#DeMonetisation अमेरिका में नस्ली दंगे शुरु और हम नस्लवाद के शिकंजे में हैं!
लीक हुए नोटबदल का आप क्या खाक विरोध करेंगे?
जनता जब प्रतिरोध करना भूल जाती है तो उनके लिए गैस चैंबर ही बनते हैं।
जनांदोलन है नहीं।जनप्रतिबद्धता मुंहजुबानी है।विचारधारा और मिशन एटीएम हैं।
तो सत्ता वर्चस्व कायम रखने के लिए यूपी और पंजाबजैसे राज्यों के चुनावमें विपक्ष को कैशलैस करने की कवायद से आपको तकलीफ तो होनी है।
कारोबार पर एकाधिकार के लिए कारोबारियों के सफाये का बेहतरीन इंतजाम है!
अब वह दिन भी दूर नहीं जब कोई अरबपति भारत का भाग्यविधाता बन जायेगा। हम अमेरिकाकी राह पर हैं लेकिन हम अमेरिकी नहीं हैं।हमें सड़क पर उतरने की हिम्मत ही नहीं होती।जय हो।
पलाश विश्वास
अब वह दिन भी दूर नहीं जब कोई अरबपति भारत का भाग्यविधाता बन जायेगा। हम अमेरिका की राह पर हैं लेकिन हम अमेरिकी नहीं हैं।हमें सड़क पर उतरने की हिम्मत ही नहीं होती।जय हो।
अमेरिका में नस्ली दंगे फिर शुरु हो गये हैं।गृहयुद्ध से कभी अब्राहम लिंकन ने अमेरिका को बचाया था और कुक्लाक्स के पुनरूत्थान से अमेरिका में फिर गृहयुद्ध है।
हम दसों दिशाओं से दंगाइयों से घिरे हैं लेकिन युद्धोन्मादी बन जाने का मजा यह है गृहयुद्ध की आंच से आपकी पतंजलि कांति को तनिक आंच नहीं आती है,जी।
अबाध पूंजी प्रवाह का मतलब पूरी अर्थव्यवस्था कालेधन की बुनियाद पर है।
कामायनी बालि महाबल ने एकदम सही लिखा हैः
99% of black money is with 1% of people. So, 99% of people are tortured for 1% of black money. #DeMonetisation
अब खुल्ला खेल फर्रूखाबादी है।इतना खुल्ला बाजार है कि कालाधन के बहाने आम जनता को नंगा करके खुदरा कारोबार और देश मं तमाम धंधों पर एकाधिकार कायम करने के खतरनाक राजनीतिक खेल सिरे से बेपर्दा है।
हमें पहले जो आशंका हो रही थी रिजर्व बैंक की भूमिका को लेकर,उसकी स्वायत्तता के उल्लंघन को लेकर,गांधी और अशोक चक्र को हाशिये पर डालने की प्रक्रिया को लेकर,वह अब सिर्फ आशंका नहीं,नंगा सच है।
कैशलैस सोसाइटी बनाकर नेट बैंकिंग और क्रेडिट डेबिट कार्ड की डिजिटल अर्थव्यवस्था के मार्फत छोटे और मंझौले कारोबारियों को खुदरा बाजार से बेदखली का चाकचौबंद इंतजाम है जबकि हालात यह है कि कोई बैंक यह गारंटी देने की हालत में भी नहीं है कि आपका खाता सुरक्षित है।
डिजिटल बैंकिंग अपने जोखिम पर आप बखूब कर सकते हैं जैसे शेयर बाजार में हर स्रोत से लगा और आपकी सहमति के बिना लगाया गया पैसे का जोखिम भी आपको ही उठाना है।
राजीव खन्ना ने एकदम सही लिखा हैः
इसके उलट बड़े शहरों में उच्च मध्यम वर्ग का जीवन जैसे के तैसा चल रहा है। paytm , क्रेडिट कार्ड , online shopping और उधार योग्यता (credit worthiness ) जैसी सुविधाओं के रहते उनके रोज़मर्रा के जीवन में कुछ अधिक उथल पुथल नहीं हुई। सुनने में आ रहा है की उनकी जमा की गयी रकम भी शायद कुछ बट्टा देने पर सुरक्षित हो सकती है।
