अब पिंजड़े में कैद तोता है भारतीय रिजर्व बैंक भी
जनपक्षधर लोग किस पिंजडे में बंद हैं,समझना मुश्किल है
जोगीरा सारारा...ना गरीब की ना अमीर की...केवल गुलाल और अबीर की...होली तो बस होली है...जोगीरा होली निवेशकों,पूंजी की होली है..सारारा..
पलाश विश्वास
निर्भया हत्याकांड में बलात्कारी हत्याकरे मुकेश के इंटरव्यू ने भारतीय समाज में पुरुषवर्चस्व का देहमन बेनकाब कर दिया है।
कंडोम अर्थव्यवस्था का कंडोम राष्ट्रवाद आइने के मुखातिब बेहद तिलमिला रहा है।
गौरतलब है कि भारत सरकार, भारतीय संसद और भारतीय अदालत की भावनाओं को नजरअंदाज कर बीबीसी चैनल 4 ने निर्भया रेप केस पर बनी डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण कर दिया है। इंडियाज डॉटर नाम की ये फिल्म ब्रिटेन के समय के मुताबिक रात 10 बजे तो भारतीय समय के मुताबिक आज तड़के साढ़े तीन बजे दिखाई गई। ये प्रसारण ब्रिटेन के अलावा यूरोप के दूसरे देशों में भी हुआ। विवाद के चलते मिली चर्चा का फायदा लेने के लिए डॉक्यूमेंट्री को समय से पहले ही प्रसारित कर दिया गया। पहले ये फिल्म 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रसारित की जानी थी।
इस इंडरव्यू के खिलाफ बहुत बवंडर मचा हुआ है ,इसका तनिको हिस्सा अगर स्त्री दुर्गति के लिए जिम्मेदार रंगभेदी मनुस्मृति पुरुष वर्चस्व के खिलाफ गोलबंद हो तो हालात बदल जाये।लेकिन ऐसा नामुमकिन है।
इसके उलट इस धर्मनिरपेक्ष देश की संविधान प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने को लेकर बवंडर है लेकिन हिंदू साम्राज्यवाद के कारपोरेट कार्निवाल पर सन्नाटा ही सन्नाटा है।
शिवसेना खुलेआम धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र भारत में ऐलान कर रही है कि मुसलमानों को विशेष सुविधा चाहिए तो पाकिस्तान चले जाएं।
अनंतमूर्ति को पाकिस्तान में बसने का फतवा जारी हुआ था।
मुरुगन ने अपनी मृत्यु की घोषणा कर दी फतवे के खिलाफ।तो चित्रकार हुसैन भारत छोड़कर चले गये और फिर गुजर गये।
2021 तक मुसलमानों और इसाइयों के सफाये का ऐलान हो रहा है।
शत प्रतिशत हिंदुत्व का ऐलान हो रहा है।
लोकतंत्र नपुंसक बना धर्मनिरपेक्ष है।
स्त्री पक्ष का यह पाखंड मजेदार होली रंग है जो चटख भी खूब है।
देश जब होली मना रहा है तब 35 साल के वाम राजकाज लवाले प्रगतिशील बंगाल में होक कलरव वाले जादवपुर में सुबह सवेरे लेनिन की मूर्ति तोड़ने की खबर बनी है।
जिस देश में गोडसे के मंदिर बन रहे हों,वहां वोटबैंक समीकरण के नाम पर धार्मिक ध्रूवीकरण के लिए रोजाना गांधी की हत्या हो रही हो, लेकिन अंबेडकर को भी बहुजन वोट के लिए ईश्वर बनाने का आयोजन हो तो वोटबैंक से बेदखल कामरेड लेनिन अब तक परिवर्तन राज में क्यों बने हुए हैं,यह बेहद अचंभे की बात है।
मार्क्स और लेनिन की मूर्तियों के खंडन मंडन में जो कामरेड सक्रिय हैं और राज्यतंत्र में बदलाव करके वर्गहीन समाज की परिकल्पना उनकी जो मनुस्मृति अर्थव्यवस्था की संसदीय सहमति की राजनीति बन गयी है और संघ परिवार की पूंछ आप की जिसम पर साम्यवादी परचम जो टांगा जा रहा है,वह कोलकाता में लेनिन मूर्ति भंग से ज्यादा हैरतअंगेज है।
The Economic Times
3 hrs ·
Rajan's refusal to back down from his stance, his insistence despite pressure that fighting inflation must be the central bank's top priority is music to investors used to ad hocism and arbitrariness.
Rajan saw an opportunity to change the way RBI functioned, and strengthen the regulatory process...
