#DeMonetisation Carpet Bombing जमा धन में कितना निकला कालाधन?कहां कहां नहीं बन रहे हैं कब्रिस्तान ?
चार महीने तक यह समस्या सुलझी नहीं तो खुदरा कारोबार खत्म है,आर्थिक लेन देन सिरे से बंद है और इसे जुड़े तमाम लोगो का काम धंधा,रोजगार बंद है हमेशा के लिए।खेती और नौकरियां पहले ही खत्म हैं।दिहाड़ी कमाकर बुनियादी जरुरतें पूरी करने वाली ज्यादातर आम लोगों और लुगाइयों के लिए यह युद्ध परिस्थिति में दुश्मनों की कार्पेटं बांबिंग में मारे जाने या जख्मी विकलांग हो जाने से बड़ा हादसा है जो बंगाल की भुखमरी से ज्यादा व्यापक है और इस हादसे की चपेट में एक एक नागरिक है।
टैक्स चुराने वालों के अपराध की सजा टैक्स चुकाने वाले ईमानदार लोगों को भूखों मारकर देने का फासिज्म का यह राजकाज है।यह गुजरात नरसंहार ,बाबरी विध्वंस और सिखों के नरसंहार या भोपाल गैस त्रासदी से ज्यादा संक्रामक भयानक राष्ट्रीय त्रासदी है।
पलाश विश्वास
इंडियन एक्सप्रेस की खबर हैः
Demonetisation appears to be carpet bombing, not surgical strike: SC
साभार इंडियन एक्सप्रेस
जमा धन में कितना निकला कालाधन?
कहां कहां नहीं बन रहे हैं कब्रिस्तान ?
कार्पेट बांबिंग से युद्धोन्मादी माहौल में भारतीय जनता के सफाये का इंतजाम है यह।क्योंकि अब यह साफ है कि पहले से लीक हो जाने की वजह से कालाधन पकड़ में नहीं आ रहा है और आर्थिक अपराधियों के खिलाफ इस अभियान में अपने खून पसीने की कमाई को ही सफेद साबित करने में लगी है जनता।
ताजा खबर है कि अब नोट जमा करने के लिए या एटीएम से पैसा निकालने के लिए भी उंगलियों पर निशान लगाये जा रहे हैं तो बेरोजगार युवाओं,गरीबों और घरेलू नौकरों के खाते में कालाधन जमा हो रहा है और इसके लिए आधार कार्ड किराये पर है।अभी बैंक जमा के पिछले छह महीने के आंकड़ों से भी पता चल रहा है कि इस कायमत के बारे में खास लोगं को खास जानकारी थी और उन्होंने भारी पैमाने पर देश विदेश में लेन देन करके कालाधन सफेद बना लिया है।सोना और बेनामी संपत्ति 30 दिसंबर के बाद जमी करने की चैतावनी देकर फिर चुनिंदा लोगों को बचाने की तैयारी है और फिर इसी तरह कार्पेट बांबिंग से आम जनता को लहूलुहान किया जाना है।
नोटबंदी के एलान के बाद चार दिनों में जमा पुराने नोट डेढ़ लाख करोड़ की रकम पार कर गया है।कालाधन निकालने के लिए इस युद्धक अभियान को सुप्रीम कोर्ट ने सर्जिकल स्ट्राइक न मानकर कार्पेट बांबिंग कहा है।यानि जो हम लिख रहे थे कि यह आम जनता के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक है,उसीको कार्पेट बांबिंग कह रहा है देश का सर्वोच्च न्यायालय यानी अपराधी को मार गिराने के लिए पूरी आबादी का सफाया।
बहरहाल सरकार के लिए जरुर राहत है कि नोटबंदी के खिलाफ जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि लोगों को परेशानी न हो इसका ध्यान सरकार रखे. केंद्र क्या कदम उठा रहा है हलफनामा दें।जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट से भी आम जनता को इस कार्पेट बांबिंग से राहत नहीं मिलने वाली है।अदालत ने सरकार से पूछा कि लोगों की परेशानियों को दूर करने के लिए क्या उपाय किए हैं। इस मामले में अगली सुनवाई अब 25 नवंबर को होगी।
इस कार्पेट बांबिंग के तहत जमा धन में कितना निकला कालाधन?
