BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Monday, July 29, 2013

वीरेनदा के लिए

वीरेनदा के लिए


पलाश विश्वास

क्या वीरेनदा ऐसी भी नौटंकी क्या जो तुमने आज तक नहीं की

गये थे रायगढ़ कविता पढ़ने और तब से

लगातार आराम कर रहे हो

अस्वस्थता के बहाने

कब तक अस्वस्थ रहोगे वीरेन दा

यह देश पूरा अस्वस्थ है

तुम्हारी सक्रियता के बिना

यह देश स्वस्थ नहीं हो सकता,वीरेन दा


राजीव अब बड़ा फिल्मकार हो गया

फिल्म प्रभाग का मुख्य निर्देशक है इन दिनों

फोन किया कि वीरेनदा का जन्मदिन मनाने दिल्ली जाना होगा

बलि, सब लोग जुटेंगे दिल्ली में

भड़ास पर पगले यशवंत ने तो विज्ञापन भी टांग दिया

किमो तो फुटेला को भी लगे बहुत

देखो कैसे उठ खड़ा हुआ

और देखो कैसे टर्रा रहा है जगमोहन फुटेला,वीरेन दा!


आलसी तो तुम शुरु से हो

कंजूस रहे हो हमेशा लिखने में

अब अस्वस्थ हो गये तो क्या

लिखना छोड़ दोगे?

ऐसी भी मस्ती क्या?

मस्ती मस्ती में बीमार ही रहोगे

हद हो गयी वीरेनदा!


एक गिरदा थे

जिसे परवाह बहुत कम थी सेहत की

दूजे तुम हुए लापरवाह महान

सेहत की ऐसी तैसी कर दी

अब राजधानी में डेरा डाले हों,बरेली को भूल गये क्या वीरेन दा?


अभी तो जलप्रलय से रुबरु हुआ है यह देश

अभी तो ग्लेशियरों के पिघलने की खबर हुई है

अभी तो सुनायी पड़ रही घाटियों की चीखें

अभी तो डूब में शामिल तमाम गांव देने लगे आवाज


बंध नदियां रिहाई को छटफटा रही हैं अभी

लावारिश है हिमालय अभी

गिरदा भी नहीं रहा कि

लिखता खूब

दौड़ता पहाड़ों के आर पार

हिला देता दिल्ली लखनऊ देहरादून

अभी तुम्हारी कलम का जादू नहीं चला तो

फिर कब चलेगा वीरेनदा?

कुछ गिरदा के अधूरे काम का ख्याल भी करो वीरेनदा!


तुमने कोलकाता भेज दिया मुझे

कहा कि जब चाहोगे

अगली ट्रेन से लौट आना

सबने मना किया था

पर तुम बोले, भारत में तीनों नोबेल कोलकाता को ही मिले

नोबेल के लिए मुझे कोलकाता भेजकर

फिर तुम भूल गये वीरेनदा!


अभी तो हम ठीक से शुरु हुए ही नहीं

कि तुम्हारी कलम रुकने लगी है वीरेनदा!

ऐसे अन्यायी,बेफिक्र तो तुम कभी नहीं थे वीरेनदा!


चूतिया बनाने में जवाब नहीं है तुम्हारा वीरेनदा!

हमारी औकात जानते हो

याद है कि

नैनी झील किनारे गिरदा संग

खूब हुड़दंग बीच दारु में धुत तुमने कहा था,वीरेनदा!


पलाश,तू कविता लिख नहीं सकता!


तब से रोज कविता लिखने की प्रैक्टिस में लगा हूं वीरेनदा

और तुम हो कि अकादमी पाकर भी खामोश होने लगे हो वीरेनदा!


तुम जितने आलसी भी नहीं हैं मंगलेश डबराल

उनका लालटेन अभी सुलग रहा है

तुम्हारा अलाव जले तो सुलगते रहेंगे हम भी वीरेनदा!


नजरिया के दिन याद है वीरेन दा

कैसे हम लोग लड़ रहे थे इराक युद्ध अमेरिका के खिलाफ

तुम्हीं तो थे कि वह कैम्पेन भी कर डाला

और लिख मारा `अमेरिका से सावधान'

साम्राज्यवादविरोधी अभियान के पीछे भी तो तुम्हीं थे वीरेनदा!


अब जब लड़ाई हो गयी बहुत कठिन

पूरा देश हुआ वधस्थल

खुले बाजार में हम सब नंगे खड़े हैं आदमजाद!

तब यह अकस्मात तुम

खामोशी की तैयारी में क्यों लगे हो वीरेनदा?


आलोक धन्वा ने सही लिखा है!

दुनिया रोज बनती है, सही है

लेकिन इस दुनिया को बनाने की जरुरत भी है वीरेनदा!


दुनिया कोई यूं ही नही बन जाती वीरेनदा!

अपनी दुनियाको आकार देने की बहुत जरुरत है वीरेनदा!

