BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Tuesday, August 27, 2013

दार्जिलिंग चाय पी गया गोरखालैंड आंदोलन। निर्यात ठप और अब सारे चायबागानों के बंद होने की आशंका।

दार्जिलिंग चाय पी गया गोरखालैंड आंदोलन। निर्यात ठप और अब सारे चायबागानों के बंद होने की आशंका।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बंगाल में चाय बागानों में मृत्यु जुलूस का सिलसिला अभी थमा भी नहीं है। एक के बाद एक चाय बागान बंद होते जा रहे हैं।कभी इन्हीं चायबागानों में सक्रियमजदूर आंदोलन के कार्यकर्ता व्यापक पैमाने पर गोरखालैंड अलग राज्य का पताका उठाये हुए हैं।पृथक राज्य का मुद्दा राजनीतिक है,जिसे केंद्र,राज्य सरकार और आंदोलनकारियों की त्रिपकक्षीय वार्ता में ही सुलझाया जा सकता है।


अस्सी के दशक में जब सुबास घीसिंग के नेतृत्व में शुरु गोरखा लैंड आंदोलन की वजह से भारतीय पर्यटन मानचित्र में दार्जिंलिंग की शीर्ष वरीयता ख्तम हो गयी, तब से लेकर अबतक दार्जिलिंग देश के पर्यटन कारोबार में पिछड़ता ही जा रहा है।अब ताजा आंदोलन ने चाय का निर्यात भी बंद कर दिया है।देर सवेर अब सारे के सारे चायबागानों में काम बंद हो जाने की आंशंका है।उत्पादन हो तो भी क्या फायदा चायबाजार तक पहुंचाने के सारे रास्ते बंद कर दिये गये हैं।


पर्यटन ठप और चाय बागान बंद, बाकी क्या बचेगा पहाड़ों में जिसे लेकर नया राज्य का गठन करना चाहते हैं गोरखालैंड के दीवाने?


यूरोप में जहां ब्रिटिश हुकूमत से दार्जिलिंग चाय की लत लगी हुई है,अब सही मायने में टी ब्रेक हैं। अलगर राज्य बने या न बने,दार्जिलिंग,पहाड़ और चायबागानों की अर्थव्वस्ता पर राजनीति जो घाव कर रही है,  वे अश्वत्तामा के सदाबहार जख्म बनकर उभर रहे हैं। न दार्जिंलिंग और न बाकी बंगाल के इस बेइंतहा नुकसान से उबरने के कोई आसार है।


आंदोलन चले लेकिन कारोबार बाधित न हो,गोरखा जनसमुदाय के लिए यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प था। लेकिन आंदोलन चलाने के लिए दार्जिलिंग चाय ही पूरी की पूरी पी गये आंदोलनकारी और बाहर के लोगों के लिे दार्जिंलिंग चाय अब भूली बिसरी यादे हैं।हालत यह है कि हालात सुधरने के बावजूद चाय के कारोबार में जोखिम उठाने की कोई हिम्मत शायद ही करें।ताजा आंदोलन की वजह से करीब 7.35 लाख किलो चाय उत्पादन से हाथ धोना पड़ा है।


दार्जिलिंग टी एसोसिएशन के चेयरमैन एस एस बगारिया के मुताबिक गोरखालैंड आंदोलन की वजह से कारोबार ही ठप नहीं हो रहा है बल्कि अब चाय बागानों क चालू रखना भी दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है।उन्होंने कहा कि चाय कारोबार फिलहाल पूरी तरह ठप है।कारखानों को चालू रखने के लिए कोयला और ईंधन की आपूर्ति आर्थिक नाकेबंदी की वजह से पूरीतरह बंद हो चुकी है। न माल तैयार किया जा सकता है और न कहीं भेजा जा सकता है।



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