BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Monday, February 25, 2013

मोदीवादी छद्म धार्मिक राष्ट्रवाद

मोदीवादी छद्म धार्मिक राष्ट्रवाद

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अनेकानेक वादो में एक प्रवचनवाद भी है। मिस्टर भगत, अरे वही चेतन भगत जिसका प्रवचन भाष्कर के सम्पादकीय में कई बार छपा रहता है। न जाने सम्पादक को इस पल्प लेखक में क्या कुछ बौधिक नजर आता है कि वह मेहरबान है। सम्पादक मुझे तो कभी प्रवचन लिखने नही देगा इसलिये भगत के प्रवचन पर मै यह ब्लाग प्रवचन ही लिख दिये रहा हूं। गोधरा की ग्यारहवी सालगिरह पर जनाव भगत ने लिख तो मारा है लेकिन नरेन्द्र मोदी की भक्ति में उनका नाम तक नही लिया है। भगत को नरेन्द्र मोदी ने शॉल क्या दिया जनाब ने भक्ति मे मोदी तथा संघ के कार्यक्र्ताओं को दोष न देकर हिन्दूओ के उपर सारा दोष मढ डाला है कि गोधरा में मुसलमानो ने जलाया तो हिन्दुओ ने बदला लिया। उसके बाद प्रवचन है कि गोधरा इसलिये हुआ कि हम सबमें खोट है कि हम धर्म को देश से उपर मानते है।

भई वाह, धर्मपरायण देश में सबसे बडा राष्ट्रवादी संघ का सारवरकर था जिसको अंग्रेजो ने जब गिरफ्तारी वारण्ट जारी किया तो समुन्दर में कूद गया और जर्मनी मे उपराया। जर्मनी मे तमतमाते-कांपते हुये हिटलर से मिला और बोला आप मेरी मदद करो, चलो भारत को कैप्चर कर लो फिर आपके मार्फत हम भारत पर शासन करेंगे। बाद  में  मुसोलिनी से भी मिला था। दूसरे राष्ट्रवादी ‍थे विवेकानन्द जो पहले आधुनिक स्वामी थे जिसने धर्म को कैरियर के बतौर लिया, उसकी हालत यह थी जब तक धन नही मिला तथा आश्रम नही बना था तब तक विदेशियो को गरियाते रहे लेकिन जब अमेरिका से डालर आया तो मति पलट गई और भविष्यवाणी कर डाली कि कलियुग में भारत पर विदेशी राज करेंगे क्योकि वे बेहतर कौम हैं, अलौकिक विर्यशाली प्रजाति है।

विवेकानन्द की सनातन हिन्दू चेतना की समझ बहुत अच्छी नही कही जा सकती थी, दूसरी तरफ पाश्चात्य जीवन से वे इतने अतिक्रांत थे कि उन्होने अमेरिका के बारे मे लिखा कि 'यूरोप तथा अमेरिकावासी तो यवनो की समुन्नत मुखोज्जवलकारी सन्तान हैं पर दुःख है कि आधुनिक भारतवासी प्राचीन आर्यकुल के गौरव नही रहे।" अमेरिकीयों को वे अलौकिक विर्यशाली प्रजाती कहते है जो यवनो के वंशज है, उनके अनुसार 'यवन मानव जाति के इतिहास में मुट्ठी भर अलौकिक विर्यशाली जाति का एक अपूर्व दृष्टान्त है। ….यहा(भारत) मे जो उन्नति हो रही है वह यूनान की छाया पडी है।.. आधुनिक समय मे उसी प्रकाश से अपने गृहो को आलोकित कर हम बंगाली स्पर्धा का अनुभव कर रहे है।" यह बंगाली मनस का विदेशी चकाचौध से अतिक्रांत होना है। बंगालियो की उपनिवेशवादी समय की जो आधुनिकता सामने आयी इस पाश्चात्य अनुगमन से ही आई। अंग्रेजीयत का शिकार यदि कोई प्रदेश सबसे अधिक रहा तो यह  बंगाल ही रहा, अंग्रेजियत ने उनके घरों को आलोकित भी किया। आधुनिक समय मे वे देश की आधुनिक सास्कृति की ध्वजा उठाये बंगाली वास्तव मे गहरे देशद्रोही भी रहे। या विदेशी चकाचौध से इतने अतिक्रांत रहे कि उन्हे अपना तो कुछ नजर ही नही आया, अपनी अस्मिता को भौतिकवादिता के लिये आने कौडी मे बेचने मे सबसे अग्रणी रहे।

