BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Saturday, June 1, 2013

मुकम्मल औरत बनने की कोशिश में जान दे दी ऋतुपर्णो घोष ने!अतिशय हारमोन थेरापी ने उनकी जान ले ली।कौन है जिम्मेदार?

मुकम्मल औरत बनने की कोशिश में जान दे दी ऋतुपर्णो घोष ने!अतिशय हारमोन थेरापी ने उनकी जान ले ली।कौन है जिम्मेदार?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


समकालीन भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिभाशाली हस्ताक्षरों में से एक ऋतुपर्णो घोष के देहांत पर राजनीतिक दखल का दृश्य कोलकाता के मौजूदा सांस्कृतिक परिदृश्य को ही रेखांकित कर गया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मृत्यु के समाचार फैलते न फैलते फिल्मी दुनिया के ग्लेमर को हाशिये पर धकेलकर फिर टीवी के परदे पर छा गी। अंतिम संस्कार तक उन्हीं के दिशा निर्देशन में हुआ।बारिश के बावजूद हजारों सिनेप्रेमी प्रसिद्ध फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष को अश्रुपूर्ण विदाई देने के लिए सरकारी सांस्कृतिक परिसर 'नंदन' के बाहर जुटे। घोष का गुरुवार की सुबह निधन हो गया। वह पैंक्रिएटाइटिस से पीड़ित थे।इस राजनीतिक मारामारी में वामपंथी लोग किनारे हो गये। यह दीदी की उपलब्धि बतायी जा सकती है और फिर एकबार उन्होंने खुद को फिल्मी दुनिया के सबसे करीबी होने का सच साबित कर दिया। लेकिन विडंबना यह है कि मुख्यमंत्री की मौजूदगी के बावजूद नींद में ही ऋतुपर्णो की आकस्मिक मृत्यु होने के बावजूद उनकी देह का पोस्टमार्टम नहीं हुआ। वे मधुमेह के मरीज थे। लेकिन उनका रक्तचाप सामान्य से अधिक रहता है। मधुमेह और रक्तचाप के दोहरे समीकरण से उनकी मृत्यु नहीं हुई। सेक्स चेंज ऑपरेशन के बाद उनकी तबीयत खराब रहने लगी थी। परिजनों के अनुसार नींद में ही उनकी मौत हो गई थी। सुबह 8 बजे उन्हें ऋतुपर्णो की मौत का पता चला।


चोखेरबाली, रेनकोट और अबोहोमन जैसी फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता घोष की ख्याति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जगत में थी। उन्होंने और उनकी फिल्मों ने रिकॉर्ड 12 राष्ट्रीय पुरस्कार जीते थे।


चिकित्सकों के मुताबिक मृत्यु के समय ऋतुपर्णो  का रक्तचाप सामान्य था। तो आकस्मिक दिल का दौरा कैसे पड़ा,यह बड़ा सवाल है।दिल का दौरा पड़ने पर आम तौर पर जो दर्द मरीज को झेलना पड़ता है, उनके चेहरे पर उसकी झलक भी नहीं थी।अब चिकित्सकों की आम राय है कि मुकम्मल औरत बनने की कोशिश में अतिशय हारमोन थेरापी ने उनकी जान ले ली। यह अत्यंत गंभीर मामला है और आपराधिक चिकित्सकीय लापरवाही है, जिसकी वजह से मरीज की जान गयी।लेकिन इस सिलसिले में कोई तफतीश नहीं हो सकती। चीरफाड़ के बिना अपरातफरी में अंत्येष्टि हो गयी और विसरा रपट मिलने का सवाल ही नहीं उठता। दोषी चिकित्सक अपना मौत का कारोबार सामान्य ढंग से जारी रख सकेंगे और फिर किसी ऐसी ही मौत पर हम मातम मनाते रहेंगे। विश्वप्रसिद्ध माइकेल जैक्शन की मौत की जांच हो रही है,लेकिन भारत और खासकर बंगाल में हारमोन थेरापी और मादक द्रव्य के गोरखधंधे से मौत का कारोबार बेरोकटोक चल रहा है। कौन है जिम्मेदार?


सपनों के पीछे दीवानगी की हद तक भागना जरुरी नहीं कि अच्छे कर्म ही कराये और कई बार "पैशन" ऐसे काम करने के लिये विवश कर देता है जो कम से कम किसी देश के कानून को तो तोड़ते ही हैं। लेखक और कलाकार हमेशा कानून के दायरे में रह कर ही काम नहीं करते!अपनी फिल्म `खेला' का यह सार उनके ही जीवनावसान पर लागू हो गया।


जैसा कि खूब छपा है कि ऋतुपर्णो फिल्मों में समलैंगिकता के प्रवक्ता हैं, लेकिन सच इसके विपरीत है। उन्होंने न `फायर' और न ही `दायरा' और `न कुंआरा बाप' जैसी कोई फिल्म बनायी। हां, `चित्रांगदा' के ट्रीटमेंट को नया कहा जा सकता है।फिल्म समीक्षक मानते हैं कि चित्रांगदा ऋतुपर्णो की अब तक की सबसे बेस्ट क्रिएशन है। इस फिल्म ने ऋतुपर्णो की आर्ट फिल्मों पर पकड़ और तगड़ी कर दी।यह फिल्म रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रमुख कृति की समकालीन व्याख्या पर आधारित है। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता ऋतुपर्णो घोष  ने फिल्म में मुख्य कोरियोग्राफर का किरदार स्वयं निभाया है। लेकिन सच यह है कि भारतीय आख्यान के मुताबिक चित्रांगदा पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध स्त्री अस्मिता की कथा है। उन्होंने जिन समलैंगिकता कथ्य आधारित फिल्मो, कुल मिलाकर दो में अभिनय किया,उनके निर्माता निर्देशक वे स्वयं नहीं, दूसरे लोग हैं। दीप्ति नवल का साक्षात्कार एक ऐसी ही फिल्म पर आधारित है।


