BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Friday, March 22, 2013

सीबीआई के साए में ...!

सीबीआई के साए में ...!


जगमोहन फुटेला

 

Photo: SP & BSP congressi rath ke do ghode hai jinki lagaam CBI rupi saarthi ke haath me. Isliye daro mat shaab jab tak maalkin (mata Ji) chayegi ye ghode chalte rahenge.

 

प्रो. हिमांशु कुमार पूछते हैं विकास अगर ज़रूरी है तो वो सरकार कैसे करेगी? कुछ न कर के या कारखाने लगवा के। कारखाने कहां लगेंगे आकाश में या ज़मीन पे? ज़मीन पे लगेंगे तो वहां से ज़मीन वालों को हटाएगा कौन। और हटने वाले फिर भी नहीं हटेंगे तो उन्हें हटाएगा कौन?... पुलिस। कारखाना लग भी जाएगा तो उत्पादन, लाभ और विकास किस का होगा, कारखाने के मालिक का या वहां से हटा दिए गए किसानों और आदिवासियों का? प्रो हिमांशु कुमार एक और बड़ी दिलचस्प बात कहते हैं। कहते हैं  कि राजनीति का जो सब से प्रकांड पंडित हुआ, चाणक्य। उस ने भी अपने ग्रंथ  का नाम रखा, अर्थशास्त्र। यानी सत्ता का मूल मंत्र ही ये है कि पूरे अर्थतंत्र पे अधिकार कैसे करना है। अर्थव्यस्था का नियंत्रण जिस के हाथ में है वही राजा है और अर्थव्यवस्था पे नियंत्रण के लिए सत्ता की ताकत का इस्तेमाल राजा का अधिकार। राजा इस अधिकार का इस्तेमाल करता ही आया है। आदिकाल से ले कर मुगलों के आक्रमणों तक और ईस्ट इंडिया से ले कर अब तक।

 

 

अपनी सत्ता कोई खोना नहीं चाहता। इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा के लगा के देश फौज के हवाले कर दिया था। वजह क्या थी? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन का चुनाव रद्द कर दिया था। बहुमत तो फिर भी था ही। वे चाहतीं तो प्रधानमंत्री कोई और भी हो सकता था। लेकिन वो उन्हें गवारा नहीं था। उन्होंने वो किया जो गांधी कभी सोचते न। नेहरु कभी करते न। और जब इमरजेंसी लग ही गई तो निर्णय लेने का अधिकार खुद इंदिरा गांधी के हाथ से निकल गया। संजय को फूक दे के बंसीलाल और ओम मेहता जैसे लोग प्रशासन तंत्र चलाने लगे थे। वे भी जिन की कि किसी के प्रति कोई जवाबदेही नहीं थी। हुआ तो ये भी कि कोई भी बस कहीं भी रोकी जाती और सवारियों को उतार कर उन की नसबंदी कर दी जाती। एक तरह का सहम भर गया था लोगों के मनों में। कहीं आते जाते भी डर लगने लगा था। टारगेट के चक्कर में कई कुंवारों तक की नसबंदी की खबरों से जैसे कहर मच गया। अखबारों पे ताले जड़े थे। फिर भी '77 आया तो कांग्रेस साफ़ थी। कांग्रेस फिर आई '80 में तो संजय भले ही जल्दी ही चले गए लेकिन उनकी संस्कृति फिर भी रही। स्कूटर का नंबर लेने भी जाएं तो पूछा जाता था कि नसबंदियां कितनी कराई हैं। ट्रकों पे 'हम सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं' जैसे जुमले लिखा के लाने पड़ते थे। लोग मज़ाक बनाने लगे थे। ट्रक कोई बैक भी हो रहा होता तो लोग कहते देखो, देश सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहा है।

 

अखबार ही नहीं, उन के रामनाथ गोयनका जैसे मालिकों तक को बंद कर देने वाली सरकार लोगों की जुबां पे ताले नहीं लगा पाई। ऐसा आतंक बरपाया उस ने कि त्राहि त्राहि कर उठे लोग। उन के मनों में नफरत भरती चली गई। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि ये बड़ी वजह थी कि इंदिरा गांधी की हत्या तक जब हुई तो कांग्रेसियों को तो था। लेकिन देश की जनता को कोई मलाल नहीं हुआ उन के जाने का। हुआ होता तो उन के जाने के चार ही साल बाद देश में चार चार गैर कांग्रेसी सरकारें कायम नहीं हुई होतीं।

 

