दीदी की बेलुड़ यात्रा के बाद दक्षिणेश्वर में बन रही है जेटी, मांकाली के दर्शन के लिए चलेगा लांच
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
पिछले दिनों बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बेलुड़ रामकृष्ण मिशन गयी थीं।रामकृष्ण मिशन के श्रद्धालुओं और संन्यासियों के साथ घंटों बिताने के दरम्यान उन्होने ठाकुर रामकृष्ण के चरणचिन्हों की स्मृतियों से जुड़े सारे पुण्यस्थलों को एक सूत्र में पिरोने का संकल्प लिया। । गौरतलब है कि हाल में प्रधानमंत्रित्व के दावेदार नरेंद्र मोदी ने भी दक्षिणेश्वर और बेलुड़ की यात्रा की थी। अगले लोकसभा चुनावों में संबावित खास भूमिका के मद्देनजर दीदी की यह निजी धर्म यात्रा महत्वपूर्ण मानते हैं लोग।दीदी पर हिंदुत्ववादी कुछ लोग अन्य धर्म का पक्ष लेने का आरोप लगाते रहे हैं।दक्षिणेश्वर और बेलुड़ की सुधि लेकर उन्होंने साबित कर दिया कि वे अंततः हिंदु धर्मस्थलों का विकास भी करना चाहते हैं।
रामकृष्ण मिशन
रामकृष्ण मिशन की स्थापना १ मई सन् १८९७ को रामकृष्ण परमहंस के परम् शिष्य स्वामी विवेकानंद ने की ।उनका उद्देश्य ऐसेसाधुओं और संन्यासियों को संगठित करना था, जो रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं में गहरी आस्था रखें, उनके उपदेशों को जनसाधारण तक पहुँचा सकें और संतप्त, दु:खी एवं पीड़ित मानव जाति की नि:स्वार्थ सेवा कर सकें। इसका मुख्यालय कोलकाता के निकट बेलुड़ में है। रामकृष्ण मिशन दूसरों की सेवा और परोपकार को कर्म योग मानता है जो कि हिन्दु धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है।
रामकृष्ण मिशन का ध्येयवाक्य है - आत्मनो मोक्षार्थं जगद् हिताय च (अपने मोक्ष और संसार के हित के लिये) रामकृष्ण मिशन को १९९८ में भारत सरकार द्वारा गाँधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
पुण्ययात्रा
इसी बीच दक्षिणेश्वर से बेलुड़ होते हुए बागबाजार को छूते हुए फेयरलीप्लेस से लंचसेवा शुरु हो गयी है।पहले बाग बाजार से बेलुड़ तक लांचसेवा उपलब्ध थी। लेकिन दक्षिणेश्वर में कोई जेटी न होने के कारण उसे तुरंत लांच सेवा से जोड़ना संभव नहीं है।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर
कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास दक्षिणेश्वर काली मंदिर स्थित है। यह मंदिर बीबीडी बाग से 20 किलोमीटर दूर है।दक्षिणेश्वर मंदिर का निर्माण सन 1847 में प्रारम्भ हुआ था। जान बाजार की महारानी रासमणि ने स्वप्न देखा था, जिसके अनुसार माँ काली ने उन्हें निर्देश दिया कि मंदिर का निर्माण किया जाए। इस भव्य मंदिर में माँ की मूर्ति श्रद्धापूर्वक स्थापित की गई। सन 1855 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। यह मंदिर 25 एकड़ क्षेत्र में स्थित है।
दीदी के निर्देशानुसार परिवहनमंत्री मदन मित्र ने खुद दक्षिणेश्वर जाकर जेटी के लिए विवेकानंद सेतु के नीचे स्थान चुना है ,जहां जोटी का जल्द से जल्द निर्माण होगा। जो स्थान चुना गया है,वह दक्षिणेश्वर कालीबाड़ी से गंगाघाट को जोड़ने वाली सीढ़ियों के एकदम करीब है।
लंच से उतरते ही सीधे मंदिर के द्वार पहुंच जायेंगे श्रद्धालु ,ऐसा इंतजाम किया जा रहा है।सेतु से सीढ़ी द्वारा उतरकर भी लोग लांच सेवा का लाब उठा सकेंगे।प्रस्तावित जेटी के एकदम पास है कालीबाड़ी का नहबतखाना।
पंचवटी
दक्षिणेश्वर में दर्शन के बाद लोग अब छोटी नावों से बेलुड़ जाते हैं या बेलुड़ से नावों से दक्षिणेश्वर आते हैं,यह सिलसिला बंद होने जा रहा है।
पिछले दिनों आंधी पानी में दक्षिमेश्वर कालीबाड़ी परिसर में क्षतिग्रस्त पंचवटी के संरक्षण का भी इंतजाम किया जा रहा है।
कमल के फूल जिसकी हजार पंखुड़ियाँ
दक्षिणेश्वर मंदिर देवी माँ काली के लिए ही बनाया गया है। दक्षिणेश्वर माँ काली का मुख्य मंदिर है। भीतरी भाग में चाँदी से बनाए गए कमल के फूल जिसकी हजार पंखुड़ियाँ हैं, पर माँ काली शस्त्रों सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई हैं। काली माँ का मंदिर नवरत्न की तरह निर्मित है और यह 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊँचा है।
