यह बदइंतजामी और अराजकता बहुजनों के नरसंहार का चाकचौबंद इंतजाम है।
करोड़ों लोगों को भूखों बेरोजगार मारने का पक्का इंतजाम करके उन्होंने संविधान दिवस मनाया और बहुजन बल्ले बल्ले हैं।
पलाश विश्वास
अमेरिकी साम्राज्यवाद से पूरे पचास साल लड़ते हुए कामरेड फिदेल कास्त्रो का निधन हो गया।दुनिया बदलने वाले तमाम लोग अब खत्म है और इस दुनिया को बदलने की लड़ाई में अब शायद ही हमारे पास कोई है।
मनुष्यता और सभ्यता के लिए सबसे बड़ा संकट यही है कि अब कहीं कोई ऐसा इंसान पैदा नहीं हो रहा है,जिसे अपने सिवाय बाकी किसी की कोई परवाह हो या जो अपनी कौम,अपने वतन के खातिर सुपरपावर अमेरिका जैसी शक्ति से भी टक्कर ले सकें।
अजीबोगरीब हालात हैं।मुक्तबाजार में फासिज्म के राजकाज के दौर में लोग इतने डरे हुए हैं कि हिटलर की पिद्दी के शोरबे के शोर में सिट्टी पिट्टी गुम है और तमाम ताकतवर मेधासंपन्न गुणीजन शुतुरमुर्ग में तब्दील हैं।ससुरे इतने डरे हुए हैं कि लिख पढ़ नहीं सकते,बोल नहीं सकते,दर्द हो तो चीख भी नहीं सकते।हग मूत पाद नहीं सकते।इस देश का ट नहीं हो सकता।
आंखें खोल नहीं सकते कि सच देख लिया और कहीं जुबान फिसलकर सोच बोल दिया तो तानाशाह फांसी पर चढ़ा देगा।
राजनेता अपना कालाधन बचाने की जुगत में है कि अरबपति जीवनचर्या में व्यवधान न आये।
मीडिया आम जनता के हकहकूक के बारे में न बोलेगा और न लिखेगा,न देखेगा और न दिखायेगा क्योंकि कमाई बंद होने का डर है।
कलाकार बुद्धिजीवी सहमे हैं कि कहीं सात रत्नों के कुनबे से बाहर न हो जाये।
कारोबारी और उद्यमी चुप हैं कि कहीं कारोबार या उद्यम ही बंद न हो जाये।
लोग कतारबद्ध होकर बलि चढ़ने के लिए तैयार हैं।
कोढ़े खाकर भी जोर शोर से चीख रहे हैं,जय हो कल्कि महाराज।
खेती का सत्यानाश हो गया और किसान गिड़गिड़ाते हुए रहम की भीख मांग रहे हैं।
कामधंधा कारोबार रोजगार चौपट हैं तो भी करोड़ों लोग मोहलत और रहम की फिक्र में हैं।
लोगों को अपनी अपनी खाल बचाने की ज्यादा चिंता है और गुलामी की जंजीरें तोड़ने का कोई जज्बा है ही नहीं क्योंकि गुलामों को गुलामी का अहसास उस तरह नहीं है जैसे अछूत अपनी दुर्गति की वजह पिछले जन्मों का पाप मानते हैं और जो मिल रहा है,उसे किसी ईश्वर न्याय मानता है।यही उनकी अटूट आस्था है।
तंत्र मंत्र ताबीज से वे तमाम किस्मत बदलने के फेर में है और यही उसकी आस्था और धर्म कर्म है जो पिछडो़ं और अल्पसंख्यकों का भी हाल है।जादूगर के शिकंजे में है यह देश जो अपनी छड़ी घुमाकर सुनहले अच्छे दिन सबके खाते में जमा कर देगें और सारे लोग जमींदार पूंजीपति बन जायेेंगे।
अब भी यह देश मदारी सांप और जादूगर का देश है।
तकनीक अत्याधुनिक है और सभ्यता बर्बर मध्ययुगीन।
इंसानियत है ही नहीं।इंसान भी नहीं हैं।शिवजी के बाराती तमाम भूतप्रेत हैं।
