आधार के रास्ते अब भारत पर इजरायली कंपनियों का धावा
फासीवाद के खिलाफ आपकी लड़ाई कितनी असली है और कितनी नकली!
पलाश विश्वास
शहीद दिवस के मौके पर भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम हरि राजगुरु को नमन। 23 मार्च, 1931 को ये वीर 'मेरा रंग दे बसंती चोला' गाते हुए फांसी पर चढ़ गए थे। उस वक्त इन तीनों की उम्र केवल 22-23 साल थी।
नवभारत टाइम्स के सौजन्य से।
डरने की जरुरत नहीं है।हम किसी से भगत सिंह बन जाने की अपील नहीं कर रहे हैं।सही मायने में शहादत और खुदकशी का मौका यह है भी नहीं है।लेकिन अपने पुरखों की शहादत को याद करके अपनी भूमिका समझने और उसे अमल में लाने का इससे बेहतर कोई मौका है ही नहीं है।
हमने अपने वामपंथी मित्रों की नापसंदगी की परवाह किये बिना पिछले पूरे एक दशक से बहुसंख्य बहुजनों को आर्थिक मुद्दों पर संबोधित करनेकी कोशिशें जारी रखी हैं।हमारे बहुजन जब तक मुक्तबाजार के तिलिस्म के तिलिस्म समझते नहीं हैं,किसी तरह के प्रतिरोध की छोड़िये,सही मायने में जनपक्षधरता और जनांदोलन की रस्म अदायगी के अलावा हम कुछ भी करने में असमर्थ हैं।
हम हस्तक्षेप में छपे अपने युवा मेधावी मित्र अभिनव शर्मा की वाम पहल की अपील से शत फीसद सहमत है,वामपंथ को प्रतिक्रियावादी रुझानों से बचना ही होगा।
जैसे कि हमारे प्रबुद्ध मित्र आनंद तेलतुंबड़े कहते हैं कि मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था का फेनामेनान बेहद जटिल फरेब है,इसे हम पूरी तरह अभी समझ नहीं सके हैं तो मुकाबला करने की हालत में भी हम नहीं है।पहले मुक्त बाजार को समझ तो लें।रणनीति बनायें मुकाबले की और जमीन पर उसे अमल में लाने की कूव्वत रखे।प्रतिबद्धत और समझ हों।
हम तो अपनी औसत मेधा और कामचलाउ समझ के साथ संवाद का सिलिसिला बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं,लेकिन जो समझदार लोग हैं,उनकी खामोशी हैरत अंगेज हैं।
कब तक आखिर पटनायक और बिदवई जैस समझदार अर्थशास्त्री कुलीनों को ही संबोधित करेंगे और कब आखिरकार वे सीधे आर्थिक मुद्दों पर जनता को संबोधित करेंगे,यह हमारे लिए पहेली है।क्या गौतम नवलखा और सुभाष गाताडे प्रयाप्त लिख रहे हैं,क्या मुशरर्फ अली,अभिषेक श्रीवास्तव,अमलेंदु उपाध्याय और रियााज जैसे लोग प्रायप्त लोड उठाने को तैयार हैं,हमारी चिंता यह है।हमारे जो समर्थ और समझदार लोग हैं,उनकी निष्क्रियता और उनकी अपर्याप्त सक्रियता हमारे लिए सरदर्द का सबब है।
क्या आनंद स्वरुप वर्मा सिर्फ तीसरी दुनिया तक सीमाबद्ध रहेंगे और पंकज बिष्ट समयांतर तक,हमारे लिए पहेली यह है।
वामदलों की आर्थिक समझ कही कम्युनिकेट क्यों नहीं हो रही है।आर्थिक मुद्दों के विश्लेषण पर पोलित ब्यूरो के प्रेस बयान जारी क्यों नहीं हो रहे हैं और वाम दल क्यों नहीं,देशभर में अब भी बचे हुए कैडर बेस का इस्तेमाल करते हुए इस मुक्त बाजारी तिलिस्म को तोड़ने की कोशिश नहीं कर रहे हैं,यह हमारी समझ से परे हैं।
पहेली यह है कि बहुजन राजनीति कब तक अस्मिता केंद्रेत भाववाद के भंवर में फंसी रहेगी और बिन आर्थिक मुद्दों को छुए समता और सामाजिक न्या के दिवास्वप्न जीते हुए बहुजनों को संघ परिवार के हवाले करती रहेगी।
