आरएसएस का सपना पूरा करते मुलायम
कोसीकलां दंगे की पीडि़तों ने सुनाई आपबीती
एक साल में 27 दंगे होने से साफ हो जाता है कि यह दंगे सपा सरकार की नीतियों के तहत ही हो रहे हैं. यह इत्तेफाक नहीं है कि एक तरफ पूरे सूबे में दंगे हो रहे हैं, वहीं मुलायम सिंह मुसलमानों के खून से सने हाथ वाले आडवाणी की तारीफ करते हैं...
आशीष वशिष्ठ
एक तरफ उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार घोषणा करती है कि उसने आतंकवाद के नाम पर कैद 400 बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को रिहा कर दिया है, तो मुलायम सिंह यादव घोषणा करते हैं कि आडवाणी जी झूठ नहीं बोलते. लेकिन मथुरा के कोसी कलां के साम्प्रदायिक दंगों में हिंसा के शिकार हुए मुस्लिम इंसाफ मांग रहे हैं और सरकार है कि कान देने को तैयार नहीं है. यह बातें 30 मार्च को रिहाई मंच के एक कार्यक्रम में वक्ताओं ने कही.
शनिवार को लखनऊ प्रेस क्लब में 1 जून 2012 को कोसी कलां, मथुरा में हुए दंगे के लगभग पचास पीड़ित परिवारों के लोग अपना दर्द बयां करने के लिये मौजूद थे. पीड़ितों ने बताया कि उन्हें नौ महीने बीत जाने के बाद भी न्याय नहीं मिला है. रिहाई मंच द्वारा कोसी कलां दंगा पीडि़तों की जनसुनवाई में राज्य मशीनरी की संदिग्ध भूमिका पर दंगे की सीबीआई जांच की मांग की गयी. आज पूर्व न्यायाधीश राजेन्दर सच्चर कोसी कलां दंगे की रिपोर्ट जारी करेंगे. (कोसीकलां दंगे की पूरी रिपोर्ट देखने के लिए सबसे नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।)
जन सुनवाई में मौजूद मौलाना ताहिर ने कहा कि 'जय श्री राम के नारों के साथ पुलिस की मौजूदगी में बस स्टैण्ड और कब्रिस्तान वाली मस्जिदों में मजहबी किताबों को जलाया गया. मस्जिद को क्षतिग्रस्त किया गया. भीड़ चिल्ला रही थी कि यह लक्ष्मी नारायन को वोट न देने का सिला है. साफ़ है कि आरएसएस, बजरंग दल और शिवसेना जैसे संगठन उत्तर प्रदेश में जो एजेण्डा बनाते हैं उसे मुलायम सिंह पूरा करते हैं. एक तरफ मुलायम और आजम खान मदरसों के आधुनिकीकरण के नाम पर मुसलमानों को रिझाते हैं, तो दूसरी ओर उनकी हुकूमत में मदरसों और मस्जिदों को नजर -ए-आतिश कर दिया जाता है. जब मुस्लिम दंगाईयों से चारों ओर से घिरे थे, उस समय किसी सरकारी नुमाइंदे ने वहां आने की जहमत नहीं उठाई. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह से बात हुई तो उन्होंने कहा 'आपको मुस्लिम आईजी दे तो रखा है और क्या करें.'
जन सुनवाई में मौजूद कोसी कलां दंगे में मारे गये दो जुड़वा भाईयों की सास फरजाना ने कहा कि उनकी आखों के सामने ही उनके दामाद कलुवा और भूरा को काटकर जिंदा जला दिया गया और उनके साथ आबरुरेजी करने की कोशिश की गयी, पर आज तक दोषी खुलेआम घूम रहे हैं.जनसुनवाई में मौजूद मोहम्मद इदरीस ने कहा कि उन लोगों ने मेरी आंखों के सामने मेरे भतीजे सलाउद्दीन की गोली मारकर हत्या कर दी और अब विवेचना कर रहे सीओ बंशराज सिंह यादव मेरे भाई पर दबाव डाल रहे हैं कि वे दो लाख रुपये लेकर अभियुक्तों से समझौता कर लें.