तुम नहीं लिक्खोगे तो

क्या खाक बनती रहेगी दुनिया, वीरेनदा!



इलाहाबाद में खुसरोबाग का वह मकान याद है?

सुनील जी का वह घर

जहां रहते थे तुम भाभी के साथ?

तुर्की भी साथ था तब

मंगलेश दा थे तुम्हारे संग

थोड़ी ही दूरी पर थे नीलाभ भी

अपने पिता के संग!


इलाहाबाद का काफी हाउस याद है?

याद है इलाहाबाद विश्वविद्यालय?

तब पैदल ही इलाहाबाद की सड़कें नाप रहा था मैं

शेखर जोशी के घर डेरा डाले पड़ा था मैं

100,लूकरगंज में

प्रतुल बंटी और संजू कितने छोटे थे

क्या धूम मचाते रहे तुम वीरेनदा!

तब हम ख्वाबों के पीछे

बेतहाशा भाग रहे थे वीरेनदा!

अब देखो,हकीकत की जमीन पर

कैसे मजबूत खड़े हुए हम अब!

और तुम फिर ख्वाबों में कोन लगे वीरेनदा!


अमरउजाला में साथ थे हम

शायद फुटेला भी थे कुछ दिनों के लिए

तुम क्यों चूतिया बनाते हो लोगों को ?

हम तुम्हारी हर मस्ती का राज जानते हैं वीरेनदा!

कोई बीमारी नहीं है

जो तुम्हारी कविता को हरा दें, वीरेनदा!

अभी तो उस दिन तुर्की की खबर लेने बात हुई वीरेनदा!

तुम एकबार फिर दम लगाकर लिक्खो तो वीरेनदा!


तुमने भी तो कहा था कि धोनी की तरह

आखिरी गेंद तक खेलते जाना है!

खेल तो अभी शुरु ही हुआ है, वीरेनदा!


जगमोहन फुटेला से पूछकर देखो!

उससे भी मैंने यही कहा था वीरेन दा!

अब वह बंदा तो बिल्कुल चंगा है

असली सरदार से ज्यादा दमदार

भंगड़ा कर रहा है वह भी वीरेनदा!


यशवंत को देखो

अभी तो जेल से लौटा है

और रंगबाजी तो देखो उसकी!

जेलयात्रा से पहले

थोड़ा बहुत लिहाज करता था

अब किसी को नहीं बख्शता यशवंत!

मीडिया की हर खबर का नाम बन गया भड़ास,वीरेनदा!

अच्छों अच्छों की बोलती बंद है वीरेनदा!


हम भी तो नहीं रुके हैं

तुमने भले जवानी में बनायो हो चूतिया हमें

कि नोबेल की तलाश में चला आया कोलकाता!

अपने स्वजनों को मरते खपते देखा तो

मालूम हो गयी औकात हमारी!


यकीन करो कि हमारी तबीयत भी कोई ठीक

नहीं रहती आजकल

कल दफ्तर में ही उलट गये थे

पर सविता को भनक नहीं लगने दी

संभलते ही तु्म्हारे ही मोरचे पर जमा हूं,वीरेनदा!


तुम्हारी जैसी या मंगलेश जैसी

प्रतिभा हमने नहीं पायी

सिर्फ पिता के अधूरे मिशन के कार्यभार से

तिलांजलि दे दी सारी महत्वाकांक्षाएं

और तुरंत नकद भुगतान में लगा हूं,वीरेनदा!


दो तीन साल रह गये

फिर रिटायर होना है

सर पर छत नहीं है

हम दोनों डायाबेटिक

बेटा अभी सड़कों पर

लेकिन तुमहारी तोपें हमारे मोर्चे पर खामोश नहीं होंगी वीरेनदा!

तुमने चेले बनाये हैं विचित्र सारे के सारे,वीरेनदा!

उनमें कोई खामोशी के लिए बना नहीं है वीरेनदा!

तुम्हें हम खामोशी की इजाजत कैसे दे दें वीरेनदा!



बहुत हुआ नाटक वीरेन दा!

सब जमा होंगे दिल्ली में

सबका दर्शन करलो मस्ती से!

फिर जम जाओ पुराने अखाड़े में एकबार फिर

हम सारे लोग मोर्चाबंद हैं एकदम!

तुम फिर खड़े तो हो जाओ एकबार फिर वीरेनदा!


फिर आजादी की लड़ाई लड़ी जानी है

गिरदा भाग निकला वक्त से पहले,वीरेनदा!


और कविता के मोर्चे पर तुम्हारी यह खामोशी

बहुत बेमजा कर रहा है मिजाज वीरेनदा!


तुम ऐसे नहीं मानोगे

तो याद है कि कैसे अमरउजाला में

मैंने जबरन तुमसे अपनी कहानी छपवा ली थी!


अब बरेली पर धावा बोल तो नहीं सकता

घर गये पांच साल हो गये

पर तुमने कहा था कि

पलाश,तू कविता लिख ही नहीं सकता!


