बजट में किसानों को राहत संभव
नई दिल्ली-संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के शुक्रवार को पेश होने वाले आम बजट में किसानों को विशेष राहत पैकेज की घोषणा के साथ साथ ग्रामीण विकास की योजनाओं की एक नई तस्वीर पेश की जा सकती है।
अगला वर्ष चुनावी वर्ष होने के नाते रेल बजट की भांति वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का आम बजट भी लोक लुभावन होने की पूरी संभावना है। आम बजट में समाज के हर तबके को खुश करने के लिए चिदंबरम अनेक घोषणाएँ कर सकते हैं। नौकरी पेशा तबके के लिए आयकर छूट सीमा बढ़ाने से लेकर उद्योग जगत को कर में अधिभार से छूट दे सकते हैं लेकिन अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिए वित्त मंत्री सेवाकर के दायरे का विस्तार भी कर सकते हैं। केवल इतना ही नहीं वह सेवाकर की दर भी 12 से बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर सकते हैं।
संप्रग अध्यक्ष सोनिया गाँधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से किसानों के प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में मुलाकात कर उनके कर्ज माफ करने और उन्हें ऊँची ब्याज दरों से मुक्ति दिलाने का आग्रह किया है। रायबरेली में अपने चुनाव क्षेत्र में श्रीमती सोनिया गाँधी, वित्त मंत्री के बजट में किसानों और महिलाओं को राहत देने के लिए पहले ही कह चुकी हैं। इस लिहाज से यह तय माना जा रहा है कि इस चुनावी बजट में चिदंबरम किसानों के लिए बड़े पैकेज की घोषणा कर सकते हैं।
वित्त मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक वृद्धि दर को बनाए रखने के साथ साथ कृषि के मोर्चे पर गतिविधियों को तेज करना है ताकि महँगाई पर भी अंकुश रखा जा सके। उन्हें वित्तीय जबावदेही और बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम) के दायरे में रहते हुए बजट संतुलन भी बनाए रखना है।
सरकार आर्थिक उन्नति में ग्रामीण विशेषकर पिछड़े तबके को भागीदार बनाने के लिए प्रयासरत है। इसके लिए उसका ध्यान ग्रामीण और कृषि क्षेत्र पर केन्द्रित है। सरकार मानती है कि 9 से 10 प्रतिशत की उच्च आर्थिक वृद्धि दर बनाए रखने के लिए कृषि क्षेत्र में चार प्रतिशत आर्थिक वृद्धि जरुरी है। इस साल कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया जा रहा है जबकि पिछले साल इसमें 3.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। इसके साथ ही सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर भी पिछले साल के 9.6 प्रतिशत से कम होकर इस साल 8.7 प्रतिशत रह जाने का अनुमान लगाया गया है।
उधर महँगाई दर जो कि एक समय तीन प्रतिशत से नीचे चली गई थी वापस सिर उठाकर चार प्रतिशत से ऊपर निकल गई है। इस लिहाज से चिदंबरम का पूरा ध्यान कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र के साथ ग्रामीण क्षेत्र में ढाँचागत सुविधाएँ बढ़ाने पर केन्द्रित हो सकता है।
वित्त मंत्री को वित्तीय प्रबंधन के मोर्चे पर भी अपने कौशल का परिचय देना होगा। एफआरबीएम कानून के तहत उन्हें 2008-09 में वित्तीय घाटा जहाँ तीन प्रतिशत तक नीचे लाना है वहीं राजस्व घाटा पूरी तरह समाप्त करना है। यदि ऐसा संभव नहीं हुआ तो एफआरबीएम कानून में संशोधन भी लाना पड़ सकता है। इस चुनावी वर्ष में चिदंबरम क्या कदम उठाते हैं यह उनके संसाधन जुटाने के कौशल पर निर्भर करेगा। इस साल राजस्व वसूली अच्छी रही है। उन्हें बजट अनुमान से भी ज्यादा राजस्व मिलने की उम्मीद है। इसके चलते वित्तीय घाटा 3.3 प्रतिशत रहने का बजट अनुमान और बेहतर हो सकता है। राजस्व घाटा 1.5 प्रतिशत से कुछ कम रह सकता है।