The Economic Times
53 mins ·
Ban wasn't needed. For truth to be known, filth has to come out, says Nirbhaya's father http://ow.ly/JX6tX
डाउ कैमिकल्स का बजट पेश होने से पहले मोदी की पाठशाला में बूढ़े तोता को नई परिभाषाओ,नये पैमानों,नये प्रतिमानों और मानकों और आंकड़ों की बाजीगरी का पाठ पढ़ाया गया।उससे भी पहले योजना आयोग खत्म करके बगुला आयोग बनाने की कयावद के समांतर रिजर्व बैंक के सिभी 29 विभागों में निजी कंपनियों के कारपोरेट तत्वों का राजकाज शुरु हो गया।
देश में मनसेंटो हरियाली की मेकिंग इन गुजरात,मेकिंग इन अमेरिका के लिए बजट पेश होते न होते रिजर्व बैंक को हिदायत दी गयी कि कारपोरेट को जो छूट,रियायतें और प्रोत्साहन निवेशकों की आस्था की बहाली के लिए अता फरमाया गया है,उन्हें अमली जामा मौद्रिक कवायद के जरिए पहनाकर होली का जश्न शुरु करना है।
रिजर्व बैंक ने वहीं किया और सेनसेक्स निफ्टी की दौड़ बेलगाम है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट में सर्विस टैक्स को 12.36 पर्सेंट से बढ़ाकर 14 फीसदी किया है, लेकिन आपको बता दें कि यह इतना भर नहीं है। जरा अपनी जेब थामकर बैठिए, क्योंकि आपको कुल मिलाकर 16 पर्सेंट सर्विस टैक्स चुकाना पड़ सकता है।बजट में 'स्वच्छ भारत मिशन' के लिए प्रस्तावित 2 फीसदी सेस को भी सर्विस टैक्स में जोड़ने का पूरा प्रावधान किया गया है। अगर यह लागू किया जाता है तो आपको भारी भरकम 16 फीसदी सर्विस टैक्स चुकाना पड़ेगा।
अब उद्योग जगत की ओर से फिर रिजर्व बैंक को फिर ब्याज दरों में कटौती का सिसिला जारी रखने का हुक्म जारी हुआ है और बूढ़ा पिंजरे में बंद तोता दरअसल हुक्मउदुली करने की जुर्रत कर ही नहीं सकता।
इसी बीच बजटऔर मौद्रीक कवायदों के मध्य हादसा यह हो गया कि शेयर बाजार में भले ही बुधवार को गिरावट आई, लेकिन दवा कंपनी सन फार्मा और इस ग्रुप की दूसरी कंपनियों सन फार्मा अडवांस्ड रिसर्च (स्पार्क) और रैनबैक्सी के शेयर रेकॉर्ड लेवल पर पहुंच गए। इससे सन फार्मा के प्रमोटर दिलीप सांघवी रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी को पीछे छोड़कर देश के सबसे अमीर इंसान बन गए ।
इससे बड़ी खबर है कि रक्षा क्षेत्र में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अनुकूल माहौल में डिफेंस सेक्टर में अनिल अंबानी ने एंट्री कर ली है।
देश में रक्षा क्षेत्र में सबसे बड़े अधिग्रहण सौदे में अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने पिपावाव डिफेंस ऐंड ऑफशोर इंजिनियरिंग का 819 करोड़ रुपये में अधिग्रहण करने की घोषणा की। रिलायंस इन्फ्रा कंपनी में 63 रुपये प्रति शेयर के भाव पर 18 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदेगी और अतिरिक्त 26 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए 66 रुपये प्रति शेयर पर खुली पेशकश लाएगी। यदि खुली पेशकश विफल रहती है तो कंपनी प्रवर्तकों से अतिरिक्त 7.1 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदेगी।
रिलायंस इंफ्रा ने पीपावाव डिफेंस में 18 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली है। ये सौदा 819 करोड़ रुपये में हुआ है। कंपनी ने ये सौदा 63 रुपये प्रति शेयर के भाव पर किया है। इसके अलावा पीपावाव में 26 फीसदी हिस्से के लिए रिलायंस इंफ्रा ओपन ऑफर भी लाएगी।
इस डील के होने के बाद पीपावाव डिफेंस कंपनी का नाम बदलकर रिलायंस डिफेंस होगा और उसके चेयरमैन अनिल अंबानी होंगे। पीपावाव डिफेंस के चेयरमैन का कहना है कि उन्हेंने ये डील शेयर होल्डर्स की वैल्यू बढ़ाने के लिए की है और हिस्सा बेचने के बाद भी कंपनी में अहम भूमिका निभाएंगे।
इंडिसिया रिसर्च एंड एडवायजरी के चेयरमैन और चीफ एक्जीक्यूटिव देबा मोहंती का कहना है कि पीपावाव डिफेंस-रिलायंस इंफ्रा सौदा दोनों कंपनियों के लिए फायदे का सौदा है। डिफेंस सेक्टर में नई कंपनी का आना पूरे सेक्टर के लिए पॉजिटिव है। डिफेंस क्षेत्र में आगे आने वाले ऑर्डर को देखते हुए किसी भी कंपनी या ग्रुप के लिए अच्छी खबर है। इस डील से बाजार में अच्छा पैसा आएगा और डिफेंस सेक्टर में नई कंपनी के आने से नए रास्ते खुलेंगे।
दूसरी ओर, रैनबैक्सी को छोड़कर (जिसका मर्जर सन फार्मा में होना है) बुधवार की तेजी के बाद सांघवी की नेट वर्थ 1.4 लाख करोड़ रुपये थी। वहीं अंबानी की नेट वर्थ 1.3 लाख करोड़ रुपये रही। स्पार्क को यूएस एफडीए से सन फार्मा के हलोल प्लांट में एक दवा बनाने की मंजूरी मिली है।
