मुक्तबाजारी हिंदू साम्राज्यवादियों के शिकंजे में बाबासाहेब
उनकी रिहाई के लिए संघपरिवार और कांग्रेस की तर्ज पर अंबेडकर जयंती न मनाकर उनकी विचारधारा,उनेक जाति उन्मूलन एजंडा और उनके आंदोलन की जयंती मनायें
पलाश विश्वास
मुक्तबाजारी हिंदू साम्राज्यवादियों के शिकंजे मे बाबासाहेब।
उनकी रिहाई के लिए संघपरिवार और कांग्रेस की तर्ज पर अंबेडकर जयंती न मनाकर उनकी विचारधारा,उनेक जाति उन्मूलन एजंडा और उनके आंदोलन की जयंती मनायें।
हम ऐसा ही कर रहे हैं और देशभर के अपने साथियों से इसीतरह बाबासाहेब की विचारधारा की जयंती मनाने की अपील कर रहे हैं।
मध्य कोलकाता में राइटर्स बिल्डिंग के पीछे इंडियन चैंबर्स परिसर में बैक आफ इंडिया के सभागार में मंगलवार को विशिष्ट चिंतक लेखक अध्यापक आनंद तेलतुंबड़े विस्तार से अंबेडकर विचारधारा और आंदोलन के बारे में कोलकाता के बैंक कर्मचारियों को बतायेंगे और उनके सवालों का जवाब देंगे।
इस मौके पर कर्नल बर्वे साहेब भारतीय अर्थव्यवस्था के मौजूदा हाल पर विजुअल प्रेजेंटेशन रखेंगे तो मुझे भी बैंकिंग सेक्टर की हालिया चुनौतियों का खुलासा करना है।इस संवाद में सबको आमंत्रण है।
आपको बता दें कि सिर्फ अनुसूचित कर्मचारी कल्याण संगठनों के लिए भारत सरकार ने अंबेडकर जयंती के लिए सौ करोड़ रुपये मंजूर किये हैं।
संघ परिवार धूमधाम से अंबेडकर जयंती मना रहा है भारी भरकम सरकारी भव्यआयोजनों के अलावा तो हिंदुत्व के मौलिक झंडेवरदार कांग्रेस भी पीछे नहीं है।कारपोरेट घराने भी बढञचढञकर अंबेडकर जयंती मना रहे हैं।
यह समझने वाली बात है कि मनुस्मृति और जाति व्यवस्था के नस्ली रंगभेद के खिलाफ,हिंदू साम्राज्यवाद के किलाफ बाबासाहेब जो लड़ते रहे,और मनुस्मृति आधारित हिंदुत्व का परित्याग करने के लिए उनने जो हिंदू धर्म का परित्याग करके बौद्धधर्म की दीक्षा ली,तो उन्ही हिंदुत्व के,हिंदू साम्राज्यवाद के सबसे बड़े शत्रु का जन्मदिन को किसी पुण्यपर्व की तरह क्यों मना रहा है संघ परिवार और उसका असली मकसद क्या है।
समझने वाली बात यह है कि बाबासाहेब को ईश्वर बनाकर भारत में समरसता अभियान के तहत,घरवापसी के जबरन धर्मांतरण अभियाने के तहत,आक्रामक मुक्तबाजारी जायनी फासीवाद के तहत संघ परिवार के हिंदू राष्ट्र एजंडा में बाबासाहेब की प्रासंगिकता क्या है।
क्या संघ परिवार भारत को बौद्धमय बनाने के पंचशील खत्म पंचामृत चालू अभियान के तहत यह करतब कर रहा है या नहीं,यह भी समझने वाली बात है।
यह भी गौर करने वाली बात है कि संघ परिवार नस्ली भेदभाव आधारित मनुस्मृति राजकाज के वर्णवर्चस्वी तंत्र मंत्र यंत्र को बहाल रखते हुए किस समता और सामाजिक न्याय के लिए आजादी के सात दशक बाद बाबासाहेब की शरण में हैं।
संघ परिवार वीर सावरकर की शरण में है और गांधी हत्यारा गोडसे को ईश्वर बना रहा है,तो अंबेडकर को ईश्वर बनाकर बारत के बहुजनों का वह क्याभला करने वाला है,इस पर भी गौर करें।
समझने वाली बात है कि बाबासाहेब के बनाये सारे के सारे श्रम कानून खत्म करने वाली,बाबासाहेब की वजह से बने रिजर्व बैक आफ इंडिया के निजीकरण के सिलसिले में उसके सारे अधिकार सेबी को सौंपने वाली,बाबासाहेब के भूमि सुधार कीमांग के विपरीत अध्यादेशों के सहारे देश की सारी जमीन कारपोरेटघरानों को सौंप देने वाली,बाबासाहेब के राष्ट्रीय संसाधनों के राष्ट्रीकरण के विपरीत संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण विनिवेश की जनसंहारी नीतियां अपनाने वाली और बाबासाहेब के बहुजनों,अल्पसंख्यकों,महिलाओं और कर्मचारियों शर्मिकों के दिये संवैधानिक रक्षाकवच के साथ साथ भारतीय संविधान को ही सिरे से खत्म करनेवाली भारत सरकार अंबेडकर जयंती उत्सव क्यों मना रही है।