हमारे पास न प्रिंट मीडिया है और न इलेक्ट्रानिक मीडिया,ले देकर हमने अब भी एक तोपखाना हस्तक्षेप के पोर्टल बजरिये चालू रखा है।
हम जानते हैं कि हमारे लोग हमारे प्रयास को जारी रखने के लिए किसी किस्म का आर्थिक सहयोग नहीं करने वाले हैं।लेकिन जब तक हम इसे चला सकते हैं,इसी तेवर के साथ हम चलाते रहेंगे।
फासीवाद या मुक्तबाजार का प्रतिरोध कोई हवा में तलवारें चमकाना या लाठियां भांजना नहीं है जबकि दुश्मन दोस्त की शक्ल अखितयार करके जनता के बीच मारक हमले के लिए घात लगाये बैठे हों।
भेड़ियों से लड़ना सरल है ,जंगल के खूंखार जानवरों से लड़ना सरल है,लेकिन सीमेंट के जगल में मिलियनर बिलियनर राष्ट्रद्रोही फासिस्ट सत्तावर्ग के हितों से टकराना बच्चों का खेल नहीं है।
अगर हम मुक्त बाजार और फासीवाद के खिलाफ अपनी तमाम सीमाओं के साथ मोर्चे पर डटे हैं तो संघ परिवार के एजंडे के खिलाफ जो लोग हैं,उन्हें कम से कम हमारा साथ देना चाहिए,ऐसी हमारी अपील है।
भले ही आप हमें आर्थिक तौर पर कोई मदद देने की हालत में न हो,लेकिन हस्तक्षेप में हम निरंतर जो सूचनााएं मर खप कर रोज रोज लगा रहे हैं,उन्हें जनता तक पहुंचाने में आप सांगठनिक तौर पर और निजी तौर पर कोशिश करें,कमसकम सोशल मीडिया पर हमरे लिंक शेयर करें तो यह मौजूदा हालत में हमारी सबसे बड़ी मदद होगी।
हम यह मानते हुए कि असली ताकत बहुसंख्य बहुजन समाज में है,इस यथार्थ से इंकार नहीं कर सकेत कि भाववादी मुद्दों को छोड़कर वे सामाजिक यथार्थ और खासतौर पर आर्थिक मुद्दों पर सोचने समझने की हालत में नहीं है।
संघ परिवार को इसका लाभ मिल रहा है।
धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की पैदल सेना में तब्दील है बहुजन समाज और जब तक इस हालात में बदलाव नहीं होंगे,इस देश को फासीवादी हिंदू राष्ट्र बनने से कोई रोक ही नहीं सकता।
बहुजनों को सत्ता में भागीदारी देकर सत्ता की राजनीति के सबसे बड़े मोहरे में तब्दील करने में संघ परिवार को बेमिसाल कामयाबी मिली है तो दूसरी तरफ संघ विरोधी जनपक्षधर मोर्चा अब भी बहुजनों के साथ अस्पृश्यता का आचरण कर रहा है।
संघी नस्ली रंगभेद के मुकाबले यह जनपक्षधर रंगभेद कम खतरनाक नहीं है।ऐसी हालत में फासीवाद के खिलाफ लड़ाई ख्याली पुलाव के किलाफ कुछ भी नहीं है।
मजा तो यह है कि जो लोग हिंदू साम्राज्यवाद का झंडा दुनियाभर में फहराने का एजंडा अमल में ला रहे हैं,जो लोग शत प्रतिशत हिंदुत्व के लिए सोने की चिड़िया भारत के टुकड़े टुकड़े काट काटकर बहुराष्ट्रीय पूंजी के हवाले करने के लिए भारत को अमेरिका और इजरायली उपनिवेश बना रहे हैं सिर्फ मनुस्मृति राजकाज की बहाली के लिए वे अब एक घाट पर सबको पानी पिलाकर अलस्पृश्यता मोचन का नारा लगा रहे है,जिसका बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे से कुछ लेना देना नहीं है और समूचा बहुजन समाज इस फरेब में समरसता,समता और सामाजिक न्याय की तस्वीरें देख रहा है।
सबसे कटु सत्य यह कि फासीवाद का मुकाबला कर रही ताकतों का जनता के मध्य दो कौड़ी की साख नहीं है।