हेल्थ हब में तब्दील देश के डिजिटल बायोमैट्रिक क्लोन नागरिकों की सेहत के लिए रेनबैक्सी और सनफार्मा की यह मेकिंग इन भी आने वाले अछ्छे दिनों में खास गुल खिलाने वाली है।दवाइयों की कामतों पर कोई नियंत्रण नहीं है और स्वास्थ्य बाजार अंग प्रत्यारोपण उद्योग में तब्दील है।इसके साथ ही बीमा संशोधन के जरिये स्वास्थ बीमा की बाड़ेबंदी की तैयारी भी है।
गौर करें कि इंद्रनील सेनगुप्ता,इंडिया इकनॉमिस्ट, बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच का कहना है(सौजन्य ईटी) कि सस्ते लोन से इकनॉमी रिकवर करेगी। इसलिए आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन का रेपो रेट में 0.25 पर्सेंट की कटौती का फैसला अच्छा है। हम वैसे भी 7 अप्रैल को मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में इसकी उम्मीद कर रहे थे क्योंकि फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने फिस्कल कंसॉलिडेशन जारी रखने का भरोसा दिया है।
इंटरेस्ट रेट में कटौती अच्छी है, लेकिन हम बिना फॉरेक्स क्राइसिस के मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू से पहले दो बार इसमें कमी के हक में नहीं थे। जून में हमें रिजर्व बैंक से पॉलिसी रेट में और 0.25 पर्सेंट कटौती की उम्मीद है। इससे मार्च 2016 तक 10 साल वाले सरकारी बेंचमार्क बॉन्ड की यील्ड 7 पर्सेंट हो जाएगी। हमें लगता है कि बैंक अप्रैल से सितंबर के सुस्त सीजन में लोन 0.50 पर्सेंट सस्ता कर सकते हैं। इससे इकनॉमिक रिकवरी में मदद मिलेगी।
कंज्यूमर इनफ्लेशन अभी 6 पर्सेंट से काफी नीचे है। जनवरी 2016 तक के लिए रिजर्व बैंक ने महंगाई का यही टारगेट तय किया है। अमेरिका में इंटरेस्ट रेट बढ़ने की उम्मीद के चलते इंटरनेशनल मार्केट में कमोडिटी के दाम काबू में रहेंगे। भारत में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने के चलते रुपया भी स्टेबल दिख रहा है। हमें अप्रैल 2016 तक रेट में और 0.75 पर्सेंट कटौती की उम्मीद है। हमें लगता है कि भारत में जून के बाद रिजर्व बैंक कुछ रुककर रेट घटाएगी। उसकी वजह यह है कि हमारी अमेरिकी टीम सितंबर में वहां रेट बढ़ने की उम्मीद कर रही है। इसके बाद 2016 की शुरुआत में रिजर्व बैंक इंटरेस्ट रेट में और 0.50 पर्सेंट की कमी कर सकता है। नई जीडीपी सीरीज के आधार पर हमने फाइनेंशियल ईयर 2016 में जीडीपी ग्रोथ 7.5-8 पर्सेंट रहने का अनुमान लगाया है। हालांकि अब हमें लग रहा है कि इकनॉमी के पास 8.5 की रफ्तार से भी बढ़ने का मौका है।
रिजर्व बैंक के नीतिगत दरों में अचानक 0.25 फीसदी कटौती के फैसले से कर्ज किस्तों में कमी आएगी तथा मांग बढ़ेगी जिससे अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलेगा। वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने आज यह बात कही।गवर्नर राजन ने नहीं,रिजर्व बैंक की स्वायत्तता और उसकी पिंजड़े में बंद तोता भूमिक पर गौर करें।
उन्होंने कहा, 'आने वाले दिनों में ब्याज दरों का पहिया किस ओर घूमेगा होगा यह आने वाले आंकड़ों पर निर्भर होगा और केंद्रीय बैंक ने इसके बारे में स्पष्ट संकेत दे दिया है।' उन्होंने कहा कि मुख्य दरों में कटौती की और गुंजाइश है।उद्योग जगत जो कह रहा है,उसकी प्रतिध्वनि है डाउ कैमिकल्स हुकूमत का कहानी।
सिन्हा ने कहा, 'हमने संसद में कहा है कि हम बहुत तर्कसंगत राजकोषीय पुनर्गठन के खाके पर चल रहे हैं। हमारा लक्ष्य वृद्धि को सतत, गैर-मुद्रास्फीतिक रास्ते पर आगे बढ़ाना है। हम ऐसी स्थिति में हैं जहां हमें ऋण भुगतान की मासिक किस्तें कम होने की उम्मीद है।' उन्होंने कहा 'रिजर्व बैंक ने बजट संतुलन को सराहा है। भारत के हर नागरिक के लिए यह स्वागतयोग्य कदम है क्योंकि हर कोई निकट भविष्य में अर्थव्यवस्था में प्रोत्साहन की उम्मीद कर रहा है।'
रिजर्व बैंक ने सबको हैरान करते हुए मुख्य नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत कटौती कर उसे 7.5 प्रतिशत कर दिया। मुद्रास्फीति में नरमी और सरकार के राजकोषीय मजबूती के रास्ते पर लगातार आगे बढ़ने की प्रतिबद्धता को देखते हुए यह कदम उठाया गया है।
बहरहाल रेपो दर में अचानक 0.25 फीसदी कटौती करने के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि बैंक इस कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को जल्द प्रदान करेंगे।
केंद्रीय बैंक ने एक और हैरान करने वाले कदम के तहत मुख्य नीतिगत दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर 7.50 प्रतिशत कर दिया है। दो माह में यह नीतिगत दर में दूसरी कटौती है। विशेष बात यह है कि दूसरी बार यह कटौती मौद्रिक समीक्षा के बगैर की गई है। इससे पहले 15 जनवरी को केंद्रीय बैंक ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की थी।
