BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, March 30, 2012

जो हम पर कुर्बान होते हैं, वही इरफान होते हैं!

http://mohallalive.com/2012/03/30/rahul-tiwary-on-irrfan-jnu-visit/

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जो हम पर कुर्बान होते हैं, वही इरफान होते हैं!

30 MARCH 2012 NO COMMENT

♦ राहुल तिवारी

वाहरलाल नेहरु युनिवर्सिटी में खुले आसमान के नीचे जमीन पर बिछी दरी को देख कर लगा जैसे रामचरितमानस का प्रवचन होने वाला है। दिल में डर था कि कहीं अकेला मैं ही न रह जाऊं और वो अकेला मुझे और दरी को देख उड़न परी की तरह फुर्र न हो जाएं!

लेकिन एक बार फिर मैं बच गया और एक से दो और दो से दो सौ, हजार हो गया। टूटा सा मंच… अरे मंच क्या टीला और उसके पीछे दीवार की गंदगी छुपाने के लिए सफेद चादर मानो किसी के मइयत से उठा लायी गयी हो। किसी तरह ठोंकी गयी थी। आयोजक से पहले दर्शक पहुंच चुके थे, ऐसा था नजारा।

रेस लगाते हुए सबसे आगे बैठने की चाहत में मैं दौड़ा और कामयाब हुआ। आश्चर्य हुआ, जब देखा कि लड़कियां खुद के आने से पहले ही अपनी कई दोस्तों के लिए सीट बुक कर चुकी थीं और लड़ने को आतुर … और पता भी नहीं था कि क्या होने वाला है! तब लगा, इन्हें सच में आरक्षण की दरकार है। कहावत भी याद आ गयी की "नर्को में ठेलम ठेल"।

जल्दी-जल्दी में टूटी हुई मेज पर लीपापोती के लिए रंगीन कपड़ा लगाया गया। ध्यान रखा गया कि कहीं कुछ दिख न जाए, प्लास्टिक के होर्डिंग को सिल्वर लुक देने के लिए उल्टा कर के टेबल पर बिछा दिया गया, इसे बोलते हैं रचनात्मकता।

काले कुरते में आखिरकार कई रंग का मफलर लगा के लंबे घुंघराले बालों में वो व्यक्ति मंच पर पहुंच ही गया, जिसे कई लोग नाम से नहीं जानते थे और यूं हीं भीड़ देख कर चले आये थे … और मंच पर पहुंचे और टीला टीले से पल भर में प्लेटफॉर्म में बदल हो गया। कुछ तो बात रही होगी उनमें, बाकी सब तो मिस्ट्री है!

फिर क्या, वही कुछ वाली बात ने मुझे झट से उनके बगल में ला खड़ा कर दिया और उनकी करोड़ों की मुस्कान देख मैं लाखो फीट गहरे सुकून के समंदर में गोते लगाने लगा।

दाहिने हाथ में काली घड़ी और तांबे का कड़ा, दोनों हाथों में एक एक अंगूठी मानो हममें से ही किसी आम का हाथ था, पर वो खास था क्यूंकि वो उनका हाथ था।

बस फिर क्या, खच खच, खचा खच डिजिटल युग में लोग अपने डिजिटल कैमरे से उनसे मिलने का सबूत इकठ्ठा करने के जुगाड़ में लग गये। ऊपर उड़ते हवाई जहाज हों या कैमरेमन का गिरता कैमरा … या फिर माइक का पल पल पें पी करना हो … सभी पर अपने ही अंदाज में व्यंग्य करते हुए उन्होंने अपने होश संभालने से लेकर हमारे होश बिगाड़ने तक का सफर बयान कर डाला।

सवाल पर सवाल, सवाल पर सवाल और हर सवाल पर उसी संयम और सहजता के साथ जवाब देख-सुन कर रामायण के राम और रावण के बीच चलने वाले तीर के टकरा कर गिर जाने का वो दृश्य याद आ रहा था, पर यहां राम एक थे और विपक्ष की ओर से आने तीरों की भरमार थी। संजीवनी के नाम पे एक पुड़िया पान मंगाया गया था उनके लिए।