वातानुकूलित कमरे से बाहर फासीबाद की लड़ाई,अखबारी क्रांति और चाय की प्याली की तूफान के बाहर हिंदुत्व की सुनामी के मुकाबले,शत प्रतिशत हिंदुत्व के एजंडे के मुकाबले,भारत कोइस्लाम और ईसाईमुक्त करने की संघ परिवार की 2021 की टाइम लाइन के मुकाबले,आर्थिक सुधारों के बहाने नरसंहारी अश्वमेध के किलाफ,बेलगाम सांढ़ों और घोड़ों के खिलाफ हम जनता के बीच प्राथमिक संवाद तो शुरु ही नहीं कर सके हैं,जनता तक अनिवार्य सूचनाएं पहुंचाने के फौरी कार्यभार जो इस केसरिया कारपोरेट तिलिस्म को तोड़ने का सबसे अहम काम है,को फासीवाद विरोधी ताकतें सिरे से नजरअंदाज किये हुए हैं।
प्रधानमंत्री की मन की बातों की हम चाहे धज्जियां उड़ा दें,हकीकत यह है कि सरकारी बेसरकारी हर माध्यम का इस्तमाल करके संघ परिवार अपने एजंडे के पक्ष में पूरे 120 करोड़ लोगों को संबोधित कर रहा है।
कटु सत्य यह है कि संघ परिवार की पहुंच के मुकाबले में हमारी आवाज हजारों लोगों तक भी नहीं पहुंच रही है।हमें लेकिन इसका अहसास तक नहीं है।जिनतक आवाज पहुंचती भी है,वे इतने लापरवाह हैं कि वे इस आवाज में अपनी आावाज मिलाने की कोई हरकत करते नहीं हैं।
सूचना नेटवर्क पर यह एकाधिकार ही संघ परिवार को उसके संपूर्ण मास डेस्ट्राक्शन के कयामती एजंडे को अमल में लाने का पारमाणविक मुक्तबाजारी हथियार है।
सूचना नेटवर्क से बेदखली का सीधा संबंध जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता पर्यावरण,नागरिक मानवादिकारों से बेदखली से है.इसे समझते हुए हम इससे निपटने के लिए क्यों कुछ नहीं कर रहे हैं,इससे फासीवाद विरोधी मोर्चे के सरोकार पर ही सवालिये निशान लग रहे है।
इन जरुरी बातों के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे खतरनाक जो होने वाला है,वह फिर वहीं निराधार आधार का अंजाम है,जिसके खिलाफ चेता रहे हैं हम यह योजना पेश होते न होेते।
सिर्फ लिखकर नहीं,देश भर में दौड़ते हुए देश के कोने कोने में बहुजनों को सीधे संबोधित करते हुए।
ताजा सूचना यह है कि आधार के रास्ते अब भारत पर इजरायली कंपनियों का धावा है।इस सूचना की गंभीरत समझने वाले लोगों से विन्मर आवेदन है कि इसे अधिकतम लोगों तक पहुंचाने में हमारी मदद करें।
हमारे आदरणीय मित्र गोपाल कृष्ण जी सिलसिलेवार तरीके से यह खुलासा करते रहे हैं कि असंवैधानिक आधार योजना से इंफोसिस कैसे मालामाल होता रहा है।
आईटी कंपनियों ने चांदी काटी लगातार है और उनका ग्रोथ बाकी कारपोरेट कंपनियों के मुकाबले हैरत अंगेज है।
अभी डिजिटल,बायोमेट्रिक रोबोटिक देश बनाकर इसे इजरायली अमेरिका साझा उपनिवेश बनाकर फिर बारत विभाजन का जो आत्मघाती हिंदुत्व का एजंडा है,उससे मालामाल फिर आईटी कंपनियां होने वाली हैं।जिनमें आधार इंफोसिस अव्वल है।
मुक्तबाजार की सारी आर्थिक गतिविधियां अब स्टर्टअप और ऐपेपस के हवाले हैं।पेपरलैस इकानामी का प्रयावरण प्रेमी फंडा लेकिन आईटी मुनाफा है।
बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक सांढ़ों की दौड़ आई टी निर्भर है और आईटी सेक्टर और प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर बाजार को आगे लेकर जा सकते हैं। इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो इन सभी शेयरों में अच्छा खासा कंसोलिडेशन देखने को मिला है।
कृषि को खत्म करके केसरिया कारपोरेट राष्ट्र की सर्वोच्च प्राथमिकता आईटी संबद्ध सेवा क्षेत्र हैं तो सार्वजनिक क्षेत्र के सारे उपक्रमों का जो विनिवेश हो रहा है,सो तो हो ही रहा है,उत्पादन से जुड़े हुए तमाम सेक्टरों का सफाया तय है।
