BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Tuesday, April 30, 2013

नागरिकों को म्युटेशन में उलझाकर राज्यभर में नगर निगम और पालिकाओं को चूना लगा रहे हैं कबूतरखानों के मालिक और दलाल गिरोह!

नागरिकों को म्युटेशन में उलझाकर राज्यभर में नगर निगम और पालिकाओं को चूना लगा रहे हैं कबूतरखानों के मालिक और दलाल गिरोह!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


पश्चिम बंगाल के शहरी इलाकों में कोलकाता और हावड़ा नगरनिगम, चंदननगर, सिलीगुड़ी, मालदह, आसनसोल और दुर्गापुर जैसे बड़े शहरों, जिलासहरों, नगरपालिकाओं और कस्पौं नें निगम और पालिका कार्यालयों में करोड़ों लोग इस लिए मारे मारे फिर रहे हैं  कि उनकी संपत्ति पर उनकी मिल्कियत साबित करने का आधार ही नहीं है क्योकि जमीन और मकान का म्युटेशन वर्षों से लालफीताशाही के कारण अटका हुआ  है। एक मेज से दूसरी मेज तक फाइलें सरकने में पुष्पांजलि देते रहने के बावजूद वर्षों लग जाते हैं।स्थानीय निकायों में काबिज पार्टी का रंग बदलता रहता है लेकिन व्यवस्था हरगिज नहीं बदलती। कतारबद्ध अभिशप्त लोगों के लिए अपनी किस्मत को कोसने के सिवाय कुछ हाथ नहीं आता। राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद बी इस मंजर में कोई बदलाव अभी नहीं आया।​

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​मसलन कोलकाता नगरनिगम में तृणमूल कांग्रेस का राज है, पर इंतजामात वही वाममोरचे जमाने का। दूसरी ओर, हावड़ा नगरनिगम में तो किसी भी कोण से कुछ भी नहीं बदला है। व्यवस्था चट्टानी है, जिससे माथा फोड़ लेने के अलावा कुछ हासिल नहीं होता।अकेले कोलकाता महानगर में ही म्युटेशन के लिए एक लाख से ज्यादा अर्जियां लंबित हैं। हावड़ा में यह संख्या बहुत कम होगी, ऐसा नहीं है। इसके साथ सिलिगुड़ी, आसनसोल, दुर्गापुर और मालदह के अलावा बाकी शहरों और कस्बों को जोड़ लीजिये तो पता चलेगा कि कितने लोग मारे मारे घूम रहे हैं। अभी तेरह पालिकाओं के कार्यकाल खत्म हो रहे हैं और निकट भविष्य में वहां चुनाव असंभव हैं, वहां जिनका मामला लटका है, वे तो अब त्रिशंकु की तरह लटकते ही रहेंगे।


यह नुकसान सिर्फ नागरिकों का हो रहा है, ऐसा भी नहीं है। म्युटेशन न हुा तो संबंधित संपत्ति से टैक्स वसूला नहीं जा सकता। जमीन और मकान के म्युटेशन के बिना बतौर करदाता किसी को पंजीकृत नहीं किया जा सकता और न ही उससे टैक्सस वसूला जा सकता है। फ्री में उन्हें नागरिक सेवाओं के उपभोग से रोका भी नहीं जा सकता।साफ जाहिर है कि संबंधित महकमा के लोग आम नागरिकों को ही तबाह नहीं कर रहे हैं बल्कि नगरनिगमों और  पालिकाओं को भी चूना लगा रहे हैं। राजनीति में उलझे हुए मेयरों और पालिकाअध्यक्षों को इसकी कोई परवाह नहीं होती। तो अपना अपनी कमाई के पिराक में कारिंदे मामला लटकाने के खेल में  शतरंज खिलाड़ियों को भी मात देने लगे हैं।सबसे जटिल समस्या है कि एक ही पजद पर एक ही महकमे में बरसों से जमे हुए इस तरह के कर्मचारियों ने नगरनिगम और पालिका दफ्तरों को कबूतरखाना में तब्दील कर दिया है। इन कबूतरखानों में उनकी मर्जी के आगे न मेयर की चलती है और न पालिका अध्यक्ष की।पार्षद और बोरो चेयरमैन किस खेत की मूली हैं। वे भी अक्सर अपना जोर लगाकर हारकर मैदान छोड़कर भाग खड़े होते हैं। मुश्किल तो आम जनता की है, मैदान में डटे होने के बावजूद वे लड़ भी नहीं सकते।कोलकाता नगरनिगम में कहने को वन टाइम म्युटेशन विंडो खुला हुआ है पर इससे भी साल साल भर कम से कम बटकते रहने के अंजाम से बचना मुश्किल है। वे बजड़े ही किस्मत वाले हैं जो दो महीने तीन महीने में किसी तरह का जुगाड़ बिटाकर म्युटेशन करा लेते हैं।लंबित पड़ी अर्जियों की भारी संख्या हालत बताने के लिए काफी है।


इससे राज्यभर में नगरनिगमों और पालिकाओं के आसपास दलालों का गिरोह बड़े पैमाने पर सक्रिय हो गया है जो दिनदहाड़े लोगों की जेब उनकी ही मर्जी से काट रहे हैं। उनकी मिलीभगत से निगमों और पालिकाओं के संबंधित कर्मचारी बैठे बैठे चांदी काट रहे हैं। शिकायत की कोई जगह नहीं है। शिकायत करो तो काम और लटक जाने का खतरा है। बना बनाया काम बिगड़ने काखतरा है। टैक्स में जो घाटा हो रहा है , सो हो ही रहा है, मालिकाना हस्तांतरण की हालत में म्युटेशन न होने के कारण पुरानी इमारतों की मरम्मत भी नहीं हो पाती। जिसी वजह से आये दिन दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं।


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