इस कवायद का मतलब वही आनलाइन मुक्तबाजार है जिससे भारत को दुनिया की सबसे बड़ी खुली अर्थव्यवस्था बनानी है।
अजित साहनी का कहना हैः
40 करोड़ लोग एक महीने में कुल 500 नहीं कमा पाते , 80 करोड़ लोग ऐसे हैं देश में , जो एक दिन के लिए 500 का नोट पास में रखें तो भूखे मर जाएंगे ।
# दो करोड़ लोग होंगे देश में जिनके पास काला धन हो सकता है , उसमे भी 20 लाख लोगों के पास पूरे काले धन का 98 % होगा ।
जनांदोलन है नहीं।जनप्रतिबद्धता मुंहजुबानी है।विचारधारा और मिशन एटीएम हैं।
तो सत्ता वर्चस्व कायम रखने के लिए यूपी और पंजाब जैसे राज्यों के चुनाव में विपक्ष को कैशलैस करने की कवायद से आपको तकलीफ तो होनी है।
जनता जब प्रतिरोध करना भूल जाती है तो उनके लिए गैस चैंबर ही बनते हैं।
कुछ भी साबित करने की जरुरत अब नहीं है।
इसी बीच हिंदी गुजराती और दूसरी भाषाओं में भी राष्ट्र के नाम संबोधन से काफी पहले ,यहां तक कि 2015में ही राष्ट्रीय नेतृत्व ने यह सार्वजनिक खुलासा कर दिया था कि पांच सौ और एक हजार के नोट खारिज हो जाने वाले हैं।
जिनके पास अकूत कालाधन है,उनके लिए विदेशों में कानूनी तौर पर करोड़ों डालर स्थानांतरित करने का इंतजाम भी हो गया और विदेशी निवेश के रास्ते ज्यादातर कालाधन का निवेश विकास के खाते में इतना भयंकर निवेश बन चुका है कि देश अब निजी संपत्ति है और सार्वजनिक संपत्ति नामक कोई चीज नहीं रह गयी है और नागरिकों को जल जंगल जमीन नागरिकता से उखाड़कर विस्थापित बना दिया गया है।ट्रिलियन डालर तो सिर्फ सड़कों और जहाज रानी में निवेश है।बाकी विदेशी निवेश के आंकड़े मिले तो पता चलेगा कि कितना कालाधन कहां है।आम जनता के काते खंगालकर फूटी कौड़ी नहीं मिलनेवाली है।बेनामी का गोरखधंधा जारी है बेलगाम।
अमेरिका में संघीय राष्ट्र व्यवस्था है।राष्ट्रपति चुनाव में जब किसी प्रत्याशी को किसी राज्य में बहुमत इलेक्ट्राल वोट मिलते हैं,तो उस राज्य के सारे वोट उसीके नाम हो जाते हैं।इस हिसाब से हिलेरी के मुकाबले डोनाल्ड ट्रंप को राज्यों के 276 वोट मिल गये जो जरुरी 270 से छह ज्यादा हैं।इसी के बाद चुनाव परिणाम की घोषणा हो गयी और जैसे अल गोरे को बुश के मुकाबले जनता के वोट ज्यादा मिलने की वजह से हारना पड़ा, उसी तरह हिलेरी भी जनता के बहुमत सर्थन पाकर भी हार गयीं।
सैंडर्स अगर डेमोक्रेट प्रत्याशी होते तो ट्रंप की जीत इतनी आसान नहीं होती।
चुनाव के दौरान अमेरिकी हितों के खिलाफ हिलेरी की तमाम गतिविधियों के इतने सबूत आये कि श्वेत जनता के ध्रूवीकरण की रंगभेदी कु कल्क्स क्लान संस्कृति के मुकाबले अमेरिकी जनता को कोई विकल्प ही नहीं मिला।लेकिन चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद से अमेरिका भर में अश्वेत जनता सड़कों पर हैं तो श्वेत जनता का हिस्सा जो नस्लवाद के खिलाफ है,महिलाएं भी सड़कों पर हैं और खुलकर कह रहे हैं कि प्रेसीडेंट ट्रंप उनका राष्ट्रपति नहीं है।इसीसे अमेरिका में नस्ली दंगे भड़क रहे हैं।