खास बात यह है कि जिस सूचना नेटवर्क पर एकाधिकार की वजह से पूरे एक सौ बीस करोड़ जनता हिंदू साम्राज्यवाद की नरसंहारी मुक्ताबाजारी तिलिस्म में कैद बंधुआ गुलामों में तब्दील है और उनमें मुक्ति कामी नागरिकों का कोई संप्रभू स्वतंत्र लक्षण नहीं है।
आधार परियोजना की अमेरिका और नाटो की निगरानी प्रणाली को भारत में हकीकत में बदलकर मालामाल होने वाली कंपनी वहीं सूचना नेटवर्क अब इजराइल के हवाले करने वाली है।
यह कितना खतरनाक है ,इसे यूं समझिए कि 2021 तक भारत को इस्लाम और ईसाई मुक्त बाने की टाइम लाइन तय कर चुके संघ परिवार ने पहले ही भारतीय विदेश नीति और राजनय इजराइलकेमुताबिक बना लिया है और अरब दुनिया के खिलाफ युद्ध घोषणा के तहत चौथी बार इजाराइल के प्रधानमंत्री बनने वाले प्रचंड इस्लाम और अरब विरोधी नितान्याहु की जीत पर खामोश इजराइल के सबसे बड़े साझेदार के मुकाबले नितान्याहु से मित्रता की डींग भरते हुए उन्हे सबसे पहले बधाई देने वाले भारत के प्रधानमंत्री ही रहे हैं।
यह कितना खतरनाक है ,इसे यूं समझिए कि कांग्रेस जमाने से सत्ता वर्ग के हितों के लिए सैन्यराष्ट्र बनाने के सिलसिले में सोने की चिड़िया प्राकृतिक संसाधनों की अकूत संपदा वाले भारत को मुक्तबाजार बनाने के सिलसिले में न सिर्फ इस्लाम के खिलाफ अमेरिका और इजराइल के युद्ध में भारत ब्रिटेन से बड़ा,नाटो से भी बड़ा पार्टनर बना हुआ है ,बल्कि भारत की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा भी इजाराइल के हवाले है।
अब आधार परियोजना का सही तात्पर्य फिरभी लोग न समझें तो इस देश को फिर विभाजन और विध्वंस से कोई करिश्मा बचा नहीं सकता।
इंफोसिस ने तो सिर्फ भारतीय मुक्तबाजार का सिंहद्वार इजराइली कंपनियों के लिए खोला है,संघ परिवार का राजकाज आगे भारत में इजराइली पूंजी का जो अबाध प्रवाह सुनिश्चित करने वाला है,उसके बाद भारत ही नहीं,समूचे उपमहाद्वीप में अल्पसंंख्यकों, जिनमें भारत के बाहर फंसे हुए हिंदू भी शामिल है,की जिंदगी जो कयामत बनेन वाली है।
अब सोच लीजिये कि फासीवाद के खिलाफ आपकी लड़ाई कितनी असली है और कितनी नकली।
इसी सिलसिले में मित्र उदय प्रकाश का यह ताजा स्टेटस
दोस्तो, अभी राजधानी दिल्ली के एक महत्वपूर्ण केंद्रीय विश्वविद्यालय में मीडिया तथा जन-संचार माध्यम के छात्रों की कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करने के बाद लौटा हूँ और पत्नी ने ब्राह्मणवादी, संघी तथा देशद्रोही उग्र-जातिवादियों द्वारा फ़ेसबुक पर अभद्र टिप्पणियों के बारे में सूचना दी।
दो-चार टिप्पणियाँ सरसरी तौर पर देख कर जातिवादी ब्राह्मणवादियों से एक बहुत अनिवार्य और सरल प्रश्न पूछ रहा हूँ।
यह 'वृहत्तर भारतीय समाज' की वास्तविक बनावट को समझने के लिए, प्राथमिक पाठशाला (प्राइमरी स्कूल) के पहले पाठ का पहला प्रश्न है।
इसका उत्तर वे लंपट, देशद्रोही, राष्ट्रघाती, जातिवादी अवश्य दें, जो फ़ेसबुक को अपनी मानसिक विकृतियों से पाट कर, प्रदूषित कर रहे हैं।
प्रश्न यह है कि इस देश की संपूर्ण सवा सौ करोड़ की जनसंख्या में 'ब्राह्मण' कितने हैं? और ब्राह्मण है कौन ?
