका तीखा जवाब दिया। सर्व-सहमति बनाना सरकार और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि जब सरकार आर्थिक संकट के मद्देनजर कदम उठा रही है, तो सदन के सदस्यों की यह जिम्मेदारी है कि निवेशकों तक यह संदेश पहुंचे कि भारत निवेश के लिए उपयुक्त जगह है।
देश की विकास दर मौजूदा कारोबारी साल की पहली तिमाही में घटकर 4.4 फीसदी दर्ज की गई। शुक्रवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक विनिर्माण, खनन और कृषि क्षेत्र में खराब प्रदर्शन रहने के कारण विकास दर में गिरावट दर्ज की गई। विनिर्माण क्षेत्र में 1.2 फीसदी गिरावट रही और खनन क्षेत्र में 2.8 फीसदी गिरावट रही।
कृषि क्षेत्र की विकास दर घटकर 2.7 फीसदी रही। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़े के मुताबिक सेवा क्षेत्र में बेहतरीन 9.4 फीसदी विकास दर्ज किया गया।
रुपये में गिरावट से फैली चिंता के बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि सरकार न तो आर्थिक नीतियों में सुधार की प्रक्रिया वापस लेगी और न ही घरेलू मुद्रा को संभालने के लिए पूंजी की आवाजाही पर नियंत्रण लगाएगी। मनमोहन ने कहा कि रुपया घरेलू और वैश्विक स्तर के कई कारकों के चलते गिरा है।
अर्थव्यवस्था की स्थिति के संबंध में प्रधानमंत्री ने संसद में एक बयान में कहा कि देश को अल्पकालिक झटकों के लिए तैयार रहना चाहिए, पर उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि अर्थव्यवस्था की बुनियादी मजबूत बनी रहे। प्रधानमंत्री ने सभी राजनैतिक दलों से मौजूदा हालात में निपटने में सहयोग की अपील करते हुए कहा, हमारे सामने चुनौतियां जरूर हैं, लेकिन हम उनसे निपटने का दम भी रखते हैं।
उन्होंने कहा कि सिर्फ रुपये ही नहीं, अन्य मुद्राओं में भी गिरावट आई है और सीरिया संकट की वजह से भी हालात बिगड़े हैं। रुपये में गिरावट के लिए अंतरराष्ट्रीय कारकों के साथ ही घरेलू कारकों के भी हाथ हैं। बढ़ते चालू घाटे का भी रुपये पर असर हो रहा है, लेकिन इसे कम करने की कोशिशें जारी हैं।
प्रधानमंत्री ने सोने का आयात घटाने की जरूरत पर भी बल दिया। उन्होंने भरोसा जताया कि अच्छे मॉनसून से विकास दर बढ़ने के आसार हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक सुधार के मोर्चे पर कुछ कड़े फैसले लिए जाने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए राजनीतिक आम सहमति जरूरी है।
उन्होंने साथ ही अंतरराष्ट्रीय विदेशी मुद्रा बाजार में देश की मुद्रा के प्रति अविश्वास दूर करने के लिए आश्वस्त किया कि पूंजी नियंत्रण जैसी कोई बात नहीं होगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, हमें सोने के लिए अपनी भूख को कम करने की जरूरत है... पेट्रोलियम उत्पादों के किफायती इस्तेमाल को बढ़ावा देने की जरूरत है और अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए कदम उठाने की जरूरत है, लेकिन साथ ही रुपये में गिरावट से कुछ हद तक लाभ भी होता है, क्योंकि इससे निर्यात प्रतिस्पर्धी हो जाता है।
प्रधानमंत्री ने साथ ही कहा कि वित्तीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.8 फीसदी तक सीमित करने के लिए हरसंभव कोशिश की जाएगी और विकास दर में भी वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि सरकार को इस वित्तवर्ष में चालू खाते का घाटा कम करके 70 अरब डॉलर तक लाने का भरोसा है।
वहीं प्रधानमंत्री के बयान देने के बाद बीजेपी के सदस्य सदन से वॉक आउट कर गए। बीजेपी पीएम के बयान से संतुष्ट नहीं है और उसे लगता है कि पीएम का बयान कोरी बातें हैं। सदन से बाहर आकर बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि लोकसभा में पीएम का बयान काफी निराशाजनक है।
India Inc says immediate steps needed to revive growth
With the first quarter GDP slipping to 4.4 per cent, India Inc today said the government should take immediate steps to reverse the slowdown in economic growth and there were no signs of a turnaround as
investor sentiment continued to remain low.
"The GDP figures for first quarter clearly show that the economy continues to be in the throes of a slowdown. The concern becomes more acute when we see that at the present moment, there are no clear indications that the economy has bottomed out," CII Director General Chandrajit Banerjee said.
There are no visible signs of investment pick up as investor sentiments continue to be very low. A weak rupee, tight liquidity, high cost of funds, procedural delays, etc, are all coming in the way of an investment revival, he added.
Contraction in manufacturing and mining sector pulled down the economic growth in the April-June quarter of this fiscal to 4.4 per cent-- the lowest in past several years.
"The economy continues to tread in difficult waters as many challenges remain on the fore. Understandably, there is no perfect recipe to steer out of the current state of affairs but what we need is swift action given the volatile situation," Ficci President Naina Lal Kidwai said.
Manufacturing sector also posted a contraction of 1.2 per cent in the first quarter of this fiscal as against a decline of one cent in output in the same period of 2012-13.
"The industry fears that in case urgent steps are not taken to revive the manufacturing sector, jobs will be at stake, Assocham Secretary General D S Rawat said.
We would have to strive harder on the reform front to give a push to the manufacturing sector, Kidwai said.
Hastening disinvestment of public sector units, ensuring coal supplies to the power sector, promoting competition in the mining sector and ensuring speedy implementing of Delhi-Mumbai Industrial Corridor (DMIC) would be seen as positive developments, Mr Banerjee said.
A coordinated effort from the Government and the RBI is required to ensure that this vicious cycle is broken, he said.
Meanwhile, PHD chamber of commerce and industry urged the RBI to cut policy rates to revive the economic growth.
"Since wholesale price inflation (WPI) scenario is stabilizing at around 5 per cent during the last many months, at this juncture rate cut is inevitable to facilitate industrial production," it said.
Besides, the farm sector output expanded by just 2.7 per cent in April-June quarter this year, only marginally down from 2.9 per cent in the corresponding period of last fiscal.
However, India Inc expects a pickup in agricultural growth on the back of good monsoons.
"With monsoons being normal, a good agricultural performance coupled with rise in rural wages would help bolster rural demand," Banerjee said.
Several other sectors including construction, power generation, hotel and transport showed marked deceleration in growth.