राजन ने विश्लेषकों से कॉन्फ्रेंस कॉल के जरिये कहा, 'मुझे उम्मीद है कि अगले कुछ सप्ताह में हम इसे ब्याज दरों में कमी के रूप में बदलते देखेंगे।' कोष की लागत घटने के बावजूद बैंकों ने इसका लाभ ग्राहकों को नहीं दिया है। राजन ने पिछली मौद्रिक नीति के समय इसकी आलोचना भी की थी। 15 जनवरी की कटौती के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों यूनियन बैंक ऑफ इंडिया व यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया ने अपनी आधार दर (बेस रेट) घटाई थी।
राजन ने कहा कि कटौती का लाभ देने की प्रक्रिया में बैंक सुस्त रहते हैं। हालांकि, ब्याज दरें बढ़ाने में वे तेजी दिखाते हैं। मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इन दो कटौतियों के बाद बैंक दरें घटाएंगे। गवर्नर ने कहा कि केंद्रीय बैंक यह भी देख रहा है कि ब्याज दर में कटौती का लाभ देने में क्या किसी तरह की संस्थागत अड़चन है।
राजन ने मुख्य दरों में कटौती की घोषणा करते हुए कहा, 'रुपया समकक्ष देशों के मुकाबले ज्यादा मजबूत रहा है। अत्यधिक मजबूत रुपया अवांछनीय है। यह अवस्फीतिक दबाव भी पैदा करता है।' उन्होंने कहा 'रिजर्व बैंक विनिमय दर के लिए स्तर विशेष का लक्ष्य नहीं रखता और न ही वह विदेशी मुद्रा भंडार का कोई लक्ष्य रखता है। बैंक समय समय पर दोनों ही दिशा में, हस्तक्षेप करता है ताकि विनिमय दर में टाल सकने योग्य उतार-चढ़ाव कम किया जा सके।'
उन्होंने कहा, 'मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी बजाय किसी प्रत्यक्ष उद्देश्य के ऐसी ही पहलों का नतीजा है।' रुपया इस साल करीब दो प्रतिशत चढ़ा जो विभिन्न एशियाई मुद्राओं के मुकाबले अधिक है। आरबीआई विभिन्न मौकों पर बाजार में हस्तक्षेप करता रहा है ताकि रुपए को मजबूत होने से बचाया जा सके। देश का विदेशी मुद्रा भंडार जनवरी 2015 के अंत तक 328.7 अरब डालर बढ़ गया। इस तरह यह सोना आयात पर प्रतिबंध खत्म का सही समय है।
इसी सिलसिले में इकोनामिक टाइम्स का यह आकलन देखेंःहाल के हफ्तों और महीनों में निवेशकों का मूड देखकर लगता है कि उन्हें शेयर बाजार की तेजी खत्म होने का डर नहीं है। हालांकि मध्य जनवरी के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक के बाद एक लगातार बुरी खबरें आई हैं। आरबीआई की तरफ से इंटरेस्ट रेट में कटौती को छोड़ दें तो दिल्ली चुनाव में बीजेपी का सफाया हो गया।
जीडीपी की नई सीरीज पर आधारित डेटा को लेकर सवाल खड़े किए गए। कोर सेक्टर और मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई के डेटा भी उम्मीद से कमतर रहे हैं। बजट से पहले कहा जा रहा था कि इसमें 'बिग बैंग रिफॉर्म' का ऐलान होगा, लेकिन हुआ इसका बिलकुल उलटा। बजट में कई छोटे लेकिन इंपॉर्टेंट कदम उठाए गए हैं। इसके जरिये एक फ्रेमवर्क तय करने की कोशिश हुई है, जिससे तेजी से फैसले किए जा सकें। सरकार का मानना है कि इससे इकनॉमिक ग्रोथ तेज होगी और रिफॉर्म्स का सिलसिला जारी रहेगा।
अब तक कॉरपोरेट प्रॉफिट ग्रोथ में रिकवरी के संकेत भी नहीं दिखे हैं। दिसंबर 2014 क्वॉर्टर के रिजल्ट खराब रहे। मार्च 2015 तिमाही का भी हश्र बहुत अच्छा नहीं होगा। इनवेस्टमेंट बढ़ रहा है, लेकिन बड़ी परियोजनाएं अब तक परवान नहीं चढ़ी हैं। कंज्यूमर डिमांड कमजोर है और कंपनियों पर कर्ज का बोझ भी बहुत ज्यादा।
इसके बावजूद इनवेस्टर्स शेयर बाजार में पैसा लगा रहे हैं। जनवरी में विदेशी फंडों ने 17,689 करोड़ के शेयर खरीदे। फरवरी में उन्होंने 8793 करोड़ की खरीदारी की। डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स ने भी इन दो महीनों में 9,592 करोड़ रुपये शेयर बाजार में लगाए। पिछले एक साल में भारतीय कंपनियों का मार्केट कैप 49.1 पर्सेंट बढ़ा, जो सिर्फ चीन के 63.9 पर्सेंट से कम है। वहीं साउथ अफ्रीकी शेयर बाजार में तो सिर्फ 9.8 पर्सेंट की तेजी आई। रूस और ब्राजील के शेयर बाजार की हालत तो बहुत ही खराब रही है।
केसरिया रंग की होली अब खूब खेली जाएगी और इस रंगतर्पण में खून की नदियों में सुलगती आग के तमाम ज्वालामुखी दफन हो जाएंगे।
आम आदमी पार्टी को हमारे संपादक ओम थानवी और हमारे अत्यंत प्रिय कामरेड अभय कुमार दुबे आंतरिक लोकतंत्र का अनूठा प्रयोग बताते हुए योगेंद्र यादव के स्थानापन्न पार्टी प्रवक्ता नजर आ रहे हैं।
इसी बीच नैनीताल से हमारे मित्र उमेश तिवारी के फेसबुक पोस्ट से पता चला कि आप के मीडिया मुख आशुतोष हमारे दिनेशपुर में किसी रिसाले का विमोचन कर आये हैं।