मनुस्मृति में ब्राह्मण जाति को परिभाषित किया गया है।
त्रिं संध्या न पूजते, त्रिं संध्या न उपासते,
जीविन्नेवभवेच्छूद्रो, मृतको श्वान उपजायते ।
यानी जो 'ब्राह्मण' दिन में तीन बार 'संध्या-पूजन' और उपासना नहीं करता, (इसमें हर बार लगभग एक घंटा लगता है), वह जीवित रहते हुए 'शूद्र' होता है और मरने पर श्वान (कुत्ते) के रूप में जन्म लेता है।
अगर कोई 'ब्राह्मण' हो तो प्रस्तुत हो।
वरना जो निंदनीय भाषा में देश को जाति और संप्रदाय की पारस्परिक नफ़रत और हिंसा की आग में झोंक रहे हैं, वे किसी मानवीय प्रजाति के हैं नहीं।
श्वान भी इन जैसों से श्रेष्ठ इसलिए है कि धर्मराज के साथ स्वर्ग वही गया था।
ये तो दोज़ख़ या नर्क के नराधम शैतान और सर्वभक्षी दैत्य हैं।
भारत की जनता और उसकी महान विरासत को इनकी करतूतों से बचाना है।
एक स्टेटस यह भी गौरतलब हैः
आई.के यादव
खेतों में लहलहाती फसलों की तबाही को लेकर भारत के किसान जंहा एक तरफ दर दिन आत्म हत्याये कर रहे है।वही मोदीजी मन की बात करके दिलाशा बांटते फिर रहे है,जब देश के किसान ही ख़त्म हो जायेंगे तो देश की जनता क्या विदेशी पिज्जा और बर्गर खाकर दिन बिताएगी।बीते दिन मोदीजी ने जब किसानों से मन की बात की तो उनकी मन की बात सुनकर ४ किसानों ने फांसी लगाकर आत्म हत्या कर ली। गैर देशों के लिए मोदीजी ने जमकर धन उड़ाये मोदीजी ने भूटान को 4500 करोड़,नेपाल को 10000 करोड़,अदानी को 70 मिलियन डॉलर लोन बाटें,खुद को 10 लाख का शूट बांटे और देश के मरते किसानों को मोदीजी सिर्फ मन की बाते बाटते फिर रहे है,आख़िरकार सत्ता हाशिल करनें के बाद मोदी जी को देश के किसानों की आत्म हत्याओं के बारे में पता नहीं की इसकी सूचना उन तक कोई पहुंचाता नहीं है।वैसे वर्तमान में सच्चाई तो यही बयां कर रही है की मोदी जी का मन आज कल विदेशी दौरों में ज्यादा लग रहा है ...
!! ॐ !! आई.के यादव
मजे की बात है कि भारतीय भाषाओं में यह सूचना कहीं दर्ज नहीं है।
इसलिए हम इकानामिक टाइम्स को उद्धृत कर रहे हैंः
To set aside $125m for Silicon Valley, Israel & India Cos
Infosys plans to allocate a quarter of its $500-million fund to invest in startups in Silicon Valley , Israel and India along with venture capital firms.
