Sunday, 14 April 2013 13:39 |
जनसत्ता 14 अप्रैल, 2013: पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भाषा सिंह ने अपनी पुस्तक अदृश्य भारत में भारत की एक दृष्टि-ओझल नागरिक आबादी के निश्शब्द जीने-मरने और अब संघर्ष के पथ पर आगे बढ़ने की जद्दोजहद दिखाई है। यह अदृश्य भारत मानव मल ढोने के बजबजाते यथार्थ से जुड़ा है। दो खंडों में विभाजित इस पुस्तक के पहले खंड में कश्मीर से कर्नाटक तक, ग्यारह राज्यों के आधार पर ग्यारह अध्याय हैं और दूसरे खंड में सरकारी तंत्र पर तीन अध्याय हैं। इसके अलावा, परिशिष्ट खंड में छह ऐसे अध्याय हैं, जिनमें कानूनी और प्रशासनिक मुस्तैदियों और कोताहियों का वर्णन है। हैरत की बात है कि पश्चिम बंगाल, जहां लंबे समय तक वामपंथी यानी श्रमिकों की सरकार रही, वहां भी इस प्रथा का उन्मूलन नहीं किया गया। भाषा सिंह ने इस अध्याय का शीर्षक दिया है- 'पश्चिम बंगाल: भाटपाड़ा- लाल माथे पर मैला'। उत्तर प्रदेश में सरकार चाहे किसी भी दल की हो, उसका इन समुदायों के जीवन पर कोई गुणात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। दिल्ली समेत पूरे भारत ने जैसे इस समुदाय की भीषण और भयावह जिंदगी से आंखें फेर ली है। इस समुदाय के एक-एक व्यक्ति की चिरपोषित आकांक्षा है कि इस गंदे काम से मुक्ति मिल जाए, पर मुक्ति जैसे आकाशकुसुम हो गई है। डॉ आंबेडकर ने बहुत पहले सफाईकर्मी समुदायों से अपील की थी कि इस अपमानजनक पेशे को तुरंत छोड़ कर दूसरे पेशों में लग जाना चाहिए। वे जानते थे कि जब तक कोई भी समुदाय इस काम से जुड़ा रहेगा, तब तक शेष समुदाय उससे अस्पृश्यता और दूरी बरतेंगे। प्रश्न है कि आखिर इस पेशे से इन समुदायों को आज तक मुक्ति क्यों नहीं मिल पाई। शायद इसलिए कि इस समुदाय का दुख-दर्द शेष भारत की चिंता और सरोकारों का अभिन्न हिस्सा नहीं हो पाया है। यह कैसा लोकतंत्र है जहां वर्ग, धर्म और जाति जानने के बाद आंदोलनों और कार्रवाइयों की रफ्तार, तेज या धीमी होती है। मैला ढोने के विरुद्ध कानून तो बहुत बने, पर उनका क्रियान्वयन बिल्कुल नहीं हो पाया। यह पुस्तक उस वर्ग के लोगों में इस दृढ़ इच्छाशक्ति को रेखांकित करती है कि वे स्वेच्छा से इस कार्य को छोड़ रहे हैं। दूसरी ओर, शासन-प्रशासन का भी आह्वान करती है कि वे अपने कर्तव्यों को निष्ठा से पूरा करें। पर भाषा सिंह कहती हैं कि जिम्मेदारी सवर्ण समुदाय की सबसे अधिक है, क्योंकि वही मुख्यतया शक्ति केंद्रों का संचालन सूत्र संभाले हुए है। इसी वर्ग की राष्ट्रनिष्ठा और ईमानदार कोशिशों के फलस्वरूप यह 'अदृश्य भारत' भारत के परिदृश्य पर दृश्यमान हो सकता है।
अजय नावरिया http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/42417-2013-04-14-08-09-42 |
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Monday, April 15, 2013
पेशे में यंत्रणा
पेशे में यंत्रणा
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