Wednesday, 06 March 2013 11:23 |
बनवारी अगर हमारे राजनेताओं और आर्थिक विशेषज्ञों में अपना और अपने देश का थोड़ा भी गौरव होता तो वे आर्थिक सुधार जैसी छद्म शब्दावली का न प्रयोग करते और न अपनी आर्थिक नीतियों की समीक्षा करने वाली अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ बिरादरी को करने देते। लेकिन हमारे यहां तो यह मुहावरा कुछ ऐसे स्वयंसिद्ध प्रत्यय की तरह व्यवहार में लाया जा रहा है कि उसके श्रेयस्कर होने में किसी तरह के संदेह की कोई गुंजाइश ही न हो। आर्थिक सुधारों को लागू करने में सरकार में हिचकिचाहट हो ऐसा नहीं है। लेकिन यह मुहावरा अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा इतनी आक्रामकता के साथ प्रचारित किया जाता है कि थोड़ा-सा विदेशी दबाव पड़ते ही हम हथियार डाल देते हैं। याद कीजिए कि नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व-काल में जब भारत में आर्थिक सुधारों के इस तथाकथित दौर का आरंभ हुआ था तो रेटिंग एजेंसियों ने भारत की वित्तीय साख गिरा कर ही यह दबाव पैदा किया था। उस समय किसी को यह समझ में नहीं आया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति के बावजूद भारत की रेटिंग क्यों कम की गई और यह दबाव क्यों पैदा किया गया। तब से हम रेटिंग के इस मायाजाल में फंसते ही गए हैं। यह कहना मुश्किल है कि आर्थिक प्रगति के दौर में देश के साधारण लोगों का आर्थिक जीवन पहले से सुगम हो रहा है या दुर्गम। अधिकतर लोगों के लिए जीवन की कुछ स्थितियां सुधर रही हैं तो कुछ बिगड़ रही हैं और यह तय कर पाना कठिन है कि उनके आर्थिक जीवन की यह दिशा आश्वस्तिकारक है या नहीं। यह बात साधारण लोगों के बारे में ही नहीं, सरकार के बारे में भी उतनी ही सही है। शुरू के दिनों में हम विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के कर्ज से दबे थे और उनके अनेक सुझाव निर्देश का काम करते थे। फिर वह समय आया जब भारत को विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के कर्ज की आवश्यकता ही नहीं रही। मनमोहन सिंह इस पर गर्व करते हुए कहते रहे कि हम अब कर्ज लेने नहीं देने की स्थिति में आ गए हैं। लेकिन इस नई स्थिति में हम पर बाहरी दबाव समाप्त नहीं हुआ, उसका स्वरूप बदल गया। अब हम विदेशी निवेशकों और विदेशी बाजार के दबाव में रहते हैं और इसीलिए उन रेटिंग एजेंसियों का भूत हमें डराता रहता है, जिनकी अपनी साख आज काफी संदिग्ध हो गई है क्योंकि पैसे के लालच में उन्होंने जान-बूझ कर गलत रेटिंग की। ऐसा नहीं कि पिछले दिनों हमारी अर्थव्यवस्था में कुछ सकारात्मक न हुआ हो। बिहार और मध्यप्रदेश ने कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। इसका श्रेय केवल स्थानीय नेतृत्व को जाता है। इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री अपने समाज से जुड़े हैं और अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में अधिक साफ-सुथरे रहे हैं। इसी तरह गुजरात ने उद्योग-व्यापार में वैसी ही उपलब्धि दिखाई है। नरेंद्र मोदी को इसका श्रेय भी मिला है। ये सभी नेता आधुनिक विधाओं में निष्णात होते हुए भी उस पश्चिमपरस्त भद्रलोक का हिस्सा नहीं हैं जो हमारी राष्ट्रीय राजनीति और सत्ता प्रतिष्ठान में छाया हुआ है। जो हिंदी क्षेत्र आरंभिक दौर में पिछड़े दिख रहे थे, धीरे-धीरे पहल उनके हाथ में पहुंच रही है। विदेशी शासन के दौरान इन्हीं क्षेत्रों के भौतिक जीवन की सबसे अधिक क्षति हुई थी। हमारे राष्ट्रीय प्रतिष्ठान ने उनकी इस क्षति की पूर्ति करने में रुचि लेने के बजाय उनका सदा उपहास ही किया। लेकिन अब वे अपने पुरुषार्थ से आगे बढ़ रहे हैं। धीरे-धीरे पहल राज्यस्तरीय नेतृत्व के हाथ में जा रही है। अभी इससे हमारे राष्ट्रीय प्रतिष्ठान को कोई खतरा दिखाई नहीं दे रहा। लेकिन कांग्रेस या भाजपा के नेतृत्व वाले शासन में अपनी प्रभुता के बने रहने का जो भ्रम इस प्रतिष्ठान ने पाल रखा है, वह बहुत दिन नहीं टिकेगा। राष्ट्रीय दलों की संगठनात्मक स्थिति ज्यों-ज्यों कमजोर होगी, उनका दिल्लीवासी नेतृत्व साधनों को चुनाव जीतने के लिए स्थानीय समाज के साथ बांटने और राज्यस्तरीय नेतृत्व को महत्त्व देने के लिए विवश होगा। इससे स्थानीय नेतृत्व की शक्ति उत्तरोत्तर बढ़ेगी और इंडिया भारत की तरफ खिसकने के लिए विवश हो जाएगा। अब तक का अनुभव यह भ्रम पैदा करता है कि देशज समाज पश्चिमी तंत्र का अंगभूत होता चला जा रहा है। लेकिन यह संक्रमण का काल है और अभी इंडिया का मुलम्मा उतरा नहीं है। पर मनमोहन सिंह ने यह मुलम्मा उतारने की नींव जरूर डाल दी है। इसका श्रेय उन्हें जरूर मिलेगा। बेचारे चिदंबरम तो दो पाटों में फंस गए हैं। वरना वे किसी गिनती में नहीं आते। |
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Saturday, March 9, 2013
दो पाटों के बीच
दो पाटों के बीच
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