तुम्हारी ऐसी की तैसी वीरेनदा!

अब से एक से बढ़कर एक खराब कविता लिक्खूंगा वीरेनदा!

भद तुम्हारी ही पिटनी है

इसलिए बेहतर है,वीरेनदा!

जितना जल्दी हो एकदम ठीक हो जाओ,वीरेनदा!


और मोर्चा संभालो अपना,वीरेनदा!

हम सभी तुम्हारे मोर्चे पर मुश्तैद हैं वीरेनदा!

और तुम हमसे दगा नहीं कर सकते वीरेनदा!


वीरेन डंगवाल

वीरेन डंगवाल


*

जन्म: 05 अगस्त 1947


जन्म स्थान

कीर्ति नगर, टेहरी गढ़वाल,उत्तराखंड, भारत

कुछ प्रमुख

कृतियाँ

इसी दुनिया में (1990), दुष्चक्र में सृष्टा (2002)

विविध

रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार(1992), श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार (1994), शमशेर सम्मान(2002), साहित्य अकादमी पुरस्कार(2004) सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से से विभूषित।

जीवनी

वीरेन डंगवाल / परिचय

अभी इस पन्ने के लिये छोटा पता नहीं बना है। यदि आप इस पन्ने के लिये ऐसा पता चाहते हैं तो kavitakosh AT gmail DOT com पर सम्पर्क करें।


Viren Dangwal


<sort order="asc" class="ul">

</sort> <sort order="asc" class="ul">

वीरेन डंगवाल

http://hi.wikipedia.org/s/1cdb

मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से

वीरेन डंगवाल

वीरेन डंगवाल


जन्म:

५ अगस्त १९४७

कीर्ति नगर, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड,भारत

कार्यक्षेत्र:

कवि, लेखक

राष्ट्रीयता:

भारतीय

भाषा:

हिन्दी

काल:

आधुनिक काल

विधा:

गद्य और पद्य

विषय:

पद्य

साहित्यिक

आन्दोलन:

नई कविता,

प्रमुख कृति(याँ):

दुष्चक्र में सृष्टा

साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत


वीरेन डंगवाल (५ अगस्त १९४७)साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि हैं। उनका जन्म कीर्तिनगर, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ। उनकी माँ एक मिलनसार धर्मपरायण गृहणी थीं और पिता स्वर्गीय रघुनन्दन प्रसाद डंगवाल प्रदेश सरकार में कमिश्नरी के प्रथम श्रेणी अधिकारी। उनकी रूचि कविताओं कहानियों दोनों में रही है। उन्होंने मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल और अन्त में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की।[1]


बाईस साल की उम्र में उन्होनें पहली रचना, एक कविता लिखी और फिर देश की तमाम स्तरीय साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में लगातार छपते रहे। उन्होनें १९७०- ७५ के बीच ही हिन्दी जगत में खासी शोहरत हासिल कर ली थी। विश्व-कविता से उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाज़िम हिकमत के अपनी विशिष्ट शैली में कुछ दुर्लभ अनुवाद भी किए हैं। उनकी ख़ुद की कविताएँ बाँग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, मलयालम और उड़िया में छपी है। वीरेन डंगवाल का पहला कविता संग्रह ४३ वर्ष की उम्र में आया। 'इसी दुनिया में' नामक इस संकलन को रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (१९९२) तथा श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार (१९९३) से नवाज़ा गया। दूसरा संकलन 'दुष्चक्र में सृष्टा' २००२ में आया और इसी वर्ष उन्हें 'शमशेर सम्मान' भी दिया गया। दूसरे ही संकलन के लिए उन्हें २००४ का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया। समकालीन कविता के पाठकों को वीरेन डंगवाल की कविताओं का बेसब्री से इन्तज़ार रहता है। वे हिन्दी कविता की नई पीढ़ी के सबसे चहेते और आदर्श कवि हैं। उनमें नागार्जुन और त्रिलोचन का-सा विरल लोकतत्व, निराला का सजग फक्कड़पन और मुक्तिबोध की बेचैनी और बौद्धिकता एक साथ मौजूद है। पेशे से हिन्दी के प्रोफ़ेसर। शौक से बेइंतहा कामयाब पत्रकार। आत्मा से कवि। बुनियादी तौर पर एक अच्छे- सच्चे इंसान। उम्र ६० को छू चुकी। पत्नी रीता भी शिक्षक। दोनों बरेली में रहते हैं। वीरेन १९७१ से बरेली कॉलेज में हिन्दी पढाते हैं। उन्हें २००४ में उनके कविता संग्रह दुष्चक्र में सृष्टा के लिए साहित्य अकादमी द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है।[2]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "वीरेन डंगवाल की छह कविताएँ" (एचटीएमएल). रचनाकार. अभिगमन तिथि: २००९.

  2. "वीरेनदा के बारे में" (एचटीएमएल). वीरेन डंगवाल. अभिगमन तिथि: २००९.

श्रेणी:


No comments:

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...