बंगाली हिन्दी का वर्चस्व नही स्वीकार कर सकता॰ या किसी अन्य भारतीय भाषा का वर्चस्व स्वीकार नही कर सकता क्योकि बंगाली अस्मिता का सवाल खडा हो जाता है लेकिन अंग्रेजी से उसे आपत्ति नहीं है। रविन्द्रनाथ टैगोर थे तो बडे दिग्गज कांग्रेसी साहित्यकार लेकिन जरा सोचिये जनाब बंगाली अस्मिता के ध्वजाधारी थे लेकिन जब नोबल कमेटी ने गीतांजली को बंगाली कविता के बतौर देने  से मना कर दिया और शर्त रखी की अंग्रेजी की श्रेष्ठता स्वीकार करो तो मिलेगा यह सम्मान तो ठाकुर ने अपनी सारी भाषाई अस्मिता और ठकुरैती भूलकर अंग्रेजी की श्रेष्ठता स्वीकार कर लिया। गीतांजली का अंग्रेजी मे अनुवाद करके उन्होंने नोबेल लिया और अपने बंगाल को आलोकित किया। ये ही मौकापरस्त कांग्रेसियों के आदर्श हैं तथा गाँधी के गुरु रहे  हैं जो देश के भाग्यविधाता बने । आज बहुसंख्यक जनता इनकी अंग्रेजपरस्ती  के कारण ही त्रस्त है। विवेकानन्द ने जो कहा कि बंगाली गृह उसी अंग्रेजियत से आलोकित थे उस दौर मे उपनिवेशवाद से लेकर स्वतंत्रता के दौर तक तो ठीक ही कहा। बंगाली भौतिकवादिता के कारण वारेन हेस्टिग ने अपनी रासलीला भी वही अपना हरम बना कर की थी जैसा कि किसी ने लिखा था।

विवेकानन्द की पश्चिम की समझ बचकाना थी तथा वे अमेरिका के बारे मे कुछ नही जानते थे, कमोवेश उनके एक दशक बाद हेगेल पर लिखने वाले व्याख्याकार अलेक्जेन्डर कोजेव लिख रहे थे कि अमेरिका मे मनुष्यता का अन्त हो गया है वह पशुता मे पतित है। अब उनसे बेहतर तो पश्चिम की समझ विवेकानन्द की होने से रही जिनकी नजर में अमेरीकी एक अलौकिक प्रजाति है। दूसरी तरफ जिस गुण को भगवदगीता तथा भारतीय आध्यात्म हेय मानता है उसको उन्मत्त की तरह चाहते हुये विवेकानन्द लिखते हैं "जो हमारे पास नही है शायद जो पहले भी नही था, जो यवनो के पास था जिसका स्पंदन यूरोपिय विद्याधार से उस महाशक्ति को बडे वेग से उत्पन्न कर रहा है जिसका संचार समस्त भूमण्टल मे हो रहा है=हम उसी को चाहते है। वही उद्मम, वही स्वाधीनता तथा वही आत्मनिर्भरता। वही अटल धैर्य, वही कार्य दक्षता, वही एकता-वही उन्नति-वही तृष्णा चाहते है। चाहते है आपादमस्तक नस नस मे बहने वालका रजोगुण।" यह कहते हुये विवेकानन्द को भारत का इतिहास भी याद नही रहा। हमारा वह स्वर्णिम सम्राज्यवाद जो पाश्चात्य साम्राज्यवाद से ज्यादा प्रबल था तथा मानवीयता से सराबोर हुआ करता था, वह मौर्य और गुप्त साम्राज्य, वह सम्राट कनिष्क क्या उनको याद नही रहा जिसकी पताका इज्रायल तक लहरा चुकी थी! हमारा सम्राज्यवाद अपने समय में दमनकारी नही था क्योकि वह विश्वविजय कर धर्म की स्थापना करने का ही आकांक्षी रहा जैसा कि बाल्मिकी के राम कहते है-

तस्य धर्मकृतादेशा वयमन्ये च पार्थिवाः।
चरामो वसुधां कृत्स्नां धर्मसंतानमिच्छवः।।

भरत की ओर से हमें तथा दूसरे राजाओं को यह आदेश प्राप्त है कि जगत मे धर्म के पालन और प्रसार के लिये यत्न किया जाय। हम लोग धर्म का प्रचार करने की इच्छा से सारी पृथ्वी पर विचरते हैं।।