गौरतलब है कि यह जनविद्रोह किसी राजनीतिक दल का आयोजन नहीं है।स्वतःस्फूर्त इस जनविद्रोह में राज्यों से भी अमेरिका से अलगाव के स्वर तेज होने लगा है।कैलिफोर्निया में अमेरिका से अलगाव का अभियान तेज हो गया है।
अमेरिका का यह संकट सत्ता पर कारपोरेट वर्चस्व की वजह से है तो युद्धक अर्थव्यवस्था पर एकाधिकारवादी वर्चस्व भी इसका बड़ा कारण है।इसी एकाधिकारवादी वर्चस्व के प्रतिनिधि धनकुबेर ट्रंप ने अमेरिकी लोकतंत्र को हरा दिया है,जो सिरे से नस्लवादी है।हार गया है अमेरिका का इतिहास भी।
अमेरिका से पहले हमने भारत को हरा दिया है।इतिहास और संस्कृति को हरा दिया है।सहिष्णुता औैर बहुलता विविधता की हत्या कर दी है.अमेरिकियों को फिरभी अहसास है और हमें कोई अहसास नहीं है।
दूसरी ओर,भारत में हम अपनी अपनी जाति,पहचान,अस्मिता और आस्था के तिलिस्म में घिरे हुए इसी नस्ली नरसंहार संस्कृति के कु क्लक्स क्लान के गिरोह में शामिल हैं और इसी के साथ हम असमानता और अन्याय की बुनियाद पर खड़ी पितृसत्ता को अपना वजूद मानते हैं।
इसीलिए हमने सिखों के नरसंहार के खिलाफ आवाज नहीं उठायी।
मध्य बिहार के नरसंहारों के हम मूक दर्शक रहे तो आदिवासी भूगोल में जारी सलवाजुड़ुम से हमारी सेहत पर असर होता नहीं है।
गुजरात के नरसंहार और बाबरी विध्वंस के पीछे हम तमाम दंगों में हिंदू राष्ट्र के पक्ष में बने रहे हैं और दलितों और पिछड़ों,शरणार्थियो को मुसलमानों के साथ दंगों की सूरत में या वोटबैंक समीकरण सहजते हुए ही हिंदू मानते हैं लेकिन अस्पृश्यता के साथ असुर राक्षस वध की तरह उनके नरसंहार के खिलाफ भी हम नहीं हैं।
हर स्त्री हमारे लिए सूर्पनखा है,दासी है या देवदासी हैं,जिन्हें हम उनकी तमाम योग्यताओं के बावजूद उनके ही परिवार में पले बढ़े होने के बावजूद मनुष्य नहीं मानते हैं।स्त्री आखेट रोजमर्रे की जिंदगी है और किसीको शर्म आती नहीं है।
आदिवासियों को हम देश और समाज की मुख्यधारा में नहीं मानते तो हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर के लोग हमारी नजर में नागरिक ही नहीं है.नागरिक और मानवाधिकार,पर्यावरण और जलवायु की हमें कोई परवाह नहीं है।
हम अमेरिकी नागरिकों की तरह युद्ध के विरुद्ध कोई आंदोलन नहीं कर सकते।
हमने जल जंगल जमीन और नागरिकता से बेदखली के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं किया है।
हमने खुले बाजार के खिलाफ 1991 से लेकर अब तक कोई आंदोलन नहीं किया है।
किसी भी राजनीतिक दल ने आर्थिक सुधारों का अबतक विरोध नहीं किया है।
आधार परियोजना के जरिये जो नागरिकता,गोपनीयता और संप्रभुता का हरण है,नागरिकों की खुफिया निगरानी है,उसका भी किसी रंग की राजनीति ने अब तक कोई विरोध नहीं किया है।
