BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Thursday, March 28, 2013

.बाबा साहेब ने 6743 टुकडो को तीन जगह इकठ्ठा किया. 2000 जातियों को एक जाति, अनुसूचित जाति(SC ) बनाया. 1000 जातियों को एक जाति, अनुसूचित जन जाति(ST ) बनाया. शेष बची 3743 जातियों को एक जाति, अन्य पिछड़ी जाति(OBC ) बनाया. आज संबैधानिक एवं क़ानूनी रूप भारत में से केवल २ वर्ग, पिछड़ा वर्ग (Backward Class ) एवं सामान्य वर्ग है और 4 जातियां SC /ST /OBC /General है. और फिर इन तीन जातियों SC /ST /OBC /एवं इनसे धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक को मिलाकर एक वर्ग पिछड़ा वर्ग (Backward Class ) बनाया.

बाबा साहेब ने 6743 टुकडो को तीन जगह इकठ्ठा किया.
2000 जातियों को एक जाति, अनुसूचित जाति(SC ) बनाया.
1000 जातियों को एक जाति, अनुसूचित जन जाति(ST ) बनाया.
शेष बची 3743 जातियों को एक जाति, अन्य पिछड़ी जाति(OBC ) बनाया.
आज संबैधानिक एवं क़ानूनी रूप भारत में से केवल २ वर्ग, पिछड़ा वर्ग (Backward Class ) एवं सामान्य वर्ग है और 4 जातियां SC /ST /OBC /General है. और फिर इन तीन जातियों SC /ST /OBC /एवं इनसे धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक को मिलाकर एक वर्ग पिछड़ा वर्ग (Backward Class ) बनाया.

बामसेफ एक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन है और...
Bamcef UP 11:50pm Mar 28
बामसेफ एक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन है और इसका उद्देश्य व्यवस्था परिवर्तन है. बामसेफ का उद्देश्य ब्राह्मण-वाद जो की गैर बराबरी की भावना है, को जड़ से उखाड़ कर समतामूलक समाज (संबिधान के प्रस्तावना में दिए गए शब्द स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व एवं न्याय पर आधारित समाज) की स्थापना करना है. हमारा विरोधाभास ब्राह्मण-वाद जो की गैर बराबरी की भावना है , से है. बामसेफ का उद्देश्य संबिधान सम्मत है. संबिधान की मूल भावना और बामसेफ के उद्देश्य में कोई भी विरोधाभास नहीं है. ब्राह्मण-वाद जो की गैर बराबरी की भावना है. ब्राह्मण जब तक अपनी पहचान ब्राह्मण के रूप में बनाये हुए है तब तक ब्राह्मण एवं ब्राह्मणवाद, दोनों में कोई भी अंतर नहीं है इन दोनों से ही हमारा मुख्य विरोधाभास है. मूलनिवासी बहुजनो द्वरा, ब्राहमण लोगो को ब्राहमणके रूप में स्वीकार कर लेना या उनकी पहचान ब्राह्मण के रूप में मान लेना वर्ण व्यवस्था का समर्थन करना है. और अपने को फिर से अधिकारविहीन और अपमानित पहचान शुद्र या अछूत स्वीकार का लेना भी है. किसी भी मूलनिवासी बहुजन संगठन या नेत्रित्व द्वरा ब्राह्मण जाति को ब्राह्मण के रूप में मान्यता देकर उनसे मंत्रोचार करवाना और आशीर्वाद लेना बहुजन आन्दोलन के लिए आन्दोलन का मूल उद्देश्य ही समाप्त कर लेने जैसा है.
व्यक्ति का विचार परिवर्तन ही समाज परिवर्तन का आधार है. विचार परिवर्तन ही हर परिवर्तन का मूल है....डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर 
बामसेफ का मानना है कि विचार में परिवर्तन हुए बिना आचरण में परिवर्तन संभव नहीं है और यदि विचार में परिवर्तन नहीं होता है तो हमारा आदमी भी यदि पोजीसन ऑफ़ पावर पर पहुचता है तो वह ब्राह्मणवादी एजेंडा को ही आगे बढ़ाने में लगा रहता है. इस लिए हमारे अपने समाज के लोगो में अपने महापुरुषों- तथागत बुद्ध,सम्राट अशोक, फुले, आंबेडकर, नारायणा गुरु, कबीर , नानक रैदास, घासीदास,पेरियार, राम स्वरूप वर्मा, ललई सिंह यादव इत्यादि की विचारधारा को स्थापित करना होगा और बामसेफ यही कार्य अपने स्थापना काल से कर रहा है। राष्ट्रीय अधिवेशन, कैडर कैम्प, सेमिनार, वर्कशाप, मूलनिवासी मेला, प्रबोधन सत्र लगा कर अपने समाज के मानव संसाधन को अपने महापुरुषों की विचार धारा में प्रशिक्षित करने एवं प्रशिक्षित मानव संसाधन को तैयार करने में लगा हुआ है. व्यक्ति का विचार परिवर्तन आसान नहीं अपितु यह अत्यंत कठिन कार्य है. वह भी तब और कठिन है जबकि प्रतिगामी शक्तिया इसके विरोध अर्थात काउंटर करने में अपने भारी बित्तीय एवं मानव संसाधन को लगा रही है. यशकाई डी के खापर्डे साहेब का कहना था की ऐसा मानव संसाधन तैयार करना जो की फुले-आंबेडकर की विचार धारा के अनुरूप सोच सके, रिवोलुसन है.