पहले उम्मीद थी कि नोटबंदी के बाद एटीएम खुलते ही सिमसिम खुल जा की तरह आम जनता के लिए खजाना खुल जायेगा।फिर लंबी कतारें ऐसी लगी हैं कि बैंकों और एटीएम के दरवाजे तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है।बैंकों और एटीएम के खुले बंद दरावाजे पर नो कैश का नोटिस टंग गया है।वित्तमंत्री ने कहा कि नये नोट निकालने के लिए सारे एटीएम के साफ्टवेयर बदलने होंगे।दो तीन हफ्ते लग जायेंगे।फिर अगले ही दिन प्रधानमंत्री ने पचास दिनों की मोहलत मांग ली।अब कहा जा रहा है कि चार महीने कम से कम लगेंगे और तब तक नकदी का विकल्प प्लास्टिक मनी है।आपातकालीन सेवाओं के लिए पुराने नोट की वैधता की अवधि फिलहाल 24 नवंबर तक बढ़ायी गयी है जो आगे और बढ़ायी जा सकती है।यही कार्पेट बांबिंग है।
गौरतलब है कि पांच सौ और एक हज़ार रुपए के नोटों को बंद करने के फ़ैसले के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि सरकार के इस फैसले से नागरिकों के जीवन और व्यापार करने के साथ ही कई अन्य अधिकारों में बाधा पैदा हुई है।इसे तो कोई राहत नहीं मिली है तो दूसरी ओर, ममता बनर्जी ने विपक्ष की गोलबंदी करके संसद में हंगामा करने की पूरी तैयारी कर ली है।इस गोलबंदी में वामदल भी उनके साथ हैं।मायावती,अरविंद केजरीवाल,लालू,नीतीशकुमार जैसे लोग भी हंगामा बरपा सकते हैं।इसके बावजूद फासिज्म के राजकाज का कोई राजनीतिक प्रतिरोध होते दीख नहीं रहा है और न कोई विकल्प बन रहा है।
राजनीतिक प्रतिरोध नहीं है और न राजनीतिक विकल्प है।राजनीतिक राहत की फिलहाल दूर दूर तक संभावना नहीं है।आम जनता के इस भयानक संकट में राजनीतिक दल अपना अपना चुनावी समीकरण साध रहे हैं तो यूपी , पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर जैसे राज्यों में चुनाव जीतने के लिए यह चांदमारी है,इसे भी अब साबित करने की जरुरत नहीं है।
आम जनता के बारे में न कोई राजनीतिक विचारधारा है और न कोई राजनीतिक पहल है।इस चांदमारी में मारे जाने वाले लोगों के खून से किसके हाथ रंगे नहीं हैं,पिलहाल कहना मुश्किल है।कब्रिस्तान तो हर कहीं बनेंगे।
ढाई लाख से ज्यादा रकम जमा करने पर आयकर तो लगेगा ही ,उसके साथ दस गुणा पेनाल्टी लग सकती है।अब समझने वाली बात है कि आयकर,पेनाल्टी और कानूनी झंझट की बाधाधौड़ पार करके कितने कालाधन वाले कतारबद्ध होकर बैंकों में जाकर जमा करने का जोखिम उठायेंगे जो आम माफी जैसे माहौल में बिना पेनाल्टी के लिए काला धन जमा करने को तैयार नहीं थे।
आखिर क्या है यह कालाधन?
