BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, February 29, 2008

भारत के विवेक की आवाज

भारत के विवेक की आवाज
स्मृति के झरोखे से



-राहुल बारपुते
बाबा आमटे की जिंदगी किसी भी मायने में सामान्य नहीं रही। दरअसल अगर उनके जीवन के वर्षों का सही-सही ब्योरा बयान किया जाए तो वह एक ऐसी रचना होगी जिसे अधिकांश आलोचक यह कहकर खारिज कर देंगे कि वह 'वास्तविकता से मेल नहीं खाती', 'अतर्कसंगत है' आदि आदि। और एक मायने में वे गलत भी नहीं होंगे। मिसाल के लिए इन छह दृश्यों पर गौर कीजिए-

दृश्य एक : ऐसा एक बालक कि जिसकी मसें भी भीगी नहीं हों और जो उस कच्ची उम्र में शहीदे आजम भगतसिंह के साथी, जेल में बंद राजगुरु से प्रत्यक्ष संपर्क साधने का दुस्साहस करता है।

दृश्य दो : ऐन जवानी में, नागपुर की सड़कों पर डबल कार्ब्युरेटर वाली कार, जिसके गद्दों के खोल खुद शिकार किए गए जंगली जानवरों की खाल से सज्जित हों, दौड़ाने वाला तथा विदेशी फिल्मों की श्रेष्ठ समीक्षा अँगरेजी में लिखने वाला एक संपन्ना युवा।

दृश्य तीन : जबलपुर के रेलवे स्टेशन मास्टर के दफ्तर में जटाजूटधारी और लगभग संन्यासी जैसे लेकिन रक्त लांछित लिबास वाला एक व्यक्ति धाराप्रवाह अँगरेजी में शिकायत कर रहा है जैसे उसे एक डिब्बा भर सशस्त्र सैनिकों ने सिर्फ इसलिए प्लेटफार्म पर फेंक दिया कि वे सैनिक उसी डिब्बे में सवार एक नवविवाहित तरुणी के साथ अभद्र व्यवहार कर रहे थे।

दृश्य चार : वरोरा जिला चंद्रपुर नगरपालिका का निर्वाचित उपाध्यक्ष सुबह सिर पर मैला ढोता है, फिर नहा-धोकर अदालत में अपने पक्षकारों की ओर से बहस करता है और बाद में शाम को पालिका की बैठक की अध्यक्षता करता है।

दृश्य पाँच : वरोरा की एक सड़क के किनारे, बरसाती कीचड़ से लथपथ और टाट में जैसे-तैसे लिपटा गलित गात्र एक कोढ़ी, जिस पर मकान की छत से पानी टपक रहा है, असहाय पड़ा है। आने-जाने वाले उस वीभत्स दृश्य को देखकर सड़क के दूसरे किनारे से होकर गुजर जाते हैं, लेकिन एक व्यक्ति उस कोढ़ी को उठाकर अपने घर ले जाता है।

दृश्य छह : वरोरा की बस्ती से कई किलोमीटर दूर एक बियाबान और ऊसर पठार पर एक झोपड़ी, एक लँगड़ी गाय, दो चार कोढ़ी और लालटेन की टिमटिमाती रोशनी में दिखाई देने वाला एक युगल अपने दूधमुँहे बच्चों के साथ।

उक्त दृश्यों को आपस में जोड़ने वाला एक सूत्र तो यह है कि ये सारे दृश्य बाबा आमटे के जीवन के विभिन्न पड़ाव थे, लेकिन जरा गौर करने पर एक और समानता नजर आती है साहस। लगभग असीम साहस! डेढ़ हाथ के कलेजे के धनी बाबा आमटे स्वभावतः साहसी हैं, लेकिन उनकी इस सहज प्रवृत्ति को तर्कसंगत एवं नैतिक बुनियाद प्रदान की महात्मा गाँधी ने। उन्होंने बाबा से अभय साधना करने को कहा।

बाबा के अद्भुत कृतित्व के लिए उनकी जो मानसिकता उत्तरदायी है उसकी बुनावट का एक महत्वपूर्ण धागा यह अभय साधना है। इस केंद्र बिंदु के साथ ही अन्य महत्वपूर्ण बिंदु रहे बाबा की रूमानी तबीयत और स्वयं को पूरी तरह झोंक देने की आदत। उनकी रूमानी तबीयत की अभिव्यक्ति बाबा द्वारा स्थापित विभिन्न परिसरों आनंदवन, सोमनाथ, हेमलकसा, अशोक वन की रचना में साफ दिखाई देती है।

ऋषि-मुनियों की भाँति ही बाबा को अरण्यों से बेहद लगाव रहा और उन्हीं की भाँति बाबा ने ऋचाएँ भी रची। बाबा कवि हैं। जहाँ तक स्वयं को झोंक देने का सवाल है, हालत यह है कि बाबा पर गंभीर बीमारियों के ही नहीं आदमियों द्वारा लाठी, छुरे से हमले भी हुए, लेकिन वे अपनी राह से कभी नहीं हटे और न ही उन्हें कोई शारीरिक असमर्थता रोक पाई।

अपने आपको झोंक देने का मतलब यह कतई नहीं होता कि बाबा बगैर सोचे-विचारे कोई काम शुरू कर देते, बल्कि बाबा का हर काम बहुत सुविचारित होता है। उनके मन में जब कोई कल्पना अंकुरित होती तो वे उसके समग्र रूप पर सोचते। लक्ष्य और उसकी कीमत आँकते हैं, क्रियान्वयन की विगत का गणित जमाते, फिर कदम बढ़ाते हैं।

सरसरी निगाह से देखें तो यही नजर आएगा कि बाबा ने कोढ़ियों के इलाज एवं उनके पुनः स्थापन का काम भारी पैमाने पर अनूठे ढंग से और अत्यंत यशस्वी तौर से किया है। अपनी अहिंसक राजनीतिक क्रांति के दौरान महात्मा गाँधी छुआछूत मिटाने तक ही पहुँचे थे।

अस्पृश्यता उन्मूलन बापू के मिशनों में से एक था, लेकिन बाबा आमटे पहुँचे ठेठ कोढ़ियों तक। समाज की निम्नतम सीढ़ी पर ही सही लेकिन शूद्रों को एक स्थान मिला था। वे समाज के दायरे से बाहर नहीं थे, लेकिन कोढ़ी को तो समाज के किसी भी कोने में कभी कोई स्थान नहीं मिला। कोढ़ियों की पीड़ा उनके दर्द को समझा बाबा आमटे ने और उनके उत्थान को ही जीवन का लक्ष्य बनाया।

बाबा आमटे का दर्शन किसी पक्षीय राजनीति से प्रेरित नहीं है। उसकी प्रेरणा है गरीब से गरीब, पिछड़े से पिछड़े भारतवासी के ससम्मान जीने के अधिकार की रक्षा करना और बाबा का प्रयास है वैसी जमीन और परिस्थितियाँ निर्माण करना जिनमें उक्त अधिकार एक प्रत्यक्ष वास्तविकता भी हो। इसीलिए बाबा आमटे आज भारत के विवेक की आवाज हैं। उसे अनसुना करना भारत के विवेक को नकारना ही होगा।

(यह लेख नईदुनिया में 23 नवंबर 1985 को बाबा आमटे के 72वें जन्म दिवस से पूर्व प्रकाशित हुआ था। उसके संपादित अंश यहाँ दिए गए हैं।)

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