BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, April 3, 2015

वीरेनदा की कविता अशोक भौमिक के लिए



मेरे प्यारे कवि विरेन दा (Virendra Dangwal Dangwal) की एक कविता प्यारे चित्रकार -कथाकार Bhowmick दा के लिए..
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61, अशोक भौमिक, इलाहाबाद
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तो हजरत!
इस जवान जोश के बावजूद
आप भी हो चुके 61 के
और कल ही तो नीलाभ प्रकाशन की उस दुछ्ती पर
आपके साथ हम भी रचते थे कभी-कभी
अपनी वो विचित्र नृत्य नाटिकाएँ
जैसे एक विलक्षण नशे में डूबे हुए,
या आपका वो
एक जुनून में डूबकर कविता पोस्टर बनाना
सस्ते रंगों और कागज से
खाते हुए बगल के कॉफ़ी हाउस से मँगाए
बड़ा-सांभर, नींबू कि चाय के साथ
अभी तक बसी हुई है नाक और आत्मा में
वे सुगंधें प्रेम और परिवर्तन की चाहत से
लबालब और गर्मजोश |
हिन्दी प्रांतर में तो वह एक नई सांस्कृतिक शुरूआत हो रही थी तब
क्या उम्दा इतेफाक हैं
कि इकतीस जुलाई प्रेमचंद का
भी जन्मदिन है, आपसे बार-बार
कहा भी गया होगा
आप भी तो रचते हैं
आपने चित्रों और लेखों में
भारतीय जीवन की वे दारुण कथाएँ
जो पिछले कुछ दशकों में
गोया और भी अभीशापग्रस्त हो गई हैं
बीते इन तीसेक बरसों में
बहुत कुछ बदला है
देश-दुनिया में
हमारे इर्द-गिर्द और आप-हम में भी |
वे तिलिस्मी? जिन्नात- यातुधान-जादूगर
और खतरनाक बौने आपके चित्रों के
स्याह ज्यामितीय रेखाओं
और कस्बो की तंग गलियों से निकलकर
महानगरों-राजधानियों तक निर्बाध आवाजाही कर रहे हैं
अपने मनहूस रंगों को फड़फड़ाते हुए |
अब ख़ुद बाल बच्चेदार हो रहे हैं
हमारे बेटे-बेटियाँ जो तब बस
खड़े होना सीखे ही थे,
और आप भी तो अपने टाई-सूट और
बैग को छोड़कर
पूरी तरह कुर्ता-पजामा की
कलाकार पोशाक पर आ गए हैं|
हाँ कुछ अब भी नहीं बदला है
मसलन शब्दों और भाषा के लिए
आपका पैशन, लोहे के कवच पहना आपका नाजुक भाव जगत
गुस्सा, जो किसी मक्खी की तरह
आपकी नाक पर कभी भी आ बैठता है
और थोडा सा खब्तीपन भी जनाब,
आपकी अन्यथा मोहब्बत से चमकती
आँखों और हँसी में |
मगर वह सब काफ़ी उम्दा है, कभी-कभी जरूरी भी
और इन दिनों
हथौड़ा-छैनी लेकर कैनवास पर आप
गढ़ रहे हैं एक पथराई दुनिया की तस्वीरें
जिन्हें देखकर मन एक साथ
शोक-क्रोध-आशा और प्रतीक्षा से
भर उठता है|
ये कैसी अजीब दुनिया है
पत्थर के बच्चे, पत्थर की पतली डोर से
पत्थर की पतंगे उड़ा रहे हैं
गली-मोहल्लों की अपनी छतों पर
जो जाहिर है सबकी सब
या वे परिन्दे
जो पथराई हुई आँखों से देखते हैं
पथरीले बादलों से भरे आकाश जैसा कुछ
अपने पत्थर के डैनों को बमुश्किल फड़फड़ाते
मगर आमादा फिर भी
परवाज़ के लिए |
हमें आपकी छेनी के लिए ख़ुशी है अशोक,
हमें ख़ुशी है कि आप
महान चित्रकार नहीं हैं
हालाँकि बाज़ार आपकी अवहेलना भी नहीं कर सकता
अपने भरपूर अनोखे और सुविचारित कृतित्व से
ख़ुद के लिए वह जगह बनाई है आपने,
और अपनी मेहनत से,
हमें ख़ुशी है कि हमारे समय में आप हैं
हमारे साथ और सम्मुख
जन्मदिन मुबारक हो !
(जून 2014)

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