BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Thursday, February 28, 2008

चिदंबरम की अग्नि परीक्षा

चिदंबरम की अग्नि परीक्षा
नई दिल्ली- संप्रग सरकार के आगामी बजट में नौकरी पेशा तबके से लेकर किसानों और महिलाओं को भारी सौगातें मिलने की उम्मीदें व्यक्त की जा रही हैं, लेकिन मनमोहन सिंह सरकार के इस अंतिम पूर्ण बजट में वित्तमंत्री पी. चिदंबरम को बजट संतुलन के मोर्चे पर अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ सकता है।

आम चुनाव से पहले संप्रग का आखिरी पूर्ण बजट पेश करने जा रहे चिदंबरम को जहाँ एक तरफ समाज के हर तबके को खुश रखना है, वहीं दूसरी तरफ उन पर इसके लिए संसाधन जुटाने की भी बड़ी चुनौती होगी। वित्त मंत्री को वित्तीय जबावदेही एवं बजट प्रबंधन कानून (एफआरबीएम) की सीमाओं में रहकर खर्च करना है और इसके चलते उन्हें 2008-09 के बजट में राजस्व घाटे को पूरी तरह समाप्त करना है तो वित्तीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन प्रतिशत की सीमा में रखना है।

इस वर्ष राजस्व घाटा जीडीपी का प्रतिशत बजट अनुमान है। अगले बजट में इसे एक ही झटके में समाप्त करना इसे कठिन होगा विशेष तौर पर ऐसे समय जब सरकार राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना जैसी जनकल्याण की कई योजनाओं पर खर्च करने की घोषणा कर चुकी है। सरकार एक अप्रैल से रोजगार गारंटी योजना लागू करने की घोषणा कर चुक है।

संप्रग अध्यक्ष सोनिया गाँधी वित्त मंत्री को बजट में महिलाओं और किसानों के हितों का ध्यान रखने के लिए साफतौर पर कह चुकी हैं जबकि उनकी कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि वित्तमंत्री को एफआरबीएम की चिंता छोड़ आम जनता से जुडी योजनाओं के खजाना खोल देने की माँग की है।

ऐसे में चिदंबरम वित्तीय और राजस्व घाटे की तरफ से आँख मूँदकर सार्वजनिक व्यय के आवंटन में उदारता बरत सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें एफआरबीएम कानून के लक्ष्यों संशोधन का प्रस्ताव लाना पड़ सकता है, जैसा कि उन्होंने इस सरकार के पहले ही बजट में किया था।

विश्लेषकों का मानना है कि चालू वित्तीय वर्ष 2007-08 के बजट में वित्त मंत्री को वित्तीय घाटे 3.3 प्रतिशत के लक्ष्य को पाना मुश्किल नहीं होगा और हो सकता है वह इससे भी अच्छी उपलब्धि हासिल कर लें लेकिन आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट, विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी और अंतरराष्ट्रीय तेल एवं जिंस बाजार में बढ़ती महँगाई के बीच छठे वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल करने से अगले वित्तीय वर्ष का बजट बिठाना अब तक के चारों बजटों से ज्यादा कठिन प्रश्न साबित हो सकता है।

वर्ष 2006-07 के 9.6 प्रतिशत के मुकाबले चालू वित्तीय वर्ष में वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया जा रहा है तथा औद्योगिक वृद्धि दर जो पिछले साल तक 11 प्रतिशत से अधिक चल रही थी इस वर्ष घटकर 9.5 प्रतिशत के आसपास आ गई है। इससे राजस्व पर असर पड़ेगा।

उल्लेखनीय है कि वित्तमंत्री कहते हैं कि आर्थिक वृद्धि दर के ऊँची होने पर ही उन्हें सामाजिक विकास की योजनाओं के लिए संसाधन जुटाने में आसानी होगी।

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