इसी बीच प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को 'आप' की पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी (पीएसी) से निकाले जाने के बाद भी पार्टी में घमासान जारी है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और महाराष्ट्र से पार्टी के बड़े नेताओं ने बागी रुख अख्तियार करते हुए सीधे-सीधे अरविंद केजरीवाल पर उंगली उठाई है। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने साफ-साफ कह दिया था योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पीएसी में रहते हैं तो मैं काम नहीं कर पाऊंगा। मयंक गांधी ने ब्लॉग लिखकर यह भी कहा कि वह जानते हैं कि इस खुलासे से उन्हें भी इसके नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं, लेकिन वह इसके लिए तैयार हैं।
ओम थानवी की संपादकीय भूमिका से नाराज होने का सवाल अभी पैदा हुआ नहीं है और जनसत्ता अभी केसरिया कारपोरेट सुनामी के खिलाफ मोर्चाबंद है।लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि हमारे संपादक क्यों आम आदमी पार्टी का प्रवक्ता नजर आ रहे हैं।यह हमारे लिए खुश होने का मौका नहीं है।
विडंबना है कि आम आदमी के आंतरिक लोकतंत्र का बचाव करते हुए वामदलों के आंतरिक लोकतंत्र का हवाला देते नजर आये अभय कुमार दुबे जी।
क्रांति का आत्मसंघर्ष जैसे अध्ययन के प्रणेता की ओर से आम आदमी पार्टी पर यह वाम ठप्पा भी अजब गजब है।
ये दो लोग हैं,जिन्हें मैं मीडिया कुल में दूसरों से पृथक मानकर चल रहा था।हमारे आदरणीय मित्र पी साईनाथ का हिंदू से अलगाव से निर्णायक तौर पर साबित हो गया कि भारतीय मीडिया और खासतौर पर अंग्रेजी मीडिया में हम तो कोई घास फूस नहीं हैं,लेकिन यहां पी साईनाथ जैसे ग्रामीण भारत और कृषि भारत के प्रतिनिधित्व की जरुरत है नहीं
विडंबना यह है कि कारपोरेट प्रायोजित मंच से साईनाथ अब वैकल्पिक मीडिया की बात कर रहे हैं और उनके साथ जुड़े हैं हमारे मित्र जयदीप हार्डीकर भी ,जो अब भी दि टेलीग्राफ में बने हुए हैं।हम लोग चाहकर भी उनकी पांत में शामिल हो नहीं सकते।
खास बात यह है कि बिजली पानी भ्रष्टाचार और अन्ना ब्रिगेड के सत्याग्रह और राजनीति दल में आंतरिक लोकतंत्र को छोड़कर देश के दूसरे अहम मुद्दों को स्पर्श भी नहीं कर रहा है वैकल्पिक राजनीति का यह अनूठा प्रयोग और हमारे हिसाब से दूबे जी को इसका अवश्य ही नोट लेना चाहिए।
थानवी जी को यह देखना चाहिए कि जिस आम आदमी पार्टी का वे बचाव कर रहे हैं,वह आर्थिक मुद्दों पर और हिंदू साम्राज्यवादी कारपोरेट केसरिया राज पर खामोश है।
हम अब भी हमारे मित्रों की असहमति के बावजूद मानते हैं कि ओम थानवी प्रभाष जोशी से बेहतर संपादक हैं।
हम यह भी नहीं मानते कि आप के कोटे से थानवी जी या दूबे जी राज्यसभा के टिकट के जुगाड़ में बढ़ चढ़कर महिमामंडन कर रहे हैं संघ परिवार के बाप आप का।उनका यह मोह जितनी जल्दी भंग हो,उतना ही अच्छा है क्योंकि हम जनमोर्चे पर दूबे जी और थानवी जैसे लोगों की प्रासंगिकता बनाये रखने के हक में हैं।
यह कहने के लिए मुझे इसका डर नहीं है कि मैं जनसत्ता में ही एक अदना सा पत्रकार हूं जो अपने संपादक की आलोचना कर रहा है।
जनसत्ता में अब भी वह आंतरिक लोकतंत्र हैं और विजंबना यह है कि थानवी जी इसे आम आदमी जैसे हवाहवाई विकल्प के साथ चस्पां करने पर तुले हुए है और उन्हें आप प्रवक्ता के रुप में देखकर हमें दुःख हो रहा है।
सबसे दुखद बात तो यह है कि आर्थिक प्रगति और मेकिंग इन के नाम जो दिनदहाड़े रोज रोज डकैतियां हो रही हैं,जो रोज रोज देश नीलामी पर चढ़ रहा है,उसपर मीडिया का पक्ष समझने में कोई दिक्कत नहीं है,कारपोरेटफडिंग और कारपोरेट लाबिइंग से चल रही मुख्यधारा की राजनीति की कथनी करनी अलग अलग और संसदीय सहमति के फंडे को समझने में भी कोई खास दिक्कत नहीं होनी चाहिए।सिर्फ जनपक्ष का फंडा पहेली है।
नंगा सच यह है कि सबसे खतरनाक तो इस केसरिया कारपोरेट तिसिस्म के विकल्प बतौर बनाये जा रहे अनूठे राजनीतिक तिलिस्म का फंडा है ,जिसका आम आदमी सिर्फ कारपोरेट राजधानी दिल्ली का नागरिक है और जिसे सस्ती बिजली और मुफ्त पानी चाहिए,जिसके पेट में न भूख है और न जिसके हाथ खाली है,जो न आफसा के गुलाम हैं और न सलवा जुड़ुम के तहज वधस्थल पर वह खड़ा है और न वह जलजंगल जमीन आजीविका मानवाधिकार नागरिक अधिकार प्रकृति और पर्यावरण से बेदखल है और उसके कंधे फर इस मुकम्मल शेयर बाजार की अनुत्पादक अर्थव्यवस्था का कोई बोझ नहीं है।
अब Aam Aadmi Party के बड़े नेता मयंक गांधी ने बागी तेवर दिखाते हुए अरविंद केजरीवाल पर कौन से सीधे आरोप लगाए, फोटो पर क्लिक करके जानिए...