चिदंबरम एक दिन कहेंगे, "शुक्र है कि रिजर्व बैंक है" : सुब्बाराव
जाते जाते सुब्बाराव खुलकर कह गये
वह जो हम कह लिख ऱहे हैं अरसे से
खोल गये वे मौद्रिक कवायद का राज
कारपोरेट लाबिइंग का कच्चा चिट्ठा
पिंजरे में बंद कोई अकेला तोता नहीं
तोतों का झुंड है कैद यहां
किस किस को आजाद करोगे भइया
जिनको हमने अपने वोट से चुना
हमे तबाह करने की आजादी उनको सिर्फ
जिनको मिला जनादेश भइया
उनकी आजादी देश को बचने की सिर्फ
किस किस की आजादी को रोयोगे भइया
जनम बीता दी हमने मीडिया
मिशन में शामिल होने चले थे
सरकारी चाकरी नहीं करेंगे
नहीं करेंगे गुलामी किसी की
अब विशुद्ध कारपोरेट चाकर हैं हम
जोर से सच बोले इतना भी नहीं दम
दूसरों के झूठ को सच बनाते हम
जनमत बनाने का मिशन था
मिशन था जन सरोकारों का
मिशन था बेआवाज बहुसंख्य
स्वजन भारतीयों की आवाज बनने का
अब हरछिद्र से सुन लो भइया
किस किस की आवाज निकालते हम
हमारी दादी थी शांतिदेवी
भारत विभाजन की शिकार
पूर्वी बंगाल के किसान की बेटी
उनके पिता थे मस्त किसान
दुष्काल भुखमरी में
खेत जोतने को नहीं मिला मददगार
हुई बरसात तो सुअरों ने खेत जोते
वे कहते थे हम इंसानों से तो
सुअर स्वजन ज्यादा अपने हैं
आत्मीयता के बंधन अब सपने हैं
पिता बार बार कहते थे
स्वार्थी इंसान बनने से बेहतर है बेटा
किसान का खेत जोतने वाला
सुअर बन जाना तुम
अब सविता भी उलाहना देती
जिंदगी यूं जाया कर दी
पंगा लेते रहे हरदम
अपना भला नहीं किया ,सही है
इसे देश के क्या काम आये, बता दो तुम
बोली, वीरेनदा की किस्मत अच्छी
कि बेटे लायक निकल गये
फुटेला भी खुशकिस्मत कि
बेटा पत्रकार नहीं
बाकी इस बिरादरी में तो अकेले ही जीना
और फिर अकेले मर जाना है
नौकरी खत्म तो फुटपाथ को
घर बनाना है
कहती,तुम्हारी बिरादरी से तो बेहतर है
सु्अर स्वजन तमाम
फिर नेशनल जिओग्राफी और
एनीमल प्लानेट खोलकर
दिखाती हमसे कितने बेहतर हैं
तमाम जीव जल स्थल नभ में
कहती, उनका कोई बाजार नहीं है
और न है उनकी की क्रय शक्ति
न अपनों में कोई अस्पृश्यता है
न अलगाव का द्वीप कोई
न वर्चस्व है और न बहिस्कार
है न प्रकृति का चमत्कार
हमारी दादी शांति देवी भी अजब थीं
पूरी की पूरी बहती कोई नदी थीं
भारत विभाजन हुआ तो क्या
क्या हुआ कि मधुमती बहती रही उसपार
अपने साथ ले आयीं दादी मधुमती वह बसंतीपुर
किसीको कानोंकान खबर नहीं हुई
बसंतीपुर में बहती रही मधुमती बिन बंधी
जिसमें जब मन करें नहाती थीं दादी
नदी में ही जान थी उनकी, वे खुद मधुमती थी
नलके पर वे कभी नहीं नहायीं
जो छोटी सी नदी बची थी तब भी
कटे हुए जिम कार्बेट प्रसिद्ध अरण्य में तब भी
उसीमें गोता लगाती थीं दादी
उसे ही मधुमती कहती थीं दादी
हरिपुरा में जब बना जलाशय
नदी वह मर गयी
बंध गयी नदी वह
तो मधुमती भी मर गयी
अब सोचता हूं डूब में
शामिल उन गांवों का क्या
होता होगा आखिर
जिनकी मधुमतियां
हमेशा हमेशा के लिए बंध गयीं
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हमारी दादी शांति देवी ने
कभी नहीं सुनायी लोरियां
हालांकि वे खूब गाती थीं लोक
विवाह जैसे समारोह में भी गाती थीं
उनकी झोली में थी खूब कहानियां
कहानियों की पोटली जब खोलती थीं दादी
बह निकलती थी मधुमती फिर घर के अंदर
पीछे छूटे खेतों में चली जाती थी ंदादी
हमें संग लेकर वहां सैर कराती थीं दादी
जैशोर के तामम जलाशयों में
हमे लेकर तैरती थीं दादी
दलदली उन खेतों में
पानी के तेज बहाव में
धान की सुगंध
भर देती थीं दादी
फिर सुनाती थीं
फसल काटने की लड़ाइयों के किस्से
जाने अनजाने कह जाती थीं
तेभागा के भी अब किस्से
जिन पर लिखना भूल गये माणिक
सोजन वादिया हमने पढ़ा बहुत बाद
पद्म बिल की लड़ाई के किस्से
हम जानते रहे हैं
अपने बचपन से
नक्शी कांथार माठ भी
पढ़ा हमने बहुत बाद में
लेकिन न सिर्फ किस्सा सिुनाती थीं दादी
नक्शी कांथा भी बुनकर दिखाती थी दादी
सोनाई रुपाई को हम जानते रहे हैं बचपन से
दादी गर्व से कहती थीं
बड़े लड़ाके थे तेरे दादा
थे वे चारों भाई
चारों थे पक्के लठैत
जमींदारों की बंदूकों तक को
खामोश कर दें
ऐसी थी मंत्रसिद्ध लाठी उनकी
कहती थीं खेतों को मोर्चा बनाने के किस्से
कहती थीं घर में किलेबंदी के किस्से
कहती थीं मधुमती के तेज कटाव से
घर और खेत को बचाने के किस्से
कहती थीं जमींदार और
पुलिस से मुठभेड़ के किस्से
अब हम अपना खेत
कहां बचा सकें दोस्तों
अपना खेत हम छोड़ आये दोस्तों
दादी खेत छोड़ने के बावजूद
जी रही थीं उन्हीं खेतों में
बसती थीं वे उसी हरियाली में
उनके वजूद में शामिल थी
माटी की वही सोंधी महक भइया
उसी फसल से महमहाता था घर भइया
फसल काटने के भी
अजब किस्से थे दादी के
फसल की लड़ाई के भी
गजब किस्से थे दादी के
मधुमती में नावों की दौड़
और उनके गांव के कुम्हार पाड़ा के
तमाम किस्से थे दादी के
किस्से थे सर्पदंश के
महामारी के भी किस्से थे
लेकिन कोई डायरी नही लिखी दादी ने
नही लिखी कोई कविता दादी ने
न लिखा कोई उपन्यास दादी ने
विधाओं से बेदखल दादी
हमारे लिए लहलहाती फसल की
सुगंध थी या बहती हुई मधुमती थीं दादी
खेतों को बचाने की लड़ाई में
हम कहां हैं दोस्तों
सारे देश में खेतों की लूट है
हरियाली का विध्वंस है
फसलों के कत्लगाह हैं
किसानों की थोक आत्महत्याएं हैं
खेत बचाने वाले
फसल के वास्ते जान देने वाले
लठैत कहां हैं दोस्तों
कहां हैं वे मंत्रसिद्ध लाठियां तमाम
जो एकाधिकार कारपोरेट हमले
के विरुद्द बना दे अभेद्य कोई किला
जोड़ दे अजेय मोर्चा दोस्तों
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दादी ने फलदार वृक्ष के तमाम
पौधे रोपे थे
उस छोटी सी नदी में गांव गांव
भटक कर ले आती थीं तमाम पौधे
कहतीं नदी बांझ नहीं होती कभी
कहती थीं , नदी बांध नही होती कभी
दादी को क्या मालूम
अब नदियां शीतल पेय है
नदियां अब ऊर्जा प्रदेश है
या फिर हमारे तमाम जलस्रोत
बदल गये हैं
परमाणु संयंत्र में
इस हादसा को देखने से बहुत
पहले गुजर गयीं
हमारी दादी शांति देवी
देखा नहीं उन्होंने समाजवाद
देखी नहीं हरित क्रांति का जलवा
जिसने खत्म कर दिये
उनके जान से बढ़कर
देसी बीज तमाम
जिन्हें वे फसल कटने से
पहले हर बार सहेजकर रखती थीं
अगली फसल के लिए भइया
शुक्र है कि देखा नहीं उन्होंने किसानों
और खेतों का यह नरसंहार भइया
सोना से अलग कोई
मुद्रा से थीं अनजान वह
कागज के नोटों को हिकारत
से देखती थीं दादी
तांबे के छिद्रदार पैसे सहेजकर रखती थीं
सर पर लगाती थीं सरसों तेल
या फिर नारियल का तेल
हांक कर उगाती थीं
तिलहन, दलहन
हर तरह की फसलें
नकदी से नफरत थी दादी को
जिंदा होती तो हम तो मुश्किल में पड़ जाते भइया
अच्छा हुआ कि मर गयीं वे भइया
खाद्य सुरक्षा और मनरेगा के भरोसे
कैसे जीती कोई किसान की बेटी
खेतों से बेदखल डालर राज में
कैसे जीतीं कोई किसान की बेटी
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तमाम औषधियों की विशेषज्ञ थीं दादी
हल्दी और नीम तो क्या
तुलसी से हर रोग
का इलाज करती थीं दादी
हमारे चाचा खुद डाक्टर थे
मजे कि बात तो यह कि
दादी की डाकदरी के थे वे भी मरीज
हर पौधा, हर वृक्ष
जिनके हो औषधि गुण
वे घर आंगन में जरुर होने चाहिए
ऐसी थी उनकी पक्की धुन
तराईकी गरमियों में
लू से बचने की उनकी
अचूक दवा थी
जंगल जंगल भटककर
ले आती थी दवाएं दादी
क्या बताये भइया
आज हम उनका नाम भी भूल गये
सामने हो तो पहचान भी न सकें
अब खेतों से बेदखल हम बीजों से भी
हो गये हैं बेदखल
बासमती को बचा लिया कहते हैं
लेकिन नम हल्दी से लेकर तुलसी तक
हैं निशाने पर
हम बाजार में हैं दोस्त
हम उत्पादक नहीं हैं अब दोस्त
और नहमारे परिवार में अब कहीं
कोई विशुद्ध किसान की कोई बेटी है
कीचड़ से लथपथ
गोबर की गंध से महकती
न हम अब किसान के बेटे है
सिर्प अस्मिताएं हमारी पूंजी है
बाकी विदेशी पूंजी है
या पिर सर्वशक्तिमान डालर
डियोड्रेंट से नहा रहे हैं हम भइया
प्रसाधन हीन ग्राम भारत के
उस सौंदर्य से
और सौंदर्यबोध से बेदखल हैं हम
ग्लोबल आर्डर के नागरिक तमाम भइया
डालर हरिकथा अनंत में
दादी की यह कथा
किसको सुनाऊं भइया
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भूमि अधिग्रहण बिल को लोकसभा की हरी झंडी
खाद्य सुरक्षा बिल के बाद अब लोकसभा ने किसानों को उनकी जमीन के उचित मुआवजे का अधिकार दिलाने वाले विधेयक को भी मंजूरी दे दी है।
बृहस्पतिवार को लोकसभा में भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन विधेयक पेश किया गया। हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने इस बिल का विरोध किया, जिसके बाद इस पर मतदान कराना पड़ा।
बिल के पक्ष में 216 और विरोध में 19 मत पड़े और बिल पास हो गया। राज्यसभा से यह बिल पास होने के बाद नया भूमि अर्जन कानून 119 वर्ष पुराने भूमि अधिग्रहण कानून की जगह लेगा।
हालांकि विभिन्न पार्टियों ने लोकसभा में इस विधेयक में बदलाव के लिए कई संशोधन पेश किए। लेकिन संशोधन प्रस्तावों को सदन की मंजूरी नहीं मिल सकी।
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने विधेयक पर सांसदों की चिंताओं को नकारते हुए कहा कि नया कानून हर हाल में किसानों की जमीन के जबरन अधिग्रहण की इजाजत नहीं देता।