हम देश भक्तों ने रक्षा,आंतरिक सुरक्षा और परमाणु ऊर्जा में विनिवेश का किसी भी स्तर पर विरोध नहीं किया है और न हम सरकारी उपक्रमों के अंधाधुंध निजीकरण का कोई विरोध किया है।
हमने बैंकिंग,बीमा,शिक्षा ,चिकित्सा,संचार,उर्जा कुछ प्राइवेट हो जाने दिया है।
हम नदियों और समुंदरों की बेदखली के बाद कोक और मिनरल में जी रहे हैं और आक्सीजन सिलिंडर पीठ पर लादकर जीने के लिए बेताब हैं।
यही वजह है कि ट्रंप का जो विरोध अमेरिका में स्वतःस्फर्त है,वैसा कोई विरोध न हमने 1091 के बाद से लेकर अबतक देखा है और न खुल्लमखुल्ला नस्ली नरंसंहार की सत्ता का हमने मई,2014 के बाद अबतक कोई विरोध किया है।
अब करेंसी बदलने के बहाने कैशलैस सोसाइटी में कारोबारियों के कत्लेआम के जरिये जो एकाधिकार वर्चस्व कायम करने की कवायद है,उसके लिए हम सीधे सत्ता से टकराने की बजाय फिर आम जनता की आस्था को लेकर उसे निशाने पर रखकर चांदमारी करके इसी नस्ली फासीवाद के पक्ष में ही ध्रूवीकरण उसीतरह कर रहे हैं जैसे अश्वेतों के खिलाफ अमेरिका में श्वेत ध्रूवीकरण हुआ है और जैसा हमने अमेरिका से सावधानमें चेताया है,उसीतरह अमेरिका का विघटन और अवसान सोवियत इतिहास को दोहराकर होना है।
अमेरिका में राजनीतिक कोई विकल्प नहीं है तो भारत में भी कोई राजनीतिक विकल्प नहीं है।अेरिका का हाल वही हो रहा है जो सोवियत इतिहास है।अमेरिका और सोवियत के बाद हमारा क्या होनाहै,हमने अभी सोचा ही नहीं है।कश्मीर या मध्यभारत पर चर्चा निषिद्ध है तो पूर्व और पूर्वोत्रभारत में अल्फाई राजकाज है।
एटीएम से पैसा निकल नहीं रहा है और इस देश का प्रधानमंत्री पेटीएम के माडल हैं।इससे बेहतरीन दिन और क्या हो सकते हैं कि सवा अरब जनता एटीेम के बाहर चक्कर लगा रहे हैं और पीएम विदेश दौरे पर हैं।परमाणु चूल्हे खरीद रहे हैं।हथियारों के सौदे कर रहे हैं।सत्ता दल के नेताओं तक राष्ट्र के नाम संबोधन से पहले नये नोट पहुंच चुके हैं और बैंकों में पैसे रखकर भी सारे नागरिक दाने दाने को मोहताज हैं।
जी हां,1978 में भी नोट वापस लिये गये थे।एक हजार और दस हजार के नोट।नैनीताल जैसे पर्यटक स्थल पर एमए की पढ़ाई करते हुए भी उनमें से किसी नोट का हमने दर्शन नहीं किया।
उस वक्त सौ रुपये का नोट भी मुश्किल से गांव देहात में निकलता था।इसलिए नोट बदल जाने से कहीं पत्ता भी हिला कि नहीं,कमसकम हमें मालूम नहीं है।
अब इस देश में एटीएम में बहनेवाली सारी नकदी पांच सौ और हजार रुपये में है।जिन्हें एकमुश्त खारिज कर देने का सीधा मतलब यह है कि आम जनता को क्रयशक्ति से जो वंचित किया गया है ,वह जो है सो है,लेकिन इसका कुल आशय बाजार पर एकाधिकार वर्चस्व है और किसानों के बाद अब छोटे और मंझौले कारोबारियों और व्यवसायियों का कत्लेआम है।
बाजार में खुदरा कारोबार ठप है।कई दिनों से।सब्जी अनाज से लेकर फल फूल मांस मछली का कारोबार ठप है और किराने की दुकानों में मक्खियां भिनभिना रही हैं। आम जनता की कितनी परवाह है?
