शत प्रतिशत के ग्लोबल हिंदुत्व के साथ सुधार अश्वमेध तेज, संसदीय विरोध खेत
अचूक रामवाण है सुधारों के ईश्वर के घेराव का यह मास्टरस्ट्रोक।
शीशे की दीवारों में रहने वाले लोग दूसरों के घरों में पत्थर फेंका नहीं करते।
भारत के प्रधानमंत्री भारत के शंकराचार्यों से बड़े शंकराचार्य नजर आ रहे हैं।शक भी होने लगा है कि वे शंकराचार्य हैं या प्रधानमंत्री।
पलाश विश्वास
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष भले ही भारत की विकास गाथा की खिल्ली उड़ाते हुए भारत सरकार की प्रोजेक्टेड विकास दर को नानसेंस कहते हुए पहले से अमेरिकी मांगों और हितों के मुताबित तय सुधारों को लागू करने में तेजी लाने पर जोर दे रहा हो और परिभाषाओं, विधियों, मानकों और आंकड़ों की प्रामाणिकता पर सवाल खड़े कर दिये हों,ग्लोबल हिंदुत्व के विकास में इस केसरिया कारपोरेट सरकार के कृतित्व पर कोई सवाल ही खड़ा नहीं कर सकता।
गौरतलब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था में चमकीली वस्तु करार देते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने मौजूदा वित्त वर्ष के ग्रोथ का अनुमान बढ़ा कर 7.2 फीसदी कर दिया है।
आईएमएफ ने इसके साथ देश में निवेश चक्र को नए सिरे शुरू करने और संरचनात्मक सुधारों को तेज करने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया है।
आईएमएफ ने भारत के लिए अपनी सालाना असेसमेंट रिपोर्ट में यह भी कहा है कि भारत सबसे तेजी से आगे बढ़ रही बड़ी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में से एक अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरा है और 2015-16 में ग्रोथ की दर बढ़ कर 7.5 फीसदी हो जाएगी।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड अगले सप्ताह भारत आएंगी। इस दौरान, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश के शीर्ष नेताओं से मुलाकात कर सकती हैं।
आईएमएफ के एशिया व प्रशांत विभाग में सहायक निदेशक व भारत के लिए मिशन प्रमुख पॉल कैशिनके मुताबिक लेगार्ड के प्रधानमंत्री मोदी एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात किए जाने की संभावना है।
सार्क शिखर सम्मेलन के मौके पर नेपाल गये भारत के प्रधानमंत्री का हिंदुत्व एजंडा क्या रंग लाया,इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई है।लेकिन पशुपति नाथ मंदिर में उनकी तस्वीर उऩके पंद्रह लाख टकिया सूट से कम बेशकीमती नहीं रही है।
भारत के प्रधानमंत्री भारत के शंकराचार्यों से बड़े शंकराचार्य नजर आ रहे हैं।शक भी होने लगा है कि वे शंकराचार्य हैं या प्रधानमंत्री।
शक भी होने लगा है कि हमरे प्रधानमंत्री अनूठे शिवशक्त हैं कि भारत देश के जनगण के सबसे बड़े प्रतिनिधि,जो शत प्रतिशत हिंदू निरंतर जारी धर्मातरण अश्वमेध अभियान के बावजूद फिलहाल हुआ नहीं है।
मारीशस में गंगा तालाब में गंगोत्री का जल डालने से लेकर उनकी शिव आराधना ग्लोबल हिंदुत्व का सही नजारा पेश कर रहा है।यह अभूतपूर्व है कि विदेश यात्रा पर गये धर्म निरपेक्ष भारत के प्रधानमंत्री इसतरह शत प्रतिशत हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और मीडिया में उनकी आस्था को उनकी शक्ति कहते हुए आंखों देखा हाल प्रसारित हो रहा है।बेशक,यह भारतीय राजनय का नया अध्याय है।