कोसी कलां के ही पीस हिन्द सोशल सोसाइटी के सचिव मोहम्मद शाहिद कुरैशी ने बताया 'इस दंगे की साजिश पाँच रोज पहले वृंदावन में रची गयी, जहाँ आरएसएस की तीन रोजा मीटिंग हुयी थी. उसमें शरीक होकर नगर के भगवत प्रसाद रुहेला, भगवत अचार वाला, बंटी बीज वाला, लांगुरिया बैण्ड मास्टर, मुकेश गिडोहिया आदि आरएसएस, बजरंगदल और भाजपा के लोगों ने एक जून को कोसी कलां की साम्प्रदायिक एकता को नेस्तनाबूद कर दिया. जो आज तक बहाल नहीं हो सकी.'
जान मोहम्मद ने व्यथित होते हुए कहा कि 'मेरी उम्र 60 से ज्यादा की हो गयी है, सही से चल-फिर भी नहीं पाता हूँ. मगर मुझ पर और मेरी ही तरह के बहुत से लोगों पर झूठे मुकदमे लगाकर पुलिस ने हमारी हँसती-खेलती जिन्दगी तबाह कर दी है.' जनसुनवाई में आये बाबू ने कहा कि 'मेरा बेटा आस मोहम्मद जिसे हम प्यार से आशू कहते थे, वो सोलह साल का बच्चा था, जिसे अभी बहुत दुनिया देखनी थी. पर दंगाईयों को उस पर रहम नहीं आया और उन्होंने उसे गोलियों से छलनी कर दिया. आज तक न इस पर चार्जशीट दाखिल की गयी है और न ही नौ महीने बीत जाने के बाद अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है.'
एक अन्य पीड़ित मो. फखरुद्दीन ने बताया 'मुझ पर दंगाइयों ने तेजाब फेंका, जिसकी जलन से मेरा बुरा हाल हो गया. आज भी उस मंजर को याद करके दिल दहल जाता है. दंगाईयों ने मेरे भतीजे कयूम, भाई निजामुद्दीन की दुकान को लूटा और आग लगायी.'
रिहाई मंच के महासचिव एवं पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर दारापुरी ने कहा कि सपा सरकार मुसलमानों को दंगे की आग में झोंककर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कराना चाहती है, जबकि सपा मुसलमानों के समर्थन से ही सत्ता तक पहुंची है. जिस तरह कोसी कलां के दंगा पीडि़तों ने अपनी आपबीती सुनायी और बताया कि जांच कर रही पुलिस किस तरह साम्प्रदायिक राजनेताओं को संरक्षण दे रही है उससे लगता है कि कोसी कलां यूपी में नहीं, बल्कि मोदी के गुजरात में है.
उन्होंने दंगे में पुलिस की संदिग्ध भूमिका पर सवाल करते हुए कहा कि इस पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंप देनी चाहिये, क्योंकि प्रदेश की पुलिस अपने ही खिलाफ उठे सवालों पर जांच नहीं कर सकती. दारापुरी ने सपा सरकार पर सच्चर कमेटी रिपोर्ट लागू न करने का आरोप भी लगाया और एक अहम् सवाल उठाया कि आखिर सबकुछ मुसलमानों के साथ ही क्यों होता है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सदस्य नसीम इक्तेदार अली ने कहा कि एक साल के शासन में 27 दंगे होने से साफ हो जाता है कि यह दंगे सपा सरकार की नीतियों के तहत ही हो रहे हैं. यह महज इत्तेफाक नहीं है कि एक तरफ पूरे सूबे में दंगे हो रहे हैं, वहीं मुलायम सिंह मुसलमानों के खून से सने हाथ वाले आडवाणी की तारीफ करते हैं और वरुण गांधी जैसे मुस्लिमों के हाथ काटने की खुलेआम धमकी और मुसलमानों को एक बीमारी कहने वाले साम्प्रदायिक व्यक्ति को बरी करवा देते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह ने कहा कि सपा के शासन काल में हर बार मुस्लिम विरोधी दंगे होते रहे हैं इसलिये यह अखिलेश के शासन की विफलता नहीं बल्कि सामाजिक न्याय के नाम पर मुसलमानों को ठगने की जो राजनीति रही है उसका परिणाम है. जो इस बार सपा की पिछली हुकूमतों से ज्यादा बर्बर तरीके से अभिव्यक्त हो रही है. इससे यह भी समझा जा सकता है कि देश में साम्प्रदायिकता का खतरा सिर्फ भाजपा से ही नहीं सपा और कांग्रेस जैसी कथित सेक्युलर पार्टियों से भी है.