समलैंगिकता की बहुप्रचारित छवि से मुक्ति के लिए छटफटा रीह थी उनकी आत्मा और इसी वजह से मुकम्मल औरत बनने की हरचंद कोशिश के तहत वे अतिशय हारमोन थेरापी के शिकार हो गये।ऋतुपर्णो घोष ने अपने निधन से कुछ ही दिन पहले बंगाली जासूस ब्योमकेश बख्शी की कहानी पर बन रही फिल्म 'सत्यान्वेषी' की शूटिंग पूरी की थी।दादा साहेब फालके अवार्ड से सम्मानित एक्टर और पोएट सौमित्र चटर्जी की मुलाकात ऋतुपर्णो घोष से पहली बार एक स्क्रिप्ट कंपटीशन में हुई थी। उन्होंने ऋतुपर्णो की फिल्मों में काम भी किया और उनके काम की खूबियों को पहचाना भी। उनका कहना है कि उनकी फिल्मों में आधुनिक बंगाली दिमाग झलकता है। सौमित्र चटर्जी ने कहा, ` मैंने ऋतुपर्णों की फिल्म में काम किया और पाया कि उसमें कुछ खास योग्यताएं थीं, जो किसी भी अच्छे फिल्म मेकर के लिए जरूरी हैं। इनमें पहली थी साहित्य बोध। पहले के बंगाली निदेर्शकों की भी यह विशेषता हुआ करती थी। लेकिन अब यह बहुत कम नजर आती है।'


फिल्म 'चित्रांगदा' खुद को पहचानने के सफर की कहानी है, इन्सान की पहचान खुद से नहीं है और ना ही उसकी सेक्सुअल इमेज से बल्कि उसके जीवन के सफर से होती है।  ऋतुपर्णो घोष ने फिल्म रिलीज के बाद ट्वीट किया था कि इस फिल्म ने उनकी जिंदगी ही बदल दी। उन्हें जीवन के सही फलसफे सिखाए।


दरअसल, `उनीशे अप्रैल', `दहन', `चोखेर बाली', `नौका डूबी', `अंतर्महल', `आबोहमान', `खेला', `रेनकोट',`असुख', `उत्सव', जैसी उनकी तमाम फिल्में नारी अस्मिता की ही अनंत कथा है। नारी चरित्रों को उकेरने में और कलाकारों से उन पात्रों के अभिनय कराने में उनकी दक्षता अतुलनीय है क्योंकि शारीरिक द्वंद्व के बावजूद वे पूरी तरह अपने दिलोदिमाग में एक मुकम्मल औरत थे। शारीरिक द्वंद्व का अवसान करने के लिए ही वे हारमोन थेरापी का जोखिम उठाते रहे, प्रसेनजीत जैसे घनिष्ठ मित्रों की सख्त मनाही के बावजूद।


फिल्मी सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ अरसे से ऋतुपर्णो ने आरेकटि प्रेमेर गल्पो नामक फिलम में नारी चरित्र में अभिनय के लिए  शारीरिक तौर पर नारी बनने के लिए जुनून की हद तक हारमोन थेरापी आजमा रहे थे।गौरतलब है कि लिंग परिवर्तन कराने के बाद से ही उनकी तबीयत खराब रहने लगी थी। अप्राकृतिक ढंग से लिंग परिवर्तन कराने के चालू फैशन की चिकित्सकीय वैधता पर कोई सार्थक बहस शुरु हो तो शायद इस असामयिक मौत की कुछ सांन्त्वना मिले।


टीवी अभिनेता अबीर गोस्वामी नहीं रहे


छोटे पर्दे पर प्रदर्शित धारावाहिक 'कुसुम' और 'प्यार का दर्द है' में अपने अभिनय के रंग भरने वाले अभिनेता अबीर गोस्वामी का शुक्रवार को दोपहर बाद निधन हो गया। वह महज 30 साल के थे।


अबीर के साथियों ने बताया कि युवा अभिनेता का स्वास्थ्य ठीक था और वह अपने काम में व्यस्त थे, तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिसने एक बेहतरीन कलाकार को हमसे छीन लिया।


अबीर ने सयंतनी घोष के साथ बांग्ला फिल्म 'सक्खत' में काम किया था। उन्होंने कहा कि शुक्रवार को दोहपर 1.15 बजे उनकी अबीर से फोन पर बात हुई थी।


उन्होंने कहा, ''हमने साथ मूवी देखने जाने की योजना बनाई थी और करीब तीन बजे उसकी मौत की खबर मिली। वह बिल्कुल तंदुरुस्त था और एक पल में न जाने क्या हो गया, मैं यह सुनकर बहुत विचलित हूं। सचमुच यह बहुत दुखद समाचार है।''


अभी कल ही (30 मई) अबीर ने प्रसिद्ध फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष का दिल का दौरा पडऩे से हुए निधन का समाचार सुनकर ट्विटर पर श्रद्धांजलि के शब्द लिखे थे। आज लोग अबीर को श्रद्धांजलि दे रहे हैं।


जिन लोगों ने टीवी पर 'होटल किंस्टन', 'कुमकुम', 'छोटी मां', 'बदलते रिश्तों की दास्तान' और 'घर आजा परदेसी' देखा है उन्हें अबीर बहुत याद आएंगे।  


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