BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Tuesday, July 2, 2013

सुंदरवन में प्रकृति और मनुष्य दोनों खतरे में!

सुंदरवन में प्रकृति और मनुष्य दोनों खतरे में!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​  


सुंदरवन के लगभग 110 छोटे-बड़े द्वीपों (59 रिहाइशी और 54 संरक्षित) पर रह रही आबादी के लिए कभी कुछ भी नहीं बदला।सुंदरवन के हर घर में मछली और केकड़ा पकड़ने में बाघ के शिकार हुए परिजनों की कहानी है। हर 48 घंटे में बाघ एक मानव का शिकार करता है। यहां के विभिन्न द्वीपों पर बाघों द्वारा मारे गए लोगों की विधवाओं की संख्या 26 हजार है। जीविका का दूसरा कोई साधन नहीं है।  सुंदरवन में प्रकृति और मनुष्य दोनों भारी संकट में है। चक्रवात तूपान से सुंदरवन के कारण ही बंगाल और खासकर कोलकाता के प्राण बचते हैं। लेकिन इस रक्षाकवच के टूटते जाने की किसी कोखास चिंता है नहीं।उत्तराखंड के जलप्रलय के बाद सुंदरवन इलाके में समुद्र के आगे बड़ते जावने की ओर खास नजर दिये जाने की जरुरत है,जबकि पर्यावरण की दृष्टि दक्षिण में समुंदर व उत्तर में हिमालय से घिरे बंगभूमि केभूगोल की ओर नजर ही नहीं है किसीकी।नजरिया पर्यटन ौर राजनीति के घेरे में कैद है।मछली और केकड़ा पकड़ने में बाघ के शिकार हुए परिजनों की कहानी हर घर में है क्योंकि जीविका का दूसरा कोई साधन नहीं है।  यहां आदमजात जंगल में रहने वाली पांच सौ अन्य प्रजातियों के साथ अस्तित्व के लिए संघर्ष में जुटी रहती है लेकिन कठिन जीवन के बीच भी वह मुस्कराने का मौका खोज लेते हैं।सुंदरवन का पर्यावरण तेजी से बदल रहा है। जंगल में समुंदर के खारा पानी बढ़ते जाने से बाघ और खूंखार होता जा रहा है और यहीं नहीं, सुंदरवन में  बाघ खुद को बचाने के लिए अपनी आदत बदल रहे हैं, वो आदमी के करीब आ रहे हैं! इन जंगलों में बाघों की मौजूदगी दर्ज करने के लिए कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे पता चला है कि यहां बाघ मौजूद हैं और उन्हें कैमरे में कैद भी किया गया है। इस जीव प्रजाति के विलुप्त होने का ख़तरा बताया जाता रहा है!


राज्य सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति और गांवों में राजनीतिक माहौल से तटबंध बनाने का काण कुछ आगे नहीं बढ़ा। आयला से बुरी तरह प्रभावित काकद्वीप,वकखाली और सागरद्वीप इलाके में तटबंध बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण का काम पूरा नहीं हुआ है। केंद्र सरकार से मिले ्नुदान के वापस चले जाने का संकट पैदा हो गया है।लंबे अरसे के बाद प्राकृतिक तांडव से सुंदरवन को बचाने की कवायद शुरू की गई है। बांध बनाने के लिए छह हजार एकड़ जमीन के अधिग्रहण की योजना तैयार की है बंगाल सरकार ने। इसमें से 2,300 एकड़ वाममोर्चा सरकार के जमाने में अधिग्रहीत की गई थी। तृणमूल कांग्रेस की सरकार 3,800 एकड़ का अधिग्रहण करेगी। जमीन अधिग्रहण न करने की तृणमूल कांग्रेस की नीति के विपरीत पार्टी सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ने इसके लिए हरी झंडी दी है।