सीधे तौर पर कायदा कानून को धता बताकर बिना देय टैक्स चुकाये अर्जित और जमा धन को कालाधन कहा जा सकता है।जो ज्यादातर छुपा हुआ है और खुले बाजार में प्रचलित नहीं है।इसका इस्तेमाल नकदी में खरीददारी और अचल संपत्ति में निवेश से लेकर विदेशी विनिवेश तक में है।जबकि आम जनता के पास जो पैसा है,उसी से खुदरा बाजार चलता है।पांच सौ और एक हजार के नोट रद्द हो जाने पर आम जनता के पास खर्च चलाने के लिए नकदी नहीं है तो इसका सीधा मतलब यह है कि खुदरा बाजार बंद है।
2011 में सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के दाखिल हलफनामा में विदेशी बैंकों में तबतक भारतीयों के खातों में पांच सौ बिलियन रुपया जमा है जो पचास हजार करोड़ डालर के बराबर है।रक्षा क्षेत्र में विनिवेश और रक्षा सौदों में दलाली के साथ युद्धोन्मादी परिस्थितियों में हथियारों और परमाणु ऊर्जा की खरीददारी की अंधी दौड़,देश के सारे संसाधन बेच देने के अश्वमेधी अभियान में 2011 के बाद पिछले पांच सालों में यह रकम किस तेजी से बढ़ी होगी ,इसका अंदाजा भी लगाया नहीं जा सकता।
नोटबंदी से उस कालाधन का कितना हिस्सा देश के बैंको में जमा हुआ है,सरकार संसद के शीतकालीन अधिवेशन में यह ब्यौरा पेश करें तो त्याग और बलिदान और देशभक्ति के पीछे जो खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी चल रहा है,उसका खुलासा हो रहा। गौरतलब है कि नोटबंदी के विरोध में लामबंद राजनेता ऐसी कोई मांग नहीं कर रहे हैं।
देश में मौजूद कुल नकदी जब विदेशों में जमा कालाधन के मुकाबले आधा भी नहीं है तो अर्थशास्त्री विवेक देबराय के मुताबिक इस युद्धक अभियान का मकसद कालाधन निकालना कतई नहीं हो सकता।आज बांगला दैनिक आनंदबाजार के संपादकीय लेख में उन्होंने कालाधन का अर्थशास्त्र डिकोड कर दिया है।
विवेक देबराय के मुताबिक जनता की दक्कतें दूर करने की पूरी तैयारी करके ही ऐसा कदम उठाना था।संघ परिवार और शिवसेना भी आम जनता की तकलीफों का रोना रो रहे हैं।सुब्रह्मण्यम स्वामी और पतंजलि बाबा तक इससे होने वाली अराजकता के खिलाफ मुंह खोलने लगे हैं।जाहिर है कि दांव उल्टा निकला है तो अब डैमेज कंट्रोल के लिए आत्म आलोचना का संघी विवेक भी अंगड़ाई लेने लगा है।आध्यात्म भी जगने वाला है।कुंडलिनी तो जग ही गयी है।
बहरहाल,चार महीने तक यह समस्या सुलझी नहीं तो खुदरा कारोबार खत्म है,आर्थिक लेन देन सिरे से बंद है और इसे जुड़े तमाम लोगो का काम धंधा,रोजगार बंद है हमेशा के लिए।खेती और नौकरियां पहले ही खत्म हैं।
दिहाड़ी कमाकर बुनियादी जरुरतें पूरी करने वाली ज्यादातर आम लोगों और लुगाइयों के लिए यह युद्ध परिस्थिति में दुश्मनों की कार्पेटं बांबिग में मारे जाने या जख्मी विकलांग हो जाने से बड़ा हादसा है जो बंगाल की भुखमरी से ज्यादा व्यापक है और इस हादसे की चपेट में एक एक नागरिक है।
टैक्स चुराने वालों के अपराध की सजा टैक्स चुकाने वाले ईमानदार लोगों को भूखों मारकर देने का फासिज्म का यह राजकाज है।
यह गुजरात नरसंहार ,बाबरी विध्वंस औरसिखों के नरसंहार या भोपाल गैस त्रासदी से ज्यादा संक्रामक भयानक राष्ट्रीय त्रासदी है।
पेटीएम से मार्केटिंग चालू हो गयी और सरकारी योजना के तहत सोसाइटी को जानबूझकर जबर्दस्ती कैशलैस कर दिया गया जैसा कि इस दीर्घकालीन युद्धक अभियान या कार्पेट बांबिंग का असल मकसद है तो बाजार पर ईटेलिंग और नेटवर्किंग के जरिये बड़ी पूंजी का एकाधिकार कायम होना है और छोटे और मंझौले तमाम कारोबारी बाजार से हमेशा के लिए बेदखल है जिनका कोई वैकल्पिक काम धंधा नहीं है और न कोई वैकल्पिक रोजगार सृजन है।
