Nityanand Gayen
बंगाल में एक समय पर जो लोग सीपीएम और वामपंथी दलों के लिए निचले स्तर (जमीनीस्तर नहीं कह सकता, क्योंकि जो जमीनी स्तर पर काम करते हैं उन्हें पार्टी में कोई पूछता नहीं था) काम करते थे , वे सभी सत्ता बदलने के साथ ही ममता के साथ हो लिए | खुद मेरा गाँव सीपीएम का गढ़ हुआ करता था कभी अब वहां के सभी बुजुर्ग ममता को पसंद करते हैं | सुंदरवन के सीपीएम सांसद कांति गांगुली ने अपने कार्यकाल में उस क्षेत्र के लिए बहुत काम किया था , मौली नदी पर ब्रिज बनवाया था पहले नदी पार करने के लिए घंटो ज्वार का इंतज़ार करना पड़ता था किन्तु पुल बनने के बाद लोगों को बहुत आसानी हुई फिर भी वहां के लोगों ने चुनाव के वक्त तृणमूल उम्मीदवार को चुना !
मेरे होश में मुझे याद है कि हमारे घर से कभी भाजपा को किसी ने वोट दिया हो ऐसा कभी नहीं हुआ , किन्तु खुद वामपंथ पार्टी के लोगों ने कांग्रेस को वोट देने के लिए कहा जरुर |
सीपीएम के शासन काल में बंगाल में राशन व्यवस्था बहुत बढ़िया था , किन्तु अब उससे भी बेहतर है और वामपंथी दलों की दिक्कत यह है कि उन्हें बर्दस्त नहीं कि उनके कार्य शैली पर कोई सवाल करें ! तो भाजपा और अन्य पार्टियों से कैसे अलग हुए आप ?
आपकी 35 साल के शासनकाल में बंगाल में दुर्गापूजा और बाकी धार्मिक कार्यक्रम मजबूत से मजबूत होता गया और पहले ममता आई और अब भाजपा जैसी धार्मिक पार्टी को भी वहां वोट मिलने लगा है | क्या आपने सोचा इस मुद्दे पर ? दिवंगत कमुनिस्ट नेता और पूर्व परिवहनमंत्री सुभाष चक्रबर्ती ने सरेआम कहा कि वह पहले एक ब्राह्मण हैं फिर कमुनिस्ट | क्यों महान नेता ज्योति बसु देश के पहले कमुनिस्ट प्रधानमंत्री बनने से रह गये ? क्यों सोमनाथ चैटर्जी को पार्टी से अलग होना पड़ा था ? क्यों पार्टी का पत्र (स्वाधीनता) शारदीय विशेषाकं निकालता है ?
ऐसे अनेक सवाल है | क्यों मानिक सरकार को कभी राष्ट्रीय फ्रंट पर आगे नहीं किया गया ?
यदि ये सवाल करना गलत है , तो मैं गलत ही होना पसंद करूँगा , मुझ पर आप संदेह बे-झिझक कर सकते हैं , यह आपका लोकतांत्रिक अधिकार है | मैं समय और मुहर्त देख कर सवाल नहीं करता |
मैं कमुनिस्ट मानता हूँ खुद को, और यही मानता रहूँगा | पर आपकी आलोचना के डर से सवाल करना नहीं छोडूंगा |
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