कोलकाता विश्वविद्यालय से रिटायर हुए समुद्र विज्ञानी तुषार कांजीलाल के अनुसार, 'राज्य में कभी इस बारे में समीक्षा नहीं की गई कि तटबंधों की स्थिति क्या है। 19 ब्लॉकों में कुल 110 द्वीप हैं, जहाँ बांधों की नियमित समीक्षा जरूरी थी।' कांजीलाल के अनुसार तटबंध के आगे पानी घुसने के लिए रिंग बनाने की जरूरत होती है, जिसे कहीं नहीं किया गया। रिंग में ज्वार का पानी घुसता है और डेल्टा क्षेत्र में बंटी नदी की धाराओं के साथ निकल जाता है लेकिन जमीनें हड़पने के खेल में सुरक्षा नियमों को ताक पर रखा जाता रहा है।


मैंग्रोव के जंगल कम होने से समुद्र की सतह में बढ़ोतरी हो रही है और इस कारण सुंदरवन के विभिन्न द्वीपों का आकार तेजी से कम हो रहा है। फिलहाल तो विशेषज्ञ अभी इस बहस में ही उलझे हैं कि क्या यह जलवायु परिवर्तन के चलते हो रहा है, "अल नीनो इफेक्ट है" या डेल्टा क्षेत्र में नदी के कटान के चलते ऐसा लग रहा है कि समुद्र की सतह में बढ़ोतरी हो रही है। वजह चाहे जो भी हो, भविष्य के लिए सुंदरवन से एक बड़ी समस्या सामने आने वाली है-विस्थापन की इस समस्या की एक झलक हम चक्रवाती तूफान 'आएला' के बाद देख चुके हैं। चेतावनी आई है कि अगर सुंदरवन में मैंग्रोव के वन क्षेत्र में कमी आती रही तो 2030 तक यहां के कम से कम 20 द्वीपों का अस्तित्व मिट जाएगा और कम से कम साठ हजार परिवार विस्थापित हो जाएंगे। जियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक उत्पल चक्रवर्ती के अनुसार, 'मैंग्रोव की कटाई के चलते डेल्टा क्षेत्र में मिट्टी कटान की समस्या बढ़ी है।


जलवायु परिवर्तन के चलते पारिस्थितिकी पर यह संकट है। छह सौ परिवार विस्थापित हुए हैं। बढ़ता समुद्र और जंगल की अंधाधुंध कटाई पर अंकुश न होने के चलते यह नौबत आई है। पर्यावरण से जुड़े ये सवाल स्थानीय लोगों की जीविका से जुड़े हैं। पारिस्थितिकी में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। जंगल की हरियाली कम हो रही है और सुंदरवन को नाम देने वाले सुंदरी के वृक्ष काटे जा रहे हैं।हेताल (एलीफैंट ग्रास) काटे जा रहे हैं, जिनके बीच रॉयल बंगाल टाइगर घर की तरह महसूस करता है। एलीफैंट ग्रास (स्थानीय बोलचाल की भाषा में होगला) के पत्ते ठीक बाघ की पीठ पर बनी धारियों की तरह होती हैं। वहाँ छुपना बाघ के लिए मुफीद रहता है । दूसरे, खेती-बाड़ी, मछली-झींगा पालन और मधु संचय के लिए जमीन चाहिए, जो संरक्षित घोषित वन से छीने जा रहे हैं।


बासंती का जेलेपाड़ा गाँव तो विधवाओं का ही गाँव है। इनके बारे में 1990 में पता चला जब पत्रकारों के साथ गई पुलिस की एक गश्ती टीम ने बड़ी सी नाव में सफेद साड़ी पहने कई महिलाओं को जाते देखा था। ऐसी महिलाओं की मदद के लिए काम करने वाली संस्था 'ऐक्यतान संघ' के सचिव दिनेश दास के अनुसार, 'राज्य सरकार से इन्हें ढाई सौ रुपए की मदद मिलती है लेकिन वह भी तब, जब मारे गए व्यक्ति के शव की फोटो जमा कराई जाती है। जिनके घरवालों को बाघ जंगल में खींच ले गया, उन्हें तो यह भी नसीब नहीं।' यहां के सूदखोर स्थानीय लोगों से 40 रुपए किलो के हिसाब से मधु खरीदते हैं जो बाजार में 110 रुपए किलो बिकता है। वही मधु जिसे संग्रह करने में न जाने कितने बाघ का शिकार हो गए और जिसकी खोज में न जाने कितनी बार स्थानीय लोगों ने प्रकृति की सीमा-रेखा का लंघन किया।