आधी आबादी जो स्त्रियों की है,हजारों साल से उनके दिलो दिमाग में कर्फ्यू है और पढ़ लिखकर हैसियतें हासिल करने के बावजूद उन्हें कुछ चाहने,सोचने या फैसला करने की आजादी नहीं है और न पितृसत्ता के इस मनुस्मृति अनुशासन को तोड़ने की कोई इच्छा उनकी है।
बल्कि पितृसत्ता की पहचान और अस्मिता के जरिये वे अपना महिमामंडन करती हैं और दासी होते हुए देवी बनने की खुशफहमी में हंसते हंसते खुदकशी कर लेती हैं,दम तोड़ देती हैं या मार दी जाती हैं।जीती है तो मोत जीती है और जिंदगी से बेदखल जीती हैं।
जो औरतें ज्यादा खूबसूरत है और ज्यादा पढ़ी लिखी भी हैं,उसके साथ भी गोरी हैं,वे कभी सोच नहीं सकती कि उनकी नियति काली अछूत,पिछड़ी आदिवासी या विधर्मी औरतों से कुछ अलहदा नहीं है।
बच्चों का मां बाप उसके पैदा होते ही बेहतरीन गुलामी का सबक घुट्टी में पिलाते रहते हैं ताकि वह बागी होकर इस तंत्र मंत्र यंत्र को बदलने के फिराक में मालिकान के गुस्से का शिकार न हो जाये।मां के पेट से निकलते ही अंधी दौड़ शुरु।
ऐसे माहौल में लोग बाबासाहेब डा. बीआर अंबेडकर बोधिसत्व को याद कर रहे हैं जिनके जाति उन्मूलन के मिशन से किसी को कुछ लेना देना नहीं है।
लोग अखबारों में छपे सत्ता के इश्तेहार से गदगद हैं कि देखो,तानाशाह बाबासाहेब को याद कर रहे हैं।
बाबासाहेब की तस्वीर चक्रवर्ती महाराज की तस्वीर से छोटी है तो क्या?
तानाशाह से बड़ी किसकी तस्वीर हो सकती है जिनका कद इतिहास भूगोल और सभ्यता से बड़ा है?
अखबारी विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना जाहिर है कि नहीं है।समता और न्याय के संविधान निर्माताओं के सपने का जिक्र भी नहीं है और न उनमे से किसी का कहा लिखा कुछ है और न मूल संविधान के मसविदे से कोई उद्धरण है।
संविधान दिवस के मौके पर जो विज्ञापन हर अखबार में आया है,उसमें नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का लेखा जोखा है जो श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल में मौलिक अधिकारों की काट बतौर बंधक संसद के संविधान संशोधन के तहत आपातकाल को जायज बताने के लिए जोड़ा था।
कोलकाता के रेडरोड पर अंबेडकर मूर्ति के नीचे भी संविधान दिवस मनाया गया है।बंगाल में बसपा,रिपब्लिकन या बामसेफ जैसा कोई संगठन नहीं है लेकिन बाबासाहेब के नाम तीन लाख संगठन हैं जो अलग अलग हर साल बाबासाहेब की जयंती और उनका महानिर्वाण दिवस मनाते हैं और इस बहाने बाबासाहेब उनका एटीएम है।
तीन लाख अंबेडकरी संगठनों के बंगाल में संविधान दिवस पर तीन सौ लोग बमुश्किल थे।जिनमें यादवपुर और कोलकाता विश्वविद्यालयों के कुछ बागी छात्र भी थे और थे कुछ मुसलमान।
लालगढ़ शालबनी जैसे आदिवासी इलाकों से आदिवासी भी आये थे।धर्मतल्ला से जो जुलूस निकला उसका नेतृत्व संथाल महिलाएं पीली साड़ी में सर पर कलश रखे कर रही थीं।बाकी अछूत और पिछड़े गिनतीभर के नहीं थे क्योंकि किसी राजनीतिक नेतृत्व के संरक्षण के बिना वे हग मूत पाद भी नहीं सकते।
