विधर्मी और अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं तो संविधान से धर्मनिपेक्ष का पाखंड हटा दें
बंगाल के दलित मतुआ बहुल इलाके में मिशनरी स्कूल पर हमला और 74 साल की नन से बलात्कार
पलाश विश्वास
बंगाल सबसे बुरी खबर है आज की।बंगाल के नदिया जिले में एक मिशनरी स्कूल में रात के अंधेरे में मुखौचे लगाकर बदमाशों ने हमला बोला और वहां तीन और नन होने के बावजूद चुनकर स्कूल की अध्यक्षा 74 वर्षीया नन से सामीहिक बलात्कार किया।यूं बंगाल में स्त्री उत्पीड़न और बलात्कार सामूहिक बलात्कार की घटनाएं आम हैं,लेकिन यह घटना सामान्य बलात्का और डकैती की घटना नहीं है।
सबसे बड़ा संदेश इस आपराधिक वारदात से यह निकल रहा है कि बाकी देश में विधर्मी धर्मस्थलों पर जो हमले शुरु से लेकर अब तक होते रहे हैं,उसके विपरीत बंगाल में ऐसी वारदातें हुई नहीं हैं।इस वारदात के बाद दो बातें साफ हो गयी हैं।पहली यह कि बंगाल में भी अब विधर्मी धर्मस्थल सुरक्षित नहीं हैं।दूसरी यह कि बंगाल में जैसे हाल तक स्त्री की स्वतंत्रता की परंपरा रही है,वह जैसी टूटी है,बंगाल के प्रगतिशील वामपंथी चरित्र के साथ,उसी तरह बंगाल का धर्मनिरपेक्ष चरित्र भी अब खत्म है।
यह घनघोर चिंता की बात है कि बंगाल में अल्पसंख्यक अब सुरक्षित नहीं है।
यह वारदात नदिया जिले के गांग्नापुर थाने के अंतर्गत दलित शरणार्थी बहुल इलाके में हुई है,जो राणाघाॉ जंक्शन से वनगांव के बीच स्थित है।
जिस मिशनरी स्कूल में यह वारदात हुई है,वह मेरे बंगाल में बस गये मेरे पिता ताउ और चाचा के अलावा बाकी परिजनों के गांव हरिश्चंद्रपुर के पास स्थित है।
1973 में हाईस्कूल पास करने के बाद अपने बिछुड़े परिजनों से मिलाने पिता पुलिनबाबू मुझे उस गांव में ले गये थे।बंगाल के बाकी हिस्सों में बिखरे हुए परिवार से भी तब हमारी पहली मुलाकात हुई थी।मैरे दादा के तीन और भाई थे।
मेरे पिता के ननिहाल के लोग भी आस पास बिखरे हुए हैं।
बहुत नजदीक है गोपाल नगर के पास बाराकपुर में बांग्ला के विख्यात साहित्यकार विभूति भूषण बंदोपाध्याय का पुश्तैनी गांव।
विभूति बाबू के खेत हमारे परिवार के एक हिस्से के हवाले था।
गांगनापुर के नजदीक है नील विद्रोह पर 1858 में नील दर्पण नाटक लिखकर अमर हो गये दीनबंधु मित्र का गांव चौबेड़िया।
इन दो महान साहित्यकारों के इलाके में ऐसी वीभत्स घटना बंगाल के भूगोल पर पसरती धर्मोन्मादी काली सुनामी का अशनिसंकेत है।
हरिश्चंद्रपुर से पिता मुझे लेकर जब गांव गांव पगडंडी पगडंडी होकर गांगनापुर रेलवेस्टेशन पहुंचे थे वनगांव के गोपाल नगर जाने के लिए,तब हमने उस मिशनरी स्कूल को देखा था।
गौरतलब है कि हरिचांद ठाकुर और गुरुचांद ठाकुर ने अंग्रेज मिशनरियों के धर्मांतरण का प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया था कि हमारे लोग अस्पृश्य हैं ,अशिक्षित हैं और खेत जोतने वाली हमारी तमाम कौमों को खेतों के हकहकूक नहीं मिले हैैं।धर्मांतरण से हमारे लोगों की ये समस्याएं सुलझेंगी नहीं।
तब पूर्वी बंगाल में मिशनरी इंचार्ज रीड साहेब से चंडाल आंदोलन और मतुआ आंदोलन के नेता गुरुचांद ठाकुर ने अनुरोध भी किया था कि पहले हमारे लोगों को शिक्षित करने में आप हमारी मदद करें,उनका सशक्तीकरण करें और शिक्षित होने के बाद वे अगर धर्मातरण करने का फैसला करें,हम आपत्ति न करेंगे।