सुंदरवन के द्वीपों पर मोबाइल फोन कंपनियाँ पहुँच गई हैं लेकिन बिजली विभाग नहीं। लोगों के एक हाथ में अगर मोबाइल है तो दूसरे में टार्च क्योंकि गांवों में भीतर तक बिजली के पोल नहीं पहुँचे हैं। लोग बैटरी की दुकानों में मोबाइल चार्ज करा लेते हैं।कड़ी मेहनत कर जीने वाले लोग यहाँ जीवन-यापन के लिए वही कुछ कर रहे हैं जो सैकड़ों साल से उनके पूर्वज करते आए हैं- मछली पकड़ना, कुछ बो-उगा लेना, जंगल में शिकार और मधु की तलाश और जरूरत पड़े तो स्थानीय सूदखोरों से कर्ज लेना। बाघ और समुद्र के बचने और लड़ने की जुगाड़ सोचने में दिन गुजर जाता है। बची-खुची तकदीर पर हर साल आने वाला चक्रवाती तूफान पानी फेर जाता है।रिहाइशी इलाकों में खेती की जमीन खारा पानी के चलते चौपट हो रही है। इस कारण वन क्षेत्र को काटने की समस्या बढ़ी है। जहां खारे पानी की समस्या नहीं है, वहां समुद्री और डेल्टा का पानी जमीन लील रहा है। जाधवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञानी सुगत हाजरा द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, 'पिछले 30 वर्षों में सुंदरवन इलाके की 31 वर्ग मील जमीन समुद्र में लुप्त हो गई है।  


बांग्लादेश में तो हर साल लगभग 20 लोग रॉयल बंगाल टाइगर का शिकार बनते हैं। आइए जाने, हर साल आने वाला चक्रवात सुंदरवन में कैसे बदला लेता है। चक्रवाती तूफान आइला और वर्ष 2004 में आई सुनामी- जैसे दो बड़े तूफानों से लगभग छह लाख हेक्टेयर वाला सुंदरवन का एक-चौथाई वन नष्ट हो गया।


जादवपुर विश्वविद्यालय में समुद्र विज्ञान विभाग के प्रोफेसर तुहिन घोष के अनुसार, 'सुंदरवन में हर साल एक मिलीमीटर से चार मिलीमीटर तक का कटान हो रहा है। इस कारण समुद्र की सतह चार सेंटीमीटर की रफ्तार से बढ़ रही है। पिछले 40 साल में सुंदरवन का दो सौ वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पानी में समा चुका है।' सुंदरवन की पारिस्थितिकी को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जताई जा रही चिंता का व्यापक असर दिखने लगा है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के अनुसार, 'प्राकृतिक कारणों से सुंदरवन के बांग्लादेश वाले हिस्से में विस्थापन का नमूना दिख चुका है। वहां के भोला आइसलैंड का आधा से ज्यादा हिस्सा 1995 में मिट्टी कटान के चलते डूब गया और पांच लाख लोग विस्थापित हो गए।


कोलकाता विश्वविद्यालय और अमेरिका मैसाच्युसेट्स विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान विभागों से जुड़े पांच-पांच वैज्ञानिकों की टीम 1980 से ही चीख-चिल्ला रही है - "मीठे पानी के स्रोतों में नमक का घुलना और इलाके के औसत तापमान में बढ़ोतरी भविष्य के किसी बड़े खतरे का संकेत दे रहे हैं, जिसकी तह में जाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गवेषणा की जरूरत है।" आशंका है कि पानी में द्रवीभूत ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा बढ़ने पर जलीय जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर खतरा हो सकता है। इससे जीवों की प्रजनन और पाचन क्षमता कम होती जाती है। माना जा रहा है कि उष्णायन के चलते ही सुंदरवन के द्वीप कट रहे हैं। नदी के कटान के चलते हरीतिमा नष्ट हो रही है। दूसरे, मीठे पानी के स्रोतों में नमक की मात्रा बढ़ रही है।