ऐसा गुलामों का गुलाम है यह बहुजन समाज तो समझ लीजिये कि आगे करोडो़ं लोग मारे भी जायें तो लोग इसे अपना अपना भाग्य मान लेंगे।विकास बी मान सकते हैं।यही हमारी देशभक्ति है और यही हमारा राष्ट्रवाद है कि हम नरसंहार के खिलाफ कामोश ही रहें तो बेहतर।
क्योंकि सामने से नेतृत्व करने के लिए हमारे पास कोई फिदेल कास्त्रो नहीं है।
और बाबासाहेब को तो हमने हत्यारों की कठपुतली बना दी है।
उस कठपुतली बाबासाहेब के हवाले से वे हमारा नरसंहार हमारे विकास के नाम करते रहेंगे,जायज साबित कर देंगे और हम यह मान लेगें कि बाबा साहेब की तस्वीर और मूर्ति के मालिकान कोई झूठ थोड़े ही बोल रहे हैं।
बाबासाहेब तो कुछ भी कह सकते हैं।
न हमने सुना है,न हमने देखा है और न हमने पढ़ा है।बाबासाहब की तस्वीर या मूर्ति है तो उनके हवाले से कहा सत्तापक्ष का बयान हमारा महानतम पवित्र धर्मग्रंथ है।
इस मौके पर जंगलमहल के आदिवासियों ने जल जगल जमीन से उनकी बेदखली और बेलगाम सलवाजुड़ुम की आपबीती सुनायी।
पुरखों की लड़ाई जारी रखने की कसम खायी और कहा कि वे हिंदू नहीं हैं।
उनका सरना धर्म सत्यधर्म है और उनकी संस्कृति का इतिहास भारत का इतिहास है।
उन्होंने कहा कि हमारे गीतों में सिंधु सभ्यता के ब्योरे हैं और हम पीढ़ी दर पीढ़ी उसी सभ्यता में जी रहे हैं और आर्य आज भी हमपर हमला जारी रखे हुए हैं और हमारे कत्लेआम और बेदखली का सिलसिला बंद नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा कि हजारों साल से हम आजाद हैं।
आदिवासियों ने कहा,हम कभी गुलाम नहीं थे और न हम कभी गुलाम होंगे।
आदिवासियों ने कहा,हमारे पुरखों ने आजादी के लड़ाई में हजारों सालों से शहादतें दी हैं और हम उनकी लड़ाई में हैं।
बेहद शर्मिंदा मेरी बोलती बंद हो गयी।मितली सी आने लगी।सर चकराने लगा कि आखिर हम कौन लोग हैं और ये कौन लोग हैं।
बिना लड़े हम हारे हुए लोग सुरक्षित मौत के इंतजार में हैं।
और इस देश के आदिवासी आजादी के लिए मरने से भी नहीं डरते।
वे किसी की सत्ता से नहीं डरते क्योंकि वे इस पृथ्वी,इस प्रकृति की संताने हैं और वे सभ्यता और इतिहास के वारिशान हैं और सबसे बड़ी बात वे हिंदू नहीं हैं।
हम हिंदू हैं तो हमें अपनी जात अपनी जान से प्यारी है।
हम हिंदू हैं तो कर्मफल मान लेना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और बाकी किसी अधिकार के हम हकदार नहीं है,ऐसा हम हजारों साल से मानते रहे हैं।
आरक्षण के बहाने और बाबासाहेब की मेहरबानी से हम तनिको पढ़ लिखे शहरी गाड़ी बाड़ी वाले और अफसर मंत्री वंत्री वगैरह वगैरह डाक्टक वाक्तर,इंजीनियर वगैरह वगैरह हो गये हैं, लेकिन हम आदिवासी नहीं है न हमारा धर्म सरणा है,जो सत्य धर्म है।
तमाम और वक्ता बोलते रहे।बाबासाहेब का गुणगान करते रहे और संविधान का महिमामंडन करते रहे।मैंने कुछ सुना नहीं है।
मेरे बोलने की बारी आयी तो न चाहते हुए हमें बोलना पड़ा।
क्या बोलता मैं?
