BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Sunday, June 2, 2013

गैर-मार्क्सवादियों से संवाद-16 इस्लामिक साम्राज्यवाद का कारण:हिन्दू आरक्षण एच एल दुसाध

गैर-मार्क्सवादियों से संवाद-16

इस्लामिक साम्राज्यवाद का कारण:हिन्दू आरक्षण

                                          एच एल दुसाध

बौद्धोत्तर काल में पुष्यमित्र शुंग की प्रतिक्रांति के फलस्वरूप हिन्दू आरक्षण (वर्ण-व्यवस्था) के दृढतर होने के साथ-साथ पेशों की विचलनशीलता भी ख़त्म होती चली गई.इससे बौद्ध भारत में विभिन्न पेशों में प्रतियोगिता  का जो विशाल मंच सजता रहा ,वह संकुचित होता गया.फलतः विभिन्न क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं का उभरना  बंद हो गया.बौद्ध भारत में देश के आर्थिक,शैक्षिक,राजनीतिक,ज्ञानादि के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर को स्पर्श करने के पीछे मूल कारण यही था कि वर्णवादी-आरक्षण के टूटने के फलस्वरूप व्यवसाय-वाणिज्य ,कला ,राजनीति इत्यादि सभी  क्षेत्रों  में, सभी जाति /वर्णों के लोगों को अबाध रूप से प्रतियोगिता करने का अवसर मिला.इससे उन क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रतिभाओं का उदय हुआ तथा राष्ट्र विभिन्न क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर को स्पर्श किया.किन्तु बौद्धोत्तर काल में हिन्दू आरक्षण के प्रभावी होते ही राष्ट्र ने वह अवसर गवां दिया.अब विभिन्न क्षेत्रों में मात्र उन्ही जाति/वर्णों के लोग  प्रतियोगिता करने लगे जो वर्ण-व्यवस्था के अंतर्गत उन पेशों के अधिकारी थे.ऐसे में दोयम दर्जे की प्रतिभाओं को ही उभर कर सामने आना था,जो हुआ भी .अन्यान्य क्षेत्रों की भांति ही सामरिक क्षेत्र भी इस त्रासदी से अछूता न रह सका.हिन्दू आरक्षण के प्रभावी होने के फलस्वरूप सामरिक क्षेत्र में विभिन्न जाति के मार्शल लोगों का प्रवेश निषिद्ध हो गया.फलतः इस क्षेत्र को पूरी तरह निर्भर होना पड़ा क्षुद्र संख्यक परजीवी क्षत्रियों पर.क्षत्रिय, जो शस्त्रनिषिद्ध बहुजन समाज के बीच हथियारों से लैस होने के कारण खुद को जन्मजात योद्धा समझते रहे,जब शस्त्र सज्जित मुसलमानों के समक्ष हथियार  लेकर  युद्धभूमि में उतरे तो घुटने टेकने के सिवाय और कुछ न कर सके.ऐसे में सहस्राधिक वर्षो के लिए भारत में जो इस्लामिक साम्राज्यवाद कायम हुआ,उसके लिए जिम्मेवार रहा हिन्दू आरक्षण.

हिन्दू आरक्षण सिर्फ मध्ययुगीन विदेशागत मुसलमान विजेताओं द्वारा भारत को गुलाम बनाने का कारण ही नहीं बना,इसके कारण इतिहास में एक विराट अपवाद भी घटित हुआ और वह था विदेशागत लोगों का अप्रतिरोध्य शासन.यह कल्पना कर बहुत से इतिहास प्रेमियों को आघात लग सकता है कि जितने समय तक भारत में मुसलमानों का प्रतिरोधरहित शासन रहा ,वह मानव जाति के इतिहास का अचम्भा ही कहा जायेगा.लेकिन भारत में ऐसा हुआ तो उसके पीछे प्रधान कारण हिन्दू आरक्षण ही रहा.

एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में चमचमाती तलवार लेकर मोहम्मद साहब के जिन अनुयायियों ने भारत का इस्लामीकरण करने के लिए अरब के तपते  रेगिस्तान से चलकर भारतभूमि पर कदम रखा ,वे सच्चे मिशनरी नहीं थे.मरणोपरांत जन्नत का सुख भोगने के लिए जो लोग जीवन को जोखिम में डालकर ,धर्मान्तरण के मिशन पर निकले थे,वे भारत में जन्नत को रूबरू देखकर अपना मिशन ही भूल गए.अरब के शुष्क मरुभूमि की ठण्ड और झुलसन पार कर भारत में जब मुसलमान विजेताओं ने उच्छल सिन्धु की जलतरंग;विस्तीर्ण हरी-भरी लहलहाती फसलों के साथ सेब और दूसरे फलों का उद्यान  तथा कुदरत का हुस्न देखा,तब उन्हें जीवितावस्था में ही वहिश्त का साक्षात् दर्शन हुआ.वैसे में स्वर्ग की कल्पना सादृश्य भारत भूमि को पाकर जैसे पूर्व विदेशागत आर्य यहीं  रह गए,वैसे ही जन्नत जैसे मुल्क को हासिल कर मुसलमान समरनायक भारत को छोड़कर नहीं गए.स्वर्ग राज्य दखल करने और शासन-शोषण कायम रखने के लिए जितना तलवार भांजना ;तलवार को नोक पर दखल किये गए स्वर्ग-राज्य पर कब्ज़ा बनाये रखने और पुश्त- दर- पुश्त शासन सुख भोगने के लिए जितना युद्ध आवश्यक था, वही निपुणता के साथ मुसलमान आक्रमणकारियों ने किया.लेकिन यह सोचना भूल होगी कि महज यौद्धिक निपुणता के कारण ही सहस्राधिक वर्षों तक इस्लामिक साम्राज्यवाद कायम रहा.दरअसल उन्होंने कुटनीतिक निपुणता का समान रूप से परिचय देते हुए ही अपने शासन को दिर्घायु बनाया था .

मुसलमान विजेताओं ने भारतभूमि पर कब्ज़ा ज़माने के बाद ,इत्मिनान से जन्नत का सुख भोगने के पराधीन आर्यों से संधि कर लिया.उनके शासन-शोषण में पूर्ववर्ती शासक जातियां सहयोग करती रहें इसके लिए उन्होंने हिन्दू-आरक्षण उर्फ़ वर्ण-व्यवस्था के कानूनों के अनुसार विशाल हिन्दू समाज को परिचालित करने  की छूट दे दी.सामान्यतया इतिहासकार भारत में मुसलमान काल का इतिहास लिखते समय इस बात की अनदेखी करते रहे हैं कि उक्त काल में हिन्दू समाज स्मृतियों और शास्त्रदेशों के तहत परिचालित होता रहा है.उनकी इस गलती के कारण आमतौर पर लोग यही समझते रहे हैं कि मुसलमान काल में हिन्दू समाज इस्लाम के कानूनों द्वारा शासित होता रहा है.जिन्होंने इस की तरफ ध्यान दिया उन्होंने भी स्मृतियों द्वारा हिन्दू समाज के शासित होने की बात को खास तरजीह नहीं दिया.जबकि स्मृतियों का कानून लागू होने का मतलब यह था कि शुंगोत्तर काल में जिस तरह मूलनिवासी वर्ण-व्यवस्था की दृढता के कारण शक्ति के तमाम स्रोतों से पूरी तरह वंचित रहे वह स्थित  मुसलमान भारत में भी अटूट रही या यूँ कहें कि निर्बाध गति से जारी रही.जबकि इस्लाम जैसे जात-पातहीन और समतामूलक धर्म के अनुयायी होने के नाते मुसलमान शासकों  को वर्ण-व्यवस्थावादी कानूनों से हिन्दू समाज की निम्न कही जानेवाली जातियों को  बचाना चाहिए था.लेकिन वे अपने पूर्ववर्ती शासक जातियों से खुद को महफूज रखना चाहते थे इसलिए स्मृतियों के विधानों के तहत हिन्दुओं को परिचालित करने की छूट दे दिया.इसलिए  मुस्लिम साम्राज्य  की  छत्रछाया में हिन्दू साम्राज्यवाद ,दुर्बल स्थित में  सही,कायम रहा.ऐसे में क्रीम का भोग तो मुसलमान शासक करते रहे ,पर उनका छोड़ा सारा जूठन हिन्दू आरक्षणवादियों के हिस्से में आया.ऐसे में मध्ययुगीन और प्राचीन विदेशियों के मिलित प्रयास से मूलनिवासी बहुजनों का श्रम ताजमहल-ऐशमहल,मंदिर-शिवालों में तब्दील होता रहा और समय का पहिया धीरे-धीरे घूमता रहा.लेकिन मुसलमान विजेता अपने पूर्ववर्ती शासकों के सहयोग से भले ही सुदीर्घ काल तक शासन करते रहे,पर वह चिरस्थाई न हो सका.