हालांकि मॉरीशस की संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ को बताया है कि भारत मॉरीशस की अर्थव्यवस्था के लिए तटीय क्षेत्र के महत्व को समझता है। उन्होंने कहा, हम भारत पर इसकी निर्भरता को लेकर सचेत हैं। हम दोहरे कराधान निवारण के दुरुपयोग से बचने के लिए हमारे साझा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिल कर काम करेंगे।
यह समझना मुश्किल है कि मारीशस की किस अर्थव्यवस्था की बात प्रधानमंत्री कर रहे थे क्योंकि मारीशस से भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार नवयुग में सबसे ज्यादा विदेशी पूंजी की आवक होती रही है।उनकी शिव आस्था और निवेशक आस्था के रंग इतने इंद्रधनुषी हैं कि अलग अलग पहचानना मुस्किल होता है कि क्या उनका हिंदुत्व है तो क्या उनके विकास का पीपीपी बिजनेस फ्रेंडली विकास का माडल।
गौरतलब है कि बीती रात मॉरीशस के शीर्ष नेतृत्व से बात करने वाले मोदी ने पोर्टलुई में अपनी यात्रा के दूसरे दिन की शुरूआत सुबह के समय पवित्र स्थल को देखने और भगवान शिव के मंदिर में पूजा और आरती करने के साथ की । गंगा तालाव को ग्रांड बेसिन भी कहा जाता है । यह मॉरीशस के मध्य में सावने जिले के दूरस्थ पर्वतीय इलाके में झीलनुमा गड्ढे के रूप में स्थित है । यह समुद्र तल से 1,800 फुट उपर स्थित है ।
गंगा तालाब जाने वाला तीर्थयात्रियों का पहला समूह त्रिओलेत गांव से था और इसका नेतृत्व 1898 में टेरे राउज के पंडित गिरि गोसाईं ने किया था । इसे मॉरीशस का सर्वाधिक पवित्र स्थल माना जाता है और भगवान शिव का मंदिर झील के किनारे स्थित है । शिवरात्रि पर मॉरीशस में बहुत से श्रद्धालु अपने घरों से पैदल चलकर झील तक पहुंचते हैं ।
अब यह साफ हो गया है कि राज्यसभा में सभी विवादित विधायकों को पारित करने का पुख्ता इंतजाम करके मोदी महाराज विदेश यात्रा पर निकले।क्षत्रप तो फिरभी क्षत्रप हैं,उनकी तमाम तरह की मजबूरिया हैं,लेकिन नवउदावादी मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था की जननी कांग्रेस को भी ऐसे घेरा है कि राज्यसभा में भी संसदीय सहमति का अलख जग गया है।
नौ अपैल को मोदी के प्रधानमंत्री बनने के नौ महीने बाद मोदी से मिलने दिल्ली कूच करने से पहले हमारे मोहल्ले के एक युवा मित्र ने कह दिया था कि दीदी कोई कच्ची गोलियां खेल नहीं रही हैं।हस्तक्षेप में स्टीवेंस की स्टोरी भी लग चुकी थी कि दीदी मोदी की नैय्या पार लगायेंगी।
उस दिन मैं अपने इंटरनेट का बिल भरने हमारे मोहल्ले में केबिल का दफ्तर चला रहे मित्र के वहां पहुंचा तो उसने कहा कि डील फाइनल है।मुकुल राय को हाशिये पर फेंकने के मकसद से दीदी मोदी से हाथ मिलाने जा रहीं हैं और भाजपा का बंग विजय अभियान का फंडा सीबीआई जांच की तरह फर्जीवाड़ा है।
उसने कहा कि वाम को खत्म करने का साझा खेल खेल रहे हैं दीदी और मोदी।दोनों मिले हुए हैं।दीदी छीजते हुए वाम का राजनीतिक परिवेश में सारे चुनाव जीतती चली जायेंगी और मुकुल राय इस गेम में कौन सा रोल निभा रहे हैं,इसका खुलासा होना बाकी है।
हमारे मित्र न राजनेता हैं और न विद्वतजन।हमारे आसपासऐसे तमाम चेहरे हैं जो सियासत की नूरा कुश्ती खूब समझ रहे हैं और सच को उजागर न करके झूठा का कारोबार को भी खूब बूझ रहे हैं।
उसने कहा कि राज्यसभा में जो भी विधेयक हैं,उसे पास करायेंगी दीदी।
आखिरकार दीदी मोदी की नैय्या पार लगा रही है।