बाबासाहेब के बारे में क्या बोलता जिनका मिशन आधा अधूरा लावारिश है और बाबासाहेब जो खुद बंधुआ मजदूर में तब्दील हैं?
उस संविधान के बारे में क्या बोलता जिसकी हत्या रोज हो रही है और हम खामोश दर्शक तमाशबीन है?
उस लोकतंत्र के बारे में क्या कहता जो अब फासिज्म का राजकाज है?
उस कानून के राज के बारे में क्या कहता जो जमीन पर कहीं नहीं है?
बाबासाहेब की वजह से बने उस रिजर्व बैंक के बारे में क्या बोलता जिसके अंग प्रत्यंग पर कारपोरेट कब्जा है?
तानाशाह के फरमान से जिसके नियम रोज बदल रहा है और जो सिरे से दिवालिया है?
उस संसदीय प्रणाली पर क्या कहता जिसके डाल डाल पात पात कारपोरेट है और जहां हर शख्स अरबपति करोड़पति है और जिनमें ज्यादातर दागी अपराधी हैं?
हम किस लोकतंत्र की चर्चा करें जिसमें हम तमाम पढ़े लिखे नागरिक दागी धनपशु अपराधियों के बंधुआ मजदूर हैं और अपनी खाल बचाने के लिए ख्वाबों में भी आजादी की सोच नहीं सकते?
बल्कि हमने वह कहा जो हमने अभीतक लिखा नहीं है।
कालाधन निकालने की कवायद से किसी को शिकायत नहीं है।
शिकायत सबको बदइंतजामी से है और अराजकता से है।
यह बदइंतजामी और अराजकता बहुजनों के नरसंहार का चाकचौबंद इंतजाम है।
आरक्षण के बावजूद कितने फीसद दलित पिछड़े आदिवासी मुसलमान और दूसरे अनार्य लोग नौकरियों में हैं?
योग्यता और मेधा होने के बावजूद बिना आरक्षण बहुजनों को किस किस सेक्टर में नीति निर्देशक बनाया गया है?कितने डीएम हैं और कितने कैबिनेट सेक्रेटरी हैं?कितने पत्रकार साहित्यकार सेलेब्रिटी है?
फिर जोड़ लें कि कितने फीसद बहुजन खेती और कारोबार में हैं और उनमें भी कितने पूंजीपति है?सत्ता वर्ग के कितने लोग किसान हैं और कितने मजदूर?
कितने फीसद बहुजनों के पास कालाधन है?
जो शहरी लोग नेटबैंकिंग और मोबाइल तकनीक के जरिये कैशलैस जिंदगी के वातानुकूलित दड़बे में रहते हैं,उनमें बहुजन कितने फीसद हैं?