हम अपने स्वर्णिम अतीत को कैसे भूल सकते है? यह वह व्यक्ति कह रहा था जिसे अद्वैत वेदान्त मे रमने वाला आध्यात्मिक स्वामी की उपाधि दी गई है। नरेन्द्र मोदी ने विवेकानन्द को तीन वजहों से अपना आदर्श बनाया तथा उनकी प्रतिमा लेकर गुजरात भर में घूमें। पहली वजह विवेकानन्द की एक हिन्दू स्वामी के रूप में महानता तथा उनका एक छद्म राष्ट्रवाद तथा दूसरी वजह उनका विदेश प्रेम तथा तीसरी बजह विवेकानन्द का जातिवाद में अटूट विश्वास । विवेकानन्द को मनु के जातिवाद में एक तरह का अटूट विश्वास था और उन्होने कहा था कि 'वर्ण-धर्म मानने वाले व्यक्तियों को ही आत्मचिंतन के लिये समय मिलता है। यही हमे अभिष्ट है। वर्णव्यवस्था ने हमे राष्ट्र के रूप मे जीवित रखा है और यद्यपि इसमे बहुत दोष है पर उससे भी बहुत अधिक लाभ है।' सवाल धर्म का भी है तथा राष्ट्र का भी है और दोनो एक दूसरे से वियुक्त नही हो सकते। जब धर्म नही होता तो राष्ट्र भी नही होता और न ही मानवीय मूल्य ही होते है। इस बात से कौन सा इतिहासकार इन्कार कर सकता है कि आधुनिक युग मे अर्थात धर्मवीहीन शुष्क विचारधारा के युग में जब धर्म को अलग कर दिया गया तो जितना रक्तपात हुआ है उतना समूचे मानव इतिहास मे नही हुआ है।

विगत सौ वर्षो ने बुर्जुआ समाज तथा उसकी विचारधारा ने जितना कत्लेआम किया है उतना पूरे इतिहास मे नही हुआ है। सवाल धर्म का है तथा सवाल मानवीय मूल्यो का है। यह तर्क खारिज किया जा चुका है कि धर्मवीहीन मूल्य, बौधिकता पर आधारित एक आधुनिक मानववाद जैसी विचारधारा से मानव सभ्यता में किसी भी तरह की शान्ति रह पायेगी। कमोवेश सौ वर्ष का इतिहास तो यही वतलाता है कि हर दशक एक भयंक्रर कत्लेआम हुआ है जिसमे बुर्जुआ तो एक भी नही मारा गया, मारी गई बेचारी निरीह जनता। आशविज में कौन मारा गया? बेचारी निरिह जनता मारी गई और किसने उनका मांस भक्षण किया? व्यापारियो ने। अमेरिका जैसे व्यापारी देश अपने व्यापार के विस्तार के लिये किसी भी हद तक गये और जिसको चाहा उसको रौंदा। यह मार्केन्टलिज्म का मानववाद क्रूर,राक्षसी तथा विध्वंशक रहा है। वास्तव में सवाल यह पूछा जाना चाहिये कि समय की यह क्रूरता कहां से आई यदि किसी विचारधारा से नही आई? और कौन सी विचारधारा है जिसने इस क्रूरता का विस्तार किया? निःसन्देह वह आधुनिक बाजारवादी विचारधारा ही है जिसमे सबकुछ बाजार के फक्-शिट वेदी पर आहुत है। 

भारत में सभी छोटे बडे धर्म एकदूसरे के साथ रहते आये बगैर किसी भय के और हिन्दू धर्म की उदारता का यह उदाहरण है कि षडदर्शन पूजन तक किया जाता है अर्थात सबमे दैवी भाव की प्रतिष्ठा की गई थी उसी तरह उन्हे देखने की शिक्षा दी गई है। हमारे धर्म सेक्यूलर रहे हैं और उनके सेक्यूलर तानेबाने को आधुनिक चालबाजो ने छिन्नभिन्न करके रख दिया है। हमे इस सेक्यूलर तानेबाने को बनाये रखते हुये, धर्म की चेतना को पुनः जागृत करना चाहिये क्योकि इसी में भारतीय जीवन सदियो से शान्ति पूर्वक रहता आया है। हिन्दुत्वा व्यापारियों की धर्म की राजनीति को सिरे से खारिज करने की जरूरत है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिपोक्रेसी और राजनीति हिन्दुओ के लिये ही सबसे खतरनाक है, ये हिन्दुओ के ही सबसे बडे दुश्मन है। यह तर्क भी बेवकूफाना है कि नरेन्द्र मोदी भाजपा-संघ के प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित होंगे तो भाजपा को १८० सीट मिल जायेगा। कौन देगा वोट, क्या वह हिन्दू जो बहुत हद तक भगवा रंग से भ्रमित होकर वोट देता था वह भी इस कमोवेश डूब चुकी भाजपा को वोट देगा? सावरकर के चेले के हाथ कौन देश की बागडोर देना चाहेगा! पता चला नरेन्द्र मोदी किसी विदेशी से साठगांठ करके कहे कि चलो भारत को मिलजुलकर शासन करे क्योकि विवेकानन्द ने भविष्यवाणी कर दिया है कि भारत पर विदेशी राज करेगा। भैय्या ये बडे सियार टाईप हैं जनता को इनके मायाजाल से बचना पडेगा। यह देश सेक्यूलर था, यह देश सेक्यूलर रहेगा तथा इस देश की बागडोर केवल भारतीय के ही हाथ मे होगी। भारत का समय शुरू होता है अब।

http://visfot.com/index.php/current-affairs/8530-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%9B%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AE-%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6.html

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