मित्रों नोटबुक में तकनीकी खामी आ जाने के कारण लगभग दो सप्ताह के अन्तराल के बाद आपसे मुलाकात हो रही है.इस बीच माओवादियों ने सुकुमा  में एक बड़ी घटना अंजाम देकर राष्ट्र को एक बार फिर स्तब्ध कर दिया है.ऐसे में आपके समक्ष मार्क्सवादियों को लेकर जो शंकाएं रख रहा हूँ ,उस कड़ी को आगे जारी रखना शायद इस समय आपकी विरक्ति का कारण बने.पर भले ही आपको अरुचिकर लगे ,किन्तु  मार्क्सवादी/माओवादियों को देश लिए आप कोई समस्या मानते हैं तो इस श्रृंखला झेलने की मानसिक प्रस्तुती लेनी पड़ेगी.बहरहाल मैं जानता हूँ आपकी मनस्थिति ठीक नहीं है बावजूद इसके  निम्न आशंकाएं आपके  समक्ष समाधान  हेतु रख रहा हूँ-

1--अगर धर्मान्तरण मिशन पर निकले अरब धर्मवीर अपने मिशन के प्रति इमानदार होते तो सम्पूर्ण  हिन्दुस्तान को इस्लाम की धर्मधारा में डुबोने में बहुत कठिनाई नहीं होती.किन्तु जिस तरह उन्होंने अपने पूर्ववर्ती शासकों  के साथ मिलकर मूलनिवासी बहुजनों के श्रम से ऐशमहल-ताजमहल बनाने में अपने तलवारों का इस्तेमाल किया उससे क्या आपको लगता है कि वे सच्चे मिशनरी  थे?  

2-वर्ण-व्यवस्था  में पेशों की विचलनशीलता के निषेध के कारण विभिन्न क्षेत्रों में सभी सामाजिक समूहों के लिए प्रतियोगिता का अवसर नहीं रहने  के कारण सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं का उदय होना बंद हो गया.सामरिक क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं रहा.यह  क्षेत्र निहायत ही अल्पसंख्यक क्षत्रियों पर निर्भर रहने के कारण देश विदेशी हमलावरों का सामना करने में व्यर्थ रहा.इस कारण ही जिनके कन्धों पर  मुस्लिम आक्रान्ताओं का सामना करने की जिम्मेवारी रही  वे अपने कर्तव्य का सफलता से अंजाम देने में विफल और इस्लामिक साम्राज्यवाद का मार्ग प्रशस्त करने के लिए अभिशप्त रहे.ऐसे में क्या आपको भी लगता है कि वर्ण व्यवस्था के प्रवर्तकों ने अपने भावी पीढ़ी को शक्ति के समस्त स्रोत आरक्षित करने के लिए जो ताना-बना बुना ,उसके कारण ही भारत में इस्लामिक साम्राज्यवाद कायम हुआ?

3 -स्वाधीन भारत में जो लोग साम्राज्यवाद के खात्मे के लिए खंभ ठोकते रहते हैं उनके पूर्वजों ने मध्य युग के साम्राज्यवादियों के खिलाफ लड़ाई का बहुत ही कारुणिक प्रदर्शन किया और उनके उपदेष्टा व सिपहसलार बनकर उनके शासन -शोषण में सहायक बन गए.उनके अतीत का साम्राज्यवादविरोधी रिकार्ड देखते हुए क्या आपको नहीं लगता है कि मौजूदा दौर के साम्राज्यवाद विरोधी भी  अन्ततोगत्वा अपने सजातियों के लिए नव-साम्राज्यवादियों द्वारा छोड़े गए जूठन एकाधिकार ज़माने में ही अपनी सारी उर्जा लगायेंगे?

                    


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