BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Tuesday, November 11, 2014

आधार, निजता के अधिकार के खिलाफ

आधार, निजता के अधिकार के खिलाफ


बंदी अधिकारों पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 'बंदी अधिकार आंदोलन' के आव्हान पर आज गांधी शांति प्रतिष्ठान में किया गया. यह आयोजन हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के सन्दर्भ में आयोजित हुआ. इस आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों से आये हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों, लेखकों, पत्रकारों और राजनीतिज्ञों ने शिरकत की.

सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ने नागरिक अधिकारों के हनन का जायजा यूआईडी आधार के माध्यम से लिया और बताया कि आधार का पूरा प्रोजेक्ट ही नागरिक अधिकारों और निजता के अधिकार के खिलाफ जबरदस्ती देश के नागरिकों पर थोपा जा रहा है. 

संगोष्ठी की शुरुआत बंदी अधिकार आंदोलन के संयोजक संतोष उपाध्याय ने कैदियों की अमानवीय परिस्थितियों और वृहत्तर समाज की इनके प्रति उदासीनता से संगोष्ठी का आगाज़ किया. उन्होंने न केवल जेलों में बंद कैदियों के विषय में अपनी बात रखी बल्कि जिस तरह की परिस्थितियाँ पैदा हो रही हैं उनमें जेलों को सस्ते श्रम की मंडी बनाने की कोशिशों पर भी बात की. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केवल जेल सुधार हमारा लक्ष्य नहीं है बल्कि बंदी अधिकार आंदोलन की कोशिश इस पूरे परिप्रेक्ष्य को सही करने और नागरिक गरिमा की प्रतिष्ठा करना है. 

संगोष्ठी में बंदी अधिकारों और न्याय व्यवस्था के तहत जेलों की दुर्दशा पर चर्चा हुई. समाज में  बंदियों के प्रति दृष्टिकोण और न्याय की पूरी प्रक्रिया में बंदियों के मौलिक मानव अधिकारों के हनन और उनके साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार पर सभी साथियों ने अपने अनुभव रखे.

मुख्य रूप से हिरासत में होने वाली मौतों और अमानवीय वर्ताब, प्रताड़ना और सुधार की कोशिशों पर भी चर्चा हुई.

न्यायविद ऊषा रामनाथन ने सर्वोच्च न्यायलय के 'अंडर ट्रायल' कैदियों की रिहाई के संबंध में आये हाल के निर्णय पर कहा कि -  निश्चित ही यह निर्णय बहुत सराहनीय है पर हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि यह केवल मानवीय संवेदना से प्रेरित है बल्कि  इसमें कोर्ट की व्यवस्था और जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के होने और पेंडिंग केसेस को लेकर जो आलोचना न्याय व्यवस्था की होती है उससे बचने की भी यह एक कवायद है.

इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए एचआरएलएन से आये वकील पंकज ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट निर्दोष कैदियों की रिहाई पर विचार करता है तब साथ ही वह उन तमाम अधिकारियों और तंत्र पर सवाल क्यों नहीं उठाता जो किसी निर्दोष व्यक्ति को जेलों में रखने को मजबूर करते हैं. इसे कैदी के ऊपर छोड़ने का क्या मतलब?

एमनेस्टी इंटरनेशनल से नुसरत खान ने अपने संगठन द्वारा कर्नाटक में कैदियों को रिहा कराने के अनुभव साझा किये और बताया कि इस कानून और मुहिम को लेकर पुलिस और न्याय व्यवस्था में बहुत उदासीनता है.अब तक हमने केवल चार कैदियों को रिहा करा पाया है, यह बहुत पेचीदा है और इस व्यवस्था में  इस मुहिम को बिना किसी बाहरी समर्थन (सिविल सोसायटी) के अंजाम तक पहुंचाना मुश्किल है.  

डॉ संजय पासवान ने कहा कि कैदियों के भी अधिकार होते हैं, यह अभी बहुत व्यापक जन विमर्श का मुद्दा नहीं बन पाया है. इसे एक मुहिम बनाना होगा. इसके अलावा हमें तमाम राज्यों से निरपराध कैदियों का एक वृहद दस्तावेज़ बनाया चाहिए  फिर तमाम संबंधित विभागों, अधिकारियों, राजनेताओं, और समाज के सभी पक्षों से मिला जाये और एक तरफ इसे जन विमर्श बनाया जाए वहीं, इसके कानूनी और सामाजिक पक्षों पर भी काम किया जाए.

रश्मि सिंह ने कहा कि कैदियों के विषय पर काम करते हुए हमें जानकारी से साथ संवेदनशीलता का भी निर्माण करना होगा.

कॉलिन गोंजाल्विस ने तमाम राज्यों में संसाधनों के लूट के लिए निरीह आदिवासियों और निरपराध नागरिकों को जेलों में डालने की घटनाओं पर जोर दिया. इसके साथ ही उन्होंने कैदियों से बेगारी कराने के मुद्दे और सर्वोच्च न्यायलय के न्यूनतम मजदूरी दिए जाने के आदेश के हनन का भी हवाला दिया. 

संगोष्ठी के अंत में बंदी अधिकार आंदोलन के एकीकृत प्रयासों, और भावी योजना पर काम करने की योजना पर चर्चा हुई. विभिन्न जेलों में बंद कैदियों की स्थितियों के आंकलन के लिए व्यापक स्तर पर दस्तावेजीकरण को प्राथमिकता से करना होगा.
प्रस्तुतकर्ता 

No comments:

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...