चंद प्रतिक्रियाओं पर जरुर गौर करेंः
Shubha Shubha
रोहतक मे बैंकोमेें भयानक भीड़ है।मुझे ख़ाली हाथ लौटना पड़ा।बैंककर्मी परेशान हैं।दिहाड़ीदार, छोटे व्यापारी ,रेहड़ी वाले ,छात्र और आम गृहस्थ का जीवन अस्त -व्यस्त हो गया है।दुकाने ख़ाली पड़ी हैं।रेहड़ी वाले और छोटे दुकानदार माल नहीं उठा पा रहे मण्डी और थोक विक्रेता उन्हें उधार नहीं दे रहे,किसान बीज नहीं ख़रीद पा रहे।सभी निर्माण कार्य -बाधित हैं,शादी-ब्याह वाले घरों का हाल मत पूछो,नौकरी करने वाले डेली पैसेंजर छुट्टियां लेकर लाईन मे खड़े हैं,मज़दूरों का बड़ा हिस्सा लेबर चौक से निराश लौट रहे हैं।एक दिन मे सिर्फ चार हज़ार निकाल सकते हैं इसलिये रोज़ाना मण्डी से माल लाने वाले बेहाल हैं चार हज़ार मे क्या लाएं और क्या बेचें ,पूरा दिन तो बैंक मे ही निकल जाता है।यह भीड़ कम नहीं होगी क्योंकि अपनी ज़रूरतों के हिसाब से एक आदमी को कई-कई बार बैंक जाना होगा।यात्रा करने वालों का हाल सबसे ज़यादा ख़राब है पैसे हैं नहीं और घर से बाहर हैं जहां पानी भी पैसे से मिलता है।यह जनद्रोही फैसला है।लोगों का जीवन अस्त व्यस्त करके ,उनमे असुरक्षा और सत्ता का डर बिठाया जा रहा है।बाकी चुनाव और असली काला धन के चोरों को बचाना तो है ही।
Skand Kumar Singh जो व्यक्ति अपने कपड़ों की बोली लगा सकता है 10 लाख का सूट बेच सकता है ।करोड़ों भें।वह फ्री में जियो लाइफ का paytm का प्रचार करता है दाल में काला है और आमिर खान खान को हटाकर snapdeal का अतुल्य भारत का ब्रांड एंबैसडर बन जाता है Apne Kahin Koi model toन चुन लिया
Skand Kumar Singh हमने आज तक किसी भी चीज का पेमेंट चेक से या पैन कार्ड से नहीं किया रोजमर्रा की डेली चीज की चीजें जिन्होंने वह पैसा आपसे लिया आपकी नजर में वह चोर है चोर तो आप हैं जिन्होंने बगैर चेक का पैसा दिया चाय पीएम मोदी ने लोगों को चाय पिलाई बगैर चैक याा पैन कार्ड के पैसा लिया अब दस लाखका सूट पहनते हैं वह करोड़ों में बिकता है क्या वह काला धन है दो करोड़ का सूट विका 30 परसेंट के हिसाब से साठ लाखरुपए इनकम टेक्स बैठता है काला धन
पैसा जमा करने के दौरान स्टेड बैंक में दो महिला बेहोश
तारापुर से संजय वर्मा एवं शंभूगंज से ठाकुर विनोद सिंह की रिर्पोट