खेती बहुजन जनता की आजीविका है और खेती चौपट होने के बाद कुदरा बाजार खत्म करने के इस कार्पेट बांबिंग का मतलब यह है कि खेती और कारोबार दोनों सेक्टर में आम जनता की हिस्सेदारी खत्म और इसके साथ सात नौकरियां भी खत्म है।यह करोड़ों लोगों का रक्तहीन नरसंहार है।
बहरहाल इन आंकड़ों पर तनिक गौर कीजिये एक साल में लोग जितना पैसा बैंकों में जमा नहीं करते उससे 172 प्रतिशत ज्यादा पैसा तो चार दिन में बैंकों के पास आ गया है। मार्च 2015 में बैंकर्स के पास 1177.24 करोड़ रुपया जमा पूंजी थी। जो कि मार्च 2016 में 89.63 करोड़ रुपए बढ़कर 1266 करोड़ रुपया पहुंच गई थी। लेकिन बीते चार दिनों में ही बैंकों में 155 करोड़ रुपया ओर जमा हो गया है। इस हिसाब से बैंकों की जमापूंजी 1266 करोड़ रुपए से बढ़कर 1406 करोड़ रुपए पर पहुंच गई है।
इस जमा धन में कितना निकला कालाधन?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो सालों के दौरान सितंबर महीने में रेकॉर्ड डिपॉजिट देखने को मिला। सितंबर महीने में बैंकों में कुल 5.98 लाख करोड़ रुपये जमा हुए। इस वजह से बैंकों का डिपॉजिट ऑल टाइम हाई (1,02,08,290 करोड़ रुपये) पर पहुंच गया। सितंबर महीने की बैंक डिपॉजिट में कुल 13.46 फीसदी का उछाल देखने को मिला।इससे पहले जुलाई 2015 में रेकॉर्ड डिपॉजिट देखने को मिला था। तब बैंकों में कुल 1.99 लाख करोड़ रुपये डिपॉजिट किए गए थे। जुलाई की बैंक डिपॉजिट में 12.68 फीसदी का उछाल आया था। अब विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने इस मुद्दे को पकड़ लिया है और इसका इस्तेमाल सरकार के खिलाफ कर रही है।
नोटबंदी से पहले यह रकम किन लोगों के खाते में जमा है,इसका ब्यौरा अभी नहीं मिला है।नोटबंदी से पहले हुए इस रिकार्ड जमा से किन लोगों ने काला धन सफेद किया है,इसका खुलासा नहीं हुआ है।
सरकार ने नकदी संकट का कोई उपाय अभी तक नहीं सोचा तो अब जब मौतों और आत्महत्याओं की खबरें तेजी से रोज सुर्खियां बनने लगी है तो नोटबंदी के बाद बैंकों और एटीएम के बाहर लगी लंबी कतारों के बीच सरकार ने कैश क्रंच से निपटने के लिए नए नियम जारी किए हैं।आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने कहा आज से नोट बदलवाने पर उंगली पर स्याही का निशान लगाया जाएगा।अब युद्धक विमानों से आम जनता पर नोट बरसाने की तैयारी है तो कतारों में खड़े लोगों पर पुलिस लाठीचार्ज तेज हैं और कुछ दिनों में यही हाल है तो सलवा जुड़ुम भी शुरु हो जायेगा।
देश में कालाधन रोकने के लिए अभी ये सिर्फ शुरुआत है। इस बार बजट में कालाधन रोकने के लिए सरकार बड़ा ऐलान कर सकती है। सीएनबीसी-आवाज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक एक तय रकम से ज्यादा रखने या फिर इसके लेनदेन पर पाबंदी का ऐलान बजट में किया जा सकता है। इसके अलावा, सरकार 30 दिसंबर के बाद गोल्ड के इंपोर्ट पर सख्ती बढ़ा सकती है।
दावा है कि प्रधानमंत्री ने नोटबंदी से जूझ रहे लोगों को बड़ी राहत दी है। उन्होंनें पुराने नोटों के चलन की समय सीमा को बढ़ाने का फैसला लिया है। अब 500-1000 रुपये के पुराने नोट 24 नवंबर तक पेट्रोल पंप, अस्पतालों में चलेंगे। पहले ये नोट 14 नवंबर तक ही इस्तेमाल किए जा सकते थे। इसके अलावा बैंकिंग कॉरेसपोंडेट की संख्या बढ़ाने और एक दिन में एक से ज्यादा बार कैश निकालने पर फैसला काफी अहम है। बैंकों और डाक घरों में नोटों की सप्लाई बढ़ाने का भी फैसला लिया गया।
