BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, March 29, 2013

मोदी मैकडोनॉल्ड

मोदी मैकडोनॉल्ड

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श्री नारायण भाई कछाड़िया का नाम आपने कभी सुना है? अगर वे आनेवाले किसी समय में अमेरिका जाएं और वहां हिलेरी क्लिंटन से मुलाकात करके वापस लौट आएं तो क्या नारायण भाई के मिलने का महत्व इतना ज्यादा होगा कि हिलेरी क्लिंटन अमेरिकी राष्ट्रपति पद के सर्वथा योग्य मान ली जाएंगी? आपको हंसी आ रही होगी और सबसे पहला सवाल आपका यही होगा कि यह नारायण भाई कछाड़िया हैं कौन जिनके मिलने भर से रिपब्लिकन हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद के योग्य मान ली जाएंगी? और किसी नारायणभाई, हिलेरी क्लिंटन या फिर नारायणभाई का जिक्र मोदी के संदर्भ में क्यों किया जा रहा है? आइये थोड़ा तफ्सरा करते हैं।

पिछले दो दिनों से मीडिया में माहौल गर्म है कि अमेरिका का एक 18 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल गुजरात पहुंचा और वहां उन्होंने मुख्यमंत्री मोदी से मुलाकात की। इस 18 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल ने मोदी को अमेरिका आने का न्यौता दिया ताकि अमेरिका मोदी के मुख से गुजरात की विकास गाथा सुन सके। खूब खबरें चली। वाहवाहियां हुईं और कल्पनाशील पत्रकारों ने तो अपनी कल्पना के घोड़ों को दौड़ाकर अमेरिका तक पहुंचा भी दिया। कुछ ने तो वीजा भी दिला दिया और कुछ मीडियावालों ने मोदी मार्ग की सारी बंदिशें खत्म करते हुए उन्हें अमेरिका का लाड़ला दुलारा नेता भी बता दिया। मीडियावाले जो चाहें वह करें, उनका कोई क्या कर सकता है लेकिन क्या सचमुच अमेरिका मोदी पर महामना हुआ जा रहा है? या फिर मोदी की पीआर कंपनी ने एक और फिक्शन गढ़कर मीडिया की पुन: पुन: कर दिया। सच्चाई शायद यही है। 

अगर हमारे नारायण भाई कछाड़िया के हिलेरी क्लिंटन से मिल लेने से हिलेरी अमेरिका में राष्ट्रपति पद की दावेदार नहीं हो सकती तो किसी ऐरोन शॉक के नरेन्द्र मोदी से मिल लेने से अमेरिका खुश हुआ जैसा जुमला कैसे कहा जा सकता है? अपने नारायणभाई कछाड़िया भी जैसे गुजरात की अमरेली लोकसभा सीट से केन्द्र की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के सांसद हैं वैसे ही ऐरोन शॉक भी अमेरिका की विपक्षी पार्टी रिपब्लिकन की ओर से वहां की लोकसभा के एक सांसद हैं। नारायणभाई तो तब भी राजनीति में अच्छा खासा तजुर्बा रखते हैं लेकिन ऐरोन अमेरिका की राजनीति में तो बच्चे ही हैं, निजी जीवन में भी उनकी कोई खास उम्र नहीं है। कुल जमा 31 साल की उम्र है। पहली बार हाउस आफ रिप्रेजेन्टेटिव के लिए चुने गये हैं और शिक्षा का व्यापार करते हैं।

इन्हीं ऐरोन के नेतृत्व में जो 18 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल मोदी से मिलने गुजरात पहुंचा था उसकी खबर ऐसे प्रसारित की गई मानों अमेरिका ने मोदी के लिए दरवाजा खोल दिया है। अगर अपने नारायणभाई चाहकर भी हिलेरी क्लिंटन के हितों के लिए भारत की किसी सरकारी नीति को प्रभावित नहीं कर सकते तो ऐरोन की क्या औकात कि वे अमेरिका की नीति या विदेश नीति को बदल देंगे? तिस पर मियां ऐरोन वहां सत्ताधारी दल के सदस्य भी नहीं है और न ही उनका अमेरिकी राजनीति में कोई ऐसा ओहदा होगा कि उनका मोदी से मिलना राजनीतिक तौर पर कोई मायने भी रखता होगा। ऐसे नौसिखिए और नौजवान सांसदों को इधर भारत में भी दुनिया घूमने का मौका मिलता है तो कहीं जाने से नहीं नहीं चूकते हैं। उन्हें ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से अच्छा राजनीतिक अनुभव मिलता है। ऐरोन के साथ जो प्रतिनधिमंडल मोदी से मिलना पहुंचा था वह ऐसे ही जुगाड़ से लाये गये थे। अमेरिका में जो बीजेपी की अमेरिकी शाखा है जिसे ओवरसीज फ्रेन्ड्स आफ बीजेपी कहा जाता है, उसी ने कोई जुगाड़ मारकर ऐरोन को गुजरात दर्शन करा दिया, और मोदी के प्रचारतंत्र ने इसका ऐसा प्रचार कर दिया मानों सीधे ओबामा वीजा लिए दरवाजे पर खड़े हैं।

गाहे बेगाहे मोदी के मीडिया प्रबंधकों, पीआर एजंसियों की वह बेचैनी सामने आती रहती है जो मोदी के रास्ते की हर मुश्किल आसान करते रहते हैं। मोदी 2005 से अमेरिका में प्रतिबंधित हैं और ऐरोन के कह देने से वह प्रतिबंध खत्म नहीं होनेवाला। ऐरोन अगर इंडिया लाये गये थे और मोदी से मिलवाये गये थे तो उनका इतना कहने का तो फर्ज ही बनता था लेकिन लेकिन हमारे मोदी के प्रबंधकों की ऐसी क्या बेचैनी है कि अमेरिका में मोदी का बैंड बजाने पर तुले हुए हैं? व्हार्टन स्कूल निमंत्रण नहीं देता तो वहां एनआरआई को विशेष प्रसारण करके खुन्नस उतार ली जाती है और देशभर में खबर चलाई जाती है कि मोदी ने अमेरिका को संबोधित किया। वह तो आज के इस तकनीकि युग में एक अदना सा आदमी भी कर सकता है। अपना वेबकैम चालू करिए और अमेरिका ही क्या पूरा दुनिया को संबोधित कर दीजिए। संबोधन करना कोई सवाल है क्या? सवाल यह है कि आपको सुन कौन रहा है? और आप सुनाना किसको चाहते हैं?

ऐरोन जैसे सीनेटर थोक के भाव में घूमते रहते हैं। उनके गुजरात आने या न आने से न तो अमेरिका की किसी नीति को कोई फर्क पड़ता है और न ही भारत को। लेकिन मोदीवादी प्रचारतंत्र ऐसे प्रचारित कर रहा है मानों मोदी अब नरेन्द्र मोदी न होकर मैकडोनाल्ड मोदी हो गये हैं। राष्ट्रवाद भी मोदी जैसे नेताओं के पल्ले पड़ जाए तो क्या क्या रंग बदलता है, अंदाज लगाना मुश्किल हो जाता है।

http://visfot.com/index.php/comentry/8824-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A1.html

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