India's second-largest software services exporter has had discussions with about two dozen VC firms for such investments, including Andreessen Horowitz, two people familiar with Infosys' strategy said, both re questing anonymity . questing anonymity .
"There are no formal agreements with any particular VCs. The strategy is to back startups and entrepreneurs with ideas that align with the company ," one of them said. "The idea is not just to be a passive financial investor but take disruptive solutions to customers."
Infosys chief executive Vishal Sikka is seeking to broaden the company's offerings in newer areas of technology to differentiate it from rivals such as Cognizant and Wipro amid a rapidly evolving technology landscape.
The company made its first startup in vestment last month, sinking about $15 million in a firm spun off from DreamWorks Animation. Shortly after, Infosys bought US and Israel-based automation startup Panaya in a deal estimated to be about $200 million (Rs 1,200 crore).
Infosys is not the only Indian technology firm to have set up a separate arm or fund to invest in startups. Last year, crosstown rival Wipro set up a corporate venture arm with a corpus of $100 million to invest in startups. In an interview with ET in February , Sikka said Infosys was holding discussions with venture capital firms almost daily .
Rs 1,000000000000 Cr in the Basket this Year
The Indian digital commerce market has registered an average growth of almost 35% since 2010, according to IAMAI. The industry is projected to grow further at a rate of 33% and cross `1 lakh crores by the end of 2015
अल्पसंख्यकों पर हमले के बाद बयानबाज़ी में भारत और पाकिस्तान एक जैसे. वुसतुल्लाह ख़ान का ब्लॉग.
धर्मांतरण को लेकर राजनाथ सिंह ने और क्या-क्या कहा, फोटो पर क्लिक करके पढ़ें...
गृह मंत्री ने अल्पसंख्यक आयोगों के सम्मेलन में धर्मांतरण विरोधी कानून की जरूरत पर बहस की वकालत की...
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फ्रांस, जर्मनी, इटली और चीन समेत छह देशों की प्रतिष्ठित कंपनियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम...
"I believe the government at the Centre is run by RSS. It is an RSS government. You are confused, I am not confused at all,"
Centre is run by RSS: Teesta Setalvad - Stressing that a process has been on since then, she said each time this government came to power, their agenda was...
hastakshep.com and 3 others shared a link.
हाशिमपुरा नरसंहार में मारे गए 42 लोगों के मामले में अदालत ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया है। यह सीआईडी की लचर तफ्तीश का बड़ा उदाहरण है। यह टिप्पणी...
हाशिमपुरा बोलता है-9
बहुत हुआ मुसलमानों का तुष्टीकरण. कितने दिनों तक एक ही समुदाय का तुष्टीकरण होता रहेगा? अब बाकी समुदायों का भी तुष्टीकरण होना चाहिए.
करवाना है आपको अपना तुष्टीकरण? तो लग जाइए लाइन में.
भारत में दो तरह के लोग रहते हैं. एक जिनका तुष्टीकरण हो रहा है. दूसरे, जिनका तुष्टीकरण नहीं हो पा रहा है. ये तस्वीरें पहली कटेगरी के लोगों की है जिनका यहां तुष्टीकरण किया जा रहा है.
कितने अभागे हैं वे जिनका तुष्टीकरण नहीं हो पा रहा है!
'It is necessary for every person who stands for progress to criticise every tenet of old beliefs,' wrote the 23-years-old revolutionary.