एक व्यक्ति या एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमने वाले, व्यक्ति-वादी संगठन एक व्यक्ति, उसके कुछ नजदीकी रिश्तेदार, व कुछ एक चापलूस एवं चाटुकार का भला तो कर सकते है, पर पुरे मूलनिवासी बहुजन समाज का कत्तयी नहीं. एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमने वाले, व्यक्ति-वादी संगठन व्यक्तियों के साथ पैदा होतें हैं और उन्ही के साथ ख़त्म हो जातें हैं. व्यक्ति-वादी संगठन कोई भी हो अंत में ब्राह्मणवाद के तरफ ही जायेगा क्योकि तानाशाही और ब्राह्मणवाद सहोदर भाई है और प्रजातंत्र और ब्राह्मणवाद एक दुसरे की धुर विरोधी. इस लिए ही संबिधान प्रजातान्त्रिक एवं समतामूलक होने के बावजूद भी ब्राह्मणवादी शासक जातियां देश में लोकतंत्र की स्थापना न कर परिवारवाद, भाई भतीजा वाद, या फिर व्यक्ति-वाद, जाति वाद, क्षेत्र वाद, को बढ़ावा दे रही है. ब्राह्मण वाद जब कमजोर पड़ता है, या आमने- सामने लड़ने में घबराता है, तो मूलनिवासी बहुजन समाज के भीतर अपने चमचे कह लो या एजेंट कह लो, पाल लेता है...और फिर इन चमचो या एजेंटो के माध्यम से आन्दोलन को कमजोर करता है और मूलनिवासी बहुजन समाज को फिर इन्ही चमचो के माध्यम से नियंत्रित करता है. हम भ्रमित हो जाते है की ये तो अपने लोग है... व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी संगठन एवं व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी लीडरशिप आधुनिक चमचे है...कुछ व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी संगठन का ब्राह्मणवाद से सम्बन्ध उजागर हो चूका है और कुछ व्यक्तिवादी एवं परिवारवादी संगठन का ब्राह्मणवाद से सम्बन्ध आने वाले भबिश्य में उजागर हो जायेगा.. हमारे दुश्मनो को भी व्यक्तिवादी संगठन (ऐसा संगठन जो एक व्यक्ति के इर्द -गिर्द घूमता है) सुट करता है क्यों कि उन्हें एक व्यक्ति को खरीदने, नेगोसियेट करने में या उसकी कमजोरिया उजागर कर उसे इस्तेमाल करने में आसानी होती है. इसलिए दुसमन हमेशा मूलनिवासियो में व्यक्तिवादी संगठन और तानाशाही नेत्रित्व को ही उभारने में मदद करता है ... और मनु वादी मीडिया भी ऐसे मूलनिवासियो के व्यक्तिवादी संगठन और तानाशाही नेत्रित्व को प्रचारित एवं प्रसारित करता है ..मूलनिवासी बहुजन समाज के लोग होशियार..सावधान....परिवारवाद..और ...व्यक्तिवाद के रास्ते राजतन्त्र आ रहा है....बाबा साहेब एवं तथागत बुद्धा का दिया हुआ लोकतंत्र खतरे में है. आज हमें उद्देश्य के लिए समर्पित , विचारधारा के प्रति जागरूक, लोकतान्त्रिक संगठन जिसमे कि आन्तरिक प्रजातंत्र लागु हो और संथागत नेतृत्व की जरुरत है...न कि तानाशाही नेतृत्व और व्यक्तिवादी संगठन....ज्यादातर सभी मूलनिवासी नेता, राजनितिक ही नहीं सामाजिक नेता भी तानाशाही प्रबृति के है. अपने को संगठन से ऊपर समझते है. सगठन को अपनी जेब में रखना चाहते है, और कार्य-कर्ताओ को बंधुआ मजदुर. सगठन को बढ़ाने की बजाय अपने को बढ़ाने के बारे में कार्य करते है.और सेकंड लाइन या थर्ड लाइन लीडरशिप कभी भी उभारने नहीं देते है. ऐसा संगठन विकसित करते है कि संगठन माने व्यक्ति और व्यक्ति माने संगठन अर्थात व्यक्ति ही संगठन और बाकि सारा शून्य. कई गुमराह मूलनिवासी समर्थको को भी तानाशाह पसंद आ जाते है क्योकि प्रजातांत्रिक तरीके में उनको भी जागरूक रहकर भागीदार बनना पड़ता है जबकि नायक पूजा/तानाशाही में वे अपना तकदीर नेता के हाथ में सौप कर चैन से सोना चाहते है. जब तक संगठन में आन्तरिक प्रजातंत्र लागु नहीं होता यह समस्या बनी रहेगी. एक तानाशाह का विरोध तो ठीक है पर दूसरा तानाशाह पैदा करना महा मुर्खता है... आज हमें उद्देश्य के लिए समर्पित , विचारधारा के प्रति जागरूक संथागत नेतृत्व की जरुरत है. इस लिए संगठन से व्यक्तिवाद समाप्त होना चाहिए ...हमें किसी भी एक व्यक्ति का पिछलग्गू बनने की अपेक्षा उद्देश्य, विचारधारा और संगठन को देखना चहिये और संस्थागत लीडरशिप डेवलप करना चहिये .-इसलिए मूलनिवासी बहुजन सचेत हो जाओ और व्यक्ति-वादी संगठन का मोह छोड़ो. संस्थागत नेतृत्व एवं प्रजातान्त्रिक संगठन ही व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को लड़ सकता है