हम चाहते हैं कि चर्चा सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर हों क्योंकि देश अब मुकम्मल शेयर बाजार है और शेयर बाजार से बाहर कोई नागरिक नहीं है।
हम चाहते हैं कि चर्चा सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर हो कि जनधन की डकैती का चाकचौबंद इंतजाम है यह केसरिया कारपोरेट हिंदुत्व का राजकाज।
हम चाहते हैं कि चर्चा सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर हों क्योंकि मेरकिंग इन के बहाने अबाद विदेशी पूंजी के प्रवाद ने सारी नदियों की हत्या कर दी है और काट लिये हैं परिंदों के पर तमाम।
तितलियों के परों में परमाणु बम बांध दिये गये हैं और हवाओं पानियों में रेडियोएक्टिव जहर घोला जा रहा है।
हम चाहते हैं कि चर्चा सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर हो क्योंकि मुक्तिकामी जनता को राज्यतंत्र में बदलाव,सामाजिक न्याय और समता, शोषणविहीन, वर्गविहीन जाति विहीन नस्ल विहीन समाज की स्थापना के संघर्ष से अलग थलग करने के लिए किस्म किस्म के रंगबिरंगे हिंदुत्व के झंडे थमाये जा रहे हैं और संकटमोचक सिर्फ हनुमान चालीसा का यंत्र मंत्र तंत्र है।
पिछले लगभग एक दशक से हमारे जैसे अदना सा लेकक पत्रकार तमाम मित्र संपादकों को विज्ञापनदाताओं का फीलर बनने के लिए आर्डर के मुद्दों पर लिखने से मना करता रहा है। हम साफ साफ कह चुके हैं कि हम किसी भी विधा पर अपने मुद्दे पर बोलेंगे और लिखेंगे,कारपोरेट और बाजार के लिए लिखेंगे नहीं।
अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि टीवी चैनलों की फरमाइश पर किसी भी मुद्दे पर हमारे आदरणीय लोग बहस करके बुनियादी मुद्दों से जनता का फोकस खराब करने लगे हैं।हमारी तुलना में हर मायने में कामयाब और बड़े लोगों की कौन मजबूरी है कि जब तब चैनलों पर प्रकट होकर मुद्दों को बेलाइन करने का खेल रचाये।
जबकि आर्थिक नरसंहार बेहद तेज है और अश्वमेधी घोड़ों के साथ सांढ़ों काधमाल तेज है।
जबकि देश मनसेंटो है और हुकूमत डाउ कैमिकल्स है।
हमारी समझ में नहीं रहा है कि एक फर्जी विकल्प के बचाव में जनता के हित में हम क्या कर, लिख या बोल रहे हैं और जनता को वह हकीकत बताने से परहेज क्यों कर रहे हैं,जिसपर लगातार जनजागरण की जरुरत है।
एक तो बजट के वक्त क्रिकेट कार्निवाल का मौसम होता है ,इस पर तुर्रा असमय निवेशकों की होली है।जल जंगाल जमीन से बेदखली के अश्वमेध समय में हम किसी राजनीतिक दल के आंतरिक मुद्दों पर बहस केंद्रित करके दरअसल किस किसके हित साध रहे हैं,इसपर हमारे जनपक्ष के तमाम प्रवक्ता गौर करें तो बेहतर है।
इसीतरह हमें बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि नई दिल्ली में बीबीसी में जाकर उनके निरपेक्ष रिपोर्ताज की तारीफ मैं कर आया हूं और मुझे हमेशा बहुत खुशी होती है कि जब बीबीसी उन मुद्दों पर बहस चलाता है,जिनपर भारतीय मीडिया खमोश है।
वहां हमारे मित्र राजेश जोशी हिंदी के संपादक हैं।सलमान रवि तेजतर्रार रिपोर्टर है और दूसरे लोगों के साथ जनसत्ता में सहमकर्मी रहे प्रमोद मल्लिक भी वहां पहुंच गये हैं।
अंग्रेजी बीबीसी से हम कोई उम्मीद नहीं रखते,लेकिन जिस करह हिंदी बीबीसी ने निर्भया बलात्कारकांड में फांसी सजायाफ्ता मुकेश सिंह के स्त्री आखेट के जश्न का प्रसारण किया है,मुझे बीबीसी की तारीफ में कहे हम लफ्ज को वापस लेते हुए कहना ही होगा कि बुनियादी मुद्दों से भारतीय जनता को भटकाकर पुरुष वर्चस्व की मनुस्मृति के पक्षश् में ही सक्रिय है बीबीसी भी।
इसी सिलसिले में
Padampati Sharma shared his photo.
संघ को नजदीक से समझने
का मौका गंवा दिया रवीश
नोएडा स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय 'प्रेरणा' में रविवार को आयोजित होली मिलन समारोह में जुटे लोगों में टीवी के जाने माने पत्रकार रवीश कुमार की उपस्थिति वाकई चौंकाने वाली इसलिए रही कि वैचारिक धरातल पर संघ की अवधारणा जिनकी समझ से परे रही है, उनमें एक वह भी माने
जाते हैं. जैसे ही उनका आगमन हुआ, हलचल सी मच गयी..रवीश के चेहरे पर भी छायी घबराहट साफ देखी जा सकती थी. किसी ने पूछा तो रवीश कुमार का सहज जवाब था कि बुलाया तो आ गया... पर जैसे ही कार्यक्रम आरंभ हुआ और होरी गायी जाने लगी, रवीश के पसीने छूटने लगे और जब फोटो ली जाने लगी तो यह कहते हुए भाग खड़े हुए कि जिंदगी खराब हो गयी......!!
