पलाश विश्वास
मित्रों,मीडिया और सोशल मीडिया दोनों पर हिंदुत्ववादी ताकतों का ही वर्चस्व है,यह आप हम सभी जानते हैं।हम लोग यह भी जानते हैं कि हिंदू साम्राज्यवाद और कारपोरेट साम्राज्यवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों का मुख्य हथियार मस्तिष्क नियंत्रण है।
मस्तिष्क नियंत्रण का खेल इतना बारीक है कि बहुसंख्य बहिष्कृत समाज हिंदूसाम्राज्यवाद की पैदल सेना में तब्तदील है।
हम सभी जानते हैं कि ब्राह्मण जाति नहीं वर्ण है और जाति सिर्फ शूद्रों ौर अस्पृश्यों में है। यह नस्ली भेदभाव है। देश के आदिवासियों के साथ साथ हिमालयी क्षेत्र, संपूर्ण पूर्वोत्तर, आदिवासी बहुल मध्यभारत और दक्षिण भारत अलगाव और दमन का शिकार है।
बहुजन आंदोलन इस भौगोलिक व नस्ली अलगाव के शिकार लोगों को अपने साथ जोड़ने में असमर्थ है। बल्कि संतों, महीपुरुषों का जो समता और सामाजिक न्याय का आंदोलन गौतम बुद्ध के समय से चल रहा है, भारत विभाजन के बाद पूना समझौते की वजह से वह सत्ता में भागेदारी तक सीमाबद्ध हो गया।
अंबेडकर के घोषित अनुयायियों को यह होश ही नहीं रहा कि बाबासाहेब अंबेडकर के जिस संविधान पर उन्हें बेहद गर्व है, उसे लागू ही नहीं किया गया। संविधान के मौलिक अधिकार देश के सभी नागरिकों के लिए समान रुप से लागू नहीं है।
इस पर तुर्रा यह कि बाबासाहेब के संविधान की धज्जियां उड़ाकर कारपोरेट हिंदुत्व ब्राह्मणवादी वर्चस्व आधारित जनसंहारअभियान के तहत जायनवादी कारपोरेट नीति निर्धारण के तहत देश की आधी आबादी को नागरिकता, नागरिक और मानव अधिकारों से वंचित करने के लिए बायोमैट्रिक नागरिकता का प्रावधान किया गया है। कारपोरेट गैरकानूनी आधार कार्ड योजना के कारपोरेट कर्णधार नंदन निलेकणि जब घोषणा करते हैं कि 2014 तक हममें से साठ करोड़ को जादू की छड़ी बतौर आधार कार्ड दे दिया जायेगा, तब हम नागरिकता वंचित बाकी साठ करोड़ के बारे में नहीं सोचते , जो निश्चय ही बहुजन समाज से हैं और जल जंगल जमीन नागरिकता और नागरिक मानवाधिकार से उन्हे बेदखल करने के लिए ही हिंदुत्व का यह उन्माद और दूसरे चरण के आर्थिक सुधार हैं।
हमें ख्याल ही नहीं है कि भारतीय संविधान में आरक्षण के अलावा मौलिक अधिकार, प्राकृतिक संसाधनों और उद्योगों पर जनता के हक हकूक के लिए धारा 39 बी 39 सी जैसे प्रवधान हैं।
हम इससे कतई चिंतित नहीं हैं कि संविधान की पांचवी छठीं अनुसूचियां लागू न होने कारण पूरा आदिवासी समाज, जिससे हमारे रक्त संबंध हैं, निरंतर बेदखली, अलगाव और दमन के शिकार है।
इसीकारण राष्ट्र ने उनके विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया है।