लेकिन यदि रक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सरकार उनकी भूमि का अधिग्रहण करेगी तो उन्हें उचित मुआवजा पाने का हक होगा।
इस बिल में किस तरह की भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा इसका अधिकार राज्यों को दिया गया है। साथ ही राज्यों को अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की भी छूट होगी। मगर राज्यों के कानून में मुआवजा और पुनर्वास किसी भी सूरत में केंद्रीय कानून से कम नहीं होगा।
इस तरह खाद्य सुरक्षा बिल के बाद लंबे अर्से से अटके भूमि अधिग्रहण बिल को लोकसभा से पारित कराकर यूपीए सरकार ने कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे के साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश के किसानों से किए गए वादे पर अमल किया है।
यूपी में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विद्रोह की आवाज उठाने वाले किसानों से राहुल ने करीब ढाई साल पहले भट्टा पारसौल में कानून में बदलाव कराने का वादा किया था।
लोकसभा में बिल पर हुई बहस का जवाब देते हुए जयराम ने कहा कि दो वर्ष पूर्व लोकसभा में पेश किए गए भूमि अधिग्रहण बिल के मुकाबले मौजूदा भूमि अर्जन विधेयक में लगभग 158 छोटे बड़े संशोधन किए हैं। जिसमें 28 बड़े संशोधन हुए हैं।
इसमें 13 संशोधन स्थायी समिति और 13 संशोधन शरद पवार की अध्यक्षता वाली समिति और दो संशोधन विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की संस्तुति पर किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि यह विधेयक पूरी तरह से किसानों की जमीन की रक्षा करने वाला है। उन्होंने विपक्ष की उन आशंकाओं को भी दरकिनार किया, जिनमें कहा गया था कि आकस्मिक कार्यों के नाम पर किसानों की बहुफसली जमीन का जबरन अधिग्रहण किया जा सकता है।
रमेश के मुताबिक कानून में न सिर्फ जमीन के उचित मुआवजे का प्रावधान किया गया है बल्कि भू स्वामियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन की पूरी व्यवस्था की गई है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण पर किसानों को बाज़ार भाव से चार गुना दाम मिलेंगे जबकि शहरी इलाकों में जमीन अधिग्रहण पर भू स्वामी को बाजार भाव से दोगुने दाम मिल सकेंगे।
इसके बाद जमीन का जबरन अधिग्रहण भी नहीं किया जा सकेगा। प्राइवेट कंपनियां अगर जमीन अधिग्रहीत करती हैं तो उन्हें वहां के 80 स्थानीय लोगों की रजामंदी जरूरी होगी।
फिलहाल देश में जमीन अधिग्रहण 1894 में बने कानून के तहत होता है। बहुफसली सिंचित भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। जमीन के मालिकों और ज़मीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज की व्यवस्था की गई है।
इस कानून में अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपये प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का प्रावधान है।
पचास हजार का पुनर्स्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान दिए जाने का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है।
ढाई साल बाद पूरा हुआ राहुल का वादा
खाद्य सुरक्षा बिल के बाद लंबे अर्से से अटके भूमि अधिग्रहण बिल को लोकसभा से पारित कराकर यूपीए सरकार ने कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे के साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश के किसानों से किए गए वादे पर अमल किया है।
यूपी में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विद्रोह की आवाज उठाने वाले किसानों से राहुल ने करीब ढाई साल पहले भट्टा पारसौल में कानून में बदलाव कराने का वादा किया था।
119 साल पुराना है कानून
फिलहाल देश में जमीन अधिग्रहण वर्ष 1894 में बने कानून के तहत होता है। मौजूदा वक्त के हिसाब से इस कानून में कई कमियां हैं। इसमें जमीन के अधिग्रहण के बाद प्रभावितों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन को लेकर कोई व्यवस्था नहीं है।
सुषमा के दो संशोधन मंजूर
भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने बिल में संशोधन सुझाया था कि जमीन डेवलपर्स को लीज पर देने का भी प्रावधान किया जाए, ताकि जमीन के मालिक किसान ही रहें और इससे उन्हें सालाना आय भी हो, यह संशोधन मंजूर कर लिया गया।
सुषमा ने दूसरे संशोधन में कहा कि लोकसभा में सितंबर 2011 में बिल पेश किए जाने के बाद से अधिग्रहीत की गई भूमि के मूल मालिकों को 50 फीसदी मुआवजा देने का प्रावधान हो, सरकार 40 फीसदी पर राजी हो गई।
भूमि अधिग्रहण बिल पारित होने से किसानों में खुशीदैनिक जागरण - 3 hours ago जासंकें, गाजियाबाद : लोकसभा में भूमि अधिग्रहण बिल पारित होने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने चैन की सांस ली है। नया भूमि अधिग्रहण बिल विधेयक आने के बाद देशभर के किसानों को अपनी जमीन कौडि़यों के दाम लुटाने का भय खत्म हो चुका है। इसके लिए किसान दशकों से प्रशासन से लंबा संघर्ष करते आ रहे हैं। पश्चिम प्रदेश निर्माण मोर्चा के केंद्रीय संयोजक सत्यपाल चौधरी ने कहा कि नया विधेयक लाना सरकार की मजबूरी थी। यह विधेयक लाने के लिए हमारे अनेक साथियों ने काफी संघर्ष किया जिसके लिए उनको कई तरह की यातनाएं, फर्जी मुकदमे सहित जेल तक भी जाना पड़ा। उन्होंने कहा कि अब ... भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा से पारित, राहुल गांधी ने जताई खुशीएनडीटीवी खबर - Aug 29, 2013 नई दिल्ली: भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले लोगों को उचित मुआवजा मुहैया कराने, भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और इससे विस्थापित होने वालों के पुनर्वास के लिए विस्तृत उपाय करने के लिए लाए गए ऐतिहासिक भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास विधेयक को लोकसभा ने गुरुवार को पारित कर दिया। इस बिल के पास होने पर कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खुशी जाहिर की। राज्य सभा से भी मुहर लगने के बाद कानून का रूप लेने वाला पुनरुद्धार एवं पुनर्वास विधेयक 2012 अब भूमि अधिग्रहण में स्वच्छ मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार के नाम से जाना जाएगा और यह ब्रिटिश ... 'भूमि अधिग्रहण पीछे ले जाने वाला कदम'ABP News - 4 hours ago नई दिल्ली: देश के उद्योग जगत ने लोकसभा में पारित भूमि अधिग्रहण विधेयक को पीछे ले जाने वाला कदम बताया है. उद्योगों ने कहा है कि इस विधेयक के प्रावधानों से देश के औद्योगिक और ढांचागत विकास पर प्रतिकूल प्रभाव होगा. संसद के निचले सदन द्वारा कल पारित किया गया यह विधेयक ब्रिटिशकाल में बने 1894 के कानून का स्थान लेगा. नये कानून के अनुसार औद्योगिक उपयोग के लिये भूमि लेने वाली कंपनियों को अब ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी क्षेत्रों में दोगुना मूल्य चुकाना होगा. सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी वाली परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण करने पर ... भूमि अधिग्रहण विधेयकBusiness Standard Hindi - Aug 29, 2013 सरकार निजी परियोजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण कर सकती है, लेकिन इसके लिए 80 फीसदी भूस्वामियों की सहमति जरूरी है। पीपीपी के लिए 70 फीसदी की सहमति चाहिए। प्रभावित परिवारों की पहचान के लिए एसआईए या सामाजिक प्रभाव आकलन के बाद भूमि अधिग्रहण शुरू किया जाएगा। इन्हीं से सहमति ली जाएगी। प्रभावित परिवार मुआवजा पाने के हकदार होंगे, जो ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी क्षेत्र में दोगुना होगा। जमीन देने वालों और आजीविका गंवाने वालों को मुआवजा मिलेगा। प्रभावित परिवार के लिए आर ऐंड आर में 5 लाख रुपये या एक नौकरी, अगर उपलब्ध है, एक साल के लिए ... भूमि अधिग्रहण बिल पास होने के बाद राहुल गांधी का नाम लेना भूले जयराम रमेशआज तक - 13 hours ago लोकसभा ने गुरुवार को भूमि अधिग्रहण बिल पर अपनी मुहर लगा दी. लेकिन ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज समेत कई नेताओं को तो धन्यवाद दिया पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का नाम भूल गए. इसके बाद ये बात उठी कि लोकसभा में फूड सिक्योरिटी बिल पास होने के बाद जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का नाम उठाया, उस तरह राहुल गांधी का नहीं. जयराम रमेश राहुल के नवरत्नों में से एक माने जाते हैं लेकिन वह उन्हीं का नाम लेना भूल गए. रमेश ने सबका धन्यवाद किया लेकिन उन्होंने राहुल का नाम नहीं लिया. माना जा रहा था कि यह बिल लाने में ... भूमि अधिग्रहण बिल पास करा राहुल खुशदैनिक जागरण - 9 hours ago नई दिल्ली। लोकसभा ने गुरुवार को बहु प्रतीक्षित भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास विधेयक पर अपनी