हमारी सामाजिक समस्या जाति व्यवस्था है. साथियों यदि हमें यह पता हो जाये की जाति व्यवस्था कैसे पैदा हुयी है तो हमको इसको समाप्त करने का उपाय भी मिल जायेगा. विदेशी आर्य ब्राह्मणों के आगमन से पूर्व हमारे समाज के लोग प्रजातान्त्रिक, एवं स्वतंत्र सोच के थे एवं उनमे कोई भी जाति व्यस्था नहीं थी सब मिलकर प्रेम एवं भी चारे के साथ. ऐसा इतिहास सिन्धु घाटी की सभ्यता (Indus Valley Civilization) का मिलाता है . फिर बिदेशी ब्रह्मण आज से लगभग चार हजार वर्ष पूर्व भारत आये और उनका यहाँ के मूलनिवासियो के साथ संघर्ष हुआ . ब्रहामन लोग साम, दाम, दंड एवं भेद की नीत से किसी तरह संघर्ष में जित गए. परन्तु ब्राह्मणों की समस्या थी की ज्यादा लोगो को ज्यादा समय तक नियंत्रित कैसे रखा जाय इसलिए उन्होंने मूलनिवासियो को 6743 टुकडो में तोड़ा और उनमे श्रेणी बध असमानता का सिधांत अर्थात जाति व्यवस्थाका सिधांत, लागु किया और उनको वेदों एवं शास्त्रों के माध्यम से मानसिक रूप से गुलाम बनाया. इसलिए साथियों इतिहास हमें यही बताता है कि , अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन जाति, अन्य पिछड़े वर्ग और इनसे धरम परिवर्तित अल्पसंख्यक आपस में ऐतिहासिक रूप से भाई-भाई है. सभी इस देश के मूलनिवासी है. दुश्मनों ने हमें कई टुकडो में तोडा और हमारी मूल पहचान मिटा कर अपने साथ अपमान जनक पहचान के साथ जोड़ा ...तो हमारे महापुरुषों ने हमें फिर से हमें उनसे अलग कर एक नाम एवं एक सम्मानजनक पहचान के साथ जोड़ा...
i. तथागत बुद्ध ने सबसे पहले हमें प्रतीत्य समुत्पाद के सिधांत और अनित्य, अनात्म एवं दुख के सिधांत पर बहुजन के नाम से जोड़ा...
II. फिर संत रैदास, संत कबीर, गुरु नानक, गुरु घासीदास, नारायणा गुरु ने ब्राह्मण वाद से मुक्ति के लिए मुक्ति आन्दोलन चलाया...और मूर्ति पूजा, बहु- देवा, एवं कर्मकांड के पाखंड के स्थान पर एक अदृश्य देव(निराकार) के नाम पर जोड़ा.
III. राष्ट्रपिता फुले ने हमें शुद्र अति शुद्र को सत्यशोधक के नाम से जोड़ा...
IV.बाबा साहेब ने 6743 टुकडो को तीन जगह इकठ्ठा किया.
2000 जातियों को एक जाति, अनुसूचित जाति(SC ) बनाया.
1000 जातियों को एक जाति, अनुसूचित जन जाति(ST ) बनाया.
शेष बची 3743 जातियों को एक जाति, अन्य पिछड़ी जाति(OBC ) बनाया.
आज संबैधानिक एवं क़ानूनी रूप भारत में से केवल २ वर्ग, पिछड़ा वर्ग (Backward Class ) एवं सामान्य वर्ग है और 4 जातियां SC /ST /OBC /General है. और फिर इन तीन जातियों SC /ST /OBC /एवं इनसे धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक को मिलाकर एक वर्ग पिछड़ा वर्ग (Backward Class ) बनाया.
V. इसी पिछड़े वर्ग को मान्यवर कांशी राम साहेब ने फिर से बहुजन कहा और 85 बताया..
VI. और इसी पिछड़े वर्ग को फिर यशकायी डी के खापर्डे ने मूलनिवासी बहुजन कहा... caste identity must be converted in class identity and that is Mulnivasi identity. इसलिए आज हमें मूलनिवासी बहुजन पहचान पर संगठित होना चाहिए और अपनी जाति या उपजाति की पहचान को छोड़ देना चाहिए.

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