विशेषण आकर्षण यह है कि इस मंदिर के पास पवित्र गंगा नदी जो कि बंगाल में हुगली नदी के नाम से जानी जाती है, बहती है। इस मंदिर में 12 गुंबद हैं। यह मंदिर हरे-भरे, मैदान पर स्थित है। इस विशाल मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के बारह मंदिर स्थापित किए गए हैं।
माँ काली का मंदिर विशाल इमारत के रूप में चबूतरे पर स्थित है। इसमें सीढि़यों के माध्यम से प्रवेश कर सकते हैं। दक्षिण की ओर स्थित यह मंदिर तीन मंजिला है। ऊपर की दो मंजिलों पर नौ गुंबद समान रूप से फैले हुए हैं। गुंबदों की छत पर सुन्दर आकृतियाँ बनाई गई हैं। मंदिर के भीतरी स्थल पर दक्षिणा माँ काली, भगवान शिव पर खड़ी हुई हैं। देवी की प्रतिमा जिस स्थान पर रखी गई है उसी पवित्र स्थल के आसपास भक्त बैठे रहते हैं तथा आराधना करते हैं।
रामकृष्ण परमहंस
प्रसिद्ध विचारक रामकृष्ण परमहंस ने माँ काली के मंदिर में देवी की आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त की थी तथा उन्होंने इसी स्थल पर बैठ कर धर्म-एकता के लिए प्रवचन दिए थे। रामकृष्ण इस मंदिर के पुजारी थे तथा मंदिर में ही रहते थे। उनके कक्ष के द्वार हमेशा दर्शनार्थियों के लिए खुला रहते थे।
रामकृष्ण परमहंस का जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में कामारपुकुर नामक गांव के एक गरीब धर्मनिष्ठ परिवार में 18 फरवरी 1836 को हुआ था। उनके बचपन का नाम गदाधर था। उनके पिता का नाम खुदीराम चट्टोपाध्याय था। जब परमहंस सात वर्ष के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया।
सत्रह वर्ष की अवस्था में अपना घर-बार त्याग कर वह कलकत्ता चले आए तथा झामपुकुर में अपने बड़े भाई के साथ रहने लगे। कुछ दिनों बाद भाई के स्थान पर रानी रासमणि के दक्षिणेश्वर मंदिर में वह पुजारी नियुक्त हुए। यहीं उन्होंने मां महाकाली के चरणों में अपने को उत्सर्ग कर दिया।
परमहंसजी का जीवन द्वैतवादी पूजा के स्तर से क्रमबद्ध आध्यात्मिक अनुभवों द्वारा निरपेक्षवाद की ऊंचाई तक निर्भीक एवं सफल उत्कर्ष के रूप में पहुंचा हुआ था। उन्होंने प्रयोग करके अपने जीवन काल में ही देखा कि उस परमोच्च सत्य तक पहुंचने के लिए आध्यात्मिक विचार- द्वैतवाद, संशोधित अद्वैतवाद एवं निरपेक्ष अद्वैतवाद, ये तीनों महान श्रेणियां मार्ग की अवस्थाएं थीं। वह एक दूसरे की विरोधी नहीं, बल्कि यदि एक को दूसरे में जोड़ दिया जाए तो वे एक दूसरे की पूरक हो जाती थीं।
मां शारदा
उन दिनों बंगाल में बाल विवाह की प्रथा थी। उनका विवाह भी बचपन में हो गया था। उनकी पत्नी शारदामणि जब दक्षिणेश्वर आईं तब गदाधर वीतरागी हो चुके थे। परमहंस अपनी पत्नी शारदामणि में भी महाकाली का रूप देखने लगे थे।
1885 के मध्य में उन्हें गले के कष्ट की शिकायत हुई। शीघ्र ही इसने गंभीर रूप धारण किया जिससे वह मुक्त न हो सके। 16 अगस्त 1886 को उन्होंने महाप्रस्थान किया।
अपने शिष्यों को सेवा की शिक्षा जो उन्होंने दी थी वही आज रामकृष्ण मिशन के रूप में दुनिया भर में मूर्त रूप में है। उनके ज्ञान दीप को स्वामी विवेकानंद ने संसार में फैलाया था।
दक्षिणेश्वर में मोदी
मालूम हो कि कोलकाता के मशहूर काली मंदिर दक्षिणेश्वरी काली माता का दर्शन कर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कोलकाता की यात्रा शुरू की। वह सुबह साढ़े सात बजे दक्षिणेश्वर काली मंदिर पहुंचे, जहां पूजा अर्चना के बाद बेलुड़ मठ आए।
बेलूर मठ के दौरे के बाद मोदी ने संवाददाताओं से बातचीत में उम्मीद जाहिर की कि देश के नौजवान स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरित होंगे और उनका पालन करते हुए देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाकर जगतगुरु बनाएंगे। इस मौके पर पुराने दिनों को याद करते हुए मोदी ने कहा कि किशोरावस्था के दिनों में स्वामी विवेकानंद द्वारा आरंभ इस मठ में मैं आता रहा हूं और स्वामी आत्मस्थानंद से मुझे काफी प्यार और स्नेह मिला है, हालांकि, मुख्यमंत्री बनने के बाद मठ में मैं पहली बार आया हूं।
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