नही भाई रवीश आप मौका चूक बैठे.. आप रहते तो आप के लिए संघ की विचारधारा को नजदीक से परखने का यह बेहतरीन मौका था और यह भी कि भारत माता और उच्च संस्कारों की चर्चा से भी आप दो चार होते. आपको यह भी पता चलता कि होली कोई पौराणिक गाथा नहीं जीवंत इतिहास का हिस्सा है. संघ जिस छद्म सेक्यूलरिजम की बात करता है, यह त्यौहार उसका सबसे बड़ा उदाहरण है. रवीश क्या ....खुद मुझे भी जानकारी नहीं थी कि होली जैसे मदनोत्सव का उद्गमस्थल मुलतान है जो पाकिसतान में है और जिसे आर्यों का बतौर मूलस्थान भी कभी जाना जाता था. मैं पहली बार १९७८ में जब पाकिस्तान गया था तब वहां के सैन्य तानाशाह जियाउल हक ने मुल्तान किले के दमदमा ( छत ) पर भारतीय क्रिकेट टीम का सार्वजनिक अभिनंदन किया था. तब मैं इस स्थान की ऐतिहासिकता से रूबरू नहीं हो सका था पर १९८२-८३ की क्रिकेट सिरीज के दौरान पाकिस्तानी कमेंट्रीकार मित्र चिश्ती मुजाहिद के सौजन्य से जान पाया कि जहां मैं गोलगप्पे खा रहा हूं, वह प्रहलाद पुरी है..!! क्या ...प्रहलाद ..? कौन भाई ? चिश्ती का जवाब था,' हां वही तुम्हारे हिरण्यकश्प वाले....!! यह क्या बोल रहे हैं ... हतप्रभ सा मैं सोच रहा था कि चिश्ती बांह पकड़ कर ले गये एक साइनबोर्ड के नीचे और जो पाकिस्तान पर्यटन की ओर से लगाया गया था- There is a Funny storey से शुरुआत और फिर पूरी कहानी नरसिंह अवतार की. अरे खंडहर मे तब्दील हो चुकी प्रहलाद पुरी मे स्थित विशाल किले के भग्नावशेष चीख चीख कर उसकी प्राचीन ऐतिहासिकता के प्रमाण दे रहे थे. वहां उस समय मदरसे चला करते थे और एक क्रिकेट स्टेडियम भी था.
पूरी कहानी यह कि देवासुर संग्राम के दौरान दो ऐसे अवसर भी आए जब सुर- असुर ( आर्य- अनार्य ) के बीच संधि हुई थी.. एक भक्त ध्रुव के समय और दूसरी प्रहलाद के साथ. जब हिरण्यकश्प का वध हो गया तब वहां एक विशाल यग्य हुआ और बताते हैं कि हवन कुंड की अग्नि छह मास तक धधकती रही थी और इसी अवसर पर मदनोत्सव का आयोजन हआ...जिसे हम होली के रूप में जानते हैं. यह समाजवादी त्यौहार क्यों है, इसका कारण यही कि असभ्य-अनपढ़- निर्धन असुरों को पूरा मौका मिला देवताओं की बराबरी का. टेसू के फूल का रंग तो था ही, पानी, धूल और कीचड़ के साथ ही दोनों की हास्य से ओतप्रोत छींटाकशी भी खूब चली.. उसी को आज हम गालियों से मनाते हैं
मुल्तान की वो ऐतिहासिक विरासत बावरी ध्वंस के समय जला दी गयी. बचा है सिर्फ वह खंभा जिसे फाड़ कर नरसिंह निकले थे. गुगल में प्रहलादपुरी सर्च करने पर सिर्फ खंभे का ही चित्र मिलेगा.
यह कैसी विडंबना है कि हमको कभी यह नहीं बताया गया और न ही पाठ्यक्रम में इसे रखा गया. पाकिसतान में तो विरासतें बिखरी पड़ी हैं पर हम बहुत कम जानते हैं. उसको छोड़िए कभी यह बताया गया हमें कि श्रीलंका और नेपाल का भारत के साथ साझा इतिहास है ? नहीं ....! आड़े आ गया होगा सेक्यूलरिज्म.
तो भाई रवीश कुछ देर तो प्रेरणा मे समय बिताया होता, ढेर सारी गलतफहमी दूर हो गयी होती और उनमें एक यह भी कि संघ के किसी कार्यक्रम-बौद्धिक में कभी मुसलमानों के खिलाफ कुछ नहीं बोला - सुना जाता. आरोपों का संघ भी खुल कर कभी जवाब नहीं देता, यह मेरे लिए भी अभी तक एक अबूझ पहेली है.
दूसरी ओर जनसुनवाई का आलम यह है कि भारत के लोगों को डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाले और सोशल साइट्स पर सबसे सक्रिय राजनेताओं में शुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास अपनी ई-मेल आईडी नहीं है । छत्तीसगढ़ के एक कारोबारी ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से सूचना का अधिकार (आरटीआई) के जरिए यह चौंकाने वाली जानकारी हासिल की है। छत्तीसगढ़ की सीएसआर कंपनी के फाउंडर रुसेन कुमार ने आरटीआई ऐक्ट के तहत पीएमओ में पत्र लिखकर उनका प्रयोग में आने वाला ई-मेल अड्रेस मांगा था।
इसके जवाब में पीएमओ की ओर से 17 फरवरी को एक पत्र (क्रमांक 10335/2014) भेजा गया, जिसमें बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास कोई निजी मेल आईडी नहीं है। पत्र में यह भी लिखा गया कि किसी भी विषय में जानकारी, फीडबैक, सुझाव या शिकायत के लिए वह प्रधानमंत्री की आधिकारिक वेबसाइटhttp://pmindia.gov.in/en/interact-with-pm/ के जरिए संपर्क किया जा सकता है।
पीएमओ का जवाब मिलने के बाद रुसेन ने रायगढ़ में कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री के पास एक अदद ई-मेल आईडी नहीं है। मोदी सरकार भारत को डिजिटल इंडिया बनाने की ओर अग्रसर है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने में सबसे बड़ा योगदान सोशल मीडिया का रहा है, ऐसे में इंफर्मेशन टेक्नॉलजी और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने वाली सरकार के प्रधानमंत्री के पास ई-मेल आईडी का न होना कई सवाल उठाता है।
रुसेन ने दावा किया कि पत्र में दिए यूआरएल के जरिए पीएम तक अपनी बात पहुंचाने के लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। प्रधानमंत्री से जुड़ने के लिए यूजर को वहां एक नया अकाउंट बनाना पड़ता है। साथ ही इस वेबसाइट को एकतरफा कम्युनिकेशन के लिए तैयार किया गया है। रिक्वेस्ट/ फीडबैक/सुझाव भेजने के बाद वह प्रधानमंत्री तक पहुंचा कि नहीं इसकी जानकारी निकालने का कोई तरीका नहीं है। रुसेन का कहना है कि प्रधानमंत्री तक अपनी बात पहुंचाने के लिए आम आदमी को ऐसा कोई मंच नहीं दिया गया है जो आसान, सस्ता और त्वरित हो।
Shames certainly. Now that the film is on Youtube, millions would have watched it by this evening !!