हम यह नहीं समझते कि अस्पृश्यता, अलगाव और बहिष्कार के पीछे शुद्धतावादी नस्ली वर्चस्ववादी भेदभाव है, जिस वजह से पूर्वी बंगाल के शरणार्थी , नेपाल और बंगाल के गोरखा इलाकों के लोग, पूरे हिमालय व पूर्वोत्तर के लोग और दक्षिण भारत के हिंदू हिंदू होकर भी आर्यरक्त के वाहक न होने के कारण हिंदुत्व में शामिल नहीं है। हिंदू साम्राज्यवाद को इसीलिए उनके विरुद्ध युद्ध से परहेज नहीं है। नेपाल में इसीलिए अस्थिरता और राजतंत्र की वापसी जायनवादी हिंदुत्व का एजंडा है। इसीलिए बांग्लादेश में रह गये हिंदुओं की जान माल जोखिम में डालकर नये सिरे से राम मंदिर अभियान है।
बहुजन समाज बाबासाहेब की विचारधारा, आंदोलन की बात तो करता है , पर यह सबकुछ सत्ता के खेल में हिंदू साम्राज्यवाद में ही निष्णात हो जाता है। हम आर्थिक संपन्नता के बाबासाहेब के विचारों और जाति उन्मूलन के उनके एजंडे कीकतई परवाह नहीं करते।
ऐसी हालत में उत्पादन संबंधों के आलोक में हिंदुत्ववादी ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नस्ली भेदभाव और वर्ण और जाति के अंतर को नजरअंदाज करके बाबासाहेब को और उनकी विचारधारा को , समूचे बहुजन इतिहास को नजरअंदाज करने का एक वैज्ञानिक अभियान चल रहा है, जिसके मुकाबले में बहुजनसमाज खड़ा तो हो नहीं सकता, पर उसके तमाम चिंतक, नेता और बुद्धिजीवी मूक, निरुत्तर या फिर आत्मसमर्पणी मुद्रा में है।
पिछले दिनों फेसबुक पर यह जानकारी योजनाबद्ध तरीके से दी जाती रही कि बाबासाहेब की मृत्यु के बारे में भारत सरकार क कोई जानकारी नहीं है।
यह हकीकत भी है। बाबासाहेब की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु की कोई जांच पड़ताल नहीं हुई और पूना समझौते के तहत चुने गये बहुजनसमाज के तमाम जनप्रतिनिधि अब तक चुप रहे हैं।
इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अब सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए फेसबुक पर यह प्रचारित किया जा रहा है कि भारत सरकार को नहीं मालूम कि बाबासाहेब संविधान के निर्माता है। इस खबर पर उल्लास और आजादी के जश्नका माहौल बनाने की भी कोशिश हुई।
लेकिन सही परिप्रेक्ष्य में सोचे तो संविधानसभा में बहुजन समाज के प्रतिनिधि और आवाज बाबासाहेब और जयपाल मुंडा के अलावा कितने थे?
उनका बहुमत होता तो बाबासाहेब को ओबीसी के अधिकारों के सवाल पर , हिंदूकोड बिल लागू करने पर, भूमि सुधार संबंधी प्रस्ताव लागू करने में भी निश्चित ही सफलता मिल जाती।पर उन्होंने अपनी अद्वितीय मेधा से इस संविधान में बहुजन समाज और तमाम नागरिकों के लिए जो लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष हकहकूक हासिल किये, यही उनकी उपलब्धि है। उन्हें भारत सरकार संविधान निर्माता कहें या न कहें, इससे फर्क नहीं पड़ता।
पर इस पर फेसबुक में बेहद तीखी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं लोग, जो विशुद्ध गालीगलौज है।
जब हम ही, बहुजन समाज ही बाबासाहेब के संविधान को लागू करने के लिए आजतक कोई लड़ाई नहीं लड़ी और न उनके जाति उन्मूलन के एजंडा के मुताबिक आंदोलन चलाने की कोशिश की, न उनकी विचारधारी की कोई परवाह की तो बाबासाहेब के पक्ष में इस तरह गाली गलौज पर उतारु होने से हमें कौन सा मकसद हासिल हो जायेगा।