मुहर लगा दी। इस बिल के पास होने पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खुशी जताई है। वहीं केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने बिल को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि इससे किसानों को फायदा होगा। इस विधेयक के जरिए फैक्ट्रियों या भवन निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले लोगों को उचित मुआवजा मुहैया कराने, भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और विस्थापित होने वालों को पुनर्वास का आश्वासन दिया गया है। लोकसभा में विधेयक पर हुए मतदान के दौरान उपस्थित 235 ... भूमि अधिग्रहण विधेयक आज होगा लोकसभा में पेशएनडीटीवी खबर - Aug 28, 2013 नई दिल्ली: यूपीए सरकार लोकसभा में आज महत्वपूर्ण भूमि अधिग्रहण विधेयक को चर्चा और पारित कराने के लिए पेश करेगी। फूड बिल के बाद सरकार की ओर से लाया जाने वाला यह दूसरे अहम बिल है। माना जा रहा है कि बहस के दौरान विपक्ष बिल में कई संशोधनों की मांग कर सकता है। हालांकि सरकार ने दावा किया है कि महत्वपूर्ण संशोधनों की संख्या दो दर्जन से अधिक नहीं है। विपक्ष को खुश करने के लिए सरकार ने उसके कुछ संशोधनों को माना तो है, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह बिल वाकई भूस्वामियों की हितों को सुरक्षित करेगा। इस विधेयक का उद्देश्य परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण से प्रभावित ... भूमि अधिग्रहण, पीछे ले जाने वाला कदम : उद्योगप्रभात खबर - 5 hours ago सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी वाली परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण करने पर जिन किसानों अथवा परिवारों की भूमि ली जायेगी उनमें से 70 प्रतिशत और निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिये भूमि अधिग्रहण होने की स्थिति में कम से कम 80 प्रतिशत भूस्वामियों की सहमति लेनी जरुरी होगी. वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की के पूर्व अध्यक्ष आर.वी. कनोड़िया ने कहा, ''विधेयक के कई प्रावधानों का पहले से ही खराब दौर से गुजर रहे औद्योगिक क्षेत्र पर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. यह पूरी तरह से पीछे ले जाने वाला कदम है.'' फिक्की ने आज जारी एक वक्तव्य में कहा कि विधेयक के विभिन्न प्रावधानों से ... भूमि अधिग्रहण बिल पर भी लोकसभा की मुहरदैनिक जागरण - 19 hours ago नई दिल्ली। खाद्य सुरक्षा विधेयक को लोकसभा से पारित कराने में सफल रही सरकार गुरुवार को भूमि अधिग्रहण विधेयक को लोकसभा में पास करवाने में सफल रही। सरकार का दावा है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक में जमीन के बदले निष्पक्ष मुआवजे का प्रावधान किया गया है। विधयेक में ग्रामीण इलाकों में अधिगृहीत की जमीन के लिए बाजार मूल्य से चार गुना मुआवजा जबकि शहरी क्षेत्र में बाजार मूल्य से दो गुना मुआवजे का प्रस्ताव रखा गया है। इसके अलावा प्रभावित लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की बात कही गई है ताकि जमीन अधिग्रहण के बाद किसानों की सामाजिक और आर्थिक दशा सुधारने में ... भूमि अधिग्रहण विधेयक को लोकसभा की मंजूरीआईबीएन-7 - Aug 29, 2013 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के एक अन्य बहुप्रतीक्षित कदम भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और व्यवस्थापन विधेयक 2011 को भी आज लोकसभा में मंजूरी मिल गई। विधेयक पर लगभग साढ़े पांच घंटों तक चली चर्चा के बाद सदन ने इसे 19 के मुकाबले 216 मतों से पारित कर दिया। विधेयक को 158 सरकारी संशोधनों के साथ पारित किया गया। जबकि विपक्ष की ओर से बड़ी संख्या में लाए गए संशोधनों में से ज्यादातर को ध्वनिमत से और कुछ को मत विभाजन के जरिए खारिज कर दिया गया। वामदलों और अन्ना द्रमुक ने अपने संशोधनों को सरकार द्वारा नहीं माने जाने के विरोध में विधेयक पर ... भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पारित, दोगुना मुआवजे का प्रावधानZee News हिन्दी - 22 hours ago भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पारित, दोगुना मुआवजे का प्रावधान. Tag: भूमि अधिग्रहण बिल, लोकसभा, दोगुना मुआवजा, यूपीए सरकार, Land Acquisition Bill, UPA, Jairam Ramesh, Lok Sabha, Parliament. Last Updated: Friday, August 30, 2013, 00:07. भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पारित, दोगुना मुआवजे का प्रावधान नई दिल्ली : खाद्य सुरक्षा विधेयक के बाद लोकसभा ने गुरुवार को संप्रग सरकार के एक और महत्वाकांक्षी 'भूमि अधिग्रहण' विधेयक को मंजूरी दे दी जो 119 साल पुराने कानून की जगह लेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि अब से किसानों की भूमि का जबरदस्ती अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। विधेयक में ग्रामीण इलाकों ... नए भूमि अधिग्रहण कानून का क्या होगा फायदा?अमर उजाला - 9 hours ago ... भूमि का अधिग्रहण करेगी तो उन्हें उचित मुआवजा पाने का हक होगा। इस बिल में किस तरह की भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा इसका अधिकार राज्यों को दिया गया है। साथ ही राज्यों को अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की भी छूट होगी। मगर राज्यों के कानून में मुआवजा और पुनर्वास किसी भी सूरत में केंद्रीय कानून से कम नहीं होगा। लोकसभा में बिल पर हुई बहस का जवाब देते हुए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि दो वर्ष पूर्व लोकसभा में पेश किए गए भूमि अधिग्रहण बिल के मुकाबले मौजूदा भूमि अर्जन विधेयक में लगभग 158 छोटे बड़े संशोधन किए हैं। जिसमें 28 बड़े संशोधन हुए हैं। लोकसभा में पारित हुआ भूमि अधिग्रहण विधेयकबीबीसी हिन्दी - 13 hours ago भूमि अधिग्रहण के लिए नए नियम और मुआवज़ा नीति निर्धारित करने वाला 'उचित मुआवज़ा और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन में पारदर्शिता का अधिकार विधेयक, 2012' लोकसभा में कुछ संशोधनों के साथ पारित कर दिया गया. ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने विधेयकलोकसभा में पेश किया. विधेयक को दो सर्वदलीय बैठकों के बाद पेश किया गया. बिल पर बहस के दौरान जयराम रमेश ने कहा कि, "उद्योग जगत इसविधेयक को बहुत कठोर बता रहा है. साथ ही प्रगतिशील संगठन भी इस बिल के लिए मेरी आलोचना कर रहे हैं. दोनों पक्ष बिल की आलोचना कर रहे हैं इसलिए मैं बिल को सही मानता हूँ." ज़मीन को अधिग्रहण के ... लोकसभा में भूमि अधिग्रहण बिल पासआज तक - 20 hours ago लोकसभा ने गुरुवार को बहु प्रतीक्षित भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास विधेयक पर अपनी मुहर लगा दी. इस बिल के पास होने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खुशी जाहिर की है. वहीं केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने बिल को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि इससे किसानों को फायदा होगा. इस विधेयक के जरिए फैक्ट्रियों या भवन निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले लोगों को उचित मुआवजा मुहैया कराने, भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और विस्थापित होने वालों को पुनर्वास का आश्वासन दिया गया है. राज्य सभा से भी मुहर लगने के बाद कानून का रूप लेने वाला ... भूमि अधिग्रहण बिल को हरी झंडी, बदलेगा 119 साल पुराना कानून, राहुल खुशkhaskhabar.com हिन्दी - 16 hours ago नई दिल्ली। लोकसभा ने गुरूवार देर रात "भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास में पारदर्शिता तथा उचित मुआवजे का अधिकार विधेयक-2012" अनेक संशोधनों के साथ पारित कर दिया। बिल के पक्ष में 216 वोट पडे जबकि विरोध में 19 वोट पडे। राहुल गांधी ने बिल पास होने पर खुशी जताई। यह विधेयक सदियों पुराने भूमि अधिग्रहण कानून 1894 की जगह लेगा। इसविधेयक को दो सर्वदलीय बैठकों के बाद पेश किया गया जिसमें सरकार ने भाजपा नेता सुषमा स्वराज तथा वामदलों द्वारा सुझाए गए पांच प्रमुख सुझावों को स्वीकार किया है। मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून 1894 में बना था। सरकार इसे नए कानून से बदलने वाली है ... भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पेशबीबीसी हिन्दी - Aug 29, 2013 भूमि अधिग्रहण विधेयक गुरुवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया. यह विधेयक क़ानून बनने के बाद 1894 में बने भूमि अधिग्रहण कानून की जगह लेगा. ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश भूमि अधिग्रहण विधेयक पेश किया. सरकार का दावा है कि इस विधेयक में औद्योगिक परियोजनाओं के लिए अधिग्रहीत की जाने वाली ज़मीन के बदले निष्पक्ष मुआवज़े का प्रावधान किया गया है. विधेयक में ग्रामीण इलाकों में अधिगृहित की जाने वाली ज़मीन के लिए बाज़ार मूल्य से चार गुना अधिक मुआवज़े का प्रावधान है. शहरी क्षेत्र में यह बाज़ार मूल्य से दो गुना अधिक होगा. साथ ही विधेयक में अधिग्रहण से प्रभावित लोगों ... भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन विधेयक लोकसभा में पारितJagran Josh - 4 hours ago इसमें जिन किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया गया है और उन्हें पर्याप्त हर्जाना नहीं मिला है, ऐसे किसान अपनी शिकायतों का निपटारा करा सकेंगे. यदि किसान अपील प्राधिकरण के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो उन्हें उच्च न्यायालय जाने का भी अधिकार होना है. इसमें बहुफसल खेती वाली जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जाना है और यदि इसकी आवश्यकता भी हुई तो संबंधित राज्य सरकारों द्वारा इस संबंध में निर्णय लिया जाना है.विधेयक में बहुफसली और सिंचित जमीन के अधिग्रहण के बारे में विशेष प्रावधान हैं. • विधेयक में उचित हर्जाना और पारदर्शिता के अधिकार के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी ... भूमि अधिग्रहण पर और बढ़ेगी उद्योग जगत की नाराजगीअमर उजाला - 12 hours ago भूमि अधिग्रहण पर और बढ़ेगी उद्योग जगत की नाराजगी. नई दिल्ली/ब्यूरो | अंतिम अपडेट 30 अगस्त 2013 12:07 AM IST पर. land acquisition bill displeasure industry. खाद्य सुरक्षा कानून पर 1.30 लाख करोड़ रुपए के खर्च को फिजूलखर्ची मानने वाले उद्योग जगत की नाराजगी को भूमि अधिग्रहण विधेयक और बढ़ा सकता है। इस विधेयक के कई प्रावधानों पर उद्योग जगत कड़ी आपत्ति व्यक्त कर चुका है। खासकर भूमि अधिग्रहण में 80 फीसदी भू-स्वामियों की सहमति और मुआवजे बढ़ने से उन्हें जमीनें महंगी होने का खतरा सता रहा है। किसानों के हितों को बचाने के लिए जो प्रावधान रखे गए हैं, उनसे उद्योग जगत को जमीनें मिलने में देरी ... भूमि अधिग्रहण कीमत में हो सकती है 3.5 गुना बढ़ोतरी: उद्योग (फाइल फोटो)Sahara Samay - 11 hours ago लोकसभा द्वारा गुरुवार को पारित किये गए भूमि अधिग्रहण विधेयक से भूमि अधिग्रहण की कीमत 3.5 गुना बढ़ सकती है. जिससे औद्योगिक परियोजना अव्यहारिक हो जाएग और अर्थव्यवस्था में कुल लागत बढ़ जाएगी. उद्योग चैंबर सीआईआई ने कहा कि उसने उत्पादन बढ़ाने और उद्योग में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए हमेशा ही भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को सरल बनाने पर जोर दिया है. सीआईआई अध्यक्ष एस गोपालकृष्णन ने कहा, ''लेकिन उद्योग की विधेयक के कुछ प्रावधानों पर गंभीर चिंताएं हैं क्योंकि इससे भूमि अधिग्रहण की कीमत तीन से साढ़े तीन गुना बढ़ने की संभावना है, इससे औद्योगिक परियोजना अव्यवहारिक ... भूमि अधिग्रहण विधेयक आधा-अधूरा: बीजेपीSahara Samay - Aug 29, 2013 विपक्ष ने लोकसभा में भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक को आधा अधूरा करार दिया जबकि सत्ता पक्ष ने कांतिकारी बताया. कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण किसानों की अनुमति के बिना नहीं किए जाने का प्रावधान करने की पुरजोर मांग करते हुए विपक्ष ने गुरुवार को लोकसभा में सरकार द्वारा पेश किए गए भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक को आधा अधूरा करार दिया जबकि सत्ता पक्ष ने इस विधेयक को कांतिकारी बताया. ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश द्वारा पेश किए गए ''भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन विधेयक 2011'' पर चर्चा की शुरूआत करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने कहा कि ... लोकसभा में आज पेश किया जाएगा भूमि अधिग्रहण विधेयकZee News हिन्दी - Aug 28, 2013 भूमि अधिग्रहण संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश. Tag: भूमि अधिग्रहण विधेयक, लोकसभा, यूपीए सरकार, लोकसभा चुनाव-2014. Last Updated: Thursday, August 29, 2013, 14:36. भूमि अधिग्रहण संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश ज़ी मीडिया ब्यूरो नई दिल्ली : डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान की मांग करते विपक्ष के हंगामे के बीच गुरुवार को लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक पेश कर दिया गया। एक घंटे के स्थगन के बाद सदन की कार्यवाही शुरू होने पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक पेश कर दिया। विभिन्न दलों के सदस्य लगातार ... राहुल गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट को लोकसभा में मंजूरीआईबीएन-7 - 11 hours ago राहुल गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट भूमि अधिग्रहण बिल को गुरुवार को लोकसभा में मंजूरी दे दी गई। इस बिल के संसद से पास होने के बाद ना सिर्फ किसानों को ज्यादा मुआवजा मिलेगा बल्कि जबरन भूमिअधिग्रहण करना मुमकिन नहीं होगा। खाद्य सुरक्षा बिल के बादभूमि अधिग्रहण बिल के पास होने को कांग्रेस अपनी बड़ी जीत के तौर पर देख रही है। सोनिया गांधी के ड्रीम बिल यानि खाद्य सुरक्षा बिल के पास होने के बाद अब भूमि अधिग्रहण बिल पास होने को कांग्रेस 2014 के आम चुनावों के पासपोर्ट के तौर पर देख रही है। सरकार के मुताबिक ये बिल किसानों के हित में ऐतिहासिक है। लोकसभा से पास हुए इस बिल के ... हंगामे के बीच भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पेशLive हिन्दुस्तान - Aug 29, 2013 डॉलर के मुकाबले रुपये की लगातार गिरती कीमत पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान की मांग करते विपक्ष के हंगामे के बीच गुरुवार को लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक पेश कर दिया गया। एक घंटे के स्थगन के बाद सदन की कार्यवाही शुरू होने पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक पेश कर दिया। विभिन्न दलों के सदस्य लगातार यह मांग करते रहे कि प्रधानमंत्री सदन में उपस्थित हों और रुपये की गिरावट को रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दें। इसके बाद सदन की कार्यवाही 12.30 बजे के लिए स्थगित कर दी गई। इस महत्वपूर्ण विधेयक में कहा गया है कि निजी ... भूमि अधिग्रहण बिल को मंजूरीShri News - 11 hours ago इस बिल पर चर्चा के समय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश इस विधेयक के जरिए फैक्ट्रियों या भवन निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले लोगों को उचित मुआवजा मुहैया कराने, भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और विस्थापित होने वालों को पुनर्वास का आश्वासन दिया है. जिसके बाद वोटिंग हुई और धन्यवाद प्रस्ताव लाया गया. जयराम ने सभी पक्ष-प्रतिपक्ष के नेताओं को सहयोग देने के लिए धन्यवाद दिया लेकिन राहुल गांधी का एक बार भी नाम नहीं लिया. इसके बाद ये बात उठी कि लोकसभा में फूड सिक्योरिटी बिल पास होने के बाद जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया ... महत्वाकांक्षी भूमि अधिग्रहण विधेयक भी पासWebdunia Hindi - 21 hours ago खाद्य सुरक्षा विधेयक के बाद लोकसभा ने गुरुवार को संप्रग सरकार के एक और महत्वाकांक्षी 'भूमि अधिग्रहण' विधेयक को मंजूरी दे दी, जो 119 साल पुराने कानून की जगह लेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि अब से किसानों की भूमि का जबरदस्ती अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। विधेयक में ग्रामीण इलाकों में जमीन के बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी इलाकों में दो गुना मुआवजा देने का प्रावधान है। विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा, 'इस कानून के बन जाने के बाद भूमि का जबरदस्ती अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा और भू-स्वामियों को उचित मुआवज़ा मिलेगा। शहरों में भूमि अधिग्रहण पर बाजार मूल्य से दोगुनी रकमLive हिन्दुस्तान - 22 hours ago खाद्य सुरक्षा के बाद लोकसभा ने भूमि अधिग्रहण, पुर्नवास एवं व्यवस्थापन विधेयक-2011 को मंजूरी दे दी। इस विधेयक के कानून बनने के बाद ग्रामीण इलाकों में अधिग्रहित की जाने वाली जमीन के लिए बाजार मूल्य से चार गुना अधिक मुआवजा दिया जाएगा। जबकि शहरी क्षेत्रों में यह मुआवजा दो गुना अधिक होगा। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि यह कानून उन लोगों पर भी लागू होगा, जहां किसानों ने मुआवजा नहीं लिया है। यह विधेयक 119 साल पुराने भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 की जगह लेगा। पुराने अधिग्रहण कानून को लेकर किसानों में काफी नाराजगी थी। पुराने कानून के खिलाफ कई ... लोकसभाः भूमि अधिग्रहण बिल चर्चा के लिए पेशआईबीएन-7 - Aug 29, 2013 ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने विधेयक सदन में रखते हुए कहा कि इसका मकसद औद्योगीकरण, ढ़ांचागत सुविधाओं के विकास और शहरीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण की मानवीय, समावेशी, विचार विमर्श पर आधारित और पारदर्शी प्रकिया सुनिश्चित करना है। रमेश ने कहा कि भूमि अधिग्रहण के परिणामस्वरूप इसके प्रभावितों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बेहतरी होनी चाहिए। इसलिए विधेयक में उन्हें उचित मुआवजा दिलाने के अलावा उनके पुनर्वास और व्यवस्थापन के मुकम्मल प्रावधान किए गए हैं। यह विधेयक अंग्रेजों की हुकूमत के समय 1894 में बनाए गए भूमि अधिग्रहण कानून की जगह लेगा। इसके पारित हो ... जमीनों पर गांव में चार व शहर में दो गुना मुआवजादैनिक भास्कर - 13 hours ago जमीनों पर गांव में चार व शहर में दो गुना मुआवजा. नई दिल्ली. खाद्य सुरक्षा विधेयक के बाद अब भूमि अधिग्रहण विधेयक भी गुरुवार को लोकसभा में पारित हो गया। इस बिल को लोकसभा में सदन के पटल पर रखा गया। सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में लगभग 100 संशोधनों के बाद चर्चा की तैयारी थी। सदन में संशोधन विधेयक के पक्ष में 216 और विपक्ष में 19 मत पड़े। हालांकि संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने खुद इस पर ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश से कई बार बात की और जयराम और संशोधनों में छिंदवाड़ा का मॉडल भी जयराम को बताया। अब 15 हजार की सैलरी पर भी कटेगा पीएफ · अब होटल में आपको परोसा जाएगा 'जूठा' ... सस्ते अनाज के बाद अब जमीन अधिग्रहण बिल लोकसभा में पास, राहुल के भूले जयरामOneindia Hindi - 14 hours ago राज्यसभा में मुहर लगने के बाद कानून का रूप लेने वाला पुनरुद्धार एवं पुनर्वास विधेयक 2012 अब भूमि अधिग्रहण में स्वच्छ मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार के नाम से जाना जाएगा और यह ब्रिटिश कालीन 1894 के करीब 120 वर्ष पुराने कानून की जगह लेगा। लोकसभा में विधेयक पर हुए मतदान के दौरान उपस्थित 235 सदस्यों में से 216 सदस्यों ने पक्ष में और 19 ने इसके विरोध में मतदान किया। जहां कांग्रेस ने इसे ऐतिहासिक कदम करार दिया वहीं अधिकांश दलों ने इसका समर्थन तो किया, लेकिन उर्वर भूमि का औद्योगिक विकास के लिए अधिग्रहण नहीं करने का तर्क रखा। पार्टियों ने इसकी जगह बेकार या बंजर जमीन का ... 'किसानों के साथ नाइंसाफी रोकना है मकसद'Business Standard Hindi - Aug 29, 2013 भूमि अधिग्रहण विधेयक पर ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने श्रीलता मेनन को बताया कि विधेयक अधिग्रहण में तेजी लाने पर नहीं, बल्कि यह पूरी प्रक्रिया के दौरान होने वाले किसी भी तरह के अन्याय को रोकने पर केंद्रित है। मुख्य अंश : निजी और पीपीपी परियोजनाओं के लिए क्यों सरकार को भूमि अधिग्रहण करना चाहिए? राज्य अक्सर जमीन गंवाने वालों के समर्थन में रहने के बजाय उनके खिलाफ नजर आते हैं। ऐसा क्यों? बड़ी कंपनियों और किसानों के बीच मोलभाव की क्षमता में भारी असमानता और अन्य समूहों का दखल बढऩे से अन्यायपूर्ण समझौतों की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। अनुबंध उस पार्टी के पक्ष ... |
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बीजेपी का अनुरोध, सरकार से जल्दी चुनाव कराने को कहें
भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में आज राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अनुरोध किया कि वह सरकार को जल्दी आम चुनाव कराने का सुझाव दें क्योंकि मौजूदा आर्थिक संकट की स्थिति में यह सरकार हालात से निपटने में अक्षम है और देश में चुनाव ही एकमात्र विकल्प है।
देश की बदहाल आर्थिक स्थिति को ही मुद्दा बनाकर भाजपा अब चुनावी मैदान में उतरना चाहती है। यही कारण है कि संसद में प्रधानमंत्री को घेरने के बाद पार्टी नेतृत्व ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सरकार की शिकायत की। खुद प्रणब का बचाव किया और जल्द लोकसभा चुनाव कराने का आग्रह भी कर दिया। हालांकि, पार्टी को अहसास है कि सरकार तय समय से पहले चुनाव में जाने को तैयार नहीं है। पढ़े : पीएम व विपक्ष में ठनी, भाजपा का लोकसभा से वॉकआउट. खाद्य सुरक्षा के बाद भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा से पारित कराकर जहां कांग्रेस चुनावी आधार तैयार करने में जुट गई है।
रुपए में नरमी भारत के लिए चुनौती और अवसर दोनों: IMF
वाशिंगटन : रुपए में अप्रत्याशित गिराव भारत के लिए चुनौती और अवसर दोनों है। यह बात अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कही है। आईएमएफ के प्रवक्ता जेरी राईस ने कल कहा, मौजूदा स्थिति निश्चित तौर पर भारत सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है पर साथ ही यह सरकार के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अपनी नीतिगत पहल जारी रखने का अवसर भी।
राइस ने कहा कि वह, 'भारत की नीतिगत आवश्यकताओं के संबंध में कोई कायास नहीं लगाना चाहते।' उनसे उन अटकालबाजियों के बारे में सवाल किया गया था कि भारत अपनी मुद्रा को संभालने के लिए आईएमएफ को साना बेचने आ सकता है। राईस ने एक सवाल के जवाब में कहा, लेकिन भारत में बड़े राजकोषीय घाटे व चालू खाते के बढ़ते घाटे, उच्च मुद्रास्फीति, बगैर हेजिंग वाले कापरेरेट विदेशी ऋण और विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश पर निर्भरता लंबे समय से समस्या बनी हुई है।
वैश्विक स्तर पर नकदी कम होने के कारण ये समस्याएं बढ़ गई हैं। इससे स्पष्ट रूप से बाजार का भरोसा प्रभावित हुआ है। अमेरिका भारत व्यापार परिषद (यूएसआईबीसी) के अध्यक्ष रॉन सोमर्स ने भारत में निवेशकों का भरोसा बहाल करने की पहल पर जोर दिया। सोमर्स ने कहा 'भारत का साहसी नेतृत्व अर्थव्यवस्था को खोले हुए है और सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है जिससे रपए की नरमी को रोकने में मदद मिलेगी।'
मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले शुक्रवार को वित्तमंत्री के साथ अपने मतभेदों को उजागर कर दिया।
उन्होंने वित्तमंत्री पी चिदंबरम के उस वक्तव्य पर टिप्पणी की, जिसमें चिदंबरम ने कहा था कि आर्थिक वृद्धि बनाए रखने के लिए वह (सरकार) अकेले ही बढ़ना पसंद करेंगे। चिदंबरम ने यह टिप्पणी रिजर्व बैंक की लगातार सख्त मौद्रिक नीति को देखते हुए की थी।
रिजर्व बैंक गवर्नर का पद छोड़ने से एक सप्ताह पहले सुब्बाराव ने सरकार और रिजर्व बैंक के बीच मतभेदों को लेकर मीडिया में कई खबरें आने का जिक्र किया। रिजर्व बैंक की स्वायत्तता और जवाबदेही को लेकर भी काफी खबरें प्रकाशित हुई हैं।
सुब्बाराव ने कहा, जर्मनी के पूर्व चांसलर गेरार्ड श्रोएडर ने एक बार कहा था, मैं अक्सर बंडसबैंक को लेकर परेशान हो जाता हूं, लेकिन भगवान का शुक्र है कि यह है। उन्होंने कहा, मुझे भी उम्मीद है कि वित्तमंत्री चिदंबरम भी एक दिन कहेंगे, "मैं अक्सर रिजर्व बैंक की वजह से हताश होता हूं, इतना परेशान होता हूं कि मैं बाहर निकल जाना चाहता हूं, चाहे मुझे अकेले ही चलना पड़े, लेकिन भगवान का शुक्र है कि रिजर्व बैंक है।"
सुब्बाराव ऐसा कहते हुए चिदंबरम के उस वक्तव्य का ही संदर्भ दे रहे थे, जब उन्होंने पिछले साल अक्टूबर में कहा था, "यदि सरकार को आर्थिक वृद्धि की खातिर अकेले ही चलना होगा, तो वह अकेले ही आगे बढ़ेगी।" रिजर्व बैंक की मुद्रास्फीति की चिंता में सख्त मौद्रिक नीति को जारी रखने से चिदंबरम उस समय परेशान थे। सरकार की राजकोषीय मजबूती के लिए पंचवर्षीय कार्ययोजना पेश किए जाने के बावजूद रिजर्व बैंक ने उच्च ब्याज दर की नीति को जारी रखा था।
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New Land Acquisition Bill in name of public purpose and inclusive growth will further land acquisition and conflict
Historic opportunity lost to address historical injustice
Justice denied to 10 Crores displaced at the alter of development since 1947
New Delhi, August 29 : Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Bill 2011 was discussed and debated today, with many members of Parliament appreciating the fact that colonial Land Acquisition Act, 1894 will be replaced. NAPM welcomes the introduction of a comprehensive bill and recognition of resettlement and rehabilitation as right but is disappointed at the neglect of ground realities and legitimacy of acquisition for 'private profit' in the name of public purpose. Members of many political Parties during the debate echoed the sentiments prevailing in the country amongst farmers and those dependent on land but those alligned with UPA advocated the agenda of inclusive growth and PPP. UPA is hiding behind the poor and this brazen push for the land acquisition for the private companies will threaten food security and livelihood of millions.