SCROLL.IN|BY BHAGAT SINGH
नौजवान भारत सभा द्वारा इलाहाबाद के छोटा बघाड़ा में भगत सिंह; राजगुरु और सुखदेव के शहादत दिवस पर सुबह सुबह क्रांतिकारी गीत गाते हुए प्रभात फेरी निकाली गई और प्रयाग स्टेशन पर नुक्कड़ सभा की गई |
Satya Narayan
भाजपा और संघी गिरोह के संगठनों ने भगतसिंह का नाम लेना तो तभी बन्द कर दिया था जब भगतसिंह के विचार लोगों के बीच प्रचारित होने लगे और यह साफ़ हो गया कि वे मज़दूर क्रान्ति और कम्युनिज़्म के विचारों को मानते थे और साम्प्रदायिकता तथा धर्मान्धता के कट्टर विरोधी थे। लेकिन जनता के बीच भगतसिंह की बढ़ती लोकप्रियता को भुनाने के लिए इन फासिस्टों ने भगतसिंह को भी अपने झूठों और कुत्सा-प्रचार का शिकार बनाने की घटिया चालें चलनी शुरू कर दी हैं। इतिहास के प्रमाणित तथ्यों और दस्तावेज़ों को धता बताते हुए वे प्रचारित करते हैं कि भगतसिंह के नाम से मज़दूर क्रान्ति और समाजवाद के बारे में जो लेख और बयान छपते रहे हैं वे वास्तव में उनके हैं ही नहीं। कुछ वर्ष पहले संघ के भोंपू 'आर्गनाइज़र' और 'पाँचजन्य' का एक विशेष अंक इसी पर निकाला गया था जिसमें साबित करने की कोशिश की गयी थी कि भगतसिंह केवल एक राष्ट्रवादी थे और क्रान्ति के बारे में उनके जो भी विचार सामने आये हैं वह दरअसल कुछ वामपन्थी संगठनों और बुद्धिजीवियों की साज़िश है। पिछले करीब दो दशक से बड़े पैमाने पर भगतसिंह के साहित्य को प्रकाशित करके जन-जन तक पहुँचाने की कोशिश में लगे 'राहुल फ़ाउण्डेशन और 'जनचेतना' को नाम लेकर इसके कई लेखों में निशाना बनाया गया था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने मेरठ, मथुरा और दिल्ली सहित कई जगहों पर 'जनचेतना' की पुस्तक प्रदर्शनियों पर हमले भी किये और भगतसिंह की पुस्तिका 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' को फाड़ने की भी कोशिश की। यह अलग बात है कि हर जगह तगड़ा प्रतिरोध होते ही वे कायरों की तरह भाग खड़े हुए।
पिछले 67 वर्षों से भगतसिंह के सपनों की हत्या करने में लगे कांग्रेसी भी आज मजबूरी में उनके नाम को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। इनकी सरकारों ने 1947 के बाद से ही भगतसिंह और उनके साथियों के क्रान्तिकारी विचारों को दबाने की साज़िशें कीं और आज़ादी की लड़ाई में उनके महान योगदान को छोटा करके पेश किया। इन विचारों को वे अपने लिए भी उतना ही ख़तरनाक मानते थे जितना अंग्रेज़ सरकार मानती थी। भगतसिंह और उनके साथी इस बात को समझने लगे थे कि कांग्रेस के झण्डे तले गाँधीजी ने व्यापक जनता के एक बड़े हिस्से को भले ही जुटा लिया हो, पर कांग्रेस उनके हितों की नुमाइन्दगी नहीं करती, बल्कि देशी धनिक वर्गों के हितों की नुमाइन्दगी करती है और उन्होंने लोगों को चेतावनी दी थी कि कांग्रेस की लड़ाई का अन्त किसी न किसी समझौते के रूप में ही होगा। भगतसिंह ने साफ़-साफ़ कहा था गोरे अंग्रेज़ों की जगह काले अंग्रेज़ों के गद्दी पर बैठ जाने से इस देश के मेहनतकशों को कुछ नहीं मिलेगा।
