BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Sunday, June 24, 2012

सोनिया के संगमा को संघ का समर्थन

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सोनिया के संगमा को संघ का समर्थन

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सोनिया के संगमा को संघ का समर्थन

कांग्रेस की कथनी को सुनकर उसकी करनी का अंदाज नहीं लगाया जा सकता. यही उसकी राजनीतिक सिद्धि है. इसी की बदौलत अब तक कांग्रेस देश पर राज करती आई है और इसी अंतर की बदौलत इस बार राष्ट्रपति चुनाव में उसने ऐसा दांव चला है कि खुद ही सत्तापक्ष और खुद ही विपक्ष बन बैठी है. इस वक्त राष्ट्रपति चुनाव दो प्रमुख उम्मीदवार हैं और कमाल देखिए कि दोनों ही कांग्रेसी खेमे से हैं. एक का नाम है प्रणव मुखर्जी और दूसरे हैं पी ए संगमा.

वैसे तो सोनिया गांधी का पीए संगमा से तबसे ही रिश्ता खराब है जबसे उन्होंने सोनिया के विदेशी मूल को मुद्दा बनाकर 1999 में अलग पार्टी बना ली थी. संभवत: यही वह कारण है जिसकी बदौलत भाजपा के वर्ग ने उन्हें सोनिया विरोधी मानकर समर्थन देने का ऐलान कर दिया. लेकिन समय नदी के पानी की तरह होता है. आज जो है, कल वो नहीं रहता है. समय बीतने के साथ संगमा और सोनिया के बीच समन्वय और संगम का काम संगमा की बेटी अगाथा ने किया और कुछ हद तक संबंध सामान्य भी हुए. लेकिन संगमा को न तो पार्टी में वापस लौटना था और न ही वे लौटे. हां, उनकी बेटी केन्द्र की कांग्रेसी सरकार में एनसीपी के कोटे से मंत्री है और बेटा मेघालय की स्थानीय राजनीति में रम गया है. इसलिए संगमा ने सीधे राष्ट्रपति चुनाव में हाथ आजमाने की कोशिश करने में कोई बुराई नहीं समझी.

लेकिन राष्ट्रपति चुनाव के मैदान में आने के लिए संगमा ने कोई तैयारी न की हो, ऐसा नहीं है. शुरूआत हुई उन 53 सांसदों के समर्थन से जो आदिवासी वर्ग से संसद में प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने संगमा को समर्थन दिया. इसमें अधिकांश कांग्रेसी सांसद हैं. इसी के बाद संगमा ने नवीन पटनायक और जयललिता से संपर्क किया और उनका समर्थन जुटा लाये. इधर कांग्रेस द्वारा प्रणव मुखर्जी के नाम का ऐलान किये जाने के बाद भी संगमा ने हार नहीं मानी और अपने लिए समर्थन जुटाने में जुटे रहे. उधर कांग्रेस के रणनीतिकार एनडीए में फूट डालने की योजना को अंजाम दे रहे थे और इधर संगमा भाजपा से समर्थन लेने की कोशिश कर रहे थे. शिवसेना और जदयू का समर्थन दादा ले उड़े तो प्रतिक्रिया में भाजपा के लिए अच्छा यही था कि वह संगमा को समर्थन देकर कम से अपने होने का अहसास तो करा ही देती. आखिरकार कुछ न सही तो संगमा ही सही की मजबूरी के साथ भाजपा ने संगमा के नाम का समर्थन कर दिया. बहाना यह कि इससे जयललिता और नवीन पटनायक से रिश्ते मधुर करने में मदद मिल सकती है.

लेकिन राष्ट्रवादी पार्टी द्वारा संगमा को समर्थन करते वक्त यह याद नहीं रहा कि पी ए संगमा भी कैथोलिक ईसाई हैं. वही जो सोनिया गांधी हैं. अब दिल्ली के राजनीतिक गप्पेबाज बता रहे हैं कि अंदर ही अंदर संगमा को सोनिया गांधी का समर्थन मिला हुआ है. ऐसा इसलिए क्योंकि रोम चाहता है कि भारत के सर्वोच्च प्रशासनिक पद पर एक ईसाई बैठे. सूचनाओं का कारोबार करनेवाले लोगों का तो यह भी कहना है कि ईसाई मिशनरियां पूरी जी जान से संगमा के लिए समर्थन जुटाने का काम कर रही हैं. अगर संगमा राष्ट्रपति बनते हैं तो ईसाई मिशनरियों और देश के ईसाईयों के लिए इससे ज्यादा गौरव की बात कुछ नहीं होगी. कहनेवाले तो यह भी कह रहे हैं कि यूपीए 2 की सरकार बनने के साथ ही तय हो गया था कि सोनिया गांधी इस बार संगमा का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे करेगी लेकिन कांग्रेस आलाकमान की आंतरिक राजनीति की मजबूरियों के चलते वे ऐसा कर न सकीं. इसलिए यह काम ईसाई मिशनरियों और आदिवासियों सांसदों के फोरम ने अपने हाथ में ले लिया और संगमा को उम्मीदवार बनाकर मैदान में डटा दिया.

बताने वाले यह भी बता रहे हैं कि इस बार भी हालात कुछ वैसे ही हैं जैसे 1974 में इंदिरा गांधी के वक्त में थे. खुद इंदिरा गांधी वीवी गिरी को राष्ट्रपति बनवाना चाहती थी लेकिन कामराज के नेतृत्व में कांग्रेस नीलम संजीव रेड्डी का समर्थन कर रही थी. चुनाव हुए और गिरी राष्ट्रपति चुन लिये गये. जो लोग इस पुरानी घटना का संदर्भ दे रहे हैं वे भरोसा दिला रहे हैं कि देख लीजिएगा इस बार भी सोनिया गांधी के उम्मीदवार संगमा ही राष्ट्रपति का चुनाव जीतेंगे.

अब इन सूचनाओं में कोई सच्चाई हो न हो लेकिन इतना तय है संगमा को भाजपा का समर्थन दिये जाने के बाद से संघ फ्रस्टेसन में चला गया है. संघ के लोग इस बात से नाराज हैं कि यह कैसी पार्टी है कि अपने लिए एक राष्ट्रपति का उम्मीदवार भी पैदा नहीं कर सकी और कट्टर होते जाते हिन्दूवादी दल ने सोनिया के जातवाले को अपना समर्थन दे दिया.

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