रात हो चुकी थी। उनका चश्मा था, जो उतरने का नाम नहीं ले रहा था। हो सकता है रेबैन कारण!! और इसी के साथ एक ऐतिहासिक दिन का अंत हुआ, जिसमें भविष्य के इतिहास पुरुष ने अपना इतिहास हमारे सामने साझा किया … यूं तो लोग उनसे हाथ मिलाने की होड़ लगा रहे थे, पर पता नहीं क्यूं मेरा मन हाथ मिलाने का बिलकुल भी नहीं हुआ और मेरा माथा झुक गया और मैंने उनके पैर छू कर आशीर्वाद लेने में अपनी भलाई समझी … पता नहीं क्‍यों, पर कुछ तो था इसके पीछे भी! उनकी गाड़ी को भी मैंने नहीं बख्‍शा, आखिरी तक विदा किये बिना।

ये कोई हीरो नहीं थे, कोई क्रिकेटर भी नहीं, न तो होर्डिंग लगी थी कहीं, न तो आमंत्रण कार्ड बंटे थे, न ही वातानुकूलित ऑडिटोरियम था, न ही उन्हें बुके भेंट किया गया था, दो मिनरल वाटर की बोतल में चार लोग पानी पी रहे थे, न तो उनके सामने शीशे का ग्लास था, न ही कप सौसर में चाय थी, कागज की कपटी थी और चंद अल्‍फाज थे।

न तो अगल-बगल बाउंसर था, न ही यॉर्कर हमारे लिए – तो यही ब्रैडमैन थे और यही हैं तेंदुलकर।

जिन खानों पे आप हम सब मेहरबान होते हैं, क्या वो फिल्म प्रोमोशोनल टूर के अलावा कभी आपसे मिलने आते हैं? ऐसे माहौल में, जब बालों को बेतरतीब करने वाली हवा सांय सांय बह रही हो, वे अपना तीन घंटा खर्च करते हैं? वे यही सोचते हैं कि तीन घंटों में तीन दुकानों के फीते काट कर, तीन शादियों में नाच कर तीस करोड़ कैसे बना लिये जाएं। इनमें और उनमें एक ही फर्क है – उन पर हम सब पागलों की तरह कुर्बान होते हैं और जो हम पर कुर्बान होते हैं और हमारे कद्रदान होते हैं, वही "इरफान" होते हैं।

सब ठीक है, पर दुःख तब होता है, जब कोई इन्हें इरफान की जगह इमरान कहता है, वोडाफोन वाला कहता है कारण क्या है, आप खुद जानते हैं – कभी बढ़िया फिल्‍मों की तरफ रुख कीजिए, आम इमली का भाव पता लग जाएगा। उम्मीद है, कभी हम सब इस कलाकार को इसके नाम से जानेंगे… शर्म की बात है और अजीब भी है कि जिसे आप नाम से जानते हैं, वो आप के बाहर हर जगह गुमनाम है और जिसे आप नाम से नहीं जानते उनका आपके बाहर हर जगह नाम ही नाम है।

दिल्ली की कोख में मेरा तो नौ महीना सफल हो गया, आगे का पता नहीं क्या होगा? कुछ तो बात होगी कि जिससे मिलने का सपना मैं कल तक सपनों में देखा करता था, वो पल में मेरे सामने प्रकट हो गये। कुछ तो कनेक्शन होगा, बाकि सब तो मिस्ट्री है।

हमारा बस चले इन के बारे में पूरा ग्रंथ ही लिख डालें …
सीधी सादी संजीदगी से भरी इस शख्सियत को सौ बार सलाम …

(राहुल तिवारी। S/Const कंपनी के एंप्‍लाई। एमके डीएवी स्‍कूल, डाल्‍टेनगंज से हाई स्‍कूल की पढ़ाई और सेंट जेवियर कॉलेज, रांची से ग्रैजुएट। राहुल से rahultiwary.redma@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

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