हवा हवाई है माकपा की सांगठनिक कवायद
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
जनाधार बढ़ाने के लिए सत्तादल तृणमूल कांग्रेस कैडर तंत्र बनाने की कोशिश में है और छात्रों को होल टाइमर बनाया जा रहा है। वहीं कैडऱआधार के लिए दुनियाभर में मशहूर माकपा का संगठन बिखरता जा रहा है । माकपा के लिए संकट दोहरा है। खोये हुए जनाधार की वापसी और पार्टी के बिखरते संगठन को दुबारा बेहतर नहीं तो कम से कम पहले जैसा बनाना। इसके साथ ही माकपा की ओर से वृहत्तर वाममोर्चा बनाने की कसरत की जा रही है।इसी सिलसिले में अगले 6,7 और 8 सितंबर को माकपा राज्य कमिटी की वर्धित बैठक बुलायी गयी है।इस बैठक में राज्य कमेटी के सदस्यों के अलावा जिला सचिव मंडलों के तमाम सदस्य और पार्टी से जुड़े सभी जनसंगठनों के अध्यक्षों और सचिवों को आमंत्रित किया गया है। वृहत्तर वाममोर्चा बनाने के प्रयास को हालांकि झटका लगा है क्योंकि इस सिलसिले में हुई बैठक में दा परिचित नक्सल चेहरे असीम चट्टोपाध्याय और संतोष रामा ही हाजिर हुए। जिनका कोई जनाधार है या नहीं, किसी को नहीं मालूम। एसयूसी और माले के नेता नहीं आये।
माकपा की ओर से सितंबर में बुलायी गयी बैठक आगे की रणनीति नीति तय करने के लिए खास होगी।8 को यह बैठक खत्म होनी है और 9 सितंबर से 15 सितंबर तक महंगाई के खिलाफ राज्यभर में आंदोलन करने का ैलान कर दिया है वाममोर्चा ने।
भारतीय किसान सभा के उपाध्यक्ष बनाये गये हैं माकपा के कृषक नेता रज्जाक अली मोल्ला जबकि उलबेड़िया के पूर्व माकपा सांसद हन्नान मोल्ला सचिव बनाये गये हैं।इन दोनों की युगलबंदी सेबंगाल में ही नहीं, बल्कि देश भर में किसान आंदोलन तेज करने की माकपा की रणनीति थी। सुदीप्त गुहा की मौत पर जो छात्र आंदोलन शुरु हुआ, दिल्ली में ममता बनर्जी और अमित मित्र के साथ एसएफआई नेताओं और कार्यकर्ताओं की बदसलूकी के बाद यकायक थम गया।फिर पार्टी पंचायत चुनावों में ुलझ गयी लेकिन पूरा जोर लगाने के बावजूद तृणमूल की एकतरफा जीत नहीं रोक पायी। पंचायत चुनाव खत्म होते न होते नवनिर्वाचित किसानसभा के उपाध्यक्ष रज्जाक अली मोल्ला ने पार्टी में अल्पसंख्यकों,अनुसूचित जातियों और जनजातियों के नेताओं को नेतृत्व में लानेकी मांग करते हुए पार्टी नेतृत्व पर जाति वर्चस्व का आरोप भी जड़ दिया।
अब बताया जा रहा है कि पार्टी के संगठन को नये सिरे से रचा जायेगा। विभिन्न स्तर पर नेतृत्व परिवर्तन होंगे। लेकिन इसका आधार मोल्ला के मुताबिक विभिन्न समुदायों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व देने के बजाय पंचायत चुनाव में नेताओं और कार्यकर्ताओं की भूमिका को बनाया गया है। जाहिर है कि पार्टी की बुनियादी सरचना के चरित्र में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मीद नहीं है, जिसके बिना मोल्ला के मुताबिक माकपा की वापसी एकदम असंभव है।
राज्य कमिटी की बैठक से पहले ही पार्टी को सड़कों पर उतरना है। अब भी माकपाई नेतृत्व ही वाममोर्चा का ्सली चेहरा है।मोर्चा चेयरमैन विमान बोस माकपा के सर्वशक्तिमान राज्य सचिव भी हैं। वाममर्चा चेयरमैन की हैसियत से बोस ने 31 अगस्त को खाद्य शहीद दिवस मनाने के सात पहली सितंबर को साम्राज्यवादविरोधी जुलूस के आयोजन की घोषणा की है।सीरिया के खिलाफ अमेरिका की युद्ध तैयारियों के मद्देनजर फिर गहराते तेल युद्ध के साये के बीच माकपा को इस जुलूस के जरिये ही अपनी साम्राज्यवाद विरोधी अमेरिकाविरोधी छवि को पेश करना है,जिसके बलबूते 35 सालों तक अल्पसंख्यक वोट बैंक के बिना शर्त समर्थन से सत्ता में रहा वाममोर्चा। दिक्कत यह है कि यह वोट बैंक अब दीदी के पाले में स्थानांतरित हो गया है और दीदी उसे खोने की कोई गलती कर ही नहीं रही है।
अभी गोरखालैंड मुद्दा गरमाया हुआ है और अलगाववादी आंदोलन के खिलाफ मुख्यमंत्री ने कड़ा रुख अख्तियार किया है। माकपा इस आंदोलन में कहीं भी हस्तक्षेप करने की हालत में नहीं है। पहाड़ और उत्तरबंगाल में उसका सागठनिक ढांचा चरमरा गया है। उत्तर बंगाल में पार्टी का चेहरा अशोक भट्टाचार्य भी अपनी ोर से कोई पहल करने में नाकाम है। इस आंदोलन के सिलसिले में अच्छा बुरा जो भी हो रहा है, उसके पीछे दीदी हैं और कोई नहीं। इस हालत में लाचार माकपा राज्यसचिव ने गोरखालैड मसले को सुलझाने के लिए राज्य सरकार की ओर से बातचीत का दरवाजा खोलने की ्पील कर दी है। लेकिन इस संकट से निपटनेके लिए किसी सांगठनिक पहल करने से लगातार चूक रही है माकपा। जबकि मौजूदा हालात के लिए दीदी माकपा को ही जिम्मेदार मान रही है।सांगठनिक दुर्गति की वजह से दीदी को कोई चुनौती देने की हालत में भी नही है माकपा।
कामरेड ज्योति बसु और कामरेड सुभाष चक्रवर्ती के निधन के बाद पार्टी नेतृत्व संकट में है। सूर्यकांत मिश्र जननेता बतौर अपने को साबित नहीं कर पाये हैं तो गौतम देव का असर टीवी कार्यक्रमों में ही दिखता है।पार्टी अभी जनमानस में खारिज बुद्धदेव भट्टाचार्य को ही सामने ला रही है, जिनकी साख पहले से खराब है। माकपा का कोई भी नेता ऐसा नहीं है जो सीधे सड़कों पर उतरकर दीदी कामुकाबला कर सकें। लेकिन मोल्ला की मांग के मुताबिक नेतृत्व और संगठन में बड़ा कोई परिवर्तन के लिए माकपा अब भी तैयार नहीं है।
वर्धित राज्य कमिटी की बैठक मामूली मरम्मत की कवायदहोने जा रही है,इसकी पूरी आशंका है। क्योंकि सैद्धांतिक तौर पर सांगठनिक परिवर्तन की आवश्यकता मान लेने के बावजूद पार्टी की वर्चस्ववादी शक्तियां ऐसा कतई होने देने को तैयार नहीं है।
कुल मिलाकर माकपा की संगठनिक कवायद हवा हवाई है और कुछ नहीं।
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