देश में 9 नमंबर से 500 व 1000 के नोट बंद करने के बाद शुक्रवार को पुराने पैसा जमा करने के लिए शंभूगंज के पाँचो बैको की शाखाओ में ग्राहको की भीड़ जमा हो गई. खासकर यूको बैक व स्टेट बैक शंभूगंज में तो सुबह से ही बैक गेट के बाहर लोगो की हुजूम उमड़ पड़ी जहाँ बैक खुलते ही बैको के अंन्दर ग्राहको की इतनी भीड़ लग गई कि बैक कर्मीयो को बैक प्रवेश करना मुश्किल हो गया . इधर स्टेड बैक शंभूगंज के शाखा प्रबंधक कुमार भावानंद ने भीड़ की सुचना शंभूगंज थानाध्यक्ष अभिषेक कुमार को दिया जहां थानाध्यक्ष ने सअनि ब्रजमोहन श्रीवास्तव को पुलिस बल व महिला पुलिस बल के साथ बैक भेजा तब जाकर बैको में जुटी ग्राहको की भीड़ को नियंत्रण कर पुराना नोट जमा करने का काम शुरू किया गया वही भीड़ के बीच पैसा जमा करने आई करसोप गाँव के रानी देवी, और जोगनी गाँव के रूकसाना मुर्छित होकर गिर गई .जहां दोनो को आनन फानन में बैक से बाहर कर निजी क्लीनिक में भर्ती कराया गया. शुक्रवार को भी लोगो के उम्मीदो पर तब पानी फिर गया जब आस लगाकर बैक में घंटो कतार में खड़े रहने के बाद भी उन्हे नया नोट नही मिला . शाखा प्रबंधक कुमार भावानंद ने बताया कि शुक्रवार को करीब एक करोड़ रूपया से भी ज्यादा की पुराना नोट जमा किया गया है
Dheeresh Saini यहां Shillong में यही हाल है। सरकारी बैंकों के ATM बन्द हैं। SBI के यहां के हेड ऑफिस में पैसे जमा तो कर रहे हैं पर भुगतान नहीं कर रहे। पुलिस बाज़ार में HDFC के ATM पर लम्बी लाइन में खड़ा हूँ। यह भरोसा नहीं कि नम्बर आने तक ATM में पैसा रहेगा भी।
सुबह अरुणाचल प्रदेश जाना है। टैक्सी वाले को मना किया तो वह जायज ही कह रहा है कि उसने और बुकिंग नहीं ली है इसलिए नहीं जाने पर भी उसका पैसा बनता है।
बाकी जो आम लोग हैं, उनकी दिक्कतों से बेशर्मों को कोई मतलब नहीं है। बहुत सारों का तो ATM से कोई वास्ता ही नहीं है। सड़कें खाली हैं। फुटपाथ के दुकानदार रो रहे हैं। बीमार सदस्य वाले मध्य वर्गीय परिवार भी परेशान हैं।
बाकी हवा में यह भी है कि देश के लिए इतना सहना भी पड़ता है।
भाजपा जानती थी कि क्या होने वाला है,यह कहना कि सिर्फ 6लोग जानते थे एकदम गलत है,भाजपा नियंत्रित अखबार की यह खबर पढ़ें तो जान जाएंगे कि 2हजार का नोट पहले से छप रहा है।यह खबर जागरण में काफी पहले छपी थी,सरकार ने इसका खंडन नहीं किया था।यह अखबार भी भाजपाईयों का है-
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