पानी में नमक की बढ़ोतरी को लेकर जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान विभाग ने नाबार्ड के सहयोग से शोध किया है। पाया गया है कि चक्रवाती तूफान "आएला" के बाद यहां की नदियों के जल में नमक की मात्रा 15 पीपीटी (पार्ट पर थाउजेंड) से बढ़कर 15.8 पीपीटी हो गई है। इस शोधकार्य से जुड़े प्रणवेश सान्याल के अनुसार, "गांवों के तालाबों में यह आंकड़ा 30 पीपीटी से अधिक है। इसका प्रभाव चिंताजनक है।" वैज्ञानिकों के अनुसार, "नमकीन पानी में एक किस्म की जलीय काई बनती है जो ऑक्सीजन बनाती है। माना जा रहा है कि दुनिया भर में तीन-चौथाई ऑक्सीजन का निर्माण जलीय काई से होता है लेकिन सुंदरवन में पानी की स्वच्छता कम होते जाने से काई बनना बंद हो गई है। इसके चलते जंगल में प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो रही है।


सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिणी भाग में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान, बाघ संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्फ़ीयर रिज़र्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र मैन्ग्रोव के घने जंगलों से घिरा हुआ है और रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या १०३ है। यहां पक्षियों, सरीसृपों तथा रीढ़विहीन जीवों (इन्वर्टीब्रेट्स) की कई प्रजातियाँ भी पायी जाती हैं। इनके साथ ही यहाँ खारे पानी के मगरमच्छ भी मिलते हैं। वर्तमान सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान १९७३ में मूल सुंदरवन बाघ रिज़र्व क्षेत्र का कोर क्षेत्र तथा १९७७ में वन्य जीव अभयारण्य घोषित हुआ था। ४ मई, १९८४ को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यहाँ बड़ी तादाद में सुंदरी पेड़ मिलते हैं जिनके नाम पर ही इन वनों का नाम सुंदरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर देवा, केवड़ा, तर्मजा, आमलोपी और गोरान वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुंदरवन में पाई जाती हैं।


सुंदरवन या सुंदरबोन भारत तथा बांग्लादेश में स्थित विश्व का सबसे बड़ा नदी डेल्टा है। बहुत सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध बंगाल टाईगर का निवास स्थान है। यह डेल्टा धीरे धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले कोलकाता सागर तट पर ही स्थित था और सागर का विस्तार राजमहल तथा सिलहट तक था, परन्तु अब यह तट से 15-20 मील (24-32 किलोमीटर) दूर स्थित लगभग 1,80,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ बड़ी तादाद में सुंदरी पेड़ मिलते हैं जिनके नाम पर ही इन वनों का नाम सुंदरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर देवा, केवड़ा, तर्मजा, आमलोपी और गोरान वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुंदरवन में पाई जाती हैं। यहाँ के वनों की एक ख़ास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों।


सुंदरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यन्त कम होने के कारण यहाँ गंगा अत्यन्त धीमी गति से बहती है और अपने साथ लाई गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता जाता है और नदी की कई धाराएँ एवं उपधाराएँ बन जाती हैं। इस प्रकार बनी हुई गंगा की प्रमुख शाखा नदियाँ जालंगी नदी, इच्छामती नदी, भैरव नदी, विद्याधरी नदी और कालिन्दी नदी हैं। नदियों के वक्र गति से बहने के कारण दक्षिणी भाग में कई धनुषाकार झीलें बन गयी हैं। ढाल उत्तर से दक्षिण है, अतः अधिकांश नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। ज्वार के समय इन नदियों में ज्वार का पानी भर जाने के कारण इन्हें ज्वारीय नदियाँ भी कहते हैं। डेल्टा के सुदूर दक्षिणी भाग में समुद्र का खारा पानी पहुँचने का कारण यह भाग नीचा, नमकीन एवं दलदली है तथा यहाँ आसानी से पनपने वाले मैंग्रोव जाति के वनों से भरा पड़ा है।


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