रीड साहेब ने उनका पूरा साथ दिया और गुरुचांद ठाकुर ने हजारों स्कूल खोले।इसके तहत अंग्रेज मिशनरियों ने अपने स्कुल और गिरजाघर भी व्यापक पैमाने पर दलित इलाकों में बनाये।बाकी देश के विपरीत बंगाल के ये मिशनरी स्कूल और चर्च धर्मांतरण के केंद्र कतई नहीं है,बल्कि दलितों और ईसाइयों के सहयोग के गवाह है।
गांग्नापुर का यह स्कूल उसी विरासत का गवाह है।
इसलिए दिल्ली के चर्चों में हमले से भी खतरनाक है दीनबंधु मित्र और विभूति भूषम बंदोपाध्याय के दलित मतुआबहुल इलाके में इस मिशनरी स्कूल पर हमला।
बंगाल के नवजागरण में भी,बंगाल की उदार प्रगतिशील बौद्धमय विरासत के सिलसिले में भी हाल में मदर टेरेसा से लेकर डिराजियो जैसे शिक्षाविद और तमाम दूसरे मिशनरियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
बंगाल के केसरियाकरण का विषवृक्ष फलने फूलने लगा है और दलितों और मतुआ अनुयायियों ने भी केसरिया चादर ओढ़कर अपने इतिहास और दो सौ साल की मतुआ परंपरा को तिलांजलि दे दी है।
कल ही पार्क स्ट्रीट में बलात्कार की शिकार ईसाई महिला की मृत्यु हो गयी एसेफ्लेटािस से।वह आमृत्यु न्याय की गुहार लगाती रही और भद्रलोक सत्ता उसे चरित्रहीन बताती रही।
यही नहीं,बंगाल और उसके नवजागरण की परंपरा पर हमला बाकी देश में बजरंगी संप्रदाय के लोग खूब कर रहे हैं।संघ परिवार के मुखिया मोहन भागवत ने इसी बीच मदर टेरेसा को संत मानने से इंकार किया है और उन्हें धर्मातरण का मसीहा कह देने में शर्म महसूस नहीं की।भगवा जनता उनके इस फतवे से बेहद खुश है।
देश की समूची जनसंख्या को शत प्रतिशत हिंदुत्व में बदलने की कवायद के साथ साथ इतिहास भूगोल बदलने के सुपरिकल्पित मुक्तबाजारी अश्वमेध अभियान के मध्य हमें अब बंगाल और बाकी देश में ऐसी वारदातें कितनी और देखनी होंगी,यह कहना मुश्किल है।
जब राजधानी दिल्ली में विधर्मियों के धर्मस्थल सुरक्षित नहीं है जब मुक्त बाजार की सुपरस्मार्ट राजधानी के नागरिकों को बिजली पानी और नागरिक सहूलियतों के अलावा जल जंगल जमीन नागरिकता और आजीविका के हक हकूक और नागरिक व मानवाधिकारों की कोई परवाह नहीं है,जब विधर्मियों और गैर नस्ली लोगों पर बर्बर हमले की विरुद्ध दिल्ली में सन्नाटा है सत्ता की राजनीति के परमाणु विस्फोट और अबाध पूंजी के अबाध रेडिएशन की तरह,तो जाहिर है कि संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष के पाखंड की कोी प्रसंगिकता नहीं है।
विधर्मी और अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं तो संविधान से धर्मनिपेक्ष का पाखंड हटा दें
अंबेडकरी जो जनता हैं,उनके लिए पुरखों का आंदोलन और अपनी अपनी पहचान को लेकर भयंकर भावनाएं हैं,वह उसे मौके बेमौके व्यक्त करने में पीछे भी नहीं हटती।
बाबासाहेब अंबेडकर को सारे देश के बहुजन ईश्वर मानते हैं तो बंगाल में हरिचांद ठाकुर और गुरुचांद ठाकुर भी ईश्वर हैं बिखरे हुए बहुजनों में।बंगाल के बाहर बसे हुए बहुजन शरणार्थी भी बारी पैमाने पर देश के हर हिस्से में मतुआ हैं।