मैंने मधुमक्खी पालन पे एक स्टोरी (टीवी खबर) की एक बार। उस आदमी ने अपने शरीर पे हज़ारों मधुमक्खियां चिपटा लीं। फिर सब उतारीं और वापिस पेटी में डालीं भी। मेरा अचंभित होना स्वाभाविक था। उस ने कहा कि मक्खी को जब तक ये न लगे कि आप उस पे कोई हमला कर रहे हो तो वो काटती नहीं है। उसे लगे कि आप ने उसे मारने की कोशिश भी की तो फिर पूरा झुंड टूट पड़ता है। सांप, कुत्ते और आदमी के मामले में भी ऐसा ही है। और कौटिल्य शास्त्र के मुताबिक़ सत्ता ही अगर जाती हो तो फिर युद्ध तो राजधर्म है।

 

प्रो. हिमांशु कुमार तो कहते हैं कि भारत एक गणराज्य भले हो, राष्ट्र नहीं है। राष्ट्र की पहली शर्त ही ये है कि कोई एक राज्य किसी दूसरे के साथ युद्ध नहीं करेगा। कोई एक सत्ता किसी दूसरी सत्ता पे नहीं। लेकिन भारत में ये हर रोज़ होता है। अभी कल परसों ही हुआ। करूणानिधि ने समर्थन वापसी की घोषणा की। सुबह का सूरज नहीं उगा कि सीबीआई उन के बेटे के घर छापा मारने पंहुच गई मुलायम, माया और जगन रेड्डी के पीछे तो सीबीआई पड़ी ही है। डाल उसे सत्ता ने सांसदों नहीं वोटरों की ठीक ठाक संख्या वालों के पीछे भी रखा है। मिसाल के तौर पे डेरा सच्चा सौदा वाले गुरमीत राम रहीम। ऐसा माना जाता है कि हरियाणा और पंजाब में कम से कम एक एक करोड़ वोटर  उन के प्रभाव में हैं। बल्कि पंजाब में तो वे विधानसभा की 117 में से कम से कम 60 सीटों पर हार जीत सुनिश्चित करा सकने की हालत में हैं। ये इस से भी ज़ाहिर है कि पंजाब की दोनों प्रमुख पार्टियों के प्रमुख नेता जब तब उन के डेरे पे हाज़िरी भरने जाते रहते हैं। अब डेरा प्रमुख के खिलाफ अपहरण से ले कर हत्या तक के कितने ही मामले हैं। इन में से कुछ सीबीआई के पास भी हैं। लेकिन कभी किसी एक भी केस में डेरा प्रमुख को एक दिन के लिए भी जेल छोड़ो, थाने में भी नहीं रहना पड़ा है। केस हैं कि न रुकते ही हैं, न आगे चलते हैं। उनकी भी हालत माया, मुलायम जैसी है। उन्हें भी सलीम मरने नहीं दे रहा है। बादशाह सलामत जीने नहीं दे रहे हैं।

 

डेरे वाले बाबा को भी छोड़ो। एक तरह का डर तारी तो मुझ पे भी रहता है। इतना लिखता हूँ, ठोक के किसी के भी खिलाफ। पता नहीं कौन फोन टेप करा रहा हो। कौन कब आए और कहे कि चलो आईजी साहब ने बुलाया है। भेजने वाले के पते बिना कोई लिफाफा आता है कोरयर से तो लौटाना पड़ता है। कोई मिस काल मारता है तो वापिस काल करने की हिम्मत नहीं होती। पता नहीं किसी सिपट्टन का न हो। मुझे हो न हो। लेकिन ये डर आदमी को बागी बना देता है। और बागी सिर्फ बंदूक ही नहीं चलाते, कलम और ज़ुबान भी चलाते हैं। ये ज़ुबान ही थी जो इंदिरा गांधी के जलवे जलाल को ले डूबी।  आज राहुल गांधी लोगों की ज़ुबान पे हैं। लोग कहने लगे हैं कि दादी ने तो कुर्सी जाने के डर से इमरजेंसी लगाई थी, पोते ने तो कुर्सी आने से पहले ही सीबीआई लगा रखी है।

 

सयाने कह गए हैं-तलवार का काटा तो फिर भी बच जाता है। ज़ुबान का काटा नहीं बचता। हे प्रभु, नेहरु के राजनीतिक दर्शन, दादी इंदिरा से विलक्षण और पिता राजीव जैसे आकर्षण से वंचित इस बालक की रक्षा करना। उसे पता ही नहीं है कि वो कर क्या रहा है..!

 

(ये कार्टून इरफ़ान का है)

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