नौ अप्रैल की मुलाकात जनता को अप्रैल फूल बनाने की कवायद रही है।
ताजा खेल डा.मनमोहन सिंह की घेराबंदी है।
कांग्रेस की असहमति को सहमति में बदलने के लिए मनमोहन की घेराबंदी है,राज्यसभा जीत लेने का यह अचूक रामवाण है सुधारों के ईश्वर के घेराव का यह मास्टरस्ट्रोक।
जैसा कि हस्तक्षेप में एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास की रपट लगी थी कि दीदी लगायेंगी मोदी की नैया पार,हूबहू वैसा ही हो रहा है।
तृणमूल कांग्रेस जमीन और बीमा बिल का विरोध का सिलसिला जारी रखते हुए अपनी राजनीति करती रहेगी और ये दोनों बिल कांग्रेस के समर्थन से पास होंगे।
बाकी तमाम विधेयकों का राज्यसभा में समर्थन कर रही हैं ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस।
शीशे की दीवारों में रहने वाले लोग दूसरों के घरों में पत्थर फेंका नहीं करते।
सुधारों के ईश्वर के घेराव से जनता जनार्दन के मिलियनर बिलियनर प्रतिनिधियों में हड़कंप मच गया है।
सिर्फ घोटाला कोयला का नहीं है।
घोटाला सिर्फ स्पेक्ट्रम का नहीं है।
घोटाले और भी बहुत हैं।
बेहिसाब संपत्ति और विदेशी खातों की फेहरिस्त काफी लंबी है।
अरबपति करोड़पति राजनेताओं के किस्से भी अजब गजब है।
रक्षा घोटालों से लेकर जमीन घोटालों,रेलवे घोटालों से लेकर किसिम किसिम के घोटाले हैं।
जब पूर्व प्रधानमंत्री को घेरा जा सकता है तो क्षत्रप जो अपनी खैरियत मनायेंगे सो तो हैं ही,रुक रुक कर सत्ता में रहे लोग और विपक्ष के भी लोग,कौन कहां किस घोटाले में फंसे हैं,बात निकली तो दूर तलक जायेगी-कुलो संदेश यही है।
राज्यसभा में बीमा बिल एको झटके से पास हो गया।बाकी तमाम बिल भी देर सवेर पास होते रहेंगे।
बुलरन से और निवेशकों की आस्था के साथ भारत की संसदीय सहमति के चोली दामन के साथ कोऐसे समझें कि बीमा बिल पास होते न होते तीन दिनों की गिरावट के बाद आज बाजार में फिर से रौनक लौट आई। आज बाजार में शुरुआती कारोबार से ही तेजी रही और दिनभर खरीदारी देखने को मिली। खासकर आखिरी आधे घंटे में बाजार में जोरदार तेजी रही। अंत में सेंसेक्स और निफ्टी करीब 1 फीसदी तक की तेजी के साथ बंद हुए हैं।
वैसे भी राज्यसभा में बिल पास न हो तो सरकार की योजना थी संसद के साझा अधिवेशन में लोकसभा के बहुमत के दम पर राज्यसभा के ऐतराज को खारिज कर देने की।
राज्यसभा में हार के बाद रणनीति यकबयक बदल गयी और ऐसी घेराबंदी होने लगी है कि खुद सोनिया गांधी और उनकी कांग्रेस की साख दांव पर है।
भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे अपने दस साल के प्रधानमंत्री को बचाने की कानूनी कवायद नाकाफी है,जानकर सियासी कवायद जहां तेज हो गयी है,वहीं सुधारों के बारे में संसदीय सहमति के फूल महमाहेन लगे हैं।
बहरहाल कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में समन जारी किए जाने पर नाराजगी जताते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुआई में उनके घर तक मार्च किया। इस मार्च में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और लोकसभा व राज्यसभा के सदस्य शामिल हुए। डॉ मनमोहन सिंह ने एकजुटता के लिए पार्टी अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को धन्यवाद दिया। पार्टी मुख्यालय से शुरू हुए इस मार्च के जरिए कांग्रेस ने साफ संकेत दिए कि पार्टी डॉ मनमोहन सिंह के साथ है।