इनकी हरचन्द कोशिशों के बावजूद भगतसिंह के विचार देशभर में फैलते ही गये हैं और आधी-अधूरी आज़ादी की सच्चाई लोगों के सामने आने के साथ ही क्रान्तिकारियों की पुकार उनके दिलों में और पुरज़ोर ढंग से गूँजने लगी है। ऐसे में अब तरह-तरह के पाखण्डी, मक्कार और चुनावी मदारी भगतसिंह के नाम और छवि का इस्तेमाल करने की निर्लज्ज हरकतें करते दिखायी दे रहे हैं। पिछले दिनों चुनावी अखाड़े के नये जोकर अरविन्द केजरीवाल को एक टीवी चैनल पर बड़ी बेशर्मी से भगतसिंह की फोटो का इस्तेमाल कर अपनेआप को "क्रान्तिकारी" दिखाने की कवायद करते पकड़ा गया था। अन्ना हज़ारे, रामदेव और जनरल वी.के. सिंह जैसे धुर दक्षिणपंथियों से लेकर सुब्रत राय जैसे अपराधी भी भगतसिंह की फोटो अपने मंच पर टाँगने की हिमाक़त करने लगे हैं।
अब बहुत हो चुका! हमारे नायक को हमसे चुराने की इन गन्दी कोशिशों को नाकाम करने का एक ही तरीक़ा है, कि हम भगतसिंह के इंक़लाबी विचारों को पूरी ताक़त के साथ जनता के बीच लेकर जायें और उनके सपनों का हिन्दुस्तान बनाने की लड़ाई को आगे बढ़ाने में जी-जान से जुट जायें। हमें भगतसिंह के इन शब्दों को हर मज़दूर और हर नौजवान तक पहुँचाना होगाः
जिस वक़्त भगतसिंह और उनके साथी हँसते-हँसते मौत को गले लगा रहे थे, ठीक उस समय, 15-24 मार्च 1931 के बीच संघ के संस्थापकों में से एक बी.एस. मुंजे इटली की राजधानी रोम में मुसोलिनी और दूसरे फासिस्ट नेताओं से मिलकर भारत में उग्र हिन्दू फासिस्ट संगठन का ढाँचा खड़ा करने के गुर सीख रहे थे। जब शहीदों की क़ुर्ब…
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गतसिंह, राजगुरु, सुखदेव और कवि अवतार सिंह पाश की शहादत को सलाम करते हुए.
क्रांति जनता के लिए होगी. कुछ स्पष्ट निर्देश यह होंगे- 1. सामंतवाद की समाप्ति 2. किसानों के कर्जे समाप्त करना 3. क्रांतिकारी राज्य की ओर से भूमि का राष्ट्रीयकरण ताकि सुधरी हुई व साझी खेती स्थापित की जा सके। 4. रहने के लिए आवास की गारंटी 5. किसानों से लिए जाने वाले सभी खर्च बंद करना. सिर्फ इकहरा भूमिकर लिया जाएगा। 6. कारखानों का राष्ट्रीयकरण और देश में कारखाने लगाना 7. आम शिक्षा 8. काम करने के घंटे जरूरत के अनुसार कम करना। (क्रांतिकारी कार्यक्रम का मसौदा-भगतसिंह )
हम झूठ-मूठ का कुछ भी नहीं चाहते
जिस तरह हमारे बाजुओं में मछलियाँ हैं,
जिस तरह बैलों की पीठ पर उभरे
सोटियों के निशान हैं,
जिस तरह कर्ज़ के काग़ज़ों में
हमारा सहमा और सिकुड़ा भविष्य है
हम ज़िन्दगी, बराबरी या कुछ भी और
इसी तरह सचमुच का चाहते हैं
हम झूठ-मूठ का कुछ भी नहीं चाहते
और हम सब कुछ सचमुच का देखना चाहते हैं
ज़िन्दगी, समाजवाद, या कुछ भी और..- पाश
अन्ना हजारे ने कहा कि जो जैसा चश्मा पहनेंगे उन्हें सब कुछ वैसा ही दिखेगा। उन्होंने कहा कि किसानों के सामने जो विधेयक पेश किया जा रहा है...
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अन्ना हजारे ने नरेंद्र मोदी पर इशारों ही इशारों में ताना मारा। उन्होंने कहा कि जैसा चश्मा...
रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में देश के किसानों और गांवों...
प्रधानसेवक जी, आज आपने किसानों से अपनी मन की बात की। मैं तो बस इसी उम्मीद में था कि आपके मन की ब...
Last week, the Coal Ministry confirmed that the Mahan coal block WILL NOT be auctioned! That's more than 400,000 trees and livelihoods of more than 50,000 people saved!
भगत सिंह की शहादत पर डीयू में कल्चरल प्रोग्राम कर रहे क्रांतिकारी युवा संगठन के कार्यकर्ताओं की एबीवीपी ने पिटाई की है।
Heavy snowfall in Badrinath after 31 years
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