एपवा नेता ताहिरा हसन ने कहा कि जिस तरह मुसलमानों के वोट से सत्ता में पहुँची सपा ने मुस्लिम विरोधी दंगों की लाइन लगा दी है, उससे तय हो गया है कि मुसलमानों को अब तय करना होगा कि मुलायम सिंह जैसे छद्म सेक्युलर नेता के हवाले अपना भविष्य नहीं छोड़ा जा सकता. मुसलमानों को अब ऐसे नये राजनीतिक समीकरण की तरफ बढ़ना होगा, जो साम्प्रदायिकता के खिलाफ बिना समझौते के लड़ाई लड़ सके.
आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट के नेता दिनकर कपूर ने कहा कि दंगों से तय हो गया है कि मुलायम की अवसरवादी धर्मनिरपेक्षता साम्प्रदायिकता से नहीं लड़ सकती. सरकार आतंकवाद के नाम पर बंद निर्दोष युवकों को छोड़ने की बात कर रही है, लेकिन आरडी निमेष जाँच कमीशन की रिपोर्ट सरकार दबा कर रखी है, क्योंकि उसे जारी करने के बाद सिर्फ बेगुनाहों के छूटने का रास्ता ही नहीं खुलेगा, बल्कि साम्प्रदायिक और अपराधी एसटीएफ और खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करना होगा, जो सपा सरकार नहीं करना चाहती.
सामाजिक कार्यकर्ता केके वत्स ने पिछले दिनों पुलिस की पिटाई से आत्म हत्या करने वाले मुहम्मदपुर लखनऊ के निवासी समीर काण्ड को पुलिसिया साम्प्रदायिकता का नया उदाहरण बताया, जहां ठोस सुबूत होने के बावजूद अपराधी पुलिसकर्मी आजाद हैं.
जन सुनवाई का संचालन कर रहे आवामी काउंसिल के महासचिव असद हयात ने कहा कि विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा यह घोषणा करना कि एमएलसी लेखराज को पुलिस ने क्लीनचिट दे दी है, सत्य पर पर्दा डालना और मुसलमानों के साथ धोखा करना है. वास्तविकता यह है कि दंगाइयों ने दोपहर के समय फोन करके ग्रामीणों को लक्ष्मी नारायण और लेखराज सिंह का नाम लेकर एकत्र किया. उन्होंने कहा है कि मुसलमानों की ईंट से ईंट बजा दो और रात्रि के समय इन लोगों द्वारा नकासा का दौरा किया और फायरिंग करवाकर दहशत फैलायी गयी. इससे साबित है कि दंगा कराने और उसकी योजना में लक्ष्मी नारायण और एमएलसी लेखराज सिंह शामिल रहे. ऐसे में जब इस दंगे में राजनीतिज्ञों की षडयंत्रकारी भूमिका सामने आ रही है तो इस दंगे की निष्पक्ष विवेचना सीबीआई से ही करायी जानी चाहिये.
जुनसुनवाई में कोसी कलां, मथुरा से हाजी जमील अहमद, मोहम्मद यूसुफ, अब्बासी, मोहम्मद इस्लाम, शरीफ मुल्ला जी आदि लोगों ने शिरकत की. कार्यक्रम में काजी शहर मौलाना अबुल इरफान फिरंग महली, संदीप पांडे, मो. शुऐब, आलोक अग्निहोत्री, आदियोग, विवेक, अभिनव गुप्ता, अंकित, बॉबी अंसारी, इदरीस, अबुजर, आफताब खान, शिब्ली बेग, मो. मोइद, मोहम्मद अनस, शाहनवाज आलम और राजीव यादव मौजूद थे.
कोसी कलां दंगे की पूरी रिपोर्ट - https://docs.google.com/file/d/0B66hAy2xdnP7V0pBeEVXSUV1Y00/edit?usp=sharing
No comments:
Post a Comment