सुधारों पर घमासान है और भारतीयअर्थव्यवस्थी की सेहत पर अमेरिका को सबसे ज्यादा सरदर्द है।
हमारे काबिल अर्थशास्त्री भी वहीं से उवाचे हैं।
मसलन भारत जैसे सक्रिय लोकतंत्र जहां रुकावट खड़ी करने वाली कई ताकतें हैं, वहां बड़े सुधारों की उम्मीद करना अनुचित होगा। यह बात देश के शीर्ष अर्थशास्त्री ने वाशिंगटन में कही। पिछले साल वित्त मंत्रालय का मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किए जाने के बाद वाशिंगटन में अपने पहले सार्वजनिक संबोधन में अरविंद सुब्रमण्यन ने इस सप्ताह शीर्ष अमेरिकी विचार- शोध संस्था से कहा कि भारत अभी भी एक स्थिति में सुधार दर्ज करती अर्थव्यवस्था है न कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था। उन्होंने कहा कि सालाना आम बजट में बड़े सुधारों की घोषणा की उम्मीद करना उचित नहीं है क्योंकि नई सरकार धीरे-धीरे लेकिन निरंतर कई प्रमुख नीतिगत और राजकोषीय सुधारों के साथ आगे बढ़ रही है जिससे आने वाले दिनों में भारत की तस्वीर बदलेगी। सुब्रमण्यन ने कहा, 'बजट में सुधारों की गति बरकरार रखी गई है और इसमें तेजी लाई जा रही है।'
उन्होंने कहा, 'भारत जैसे देश - जिसे मैं हताशा में जोशीला लोकतंत्र कहता हूं में बड़े सुधार नियम के बजाय अपवाद हैं। भारत जैसे देशों में शक्ति केंद्र बिखरा हुआ है, इसमें विरोध करने वाले कई केंद्र हैं, मसलन केंद्र सरकार, राज्य, विभिन्न संस्थान।'
सुब्रमण्यन ने प्रतिष्ठित संस्थान पीटरसन, इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनैशनल इकनॉमिक्स को संबोधित करते हुए कहा, 'आपको पता है कि कुछ करने, उसे पलटने, रोकने की ताकत काफी व्यापक है कि इसलिए यह थोड़ा अनुचित लगता है।'
उन्होंने कहा, 'भारत न संकट में था न है। मेरा मानना है कि न यह उन देशों में शामिल हैं जहां आप सिर्फ चाबी कसें और बड़े सुधार की उम्मीद करें। इसलिए हमारी दलील है कि भारत में इस मानक को लागू करना बिल्कुल अनुचित है।'
सुब्रमण्यन भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार बनने से पहले इसी संस्थान (वैश्विक थिंक टैंक) में काम करते थे।
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पेश आम बजट पर अपनी प्रस्तुति में उन्होंने कहा कि यह सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने समेत प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है। उन्होंने कहा, 'हम सार्वजनिक एवं निजी निवेश के जरिए वृद्धि को आगे बढ़ा रहे हैं। यह राजकोषीय घाटे को दांव पर लगाकर नहीं किया जा रहा है। इसके साथ राजकोषीय पुनर्गठन की गुणवत्ता में सुधार के साथ जुड़ा है। इसलिए यह बजट का बड़ा हिस्सा है।'
अब राज्यसभा में पारित बीमा विधेयक की खबर को गौर से पढ़ें और समझेें कि संसदीय सहमति का तिलिस्म कितना कोहरा कोहरा है।
सरकार के महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार उपायों में शामिल बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को मौजूदा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने के प्रावधान वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक को आज संसद की मंजूरी मिल गयी।