यह संकट जानबूझकर सुनियोजित साजिश के तहत नरसंहारी अश्वमेध अभियान का ब्रह्मास्त्र है।
राष्ट्र के नाम संबोधन रिकार्डेड था।
सत्ता दल ने नोटबंदी से पहले सारा कालाधन अचल संपत्ति में तब्दील कर लिया।
बाकायदा कानून बनाकर पहले ही सत्ता वर्ग के तीस लाख करोड रुपये विदेश में सुरक्षित पहुंचा दिये गये।
सत्तापक्ष के तमाम पूंजीपतियों का बैकों से लिया गया लाखों करोड़ का कर्जा माफ कर दिया गया है।
अब वे डंके की चोट पर कह रहे हैं कि कैशलैस सोसाइटी बनाना चाहते हैं चक्रवर्ती महाराज कल्किमहाराज।
कैशलैस सोसाइटी के लिए बहुजनों को कौड़ी कौड़ी का मोहताज बना दिया गया।
खेती का सत्यानाश हो गया।जो कारोबार काम धंधे में थे,असंगठित क्षेत्र के मजदूर थे,ऐसे करोड़ों लोग जिनें नब्वेफीसद बहुजन हैं,बेदखलकर दिये गये हैं और वे दाने दाने को ,सांस को मोहताज हैं और आगे देश व्यापी बंगाल की भुखमरी है।मंदी है।
मुक्तबाजार के नियम तोड़कर इस कैशबंदी को कृपया बदइतजामी न कहें.यह बदइंतजामी मनुस्मृति अनुशासन का चाक चौबंद इंतजाम है।
कोरोड़ों लोगों को भूखों बेरोजगार मारने का पक्का इंतजाम करके उन्होंने संविधान दिवस मनाया और बहुजन बल्ले बल्ले हैं।
আম্বেদকরপন্থীদের সংবিধান বাঁচানোর ডাকে মিছিল
November 26, 2016 0 Comment ambedkar, indian constitution
নিজস্ব সংবাদদাতা, টিডিএন বাংলা, কলকাতা: আজ ঐতিহাসিক দিন।তবুও কেউ পথে নেই!কেবল পথে আম্বেদকরবাদীরা ও যাঁরা বাবা সাহেবকে ভালো বাসেন তাঁরা।আজ ভারতের সংবিধানের প্রতিলিপি ও জাতীয় পতাকা নিয়ে কলকাতায় মিছিল করলো একাধিক দলিত ও আদিবাসী সংগঠন।সকাল ১১টায় রানিরাসমণি থেকে এই পদযাত্রা শুরু হয়ে রেডরোড অবস্থিত বাবা সাহেব ডঃ বি আর আম্বেদকরের মূর্তির পাদদেশে শেষ হয়।
ন্যাশনাল সোশাল মুভমেন্ট অব ইন্ডিয়ার ডাকে একাধিক এসসি, এসটি, ওবিসি, আদিবাসী সংগঠন মিছিলে অংশ নেয়। বহুজন সলিডারিটি মুভমেন্টসের রাজ্য সভাপতি শরদিন্দু উদ্দীপন বলেন,"বাবা সাহেব ডঃ বি আর আম্বেদকর আমাদের নেতা।তিনি সংবিধান রচনা করেছেন।তিনি না থাকলে আজ এই সংবিধান পেতামনা।আজ সেই সংবিধান ধ্বংসের চেষ্টা চলছে।আমরা তাই পথে নামছি।শাসকবর্গ অসমানতা এবং বর্বরতাপূর্ণ ব্যবস্থা কায়েম করার জন্য সংসদীয় গণতন্ত্র, ভারতীয় সংবিধান এবং জনগণের বিরুদ্ধে ভয়ঙ্কর ষড়যন্ত্রে লিপ্ত হয়েছে। এরা বিশ্বের সর্বশ্রেষ্ঠ গণতন্ত্রকে মনুবাদী বিচারধারা এবং ব্রাহ্মন্যবাদী একনায়কতন্ত্র এবং ফ্যাসিবাদের যূপকাষ্ঠে বলি চড়াতে চাইছে। এদের কাজকর্মে প্রমানিত হচ্ছে যে এই অমানবিক পুঁজিবাদ–ব্রাহ্মন্যবাদ দেশদ্রোহী গাটবন্ধন ভারতীয় সংবিধানকে নিজেদের কব্জায় নিয়ে ফেলেছে।
