लानत है !
जगमोहन फुटेला
'अमर उजाला' में था मैं तो कभी अपनी जीप से जाता था, कभी रात में अख़बार के बंडलों वाली टैक्सी में लद कर भी लौटना पड़ता था.टैक्सी वाला रास्ते में हर चौकी, चुंगी और नाके पे एक एक अख़बार फेंकता हुआ चलता था. इस लिए नहीं कि अख़बार की टैक्सी भीरोक लेगा कोई. उसे दरअसल वापसी में बरेली की सवारियां भी लादनी होती थीं. कंपनी भी उसे बीस कापियां फालतू देती थी. येसुविधा का खेल था.
ट्रैफिक पोस्ट के अलावा भी नाके लगते हैं जगह जगह हर रात, हर प्रदेश में सड़कों पर. चालान किसी का नहीं कटता. जो न माने उसको चार घंटे रोक के रखा जाता है. कोई बोले तो गाली गुफ्तम से लेकर थपड़ा थपड़ी तक कुछ भी. ये धंधा बरसों से अनवरत चल रहाहै पूरे देश में. ये व्यवस्था है. कानून व्यवस्था.
नेता और पार्टियां (ज़ाहिर है अपने) लोगों के काम करती हैं. पंपों के परमिट, फिर ज़मीन, फिर उनसे सरकारी वाहनों के लिए तेल. उसमें भी कम भरने और ज्यादा का भुगतान लेने की गुंजायश. ऐसे ही स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी और इंडस्ट्री. चुनाव आने पे यही लोग'मदद' करते हैं, नोटों और वोटों से. माल अपना है. ज़रूरत के वक्त हाज़िर हो जाता है. किसी चोरी, डकैती, छापे का डर या खाते मेंटेनकरने का झंझट भी नहीं. ये राजनीति है.
कोई भी बड़ा प्रोजेक्ट आना हो तो बीस बंधन हैं. कायदे ऐसे हैं कि शर्तें नहीं फ़ार्म भरते भरते ही उम्र निकल जाए. उस प्रोजेक्ट में अगरपार्टनरशिप की हिस्सा पत्ती फिक्स हो जाए तो ज़मीन पांच की बजाय पचास या पांच सौ की बजाय हज़ार एकड़ भी मिल जाएगी. सारीपरमीशनें पंद्रह दिन में. ये विकास है.
सरकारों के पास एक सुविधा और विकल्प हमेशा रहता है कि सड़कों की सफाई से लेकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट और बिजली उत्पादन तक केकाम वो खुद करेगी या किसी ठेकेदार या कंपनी से कराएगी. 'सारी शर्तें स्वीकार्य होने पर' प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन, वहां तक रेल लिंकऔर ये सब करने के लिए उस ज़मीन से लोगों को भगाने तक का काम सरकार करेगी. कितनों और किन को नौकरी मिलेगी येसरकार तय करेगी. उजाड़ीकरण कैसे होगा, कंपनी तय करेगी. ये औद्योगीकरण है.
कितने उद्योग जस्ता और खनिज नदियों, नालों में बहा कर पानी में कैंसर के कारण पैदा करते रहेंगे इस पे कोई नियंत्रण नहीं है. कैंसरकी दस हज़ार वाली दवा सवा लाख में क्यों बिकेगी, इस पे कोई स्पष्टीकरण नहीं है. रोज़ देश में अरबों के वारे न्यारे होंगे. येउदारीकरण है.
कौन कब किस से बलात्कार कर के उस के गुप्तांगों में बजरी भरवा देगा इस की कहीं कोई सुनवाई नहीं है. ऐसे लोगों के पास राशन औरवोटर कार्ड भी नहीं होंगे. होंगे तो भी उन को कोई वोट नहीं डालने देगा. सत्ता के गठन में लाखों लोगों का कोई दखल नहीं होगा. येलोकतंत्र है.
सरबजीत भेजा पाकिस्तान जाकर रेकी के लिए या रास्ता भटक कर भूले से खुद चला गया. वो तेईस साल उधर रोज़ मरता, रोज़ रोता,पिटता और एक दिन मौत के मुंह में धकेल दिया जाएगा. देश की जनता त्राहि त्राहि कर उठेगी. आप चैन की नींद सोते रहोगे. आज तकहुई दोस्ती की कोशिशें नाकाम हो कर
युद्ध देर सबेर अवश्यंभावी हो जाने वाले नासूर में बदल जाएंगी.ये आप की कूटनीति है.
लेकिन यही शासन, यही संवेदनशीलता और यही राष्ट्रीयता है तो फिर हम सब पे लानत है !
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