लेकिन अगले साल उन्हें ज्यादा खर्च करने के साथ साथ उसके लिए नए संसाधन भी तलाशने होंगे। वित्त मंत्री कर ढाँचे में ज्यादा बदलाव नहीं करेंगे विशेषज्ञों की ऐसी राय है। ऐसे में जब कर अदायगी 40 प्रतिशत से भी अधिक रफ्तार से बढ़ रही है तो कर दरों में फेरबदल की उम्मीद कम ही है। उम्मीद से अधिक राजस्व वसूली से गदगद वित्त मंत्री निम्न एवं मध्यम वर्ग के आयकर में उनकी छूट सीमा बढ़ाकर उन्हें कुछ राहत पहुँचा सकते हैं।
इस समय 110000 रुपए तक की व्यक्तिगत आय कर मुक्त है। महिलाओं के मामले में यह सीमा 145000 रुपए है और वरिष्ठ नागरिकों की 195000 रुपए तक की सालाना आय कर मुक्त है। इसके अलावा कंपनियों को अधिभार से राहत मिल सकती है।
चिदंबरम के पिछले बजट में सकल बजट सहायता 205100 करोड़ रुपए रखी गई थी जिसमें केन्द्रीय योजनाओं के लिए 154939 करोड़ रुपए थे। अगले वित्त वर्ष में उन्हें भारत निर्माण तथा दूसरी जन कल्याण की योजनाओं के लिए आवंटन बढ़ाना होगा। राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना सरकार के एजेंडे में सबसे ऊपर है। यह योजना एक अप्रैल से देश के सभी ग्रामीण जिलों में लागू करने की पहले ही घोषणा की जा चुकी है।
पिछले साल इसे 200 से बढ़ाकर 330 जिलों में लागू किया गया था। योजना के लिए 12000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। इसके अलावा इसमें शामिल नहीं किए गए जिलों में संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के लिए 2800 करोड़ रुपए का अलग से प्रावधान किया गया था।
सर्वशिक्षा अभियान और मध्याह्लन भोजन योजना भी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएँ हैं। पिछले बजट में इसके लिए 35 प्रतिशत वृद्धि के साथ 23142 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था जिसमें सर्वशिक्षा अभियान के लिए 10671 करोड़ रुपए शामिल थे। मध्याह्न भोजन के लिए 7324 करोड़ रुपए रखे गए थे। इसके अलावा शहरी बेरोजगारी और जवाहरलाल नेहरु राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन तथा लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अंत्योदय अन्न योजना भी सरकार के लिए महत्वपूर्ण है।
जहाँ तक औद्योगिक विकास की बात है इस र्मोचे पर वित्त मंत्री गैर कृषि उत्पादों के आयात पर सीमा शुल्क की वर्तमान दर 10 प्रतिशत से घटाकर 8.5 प्रतिशत कर सकते हैं ताकि कच्चे माल का आयात सस्ता हो और घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धा में सुधार आए। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने से घरेलू तेल कंपनियों पर बढ़ते बोझ को कम करने के लिए वह पेट्रोल, डीजल के उत्पाद एवं सीमा शुल्क दरों में फेरबदल कर सकते हैं। सुझाव दिया जा रहा है कि इन पेट्रोलियम उत्पादों पर शुल्क मूल्यानुसार लगाने के बजाय मात्रात्मक दर से लगाया जाना चाहिए ताकि उनकी लागत कम हो।
पिछल बजट में वित्त मंत्री ने पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क 8 से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया था। सेवाकर के क्षेत्र में 10-15 नई सेवाओं को सेवाकर के दायरे में लाया जा सकता है। अप्रैल 2010 से वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) लागू होने को देखते हुए सेवाकर की दर 12 से बढ़ाकर 14 प्रतिशत भी हो सकती है। अब तक करीब 100 सेवाएँ सेवाकर के दायरे में आ चुकी हैं। सेवाकर से मिलने वाला राजस्व भी बढ़कर 50000 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। नए बजट में यह और बढ़ सकता है।
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