Tuesday, 02 April 2013 11:30 |
अरविंद कुमार सेन पूर्वोत्तर के आठ राज्यों और जम्मू-कश्मीर को 1969 से ही विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है। क्या इन राज्यों का पिछड़ापन दूर हो गया है? भाजपा की अगुआई वाली राजग सरकार ने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिया था। दोनों ही राज्यों में शुरुआती एक दशक के दरम्यान मिलने वाली कर-राहतों का फायदा उठाने के लिए थोड़ा-बहुत निवेश हुआ। गौर करने वाली बात है कि यह निवेश दवा और सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली, कम श्रम की मांग वाली छोटी कंपनियों ने किया था। पिछले साल औद्योगिक राहत की छूट खत्म होते ही इन कंपनियों ने अपने बोरिया-बिस्तर बांधने शुरू कर दिए। विकास और रोजगार के मानक पर दोनों राज्य उसी मोड़ पर खड़े हैं जहां से 2002 में शुरुआत हुई थी। दरअसल, विकास के मामले में हमारी अर्थव्यवस्था संरचनात्मक अवरोधों से घिरी हुई है और इसका समाधान हल्की-फुल्की राहतों से होने वाला नहीं है। बिहार ही क्यों, सभीगरीब राज्यों को आगे बढ़ने का हक है, मगर इसके लिए विशेष राज्य का दर्जा सही उपाय नहीं है। खासदर्जे या वैसी रियायतों की मांग करना असल में एक बहुत गंभीर समस्या का सरलीकरण करना है। दिन-ब-दिन कृषि क्षेत्र की बदहाली में इजाफा होने से बड़ी ग्रामीण आबादी रोजगार की तलाश में शहरों का रुख कर रही है। कृषि से हो रहे पलायन के हिसाब से शहरी इलाकों में रोजगार पैदा नहीं हो रहे हैं, इसलिए यह आबादी झुग्गी-झोपड़ियों और फ्लाइओवरों के नीचे विकास की कहानी बयान कर रही है। दिशाहीन नीतियों के कारण हुए कथित विकास ने एक राज्य, यहां तक कि एक ही शहर के भीतर विकास के टापू बना दिए हैं जो गरीबी के दलदल से घिरे हुए हैं। सन 1990 के बाद से अब तक भारतीय अर्थव्यवस्था के इंजन का काम कर रहा सेवा क्षेत्र भी अब अमेरिका और यूरोप की मंदी से हलकान है। कंपनियों का कहना है कि कुशल लोगों के लिए नौकरियों का ढेर है, वहीं बाहर अकुशल और अधकचरी जानकारी वाले युवाओं की तादाद बढ़ती जा रही है। अखबारों में अक्सर सुनहरी तस्वीर पेश की जाती है कि देश की साठ फीसद आबादी पैंतीस साल से कम उम्र की है। कई जानकार इस आंकड़े के सहारे अपनी पीठ ठोंकते हुए कहते हैं कि भारत जल्दी ही महाशक्ति बन जाएगा। हकीकत यह है कि भारत एक बड़े संकट की तरफ बढ़ रहा है। देश की विशाल युवा आबादी को हर साल दस करोड़ नौकरियों की जरूरत है, पर सालाना एक करोड़ नौकरियां भी पैदा नहीं हो पा रही हैं। जब युवा आबादी कुल जनसंख्या के आधे से ज्यादा हो तो इसे जनसंख्या परिलाभ (डेमोग्राफिक डिवीडेंड) कहा जाता है। मगर इस युवा आबादी का सही फायदा उठाने की शर्त यह है कि हर हाथ में काम हो, वरना यह युवा-शक्ति आक्रोश के ज्वालामुखी में बदल जाती है। चीन और दक्षिण कोरिया ने विनिर्माण क्षेत्र में हुवावे, सैमसंग, एलजी और हुंडई जैसी कंपनियां खड़ी करके जनसंख्या परिलाभ का फायदा उठाया। भारत में बहुत देर से सरकार ने जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की भागीदारी पचीस फीसद करने का किताबी लक्ष्य तय किया है। चूंकि अब दुनिया भर का विनिर्माण क्षेत्र उच्च तकनीक के दौर में प्रवेश कर गया है, लिहाजा कह सकते हैं कि भारतीय युवाओं के लिए विनिर्माण की बस छूट चुकी है। बिहार की त्रासदी पूरे देश के गरीबों के साथ चल रहे बड़े क्रूर मजाक का एक छोटा हिस्सा है। अगर कोई नीतीश के वादे पर ऐतबार कर बैठा हो कि विशेष राज्य का दर्जा मिलते ही बिहार का पिछड़ापन दूर हो जाएगा तो विशेष राज्य के पालने में पैदा हुए पूर्वोत्तर के आठ राज्य आईने का काम कर सकते हैं। बिहार के पिछड़ेपनका समाधान मुंबई में नौकरी खोजने या विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने से नहीं होने वाला है, और राज्य की बदहाली के लिए केंद्र से ज्यादा खुद वहां के लोग जिम्मेवार हैं। यह सच नीतीश जितनी जल्दी समझ लेंगे, उतना ही बिहार के लिए बेहतर होगा। बहरहाल, भूख पर आई अपनी हालिया किताब में हर्ष मंदर लिखते हैं कि घोर गरीबी में जीवनयापन करने वाले मुसहर जाति के लोग रोटी मांगने पर अपने बच्चों को अफीम सुंघा देते हैं। रोटी नहीं है और भूख का साथ जीवन भर रहना है, लिहाजा मुसहर लोग अपने बच्चों को भूख के साथ जीना सिखाते हैं। ऐसा लगता है कि बिहार जैसे देश के दूसरे सूबों के गरीबों ने भी बदहाली के साथ जीना सीख लिया है। http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/41680-2013-04-02-06-01-20 |
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Thursday, April 4, 2013
गलत दवा की मांग
गलत दवा की मांग
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