BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, May 18, 2012

किसान खेती क्यों करें? सरकारी गोदामों में अनाज सड़ाने के लिए

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[LARGE][LINK=/index.php/yeduniya/1411-2012-05-18-06-22-42]किसान खेती क्यों करें? सरकारी गोदामों में अनाज सड़ाने के लिए   [/LINK] [/LARGE]
Written by  अजय पाण्डेय Category: [LINK=/index.php/yeduniya]सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार[/LINK] Published on 18 May 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=f62e98306d8bb4396b79a427ebe23b967b306b17][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/yeduniya/1411-2012-05-18-06-22-42?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
जब देश में भुखमरी और अनाजों की बर्बादी एक साथ हो तो स्थिति को समझने में काफी दिक्कतें आने लगती है। अचानक सरकार और उसकी नीतियों पर प्रश्नवाचक चिन्ह लग जाते हैं और सवाल खड़ा हो जाता है कि आखिर सरकार की कौन सी नीति यहां है, जो लगातार हो रही अनाजों की बर्बादी और भुखमरी पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। दरअसल यह पूरा मामला देश के विभिन्न हिस्सों मे अनाज की बर्बादी और उसी के अनुपात में भूख से मरते हुए लोगों के बीच का है, जो अपने जद में कई सवालों को लिए घूम रहा है। इसमें पहला सवाल शुरुआती दौर में ही खड़ा होता है कि जब देश में अनाज प्रचुरता के स्तर से उपर उठकर रिकॉर्ड स्तर को छू रहा है तब देश में ऐसी विषम परिस्थिति क्यों पैदा हो रही है। अगर इसका जवाब जब वर्तमान परिस्थिति में ढूंढें तो इसका सीध सम्बन्ध अनाजों के उचित-अनुचित प्रबंधन और भंडारण से है, क्योंकि किसी भी देश की भंडारण क्षमता ही वहां के बाजार भाव और कीमतों का नियमन करते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में अनाज की बर्बादी ने न सिर्फ बाजार भाव को बिगाड़ा है बल्कि आम आदमी को भी असहाय कर दिया है।

दरअसल अनाजों का यूं ही खुले में बर्बाद हो जाना या सड़ जाना सरकार की उस मजबूरी का परिणाम है, जहां देश में अनाज भंडारण इस कृषि वर्ष में 810 लाख टन का होता तो है परंतु भंडारण क्षमता 460 लाख टन से ज्यादा की नहीं होती है। ऐसे में 350 लाख टन अनाज का खुले में बर्बाद हो जाना किसी आपदा का परिणाम नहीं है बल्कि यह सरकारी इच्छाशक्ति के अभाव का परिणाम है। आज इस मुद्दे पर संसद से लेकर सड़कों और खेतों तक लोग हलकान हैं और जानना चाहते हैं कि सरकार इस ओर क्या कदम उठा रही है क्योंकि अनाजों की बर्बादी न तो पहली बार हुई है और वर्तमान पहल को देखते हुए न ही आखिरी, ऐसे में यह स्वाभाविक है कि लोग इसकी वास्तविकता को जाने।

दरअसल हर साल अनाज की जो बर्बादी होती है उसके लिए भंडारण क्षमता तो जिम्मेदार है ही इसके लिए इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में शराब बनाने वाली कम्पनियों की लॉबी भी काम कर रही है। हालांकि इसका अभी तक कोई प्रमाण नहीं है लेकिन जिस तरह से परिस्थितियां विकसित हो रही हैं उसके मद्देनजर इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता। यह आश्चर्य ही है कि जिस देश को शुरू से लेकर आज तक कृषिप्रधान ही माना गया है और अब तक जितनी भी सरकारें बनीं सबने कृषि और किसानों को केन्द्र में रखकर ही अपनी नीति बनाई लेकिन कृषि और किसानों के हालत बजाए सुधरने के और बिगड़ते ही चले गए। यह ठीक है कि देश में अनाजों के भंडारण और संग्रहण की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है लेकिन यह कोई बाध्यकारी स्थिति नहीं है। अगर राज्य सरकारों को लगता है कि केन्द्र सरकार की उपेक्षा की वजह से उनके राज्यों की पैदावार बर्बाद हो रही है तो वे अपने स्तर पर अनाजों के भंडारण और उचित रख-रखाव को लेकर पहल कर सकते हैं। लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि देश में इस बर्बादी पर भी ओछी राजनीति हो रही है और समस्याओं पर आरोप-प्रत्यारोप कर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही हैं। इसमें किसी भी राजनीतिक दल को यह सोचना चाहिए कि यह मामला किसी एक का नहीं है बल्कि उन सभी सरकारों और राजनीतिक दलों का है जिनके सामने देश का अन्नदाता खुद एक सवाल बनकर खड़ा हुआ है।

आज देश के हालात ऐसे बने हुए हैं जब देश में 35 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करते हैं, देश में प्रतिदिन छह हजार लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं, करोड़ों बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और महंगाई तो जैसे दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि कर रही है, ऐसे में अगर देश में अनाज बर्बाद हो रहे हैं तो इसके पीछे के कारण समझ से परे है। इस पूरे मामले में सरकार भी अपने आप को निर्दोष साबित करने की पुरजोर कोशिश कर रही है, लोग सवाल कर रहे हैं कि अगर सरकार इन अनाजों का भंडारण नहीं कर सकती तो निर्यात क्यों नहीं कर देती? इसमें सरकार के भी अपने पक्ष हैं उसका कहना है कि निर्यात की स्थिति नहीं बन पा रही है। माना कि अनाजों का निर्यात नहीं हो पा रहा है तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि इन अनाजों को सड़ा दिया जाए। सरकार ने इसे जनवितरण प्रणाली के तहत क्यों नहीं जरूरतमंदों तक पंहुचाया? अब इसकी वजह जो भी हो, सवाल वाजिब है क्योंकि अनाजों का सड़न बदस्तूर जारी है और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। इन सबसे उपर किसान खुद अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है और उसके जेहन में एक ही सवाल घूम रहा है कि वो क्यों खेती करे? क्योंकि वह देख रहा है कि उसकी मेहनत किस तरह राजनीतिक और सरकारी नीतियों की भेंट चढ़ रही है। इन परिस्थितियों में उसके पैदावारों का उचित मूल्य भी नहीं मिल रहा है जिसकी वजह से वह अपनी प्रधानता खोते जा रहा है।

[B]लेखक अजय पांडेय पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.[/B]

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