Lok Sabha passed the 'National Food Security Bill' early this week but the new land bill will divert more agricultural land. For decades people's movements have been struggling against the forced land acquisition, without any recourse to satisfactory R&R. Today, in an atmosphere, where everything from roads, hospital to tourism, mining, electricity developed by public or private corporations, is considered as public good, we feel that Bill will continue to betray the faith of people in development process. Since 1947, millions of hectares of land have been acquired in the name of development, displacing nearly 100 million people and leaving them to fend for themselves.
The attempt to repeal the 1894 Act was initiated in the context of the killings and land conflict in Nandigram and Singur, but today the whole debate is centred only around the growth and industrialisation. Political and elite class of this country is driving this hype at the cost of alienating large section of population, who will only have the option to resist and challenge forced acquisition of their land and natural resources by corporations in name of development and growth.
We welcome some provisions like Social Impact Assessment, Concurrent Environmental impact Assessment, but are concerned that historical justice has not been done. Nation expects Parliament to tend for majority of the people, for whom this development is planned and not worry about industrial houses alone. As we send this the amendments are being voted in the parliament but our concerns, expressed to political parties and Parliament remain unanswered, see details below.
Medha Patkar - Narmada Bachao Andolan and the National Alliance of People's Movements (NAPM); Dr. Sunilam, Aradhna Bhargava - Kisan Sangharsh Samiti, NAPM, MP; Prafulla Samantara - Lok Shakti Abhiyan, NAPM, Odisha; Gautam Bandopadhyay – Nadi Ghati Morcha, NAPM, Chhattisgarh; Ulka Mahajan, Suniti SR, Prasad Bagwe - SEZ Virodhi Manch and NAPM, Maharashtra; Gabriel Dietrich, Geetha Ramakrishnan – Unorganised Sector Workers Federation, NAPM, TN; Rajendra Ravi, Anita Kapoor – NAPM, Delhi; Akhil Gogoi - Krishak Mukti Sangram Samiti, NAPM, Assam; Arundhati Dhuru, Sandeep Pandey - NAPM, UP; Sister Celia - Domestic Workers Union, NAPM, Karnataka; Sumit Wanjale, Madhuri Shivkar, Simpreet Singh – Ghar Bachao, Ghar Banao Andolan, NAPM, Mumbai; Dr.Rupesh Verma - Kisan Sangharsh Samiti, NAPM, UP; Manish Gupta - Jan Kalyan Upbhokta Samiti, NAPM, UP; Vimal Bhai - Matu Jan sangathan, NAPM, Uttarakhand; Vilas Bhongade - Gosikhurd Prakalpgrast Sangharsh Samiti, NAPM, Maharashtra; Ramashray Singh - Ghatwar Adivasi Mahasabha, Jharkhand; Anand Mazhgaonkar, Paryavaran Suraksh Samiti, NAPM Gujarat
For details contact : Madhuresh Kumar 9818905316 | email : napmindia@gmail.com
A Paradigm Shift in Development Planning and Land Rights is Need of the Hour Not Further Acquisition and Cash Compensation
Concerns on the
Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Bill, 2011
NAPM, August 2013
The Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Bill, 2011 is being discussed in Lok Sabha right now. There has not been any consensus on the Bill yet the UPA government is bringing the Bill. In some cases the new Bill is worse than the colonial 1894 Act, by expanding the definition of public purpose, legitimising the acquisition for private corporations and excluding all other laws used for land acquisition for highways, industrial corridors and others.
The proposed amendments introduced by the Ministry of Rural Development earlier this year was to further take away the rights of the people in planning process and the principle of prior informed consent.
The Bill in its current form has refused to accept the key recommendations of the Parliamentary Standing Committee, something which Chairperson fails to see but, a concern shared by many other members of the Committee.
The Bill has now been renamed "Right to Fair Compensation, Resettlement, Rehabilitation and Transparency in Land Acquisition Bill, with a claim to better reflect Government's Commitment towards securing a legal guarantee for the rights of project affected, and ensuring greater transparency in the land acquisition process. It is also claimed that the Bill will ensure, in concert with local institutions of self-government and Gram Sabhas established under the Constitution, a humane, participative, informed, consultative and transparent process for land acquisition.
However, we feel that the Parliament should not pass the proposed Right to Fair Compensation, Resettlement, Rehabilitation and Transparency in Land Acquisition Bill, in its current form. It needs to be debated democratically debated by all and take those in account, rather than succumb to the private corporations interests and pursue undemocratic growth. Untill then put a moratorium on all ongoing land acquisitions in the country. We oppose all such undemocratic, attempts legislative or otherwise.
In public domain we have the Parliamentary Standing Committee's report (on Rural Development) on the Bill as well as the amendments introduced by the Ministry of Rural Development, we, the people's movements, have taken serious cognizance of the fact that the strong position taken by the Standing Committee on certain critical issues are either diluted or rejected by the Ministry of Rural Development, which is shocking. The Ministry that is supposed to protect the rights and powers of the rural communities has not accepted some of the standing committee recommendations, towards that end, which are presented with our comments, herewith:
Definition of Public Purpose and Infrastructure
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The Committee had suggested a restrictive definition of Public Purpose, something which didn't leave any discretionary power to the government and also development of infrastructure by the public agencies with the public funds only.
Ministry has proposed an expansive definition of public purpose and infrastructure and also a clause which leaves the discretionary power to declare anything as infrastructure and of public purpose. The Committee to decide upon the nature of the public purpose all consists of bureaucrats and representation of the democratically elected local self government institutions is wanting. Gram Sabha and Basti Sabha in consonance with the Art 243 provisions have every right to the planning and hence the power to decide the nature of public purpose must rest with them, which will also democratise the development planning.
It is ironical that while food processing and other agriculture related secondary and tertiary sector industries have been brought in the public purpose definition but agriculture itself has not been considered a public purpose, something which would have meant no acquisition of agricultural land.
Acquisition for Private and PPP Projects
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No forcible acquisition for private projects, or for PPP, which can not to be categorized as public purpose projects.
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Ministry has rejected this and justified this with a provision that consent of 70-80% of project affected farmers alone will be sought before acquisition for any private projects
In this era of neo-liberal economic reforms, private projects with corporate investment and interests are taking a much larger toll of land and other rich natural resources as also uprooting by killing communities which are generations old. This must come to an end and the same can happen only with stopping the State playing a role of facilitator and land dealer. At the cost of the livelihood of the nature based sections and working class section of society, the state can't transfer the most valuable livelihood resources such as land, water to the profiteering bodies in the garb of 'public interest' and 'public purpose'.