राज्यसभा ने गुरुवार को बीमा विधि संशोधन विधेयक 2015 को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। उच्च सदन ने इसी के साथ इस संबंध में सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश को निरस्त करने संबंधी विपक्ष के संकल्पों को ध्वनिमत से खारिज कर दिया। विधेयक पर तीन वाम सदस्यों द्वारा लाये गये संशोधनों को 10 के मुकाबले 84 मतों से खारिज कर दिया गया। विधेयक पारित होने से पहले तृणमूल, बसपा, द्रमुक और जदयू के सदस्यों ने इसके विरोध में सदन से वाकआउट किया।
विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि इस विधेयक में किये गये प्रावधान देश में बीमा क्षेत्र के प्रसार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मौजूदा विधेयक में 1938 के बीमा कानून, समान्य बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण) कानून 1972 तथा बीमा नियमन एवं विकास प्राधिकरण कानून 1999 में संशोधन का प्रावधान है।
सिन्हा ने कहा कि इस विधेयक के जरिये बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारे बीमा क्षेत्र का प्रसार बहुत कम है। उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि भारतीय जीवन बीमा निगम जैसी भारतीय कंपनियां विराट कोहली एवं सचिन तेंदुलकर की तरह विश्वस्तरीय हों। सिन्हा ने इस विधेयक को पेश करने से पहले इसी संबंध में पूर्व में लाये गये एक विधेयक को वापस लिया। उस विधेयक को प्रवर समिति में भेज दिया गया था।
वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि यह विधेयक केवल जीवन बीमा से ही संबंधित नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें अपने देश में स्वास्थ्य बीमा, फसल बीमा जैसे साधारण बीमा के विभिन्न क्षेत्रों को मजबूत बनाना है। उन्होंने कहा कि देश के बीमा क्षेत्र में पूंजी की बहुत आवश्यकता है क्योंकि देश में जैसे जैसे बीमा क्षेत्र का प्रसार होगा, दावों के भुगतान के लिए धन की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन बीमा सराहनीय कार्य कर रही है।
सिन्हा ने कहा कि आज एलआईसी जैसी एक नहीं दस कंपनियों की जरूरत है। ऐसी कंपनियां विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में समर्थ होनी चाहिए। उन्होंने रेलवे द्वारा एलआईसी से किये गये सहमति करार का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि हमारी जीवन बीमा कंपनियां मजबूत होंगी तो आधारभूत क्षेत्र के लिए हमें अधिक निवेश मिल सकेगा।
उन्होंने कहा कि जब हमारे सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं तो एलआईसी और जीआईसी इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा क्यों नहीं कर सकते। विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कुछ सदस्यों ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाए जाने का विरोध किया जबकि अधिकतर सदस्यों ने बीमाधारकों के हितों की रक्षा की जरूरत पर बल दिया।
भाजपा के चन्दन मित्रा ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस विधेयक को ज्यादा से ज्यादा पक्षों के साथ बातचीत कर तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य बीमा का कवरेज देश में अभी भी बहुत कम लोगों को प्राप्त है जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है और बीमा की पहुंच का विस्तार करने के लिहाज से भी यह विधेयक महत्वपूर्ण है। मित्रा ने कहा कि बीमा सुविधाओं को प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों में कम है और सरकार की इस पहल से इस दिशा में प्रगति होगी। उन्होंने तमाम विकसित देशों का उदाहरण दिया जहां बीमा के क्षेत्र में 100 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति प्राप्त है।
समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव ने कहा कि यह धारणा बनाई जा रही है कि एफडीआई की सीमा बढ़ाने से बीमा का प्रसार भी बढ़ेगा। यह धारणा गलत साबित हुई है कि एफडीआई सीमा बढ़ने से इस क्षेत्र का प्रसार होगा। उन्होंने कहा कि निजी कंपनियां अपने लाभ के मंतव्य से प्रेरित होकर देश में आएंगी न कि यहां के सामाजिक दायित्वों से उनका कोई सरोकार होगा। उन्होंने लाखों लोगों को रोजगार देने वाली एलआईसी की सराहना करते हुए कहा कि दावों के निपटान के मामले में विश्व में उसका रिकार्ड है। उन्होंने कहा कि एफडीआई सीमा बढ़ाने से विदेशों की दिवालिया कंपनियां इस देश में आयेंगी जिन पर प्रभावी अंकुश नहीं होगा।
चर्चा में जदयू के शरद यादव, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन, बसपा के सतीश चन्द्र मिश्रा, माकपा के तपन कुमार सेन, बीजद के दिलीप कुमार तिर्की, राकांपा के प्रफुल्ल पटेल, निर्दलीय राजीव चन्द्रशेखर ने भी भाग लिया।
इससे पहले जब उपसभापति पी.जे. कुरियन ने सदन में बीमा विधि संशोधन विधेयक 2015 पर चर्चा शुरू कराने के लिए कहा तो कुछ सदस्यों ने व्यवस्था के प्रश्न उठाये। इसी क्रम में माकपा के डी. राजा ने इस विधेयक से जुड़े अध्यादेश के निरमोदन के लिए एक परिनियत संकल्प रखा। इसके बाद माकपा के पी. राजीव और सपा के नरेश अग्रवाल ने व्यवस्था के प्रश्न के नाम पर यह मुद्दा उठाया कि सदन में बीमा विधि संशोधन विधेयक 2015 पर चर्चा होने जा रही है। ऐसा ही एक विधेयक सदन में पहले पेश किया गया था और उसे प्रवर समिति के पास भेजा गया था।
दोनों सदस्यों ने सवाल किया कि उस पुराने विधेयक का क्या होगा। सदन में इसको लेकर काफी देर तक कई सदस्यों ने अपने अपने तर्क दिए। कुछ सदस्यों ने इस बात पर आपत्ति जतायी कि बीमा विधि संशोधन विधेयक 2015 को सदन की कार्यसूची में डालने के पहले इस बारे में कार्य मंत्रणा समिति में विचार नहीं किया गया।
इस पर संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि भले ही इस विधेयक पर कार्य मंत्रणा समिति में चर्चा नहीं हुयी हो लेकिन विभिन्न दलों के नेताओं की सभापति के कक्ष में हुयी बैठक में इस संबंध में एक अनौपचारिक सहमति बनी थी।
इस मुद्दे पर सदन में कोई सहमति नहीं बनने के कारण उपसभापति कुरियन ने बैठक को पहले 10 मिनट के लिए और फिर आधे घंटे के लिए स्थगित कर दिया।
बैठक करीब 4 बजकर 50 मिनट पर फिर शुरू होने पर वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने इस संबंध में पूर्व में लाए गए एक विधेयक को सदन की अनुमति से वापस ले लिया। इसके बाद उन्होंने बीमा विधि संशोधन विधेयक 2015 को चर्चा के लिए सदन में पेश किया।
देखते रहे हस्तक्षेप।
क्षेत्रीय महाबलियों की उत्थान के पीछे यह आत्मघाती बंटवारा है जो भारतीय जनता के वर्गीय ध्रुवीकरण के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर गोलबंद होने के रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध है।
महाबलि क्षत्रपों की मूषक दशा निरंकुश सत्ता की चाबी
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