এমন বিকট পরিস্থিতিতে ভারতের একজন গণতন্ত্র প্রেমী সচেতন নাগরিক হিসেবে সংবিধান তথা সংসদীয় গণতন্ত্র বাঁচানোর জন্য সর্বশক্তি নিয়ে এগিয়ে আসা প্রয়োজন।"
আদিবাসীদের সাংস্কৃতিক আয়োজন সকলের প্রসংসা কুড়িয়েছে।উপস্থিত আম্বেদকরপন্থীরা সংবিধানের প্রস্তাবনা পড়েন এবং নতুন দেশ গঠনের প্রতিজ্ঞা করেন।তবে আদিবাসীদের অভিযোগ,"নিজেদের মৌলিক অধিকার নিয়ে আন্দোলন করলেই মাওবাদী বলা হচ্ছে।আমরা চরম সমস্যার মধ্যে আছি।"
শরদিন্দু বাবুর আরও বলেন,"ভারতের সংবিধান গণতন্ত্রের ইতিহাসে সর্ববৃহৎ এবং সর্বশ্রেষ্ঠ সংবিধান।ভারতের সংবিধানের ভিত এমন ভাবে গড়ে তোলা হয়েছে যে যাতে প্রত্যেক নাগরিক নিজ নিজ ক্ষেত্রে অর্থনৈতিক, সামাজিক, ধর্মীয়, বৌদ্ধিক ও সাংস্কৃতিক স্বাধীনতা উপভোগ করতে পারে। এই সংবিধান দেশের প্রত্যেক নাগরিককে ধর্ম, জাতি, লিঙ্গ, ভাষা এবং আঞ্চলিকতার উর্দ্ধে এসে সদ্ভাবনার সাথে জীবন অতিবাহিত করার মৌলিক অধিকার প্রদান করেছে।
কিন্তু অত্যন্ত বেদনার সাথে জানাচ্ছি যে, দেশে একটি ফ্যাসিবাদী শক্তি কায়েম হওয়ার পরে প্রতিনিয়ত এই সংবিধানের অবমাননা চলছে।"
মিছিল শেষে বক্তব্য রাখেন কর্নেল সিদ্ধার্থ ভার্বে, সুরেশ রাম, শিরাজুল ইসলাম, সানাউল্লা খান, পলাশ বিশ্বাস, সিদ্ধানন্দ পুরকাইত, সুচেতা গোলদার, কৃষ্ণকান্ত মাহাত,প্রশান্ত বিশ্বাস প্রমুখ।
মিছিলের আয়োজকদের দাবি,কলকাতায় আম্বেদকরের যে মূর্তি আছে তাতে বেশ কিছু 'ভুল' আছে।বাবা সাহেবের চোখে চশমা নেই।আরও কিছু ভুলের সংশোধন চেয়ে মুখ্যমন্ত্রী ও রাজ্যপালের সাথে দেখা করবেন তাঁরা।
জাতীয় পতাকা হাতে সংবিধান দিবস পালন করলেন পশ্চিমবঙ্গের দলিত বহুজন মানুষঃ
আজ সকাল ১১টার সময় থেকে ন্যাশনাল সোস্যাল মুভমেন্ট অব ইন্ডিয়ার আহ্বানে কোলকাতার রানিরাসমণি রোড থেকে শুরু হয় সংবিধান বাঁচাও শিরোনামে একটি পদযাত্রা। এই পদযাত্রায় অংশগ্রহণ করেন পশ্চিমবঙ্গের সর্ব ধর্মের মানুষ। মিছিল থেকে আওয়াজ ওঠে, "যদি আগামী শিশুদের ভবিষ্যৎ বাঁচাতে চাও, সংবিধান বাঁচাও"।
সংবিধান দিবসে আগত সমস্ত মানুষ ফোর্টউইলিয়ামের পাশে অবস্থিত বাবা সাহেব ডঃ বি আর আম্বেদকরের মূর্তির পাদদেশে ভারতীয় সংবিধানের প্রস্তাবনা পাঠ করেন এবং শপথ গ্রহণ করেনে। অনুষ্ঠানের আকর্ষণ বাড়িয়ে তোলেন পশ্চিম মেদিনীপুর থেকে আগত আদীবাসী ভাইবোনেরা। তার সড়পা নৃত্যের মাধ্যমে মারাংবুরু এবং বাবা সাহেবকে বন্দনা করেন।
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