गौतम बुद्ध,अंबेडकर और महात्मा फूले,माता सावित्री बाई फूले, अयंकाली, पेरियार, नारायण स्वामी,गुरुनानक,हरिचांद ठाकुर और गुरुचांद ठाकुरऔर तमाम बहुजन मनीषियों के उत्तराधिकारी और अंध अनुयायियों को उनके इतिहास,उनके विचारों और उनकी विरासत की कोई परवाह लेकिन नहीं है।
भारत का इतिहास गवाह है कि भारत के बहुजनों का विधर्मियों से कोई बैरभाव नहीं रहा है।विधर्मियों के धर्म को हुंदुत्व के मनुस्मृतिशासन से रिहाई के लिए ही बहुजनसमाज के लोग व्यापक पैमाने पर अपनाया है और सही मायने में भारत मे तमाम विधर्मी बहुजन समाज के ही हिस्सेदार पट्टीदार है।
बहुजनों के बजरंगी कायाकल्प का नतीजा है कि ग्लोबीकरण मुहिम के साथ साथ भारत में विधर्मियों पर हमले लगातार तेज होते जा रहे हैं।
बहुजनों के बजरंगी कायाकल्प का नतीजा है कि हजारों साल से सत्ता और शोषणके खिलाफ अस्मिता और धर्म के आर पार बहुजनों का प्रतिरोध संघर्ष है और जिसके नतीजतन विधर्मियों के साथ बहुजनों का भाईचारा है,इतिहास के मिथकीकरण भगवाकरण की वजह से उस विरासत का अता पता नहीं है और बहुजन ही बहुजनों के जनसंहार में पैदलसेना है और अश्वमेधी नरमेध अभियान के तमाम सिपाह सालार भी बहुजन है।
गौरतल है कि वनगांव और नदिया का बंगाल में सबसे ज्यादा भगवाकरण हुआ है।नदिया में तो सांसद भी संघी रहे हैं तो वनगांव और मतुआ आंदोलन का भी भगवाकरण हो गया है।
इस चैत्र में मतुआ मुख्यालय में जब मतुआ महोत्सव वारुणी का आयोजन होगा तब भगवा वर्चस्व की मारामारी भी होगी।
जाहिर है कि गांग्नापुर की यह वारदात कोई आकस्मिक वारदात नहीं है।74 साल की विधर्मी महिला से पाशविक बलात्कार सिर्फ आपराधिक वारदात नहीं है,यह धर्मोन्मादी राष्ट्रवाक की युद्धघोषणा है भारत के विरुद्ध।
अब भी न जागें तो फिर कब जागेंगे भारत के नागरिक?
इन परिस्थितियों में भी वोटबैक और सत्ता के समीकरण से हाशिये पर चले गये बंगाल के धर्मनिपेक्ष समाज का आक्रोश और इस बर्बर हमले के खिलाफ जारी प्रचंड विरोध से जाहिर है कि गोलबंदी के लिए पहल ठीक से हुई तो शायद हालात फिर भी बदले जा सकते हैं।
कल रात हुई इस दुर्घटना के बाद आज सुबह से नदिया और उत्तर चौबीसपरगना में जनाक्रोश देखने लायक है।
रेल व सड़क यातायात विरोध में अवरुद्ध है और धरना और प्रदर्शन तेज होता जा रहा है,जो देश के बाकी हिस्सों में विधर्मी संस्थानों पर होने वाले हमलों के खिलाफ देखा नहीं गया है।
नदिया के बाकी बंगाल से इस भूचाल की वजह से कट जाने के वावजूद जनता इस हमले के विरुध्ध गोलबंद हो रही है जो भगवा सुनामी से बचने की राह भी बना सकती है।
साम्यवाद राज्य के अंत के साथ शोषणविहीन वर्गविहीन समाज की परिकल्पना पेश करता है तो मुक्तबाजार भी राजकाज में राज्य की भूमिका खत्म करना चाहता है।मुक्तबाजारी विकास के लिए धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद अचूक रामवाण है लेकिन मुक्त बाजार जिस विकास की बात करता है और समाज को जिस तेजी से बाजार में तब्दील करना चाहता है वहां धर्मोन्माद उसके अंतिम लक्ष्य के लिए सबसे बड़ा अवरोध भी साबित हो सकता है।
बिजनेस फ्रेंडली मनसैंटो डाउकैमिकल्स की हुकूमत को यह व्याकरण समझाया नहीं जा सकता क्योंकि उसका रिमोट कंट्रोल ही धर्मोन्माद है।
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