तीन साल के अंतराल के बाद फिर दूरदर्शन पर विद्रोही कवि नजरुल के गीत
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
दूरदर्शन की ओर से प्रतिबंध नहीं था।लेकिन काजी नजरुल इस्लाम के गीतों के रायल्टी विवाद की वजह से दूरदर्शन में विद्रोही कवि नजरुल के गीतों का गायन तीन साल से बंद था।जैसे कि रवींद्र संगीत बंगाल की सांस्कृतिक पहचान है, तो इसी संस्कृति का अविच्छेद्य अंग है नजरुल संगीत। अब यह मामला सुलझ गया है। काजी के परिजनों की ओर से कवि की पुण्य तिथि पर नजरुल संगीत के प्रसारण को हरी झंडी दे दी गयी है।
कोलकाता ही नहीं, शांति निकेतन, जलपाईगुड़ी, शिलचर और आगरतला में नजरुल संगीत अवरुद्ध रहा है। अब सारे दरवाजे खोल दिये गये हैं। सर्वत्र गूंजेगा नजरुल संगीत। जैसे सर्वत्र गूंजता है रवींद्र संगीत। कोलकाता दूरदर्सन केंद्र में इसी सहमति के आधार पर नजरुल संगीत की रिकार्डिंग शुरु हो गयी है। निजी चैनलों पर नजरुल संगीत अबाध होने के बावजूद, दूरदर्शन से प्रसारण न होने से नजरुल प्रेमी जनता के साथ साथ कलाकारों को शिकायतें थीं।अब ये शिकायतें खत्म हुई।
पाच साल पहले काजी नजरुल इस्लाम के कानूनी वारिस कल्याणी काजी और खिलखिल काजी ने दूरदर्शन अधिकारियों को पत्र लिखकर मांग की कि चूंकि आकाशवाणी नजरुल के गीतों पर रायल्टी देती है, इसलिए दूरदर्शन को भी रायल्टी का भुगतान करना होगा।रायल्टी नही मिली तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाने कीचेतावनी भी दे दी। इसपर 2010 में दूरदर्शन से नजरुल संगीत का प्रसारण बंद हो गया।
इस सिलसिले में कवि की पुत्रवधु कल्याणी काजी का कहना है कि सभी परिजनों की सहमति से यह कदम उठाया गया था।उन्होंने कहा कि इस रायल्टी की उन्हें सख्त जरुरत थी क्योंकि सव्यसाची और अनिरुद्ध के असामयिक निधन की वजह से दोनों परिवार गहरे आर्थिक संकट में थे।इसी लिए कापीराइट कानून के तहत ही नियमानुसार दूरदर्सन से रायल्टी की मांगकी गयी।
प्रसार भारती के नये प्रबंधन ने इस विवाद के निपटारे के लिए पहल की तो मामला सुलझ गया।दूरदर्शन भी आकासवाणी की दर से हर नजरुल गीत पर रायल्टी देगा, परिजनों को यह सूचना मिलते ही एक झटके से ती साल केअ अंतराल का पटाक्षेप हो गया।
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