एटीएम को नए नोटों के लायक जल्द से जल्द बनाने के लिए सरकार ने आरबीआई के डिप्टी गर्वनर की अगुआई में टास्क फोर्स का भी गठन किया है। इधर, एनएचएआई ने भी सभी हाईवे 18 नवंबर की रात तक फ्री कर दिए हैं। आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांता दास ने बताया कि बैंकों को मोबाइल एटीएम चलाने के लिए भी कहा गया है, जिनसे क्रेडिट और डेबिट कार्ड से पैसा निकाला जा सकेगा।
दूसरी तरफ, बैंकों में बड़े ट्रांजैक्शन को लेकर सीबीडीटी चेयरमैन सुशील चंद्रा का कहना है कि विभाग सभी बड़े डिपॉजिट और निकाली गई राशि की जानकारी ले रहा है। 2.5 लाख रुपये से ज्यादा डिपॉजिट कराने वालों की जांच होगी।
खबर है कि बजट में कालेधन पर बड़ा ऐलान हो सकता है और 3 लाख रुपये से ज्यादा नकदी रखने पर पाबंदी संभव है। दरअसल कालेधन पर बनाई गई एसआईटी ने पहले ही सरकार को इसकी सिफारिश की है। यही नहीं बैंकों से मोटी रकम निकालने पर पूछताछ भी हो सकती है। विदेशों में संपत्ति खरीदने पर जानकारी देने पड़ सकती है। इन नए प्रावधानों के लिए आईटी एक्ट और ब्लैकमनी एक्ट में बदलाव संभव है।
खबर ये भी है कि सरकार कालेधन से सोना खरीदने पर सख्ती की तैयारी कर रही है। सरकार सोने के इंपोर्ट पर शिकंजा कस सकती है। ज्यादा सोना खरीदने पर आईटी विभाग को जानकारी देगी होगी। सरकार जल्द ही गोल्ड पॉलिसी का ऐलान कर सकती है। साथ ही बेनामी संपत्ति भी सरकार के निशाने पर है और बता दें कि 1 नवंबर से बेनामी एक्ट लागू हो चुका है।
इसी बीच देश में नोटबंदी के बाद आयकर विभाग हरकत में आ गया है। पिछले 5 दिन से ज्वेलर्स, बिल्डर्स पर आयकर विभाग की कड़ी नजर है। आयकर विभाग के अफसर कस्टमर बनकर नजर रख रहे हैं। दिल्ली-मुंबई समेत कई जगहों पर छापेमारी हो रही है। जहां गोवा में ज्वेलर्स से 90 लाख रुपये जब्त किए गए हैं। वहीं कोलकाता से 3 करोड़ रुपये नकद बरामद किया गया है। ज्वेलर्स के साथ एयरपोर्ट और बिल्डर्स के लेन-देन पर भी आयकर विभाग की पैनी नजर है।
खेती के मरघट में नजारा कुछ और है।किसानों की खेती गेहूं की बुआई के लिए तैयार है मगर सघन सहकारी गोदामों पर हजार व पांच सौ के पुराने नोटों को नहीं लिए जाने के कारण किसानों को खाद्य व बीज नहीं मिल पा रहा है।खरीफ सीजन की उपज की बिक्री और रबी फसलों की बुवाई प्रभावित हो रही है। नगदी संकट में सुधार जल्दी नहीं हुआ तो किसानों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में नोटों की कम आपूर्ति कृषि गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है।
BBC के मुताबिक भारत में नाटकीय रूप से 500 और 1000 के नोटों को रद्द किए जाने के कदम को कौशिक बासु ने भारतीय अर्थव्यवस्था को झटका देने वाला बताया है।
विश्व बैंक के पूर्व चीफ़ इकोनॉमिस्ट कौशिक बासु ने कहा कि भारत में 500 और 1000 के रुपयों को रद्द करना अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। प्रोफ़ेसर बासु ने कहा कि इससे फायदे की जगह व्यापक नुक़सान होगा।
विश्व बैंक के पूर्व चीफ़ इकनॉमिस्ट कौशिक बासु का कहना है, ''भारत में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) अर्थव्यवस्था के लिए ठीक था लेकिन विमुद्रीकरण (नोटों का रद्द किया जाना) ठीक नहीं है। भारत की अर्थव्यवस्था काफ़ी जटिल है और इससे फायदे के मुक़ाबले व्यापक नुक़सान उठाना पड़ेगा।''
