BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Sunday, March 24, 2013

दिमाग का बहुत हो चुका, अब दिल का सफ़र होना चाहिए : मुज़फ़्फ़र अली

दिमाग का बहुत हो चुका, अब दिल का सफ़र होना चाहिए : मुज़फ़्फ़र अली


दयानंद पांडेय


 

लखनऊ लिट्रेरी फ़ेस्टिवल में आज अरसे बाद फ़िल्म निर्देशक मुज़फ़्फ़र अली से भेंट हुई। आज फ़ेस्टिवल में सूफ़ी संगीत पर आधारित उन की किताब ए लीफ़ टर्नस येलो का लोकार्पण भी हुआ। इस मौके पर आज मुज़फ़्फ़र अली बहुत बढ़िया बोले। बोले कि पैसा कमाना बहुत हो गया, दिमाग का सफ़र बहुत हो चुका, अब दिल का सफ़र होना चाहिए। किसी पत्ती के हरे होने और फिर उस के पीला होने और फिर पेड़ को छोड़ देने की बात ऐसी सूफ़ियाना रंग में डूब कर उन्हों ने कही कि मन मोह लिया। उन्हों ने आज के बच्चों के बिगड़ने की चर्चा की और कहा कि इन्हें शायरी सिखा दीजिए, सब सुधर जाएंगे।

 

उन्हों ने अपनी बात की कि मैं आज जो भी करना चाहता हूं करता हूं। क्यों कि मैं किसी का नौकर नहीं हूं। किताब उन की अंगरेजी में है। पर वह अंगरेजी में सवाल पूछे जाने के बावजूद हिंदी में ही बोलते रहे। दिल की बात। सूफ़ियाना रंग में डूब कर। बल्कि बेकल उत्साही ने इस पर उत्साहित हो कर उन से कहा कि यह किताब उर्दू और हिंदी में भी आनी चाहिए ताकि हम लोग भी पढ़ सकें। आज उन की हंसी कई बार ऐसी लगी जैसे कोई अबोध बचा हंसता हो। १९९५ में मैं उन से पहली बार मिला था लखनऊ में कैसरबाग स्थित उन की हवेली में ही और एक लंबा इंटरव्यू भी लिया था, उन को इस की भी याद थी। कहने लगे कि एक इंटरव्यू आप को फिर देना चाहता हूं। आप चाहें तो अभी ही। मैं ने कहा कि अभी हड़बड़ी में ठीक नहीं रहेगा. इत्मीनान से बैठेंगे। वह बच्चों की तरह ही अबोध हंसी हंसते हुए ही मान भी गए। पर बोले कि जल्दी ही होना चाहिए। मैं ने हामी भर दी।

 

आज लखनऊ लिट्रेरी फ़ेस्टिवल में समकालीन हिंदी कविता : लोकप्रियता की चुनौती विषय पर भी चर्चा हुई। प्रसिद्ध शायर बेकल उत्साही इस चर्चा में मुख्य वक्ता थे। इस चर्चा में मेरे साथ जे.एन.यू. के अमरेंद्र त्रिपाठी भी थे और फ़ैज़ाबाद के डा रमाशंकर त्रिपाठी भी। चर्चा में कविता पर बाज़ार के दबाव की बात हुई। हालां कि चर्चा कई बार विषय से भटकी भी। भटकी इस लिए कि हिंदी के कवियों या आलोचकों की शिरकत नहीं हो सकी। नरेश सक्सेना को आना था। किसी कारण से वह नहीं आ पाए। बेकल उत्साही अपने बारे में ही बताते रह गए। विषय पर वह आए ही नहीं। रमाशंकर त्रिपाठी अंगरेजी पर ही अपना गुस्सा उतारते रहे और जाने क्या हुआ कि ऐलान कर बैठे कि हिंदी बस समाप्त होने वाली है।

 

मैं ने उन्हें बताया और आश्वस्त किया कि घबराइए नहीं आने वाले दिनों में हिंदी विश्व की सब से बड़ी भाषा बनने जा रही है। क्यों कि कोई भी भाषा बनती और चलती है बाज़ार और रोजगार से। बाज़ार अभी हिंदी के ही हाथ है। जिस तरह से हिंदी के तकनीकी पक्ष पर काम चल रहा है, जल्दी ही रोजगार की भी भाषा बन जाएगी। लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थे। हिंदी के प्रति उन की निराशा बहुत गहरी थी। उदय प्रकाश, राजेश जोशी का नाम ले कर वह कहने लगे कि यह लोग अब राख हो चुके हैं। मैं ने उन्हें बताया कि नज़रिया बदलें अपना। उदय प्रकाश हिंदी लेखन को अंतरराष्ट्रीय मुकाम तक ले गए हैं और कि वह हिंदी की शान हैं। पर वह अंगरेजी की हताशा से उबरने को तैयार थे नहीं। समय कम था चर्चा का सो बात अधूरी रह गई।

 

 

 

अपनी कहानियों और उपन्यासों के मार्फ़त लगातार चर्चा में रहने वाले दयानंद पांडेय का जन्म 30 जनवरी, 1958 को गोरखपुर ज़िले के एक गांव बैदौली में हुआ। हिंदी में एम.ए. करने के पहले ही से वह पत्रकारिता में आ गए। वर्ष 1978 से पत्रकारिता। उन के उपन्यास और कहानियों आदि की कोई 22 पुस्तकें प्रकाशित हैं।


लोक कवि अब गाते नहीं पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद सम्मान तथा कहानी संग्रह 'एक जीनियस की विवादास्पद मौत' पर यशपाल सम्मान।


लोक कवि अब गाते नहीं का भोजपुरी अनुवाद डा. ओम प्रकाश सिंह द्वारा अंजोरिया पर प्रकाशित। बड़की दी का यक्ष प्रश्न का अंगरेजी में, बर्फ़ में फंसी मछली का पंजाबी में और मन्ना जल्दी आना का उर्दू में अनुवाद प्रकाशित।


बांसगांव की मुनमुन, वे जो हारे हुए, हारमोनियम के हज़ार टुकड़े, लोक कवि अब गाते नहीं, अपने-अपने युद्ध, दरकते दरवाज़े, जाने-अनजाने पुल (उपन्यास), 11 प्रतिनिधि कहानियां, बर्फ़ में फंसी मछली, सुमि का स्पेस, एक जीनियस की विवादास्पद मौत, सुंदर लड़कियों वाला शहर, बड़की दी का यक्ष प्रश्न, संवाद (कहानी संग्रह), कुछ मुलाकातें, कुछ बातें [सिनेमा, साहित्य, संगीत और कला क्षेत्र के लोगों के इंटरव्यू] यादों का मधुबन (संस्मरण), मीडिया तो अब काले धन की गोद में [लेखों का संग्रह], एक जनांदोलन के गर्भपात की त्रासदी [ राजनीतिक लेखों का संग्रह], सूरज का शिकारी (बच्चों की कहानियां), प्रेमचंद व्यक्तित्व और रचना दृष्टि (संपादित) तथा सुनील गावस्कर की प्रसिद्ध किताब 'माई आइडल्स' का हिंदी अनुवाद 'मेरे प्रिय खिलाड़ी' नाम से तथा पॉलिन कोलर की 'आई वाज़ हिटलर्स मेड' के हिंदी अनुवाद 'मैं हिटलर की दासी थी' का संपादन प्रकाशित।

 

संपर्क : 5/7, डालीबाग आफ़िसर्स कालोनी,

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