BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Monday, May 21, 2012

तो वित्तमंत्री सो रहे थे ?

तो वित्तमंत्री सो रहे थे ?


आयातकों खास कर तेल रिफाइनरियों की ओर से डॉलर की मांग निकलने से रुपये में गिरावट आई. औद्योगिक उत्पादन में तेज गिरावट ने वित्तीय बाजारों को पस्त कर दिया. चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में गिरावट बनी रहने की आशंका ने बाजारों से निवेशकों को लगभग गायब कर दिया...

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

भारतीय अर्थव्यवस्था का माई बाप कौन है, लगता है ,यह अभी तय नहीं हो पाया है. वित्त मंत्रालय और योजना आयोग अपना अपना राग अलापने में मशगुल हैं. लेकिन संकट खत्म होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. रिजर्व बैंक के करतब से गिरते रुपये को थाम लेने के दावे किये जा रहे ​​थे, जो खोखले साबित हो गये. अब वित्त मंत्री का कहना है कि केंद्र कदम उठा रहा है. तो क्या अब तक वित्तमंत्री सो रहे थे?

pranabकल तक उनको आगामी राष्ट्रपति के लिए सबसे तेज घोड़ा माना जा रहा था, जिसपर बाजार ने भी दांव लगा रखा था. लेकिन तेजी से ​​स्थिति बदलने लगी है. मायावती ने जहां संकेत दे दिये हैं कि वे भाजपा समर्थित प्रत्याशी को भी समर्थन दे सकती हैं, वहीं जयललिता​ ​ और नवीन पटनायक ने आदिवासी उम्मीदवार बतौर संगमा की दावेदारी पेश करके क्षत्रपों की राजनीति को नया रंग दे दिया. जो हवा प्रणवदादा के पक्ष में बनती दीख रही थी, वह लगता है कि उड़ने लगी है. 

इसीलिये शायद उन्हें अब याद आ गया कि वे देश के वित्तमंत्री भी हैं. दूसरी ओर उनका​ पलीता निकालते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा है कि रुपये के मूल्य में गिरावट तथा उच्च मुद्रास्फीति के कारण भारत के लिये चालू वित्त वर्ष में 7.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर हासिल करना मुश्किल होगा. हालांकि उन्होंने भारत सरकार द्वारा नीतिगत निर्णय नहीं ले पाने को लेकर चिंताओं को खारिज कर दिया और कहा कि उन्हीं नीतियों की बदौलत पूर्व में देश 9 प्रतिशत से अधिक आर्थिक वृद्धि हासिल करने में सफल रहा. 

कोलकाता में पत्रकारों के मुखातिब केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने रविवार को रुपये के तेजी से हो रहे अवमूल्यन को लेकर चिंता प्रकट की और कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे के समाधान की कोशिश कर रही है. मुखर्जी ने संवाददाताओं से कहा, 'यह गम्भीर चिंता का विषय है.' उन्होंने कहा, 'हम इस पर नजर बनाए हुए हैं. केंद्र सरकार हाथ पर हाथ रखकर बैठी नहीं है. समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं.' 

केंद्र हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा है, इस पर यकीन कैसे करें? रिजर्व बैंक ने जो कदम उठाये क्या उनका भी वही हश्र हुआ जैसा कि गार का? मुखर्जी ने कहा, 'ब्राजील सहित उभरते बाजारों में भी मुद्रा का संकट है.' गौरतलब है कि विदेशी मुद्रा विनियम बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया पिछले कुछ दिनों से टूटता जा रहा है. उन्होंने रुपए पर दबाव के लिए कुछ यूरोपीय देशों की सरकारों की संकटपूर्ण वित्तीय स्थिति को जिम्मेदार ठहराया है, जिसके कारण निवेशक अमेरिकी डॉलर में निवेश को ज्यादा सुरक्षित मानने लगे हैं. 

गौरतलब है कि 18 मई को, शुरुआती कारोबार में रुपया 55 के स्तर को पार करने के करीब आ गया. इससे फिलहाल आने वाले दिनों में डॉलर के मजबूत बने रहने के पूरे आसार हैं. एक साल में रुपये की कीमत में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है. डीलरों ने कहा कि आयातकों खास कर तेल रिफाइनरियों की ओर से डॉलर की मांग निकलने से रुपया में गिरावट आई. हालांकि, रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से रुपया में गिरावट थम गई. औद्योगिक उत्पादन में तेज गिरावट ने वित्तीय बाजारों को पस्त कर दिया. चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में गिरावट बनी रहने की आशंका ने बाजारों से निवेशकों को लगभग गायब कर दिया.

महंगाई और ऊंची ब्याज दरों ने औद्योगिक उत्पादन में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का प्रदर्शन खराब कर दिया है. आइआइपी के खराब आंकड़ों ने पूरी तिमाही के लिए खराब प्रदर्शन की आशंका मजबूत कर दी. लिहाजा बाजार में मौजूद विदेशी संस्थागत निवेशकों [एफआइआइ] ने रुख बदला और अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया. इसकी वजह से शेयर बाजार में बाजार में तेज गिरावट आई. सवाल यह है कि क्या वित्त मंत्री को ये हालात नजर नहीं आये? 

एफआइआइ की तेज बिकवाली का असर रुपये की कीमत पर भी पड़ा,यह तो सर्वजन विदित है और इसे समझने के लिए देश का वित्तमंत्री होना जरूरी नहीं है. निवेशकों की आस्था लौटाने में गार के दांत तोड़ देने के बावजूद वे बुरी तरह फेल हो गये, तो अब राष्ट्रपति बनकर कारपोरेट इंडिया का भला करने के अलावा क्या करेंगे? एक फायदा उनको जरूर होगा कि राष्ट्रपति बन जाने पर चुनाव में जनता का सामना करने वाली फजीहत से हमेशा के लिए मुक्त हो जायेंगे.

उधर एअर इंडिया संकट पर वित्तमंत्री की खामोशी अजीब है, जबकि सरकारी विमानन कम्पनी के हड़ताली पायलटों एवं प्रबंधन के बीच गतिरोध 13वें दिन रविवार को भी जारी रहा. इस संकट के चलते एयर इंडिया का नुकसान बढ़कर 230 करोड़ रुपये पहुंच गया है. एयर इंडिया की संचालन इकाई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'यह नुकसान टिकटों को निरस्त किए जाने, अप्रयुक्त श्रम और बोइंग-777 बेड़े के कई विमानों के उड़ान न भरने के चलते हुआ है. हमारा प्रतिदिन 13 से 15 करोड़ रुपये के बीच नुकसान हो रहा है.

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