प्रोफ़ेसर बासु पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार थे और अभी न्यूयॉर्क कोर्नेल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं।
प्रोफ़सर बासु का कहना है कि एक बार में सबकुछ करने के बावजूद ब्लैक मनी के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि अब इसकी मौज़ूदगी संभव नहीं है। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस कदम का सीमित असर होगा। लोग नई करेंसी के आते ही तत्काल ब्लैक मनी ज़मा करना शुरू कर देंगे। इनका कहना है कि इसकी क़ीमत चुकानी होती है।
NDTV के मुताबिक विश्व प्रसिद्ध फ्रांसीसी अर्थशास्त्री गॉय सोरमन ने मंगलवार को कहा कि भारत सरकार का 500 और 1,000 का नोट बंद करने का फैसला एक स्मार्ट राजनीतिक कदम है, लेकिन इससे भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा। उन्होंने कहा कि 'अधिक नियमन' वाली अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार बढ़ता है।
सोरमन ने कहा कि राजनीतिक नजरिये से बैंक नोटों को बदलना एक स्मार्ट कदम है। इससे कुछ समय के लिए वाणिज्यिक लेनदेन बंद हो सकता है और अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ सकती है, हालांकि, यह भ्रष्टाचार को गहराई से खत्म नहीं कर सकता।
सोरमन ने पीटीआई से साक्षात्कार में कहा, 'अत्यधिक नियमन वाली अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार बढ़ता है। भ्रष्टाचार वास्तव में लालफीताशाही और अफसरशाही के इर्दगिर्द घूमता है। ऐसे में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए नियमन को कुछ कम किया जाना चाहिए।'
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जल्दबाजी में संचालन का तरीका कुछ निराशाजनक है। इसके लिए पहले से बताए गए कार्यक्रम के जरिये एक स्पष्ट रास्ता एक अधिक विश्वसनीय तरीका होता।
सोरमन ने कई पुस्तकें लिखी हैं. इनमें 'इकनॉमिस्ट डजन्ट लाई : ए डिफेंस ऑफ द फ्री मार्केट इन ए टाइम ऑफ क्राइसिस' भी शामिल है।
हालांकि जानी-मानी अर्थशास्त्री और वित्त मंत्रालय की पूर्व प्रधान आर्थिक सलाहकार इला पटनायक ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा अचानक 500 और 1,000 का नोट बंद करने के फैसले के कई उद्देश्य हैं.।इससे निश्चित रूप से वे लोग बुरी तरह प्रभावित होंगे, जिनके पास नकद में कालाधन है। भ्रष्ट अधिकारी, राजनेता और कई अन्य सोच रहे हैं कि वे इस स्थिति में नकदी से कैसे निपटें।'
हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मौजूदा ऊंचे मूल्य के नोटों को नए नोटों से बदला जाएगा।ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि भ्रष्टाचार में नकदी का इस्तेमाल बंद हो जाएगा। पटनायक ने कहा कि इस आशंका में कि फिर से नोटों को बंद किया जा सकता है, भ्रष्टाचार में डॉलर, सोने या हीरे का इस्तेमाल होने लगेगा।
खबरों के मुताबिक 500 और 1000 रुपए के नोट बंद होने के बाद धनकुबेरों ने अपनी काली कमाई को सफेद करने के लिए बेरोजगार युवकों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। ये लोग आधार कार्ड वाले युवकों को 4000 रुपए बैंकों से बदलवाने पर एक हजार रुपए देने का ऑफर दे रहे हैं। लिहाजा, जबसे प्रधानमंत्री ने बड़े नोटों के बंद करने का ऐलान किया है, आधार कार्ड रखने वाले युवक इस गंदे धंधे में एक दिन में 3-4 हजार रुपए तक कमा रहे हैं।
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