फिर इस बिजनेस फ्रेंडली देश बेचो,सोने की चिड़िया मारो सरकार के इस आयोजन में कारपोरेट घराने क्यों बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है।
गनीमत है कि आधिकारिक तौर पर बाबासाहेब को हिंदुत्ववादियों ने अभी विष्णु का अवतार घोषित नहीं किया है।गौतम बुद्ध को जैसे उनने किया है।
बाबासाहेब के अनुयायी बाबासाहेब को बोधिसत्व बताकर उनकी पूजा आराधना के कर्मकांड में निष्णात हैं तो बाबासाहेब को अवतार साबित करने में कोई ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पड़ेगी हिंदुत्ववादियों को।
अंबेडकर मंदिर अभी नहीं बने हैं वीर सावरकर और गांधी हत्यारे गोडसे की तरह,लेकिन नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाकर समूचे बहुजन समाज को जैसे हिंदुत्व की पैदल सेना में तब्दील कर दिया है,उस कामयाबी के मद्देनजर संघ परिवार के इस समरसता अभियान का समामाजिक आशय को समझा जा सकता है।राजनीतिक वोट बैंक समीकरण तो साफ है और उसे समझाने की जरुरत भी नहीं है।
जाहिर सी बात है कि हिंदू सम्राज्यवाद के शिकंजे में हैं बहुजनों के एकच मसीहा,उनकी रिहाई के लिए संघ परिवार और कांग्रेस की तर्ज पर अंबेडकर जयंती न मनाकर उनकी विचारधारा,उनेक जाति उन्मूलन एजंडा और उनके आंदोलन की जयंती मनायें।
हालात ये हैं कि हिंदू महासभा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष साध्वी देवा ठाकुर ने कहा कि मुसलमानों और ईसाइयों की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए इस समुदाय के लोगों की नसबंदी करानी होगी..
भारतवर्ष की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में जनसंख्या को मानव संसाधन माना जाता रहा है।बाल मृत्युदर अनियंत्रित होने की वजह से खेती पर काम करने वाले हाथों की संख्या बढ़ने की गरज भारतीय बहुजनों,जिसमें अल्पसंख्यक भी हैं,के लिए बच्चे पैदा करने की मौलिक वजह रही है,जो लोक परंपराओं के साथ साथ धार्मिक आस्थाओं से पुष्ट होती रही है।
हमारी दादी बच्चों को लाठी कहा करती थीं।मतलब यह है कि खेत के दखल के लिए लाठियां बहुत निर्णायक हैं।कहावत भी है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस।
उत्पादन प्रणाली के सिरे से बदल जाने और कृषि आजीविका के ही गैर प्रासंगिक हो जाने से जनसंख्या वृद्धि एक बड़ी समस्या बन गयी है।
इस समस्या की आड़ में ग्लोबल जायनी व्यवस्था बाकायदा गैर नस्ली लोगों की जनसंख्या के सफाये में लगी है।भारत में इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान अनिवार्य नसबंदी से हिंदुत्व के पुनरूत्थान के पहले चरण में आर्थिक सुधारों के नवउदारवादी बहुजनविरोधी नस्ली नरसंहार अश्वमेध से पहले इसे शुरु किया था और अब लगता है कि संघ परिवार का हिंदुत्व ब्रिगेड और उसका कारोबारी राजकाज इसे अंजाम देने वाला है।
जैसे घर वापसी का असली मकसद हिंदुत्व के शिकंजे से छिटकर निकले बहुजनों के फिर हिंदुत्व की नर्क में कैद करना है,विधर्मियों के खिलाफ जिहाद के बतौर।वैसे ही विधर्मियों की नसबंदी दरअसल बहुजनों की अनिवार्य नसबंदी का कार्यक्रम है।
हम आगे इस सिलसले में संवाद जारी रखेंगे।
फिलहाल फिर दोहराता हूंः
मुक्तबाजारी हिंदू साम्राज्यवादियों के शिकंजे मे बाबासाहेब।
उनकी रिहाई के लिए संघपरिवार और कांग्रेस की तर्ज पर अंबेडकर जयंती न मनाकर उनकी विचारधारा,उनेक जाति उन्मूलन एजंडा और उनके आंदोलन की जयंती मनायें।
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