Sunday, 17 February 2013 12:00 |
सय्यद मुबीन ज़ेहरा वित्तमंत्री को बजट को एक गृहिणी का बजट बनाने के बारे में सोचना चाहिए। यह मान कर चलना चाहिए कि चाहे महंगाई किसी भी चीज की हो, अगर उससे घर का बजट चौपट होता है तो उसका पूरा भार स्त्री को ही उठाना पड़ता है। रसोई के मामले में उससे बड़ा प्रबंधक गुरु आज तक पैदा नहीं हुआ। कब दाल का पानी कितना बढ़ाना है और अगर प्याज महंगा हो गया है तो उसे किस प्रकार काम में लाना है? बाहर कितनी बार खाना खाने जाना है और किसकी शादी में कितना महंगा तोहफा देना है, यह वह अच्छी तरह जानती है। घर का बजट संभला रहे यह एक महिला से बेहतर कोई नहीं बता सकता। रसोई गैस की कीमतें बढ़ने से घरों में रसोई का बजट वाकई चौपट हो गया है। ऐसे में सार्वजनिक रसोईघर की संकल्पना को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। इससे भोजन की बर्बादी पर भी अंकुश लगाया जा सकता है। अगर वित्तमंत्री रसोई में प्रयोग की चीजों को बख्श देते हैं और ऐसी चीजों को करों के दायरे में लाते हैं जो विलासिता के साधन हैं और भरे पेट की दुनिया से जुड़े हैं तो नारी पर बजट बहुत भारी नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर वह सकल घरेलू उत्पाद, अर्थनीति, राजकोषीय घाटा, वित्तीय संकट, वित्तीय सुधार, विदेशी निवेश, बाजारी अर्थव्यवस्था, क्रेडिट रेटिंग और लाभ-हानि जैसे शब्दों में उलझ गए तो फिर महिलाओं के लिए यह बजट अच्छा साबित नहीं होगा। उन्हें ध्यान रखना होगा कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए व्यवहार करना है। जहां तक वित्तीय घाटे को संतुलित करने की बात है, उसे वित्तमंत्री उन पूंजीपतियों पर चाबुक चला कर पूरा कर सकते हैं, जो देश के पैसे पर कुंडली मारे बैठे हैं। आशा है वे इस बार का आम बजट महिलाओं को ध्यान में रख कर बनाएंगे। |
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Sunday, February 17, 2013
बजट से पहले
बजट से पहले
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