Food Security and Agricultural Land Acquisition
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No forcible acquisition of agricultural land, for non-agricultural purpose including single crop and multi crop land.
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The proposed Bill leaves this to the state governments to decide, rather than take a clear stand on it. It makes provisions for acquisition of common property resources too.
How can the in-between farms that may be unirrigated, rain fed, single crop be left out, we ask. India has 75% of the agricultural land as rain fed and most of it single cropped. Such land is mostly held by Dalits, Adivasis and marginal farms. Protecting them and all farm land for food security, which comes not from PDS but self sufficient agriculture, is a must!
Bringing 16 Central Acts Under Purview of this Bill
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The standing committee has recommended that all 16 central acts should be brought under the purview of the new act, to make all equal before law (Article 14 of the Constitution).
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Ministry of Rural Development wants to exclude 13 out of 16 Acts including Industrial Development Act, Land Acquisition (Mines) Act, National Highways Act and others from the purview of the new act. This means that 90% of the land acquired as on today will continue with injustice and force used, with no change at all.
The standing committee recommendations must be upheld to end brutal unjust acquisition for all projects under various state and central laws.
Role and Consent of Gram and Basti Sabha
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The Committee asks that all studies - SIA, EIA, expert committee appraisal be done in consultation with the gram sabhas and the corresponding reports be made available to the gram sabhas.
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Ministry emphasises that 80% consent of land loosers is there in case of acquisition for private sector projects and 70% for public private partnership projects.
Consent and direct involvement of majority of the Gram Sabhas must be there in each and every project, including public projects for public purpose. 80% and 70% consent of the land losers for the private and public - private projects, respectively, alone is not sufficient. Also, why should the linear projects be left out? If it's consent of 80% affected, there are to be a number of manipulations that people will have to face. Experiences of 70% consent in Slum Rehabilitation Scheme in Mumbai are quite telling.
Return of Unutilised Land to farmers and Land Bank
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The Committee recommended that the land, if not used till 5 years, should be returned after 5 years from the date of possession to the land owners.
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Ministry accepts the reduced five years time period and also its return to the landowner or its legal heirs but retains the provisions for State Land Bank.
The ownership over the land is of those who till it and if not used and unutilized then it must be returned to the owners or distributed amongst the project affected people. We oppose any such feature which will promote land bank, since it has promoted large scale acquisition in the past and later illegally transferred the same land to corporations for real estate and other purposes.
Retrospective Application of the Law and Repeal of Land Acquisition Act
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On the question of retrospective application of the R&R provisions Committee has suggested to Ministry to re-examine the issue and incorporate necessary provisions
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Ministry has partially brought in the retrospective application of the R&R provisions of the Bill in cases where the award under Section 11 of the LAA 1894, has not been made or where award has been made but the possession not taken.
It needs to be noted that nearly 100 million people have been displaced since independence and with a dismal 17-20 percent rate of resettlement and rehabilitation we had suggested that not only the retrospective application of the provisions of the new act but aNational Resettlement and Rehabilitation Commission be established to deal with the claims of the projected affected people from various projects. Also the Land Acquisition Act 1894 need to be repealed completely, two acts dealing with the land acquisition will bring in legal challenges and also negate the whole purpose of bringing in a new legislation.
Resettlement and Rehabilitation Benefits
In terms of the resettlement and rehabilitation benefits Committee apart from suggesting some cosmetic changes have accepted the provisions of the Bill, we think this is unfortunate since provisions don't stand up to livelihood based R&R, it merely promotes the principle of cash compensation. It will be a retrogressive step since it negates the land and employment based R&R as mandated in the Narmada Water Dispute Tribunal Award, and various other projects. The proposed provisions of compensating employment with money and high rates for land acquired will only lead to speculative land market and will destroy the fragile economy of the rural hinterland which will lead to further urban migration.
Urban Eviction
The Bill and the comments by both, Standing Committee as well as MoRD almost totally excludes and have unaddressed the situation in the urban areas, where there is no land acquisition, but eviction, brutal and unjust, for any and every elitist real estate development to infrastructure without guaranteeing right to shelter, right to life and livelihood. The only provision is to compensate with 20% of developed land for land owning families in urbanisation projects, which is not with regard to the cases where land belongs to the government or private entities but people are evicted. We demand a separate section or a separate act for the millions of the urban persons and urban land from getting misappropriated. The Bill with the presently proposed content need to be called only "Rural Bill".
The rapacious use of Land Acquisition Act 1894 by the government to secure land for 'development' projects has caused over 100 million people to be displaced from their land, livelihoods and shelters. The country is dotted with communities resisting State sponsored land grab which resonate the demand for a just law to ensure that there is no forced acquisition of land and resources, including minerals and ground water. The government must respond to the voices from movements across places such as Narmada, Koel Karo, Singur, Nandigram, Sonbhadra, Chindwara, Bhavnagarm, Kalinga Nagar, Kashipur, Raigarh, Srikakulam and mining areas in central India with genuine efforts to address the longstanding crisis concerning land Acquisition and resettlement & rehabilitation.
If the UPA government is serious about addressing the conflicts over the land and other natural resources then it must listen to the voices of those struggling or else it will only aggravate these conflicts all across the country. The need of growth, infrastructure and urbanisation can't be fulfilled on the graveyard of millions. A pro-people Development Planning Bill with complete participation of the Gram Sabha will go a long way in stopping the massive corporate corruption and lead to decentralization of power having an overall impact on the politics of the country.
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Land Bill a retrograde step, says India Inc
India Inc today termed the Land Acquisition Bill passed in Lok Sabha as a "retrograde" step, saying it could have "adverse consequences" on the country's industrial and infrastructural development.
The Bill, which was passed by the Lower House of Parliament yesterday, will replace the British era's Act of 1894.
Companies who want to acquire land for industrial use will be required to pay up to four times the prevailing market value in rural areas and twice the market price in urban areas.
The Bill also stipulates mandatory consent of at least 70 per cent of people for acquiring land for PPP projects and 80 per cent for private companies.
"Several provisions will have adverse consequences on the industrial development of the country, which is already in bad shape. It is completely a retrograde step," former Ficci President R V Kanoria said.
In a statement, Ficci said the Bill may make key factor of production for manufacturing scarce and expensive.
"This certainly doesn't augur well for manufacturing. Cost of land will go up significantly. Process of acquiring land will also get stretched," it said.
A senior economist Rajiv Kumar said the biggest losers of the proposed legislation will be the young generation looking for jobs, due to slow pace of industrialisation.
"It is a massive set-back for industrialisation and urbanisation of the country. It will further push our industries 10-years back," Kumar added.
Infrastructure major Hindustan Construction Company (HCC) Chief Operating Officer Rajgopal Nogja said the bill will further hold up infrastructure projects.
"Securing consent of 70-80 per cent of land owners may take 3 to 5 years...it will make land acquisition a herculean task," Nogja added.
CII said the industry has serious concerns over the Bill as it may increase the cost of land acquisition by 3-3.5 times, making industrial projects unviable.
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PIL against National Spot Exchange seeks CBI probe, alleges Rs 8,000 cr scamThe crisis at NSEL would have a cascading effect on other exchanges run by the same promoters.
A public interest litigation has been filed in the Bombay High Court seeking a CBI probe into the alleged refusal by National Spot Exchange Ltd (NSEL) to pay dues to 17,000 small investors, claiming it is a scam to the tune of Rs 8,000 crore.
Former BJP MP and president of Investors' Grievances Forum Kirit Somaiya has filed the petition.
The respondents named in the PIL include Union Ministry of Consumer Affairs, Food and Public Distribution, Ministry of Finance, Forward Market Commission, Central Board of Direct Taxes, the beleaguered NSEL, and its promoter Jignesh Shah.
The PIL contends that NSEL's role was to bring farmers and buyers together by eliminating middlemen but it forged/manipulated documents regarding stocks and liquidity and allowed some of the companies to pledge the same stock with more than one financial institutions.
Somaiya has sought a probe by CBI or the Economic Offences Wing of Mumbai Police or the Central Vigilance Commission, and demanded action against NSEL, its promoters and 24 companies which it says have disappeared along with Rs 8,000 crores.
The crisis at NSEL would have a cascading effect on other exchanges run by the same promoters, namely MCX and MCX-SX, the PIL says. Government officials, politicians and NSEL connived to cheat the investors, it alleges.
The PIL also seeks that NSEL's licence be cancelled and it be restrained from carrying on the operations until it pays the dues of the investors.
According to the petition, NSEL had stated that it had a settlement guarantee fund of Rs 830 crore, however recently it disclosed that it had only Rs 60 crore in this fund.
NSEL, promoted by Jignesh Shah-led Financial Technologies (India) Ltd, is facing the problem of settling Rs 5,600 crore dues of 148 members/brokers, representing thousands of investor-clients, after it suspended trade on July 31 on the government's direction.
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