The documentary is not going to 'defame India' it's the idiotic justifications for banning it, as articulated...
एनजीओ गैंग की शातिराना हरकत बयाँ करती ग्राउंड जीरो रिपोर्ट...ज़मीन हड़प अध्यादेश के खिलाफ संसद मार्ग पर विशाल रैली, 24 फरवरी 2015...मीडिया में न...
इतनी जल्दी क्यों हिलीं आम आदमी पार्टी की चूलें? क्या पार्टी के अंदर का घमासान वैचारिक टकराव है? http://bbc.in/1B4Q5Na
Mr. Kezariwal as C.M. touched the feet of Mr. Anna Hazare who spoke against Mr. Kezariwal and the AAP !
आज अन्ना जी के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया.
उनका जीवन हमारे लिए बहुत बड़ा प्रेरणा-स्रोत है!
कल दिन में 3 बजे जंतर मंतर पर मनीष के साथ अन्ना जी के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध चल रहे आन्दोलन का समर्थन करने जाऊंगा!
The West had their chance to show what their democracy looks like when they applied it to Russia in the 1990's. Their methods have not changed since then. There is nothing new that could be offered, and the Russian people have declared that they do not want another round of the old. The best thing to do is to let them be. Only when the external pressure subsides will they be able to address their own problems without being accused, sometimes rightfully and sometimes inaccurately, of working for or being exploited by foreign governments
An ever decreasing segment of the Russian population continues to be sincerely convinced that those on the other shore enjoy the ever increasingly nebulous concept of democracy. The last two decades are awash with the most glaring examples of human rights abuses across the globe committed by those w…
No wonder the Saudis gave him the award. They share the very same obnoxious and backward views. ~ Zakir Naik is the same man who had earlier said that 'Quran allows Muslims to have sex with female slaves'.
~ Naik had reportedly said Muslims should beware of people saying Osama bin Laden was right or wrong, adding: "If you ask my view, if given the truth, if he is fighting the enemies of Islam, I am for him."
Zakir Naik, a renowned Indian Islamic scholar and an authority on comparative religion, has received one...
महाराष्ट्र में BJP सरकार ने मुस्लिमों का कौन सा आरक्षण खत्म किया, फोटो पर क्लिक करके जानें...
महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार ने मुसलमानों के शिक्षा संस्थानों में दिया गया आरक्षण रद्द कर दिया है...
डॉक्युमेंट्री बैन समेत तमाम मुद्दों पर निर्भया के पिता ने हमसे बातचीत में क्या-क्या कहा, फोटो पर क्लिक करके पढ़िए... उनकी बातें बैन का समर्थन करने वालों के विचार बदल सकती हैं...
हमारे साथ खास बातचीत में निर्भया के पिता ने डॉक्युमेंट्री बैन करने पर नाराजगी...
फिल्म को रोकने की जरूरत नहीं है। उन लोगों को रोकिए जो महिलाओं को लेकर घटिया बयानबाजी करते हैं और घटिया सोच रखते हैं। जो रेप के लिए लड़की को ही जिम्मेदार ठहराते हैं।
हाल ही में निर्भया के रेपिस्ट मुकेश के इंटरव्यू से सनसनी फैल गई है। यह जानकर लोग सकते में हैं कि उसे अपने किये का जरा भी मलाल नहीं। वह तो लड़कियों को ही रेप के लिए जिम्मेदार मानता है। उसने कहा कि निर्भया को रेप का विरोध नहीं करना चाहिए था, रेप होने देना चाहिए था, वह रात में बाहर घूम रही लड़की को 'सब…
BLOGS.NAVBHARATTIMES.INDIATIMES.COM|BY सिंधुवासिनी
Appeal to Modi???? Please have some self respect. Your film will be seen and circulated . They cant stop it.
India's Daughter director Leslee Udwin appeals to Indian PM to deal with 'unceremonious silencing of the film'
THEGUARDIAN.COM|BY MASEEH RAHMAN
दिल्ली गैंगरेप पर बनी डॉक्युमेंट्री के खिलाफ़ मचे कोहराम पर बीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास का ब्लॉग. http://bbc.in/1BTkIr9
The Economic Times
JUST IN: Arvind Kejriwal resigns as AAP Convenor, says: Want to focus on Delhi alone. AAP's National Executive meeting to discuss and take a final call on Kejriwal's resignation as Convenor. MORE DETAILS:http://ow.ly/JUeeR
The Economic Times
The sub-continent as a whole offers the best value for money, with Mumbai, Chennai and New Delhi also being ranked on the lower end of the 'Worldwide Cost of Living Report 2015' compiled by the Economic Intelligence Unit (EIU).
London, comes in as 11th-most expensive place, and is now as pricey as Tokyo, which was replaced...
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