हम जो कर सकते हैं, सही तथ्यों को सामने रखें। बहुजनसमाज को जोड़ने के लिए सकारात्मक पहल करें। दलीले दें।संवाद में शामिल हों और अनुत्तरित प्रश्नों का जवाब दें। बहुजन समाज के समक्ष और देसकी निनानब्वे फीसद जनता के सामने मुंह बांएं खड़ी अस्तित्वसंकट की चुनौती का मुकाबला करें। सत्तावर्ग के अश्वमेध अभियान से अपने लोगों के बचाव के लिए आत्मरक्षा और प्रतिरोध के उपाय खोजें। बहस में संयम की जरुरत है।
गुस्सा जायज है, पर गुस्से को आंदोलन और ऊर्जा में बदलने की तमीज भी होनी चाहिए। अब करोड़ों नेट य़ुजर बहुजन समाज की ओर से हैं, दुनियाभर में जो प्रतिरोध आंदोलन खड़ा कर रहे हैं।हम क्या ऐसा नहीं कर सकते
हम फेसबुक पर अंबेडकर को खारिज करने के उपक्रम संबंधी तस्वीर इस टिप्पणी के साथ दे रहे हैं और साथ ही नमूना बतौर आदरणीय दारापुरी जी की एक टिप्पणी भी।
गाली गलौज के बजाय ऐसी टिप्पणियां हमारे लिए ज्यादा उपयोगी हैं, सिर्फ यह बताने के लिए।
आप भी कोशिश करके देखें।
जब हम लोग लिख सकते हैं तो आप क्यों नहीं?
अपनी क्षमता के मुताबिक संयमित बर्ताव करेंगे तभी कामयाबी और आजादी मिल सकती है।
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যত দোষ জনগণের ? "আমরা কি জনগণকে সারদায় টাকা রাখতে বলেছিলাম"? অথবা জনগণ কেন না জেনে সারদায় টাকা রাখতে গেল"? টাকা রাখার আগে ক্রশ চেক করে নি কেন"? কিন্তু ঘুরে যখন আপনি প্রশ্ন করবেন,সারদা কি করে সরকারী বরাত পায়? সরকারের নামি দামী মন্ত্রীরা (মায় মুখ্যমন্ত্রী )কি করে সারদার হয়ে প্রাকাশ্যে প্রাচার করে? তখন শিরা ফুলিয়ে আত্ম পক্ষ সমর্থনের সুর শোনা যায়,"আমি আগে থেকে কি করে বুঝবো বলুন,একটা মানুষ সমাজ সেবা করতে চাইলে তাকে তো আমি বারন করতে পারিনা"। এই ধরনের দায়িত্বজ্ঞানহীন পরস্পর বিরোধী এই ধরনের দায়িত্বজ্ঞানহীন পরস্পর বিরোধী ছাগুলে ম্যাৎকার আর কত শুনবেন বলুন ? বাংলার নিরীহ মানুষ ক্রস চেক জানেনা। আমরা জানি তিনি ক্রস চেক করেই এই জালিয়াতদের সঙ্গ দিয়েছেন। যে ভাবে মমতা ব্যানার্জীর নেতৃত্বে তৃণমূল জনগণের টাকা লুট করে আবার জনগণকেই দোষী সাব্যস্ত করার চেষ্টা করছে সেটা রীতিমত জালিয়াতি। চিটিংবাজির আর এক অধ্যায়। বোঝা যাচ্ছে জনগণের টাকা ফেরত দেবার জন্য তারা একেবারেই উৎসাহী নয়। বরং এই সুযোগে সুদীপ্ত সেনের বিপুল পরিমাণ টাকা কি করে আত্মসাৎ করা যায় তারই হিসেব চলছে। আবার অন্য দিকে রাহুল সিনহা যে ভাবে সারদার সাথে জড়িত এজেন্টদের তৃণমূল কর্মী বলে চিহ্নিত করছেন সেটাও অনৈতিক। এই কদাকার কর্দম থেকে বেরিয়ে আসা বাংলার কাছে একটা বড় চ্যালেঞ্জ। রাজনীতির রং ভুলে এই মুহূর্তে মানুষের পাশে দাড়ানোটাই এখন একমাত্র লক্ষ্য হওয়া উচিৎ। |
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